रहीम के दोहे NCERT Class 6 Hindi Chapter 5 Extra Question Answer
Class 6 Hindi Chapter 5 Extra Questions रहीम के दोहे अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
रहीमदास ने बड़े को देखकर छोटे को न छोड़ने के लिए क्यों कहा है?
उत्तर:
रहीमदास ने बड़े को देखकर छोटे को न छोड़ने के लिए कहा क्योंकि सभी का अपना-अपना महत्व होता है जैसे- जहाँ सुई काम आती है वहाँ तलवार काम नहीं आ सकती।
‘प्रश्न 2.
‘तलवार’ शब्द किसका प्रतीक है?
उत्तर:
‘तलवार’ शब्द तलवार का प्रतीक है।
प्रश्न 3.
सज्जन धन संचय किसलिए करते हैं?
उत्तर:
सज्जन धन संचय दूसरों की भलाई के लिए करते हैं। उन्हें अपना कोई स्वार्थ नहीं होता ।
प्रश्न 4.
रहीम ने किस धागे को न तोड़ने के लिए कहा है?
उत्तर:
रहीम ने प्रेम रूपी धागे को न तोड़ने के लिए कहा है।
प्रश्न 5.
‘चून’ के संदर्भ में पानी का क्या महत्व है?
उत्तर:
‘चून’ के संदर्भ में पानी का विशेष महत्व है। ‘चून’ शब्द का प्रयोग चूने और आटे के लिए किया गया है। चूने में जब तक पानी न मिलाया जाए तो वह सफ़ेदी नहीं देता और आटे में जब तक पानी न मिलाया जाए तो रोटी नहीं बन सकती।
प्रश्न 6.
मनुष्य के लिए पानी की समानता किससे की गई है ? रहीम के विचारों के अनुसार बताइए ।
उत्तर:
मनुष्य के लिए पानी की समानता उसके सम्मान के लिए की गई है। रहीमदास ने यह माना है कि यदि मनुष्य का सम्मान एक बार चला जाए तो वैसा ही सम्मान फिर से प्राप्त नहीं किया जा सकता।
प्रश्न 7.
रहीम ने थोड़े दिनों की विपदा को ‘भली’ क्यों कहा है?
उत्तर:
रहीमदास ने थोड़े दिन की विपदा को ‘भली’ कहा है क्योंकि उस दौरान मनुष्य को यह पता चल जाता है कि संसार में कौन हमारा हितैषी है और कौन अहितैषी ।
प्रश्न 8.
रहीम जिह्वा को बावरी अर्थात पागल क्यों कहते हैं?
उत्तर:
रहीमदास ने जिह्वा को बावरी कहा है जैसे एक पागल कुछ भी कहने से पूर्व सही-गलत नहीं सोचता, वैसे ही जिह्वा भी कई बार ऐसा कुछ बोल देती है कि दिमाग को जूते खाने पड़ते हैं अर्थात मनुष्य को पछताना पड़ता है।
प्रश्न 9.
कई बार दिमाग को जिह्वा के कारण जूतियाँ क्यों खानी पड़ती है?
उत्तर:
जिह्वा के कारण दिमाग को जूतियाँ खानी पड़ती है, क्योंकि कई बार यह सोचे-समझे बिना बोलती है।
प्रश्न 10.
संपत्ति होने पर लोगों का व्यवहार हमारे प्रति कैसे होता है?
उत्तर:
हमारे पास संपत्ति होने पर लोगों का व्यवहार बहुत अच्छा रहता है। बहुत से लोग कई तरीकों से हमारे बन जाते हैं लेकिन उनकी असली पहचान संपत्ति न रहने पर होती है।
प्रश्न 11.
सच्चे मित्रों की क्या पहचान होती है?
उत्तर:
सच्चे मित्र वही होते हैं जो मुश्किल समय में भी हमारा साथ नहीं छोड़ते। दुख हो या सुख सदा हमारे साथ रहते हैं।
Class 6 Hindi Chapter 5 Extra Question Answer रहीम के दोहे लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
रहीम ने सुई और तलवार के उदाहरण किस संदर्भ में दिए हैं?
उत्तर:
रहीमदास का मानना है कि हमें प्रत्येक वस्तु को या मनुष्य को समान महत्व देना चाहिए। क्योंकि एक का स्थान दूसरा नहीं ले सकता जैसे सुई कपड़े सिलने के काम आती है और तलवार युद्ध में। इन दोनों का प्रयोग एक-दूसरे के स्थान पर नहीं किया जा सकता।
प्रश्न 2.
प्रकृति हमें क्या सीख देती है? रहीमदास के दोहे के आधार पर बताइए ।
उत्तर:
प्रकृति हमें परोपकार करने की सीख देती हैं जैसे – वृक्ष अपने फल नहीं खाते, सरोवर अपना जल नहीं पीते, ऐसे ही हमें भी अपना जीवन दूसरों की सहायता करके जीना चाहिए।
प्रश्न 3.
प्रेम रूपी धागे को तोड़ना क्यों नहीं चाहिए?
उत्तर:
प्रेम रूपी धागे को तोड़ना नहीं चाहिए क्योंकि यदि संबंधों में प्रेम रूपी धागा एक बार टूट जाता है तो मन में गाँठ बन जाती है अर्थात संबंध ठीक हो जाने पर भी मन-मुटाव रह ही जाता है।
प्रश्न 4.
हमारे जीवन में पानी का अत्यधिक महत्व है क्यों और कैसे?
उत्तर:
हमारे जीवन में पानी का बहुत महत्व है। इसे बनाए रखना चाहिए। यदि पानी न हो तो मोती का कोई महत्व न रहेगा। पानी अर्थात चमक के बिना मोती बेकार है, पानी अर्थात सम्मान के बिना मनुष्य जीवन व्यर्थ है और जल के बिना आटे की रोटी नहीं बन सकती और चूना अपनी सफ़ेदी भी पानी के बिना नहीं देता ।
प्रश्न 5.
हमें अपनी जिह्वा से सोच-समझकर क्यों बोलना चाहिए?
उत्तर:
हमें अपनी जिह्वा से सोच-समझकर बोलना चाहिए क्योंकि यदि हम बिना सोचे-समझे कुछ बोल देते हैं तो कई बार दूसरे को बूरा लग जाता है और हमें शर्मिंदा होना पड़ता है।
Class 6 Hindi Chapter 5 Extra Questions रहीम के दोहे दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न.
वर्तमान में भी रहीमदास के दोहों की सार्थकता ज्यों की त्यों है- कैसे?
उत्तर:
वर्तमान समय में भी रहीमदास के दोहों की प्रासिंगता ज्यों की त्यों बनी है। जैसे बड़े को पाकर छोटों को मत छोड़ो, सज्जन लोगों की भाँति दूसरों की सहायता करना एवं परोपकार की भावना से प्रेरित होना चाहिए। किसी के साथ प्रेम संबंधों को तोड़ना नहीं चाहिए, विपदा के दिनों में यह पता चल जाता है कि कौन हमारा हितैषी है और कौन अहितैषी । हमें अपनी जीभ से सोच-समझकर बोलना चाहिए और सच्चा मित्र वही होता है जो विपत्ति के समय में भी काम आए।
ये सभी तथ्य वर्तमान में भी आवश्यक हैं और भविष्य में भी रहेंगे । इसीलिए रहीमदास जी के दोहों को उपयोगी माना जाता है।
Class 6 Hindi Chapter 5 Extra Question Answer रहीम के दोहे मूल्यपरक / व्यावहारिक प्रश्न
आप क्या करेंगे-
प्रश्न.
(क) यदि हमारे मित्र से अच्छा मित्र हमें मिलजाए-
उत्तर:
हम अपने पुराने मित्र को छोड़ेंगे नहीं बल्कि उसे भी नए मित्र से परिचित करवाएँगे ।
(ख) यदि कोई जरूरतमंद आपको मिल जाए-
उत्तर:
मैं तन, मन एवं धन से उसकी सहायता करूँगा ।
(ग) यदि आपकी अपने किसी संबंधी या मित्र से लड़ाई हो जाए-
उत्तर:
मैं जल्दी से जल्दी सुलझा लूँगा / लूँगी ताकि कोई मनमुटाव न हो जाए ।
(घ) यदि कोई आपको बिना वजह अपमानित करे-
उत्तर:
मैं जल्द-से-जल्द अपनी सच्चाई सबके सामने लाऊँगा ताकि समाज में मेरी बेइज़्ज़ती न हो।
(ङ) अगर आप पर कोई ‘विपदा’ आ जाए-
उत्तर:
मेरे जो मित्र मेरे मुश्किल समय में मेरा साथ देंगे उनसे घनिष्ठ संबंध बनाऊँगा / बनाऊँगी।
(च) यदि कोई आपको ऐसे अपशब्द कह दे जो आपको पसंद न हो-
उत्तर:
मैं उसे प्यार से समझाने की कोशिश कररूँगा/करूँगी कि अपशब्द न कहकर अपनी जिह्वा से अच्छे-अच्छे शब्द बोलकर सभी को अपना मित्र बनाना चाहिए।
(छ) यदि कोई मित्र मुश्किल समय में साथ छोड़ दे –
उत्तर:
यदि कोई मेरा मित्र मुश्किल समय में मेरा साथ छोड़ देगा तो मैं उसे आराम से अकेले में इस बात का अहसास दिलाना चाहूँगी / चाहूँगा कि मित्रों को कभी ऐसे छोड़ना नहीं चाहिए।
Class 6 Hindi Chapter 5 Extra Questions अर्थग्रहण संबंधी एवं बहुवैकल्पिक प्रश्नोत्तर
दिए गए दोहों को पढ़कर प्रश्नों के उत्तर सही विकल्प के आधार पर दीजिए-
[1]
रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि ।
जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तलवारि ।।
शब्दार्थ : बड़ेन – बड़ा । लघु- छोटा । डारि – डालना। कहा करे- क्या करेगी। तरवारि- तलवार ।
भावार्थ – रहीमदास जी कहते हैं कि बड़े लोगों का साथ मिल जाने पर छोटों को कभी त्यागना नहीं चाहिए। सभी का अपना-अपना महत्व होता है। जैसे जहाँ सुई का प्रयोग होता है वहाँ तलवार काम नहीं आ सकती। अतः छोटों को भी उचित सम्मान देना चाहिए।
बहुवैकल्पिक प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
इस दोहे का क्या भावार्थ है?
(क) छोटों का महत्व न भूलो।
(ख) बड़प्पन मत दिखाओ
(ग) बड़े और छोटे सभी का महत्व है।
(घ) अहंकार भूलो।
उत्तर:
(क) छोटों का महत्व न भूलो।
प्रश्न 2.
लोग बड़े-छोटे के घालमेल में क्या गलती करते हैं?
(क) वे बड़ों को महत्व देते हैं।
(ख) वे छोटों को भूल जाते हैं।
(ग) वे छोटों को महत्व देते हैं।
(घ) वे बड़ों को भूल जाते हैं।
उत्तर:
(ख) वे छोटों को भूल जाते हैं।
प्रश्न 3.
‘तरवारि’ किसकी प्रतीक है?
(क) बड़े की
(ख) हिंसा की
(ग) संघर्ष की
(घ) युद्ध की
उत्तर:
(क) बड़े की
प्रश्न 4.
‘सुई’ किसकी प्रतीक है?
(क) छुटपन की
(ख) छोटे लोगों की
(ग) नीच लोगों की
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ख) छोटे लोगों की
प्रश्न 5.
‘जहाँ काम आवै सुई कहा करे तरवारि’ का आशय है-
(क) तलवार और सुई दोनों एक समान हैं।
(ख) तलवार और सुई दोनों का अपनी-अपनी जगह महत्व है।
(ग) तलवार और सुई दोनों का एक-दूसरे की जगह उपयोग करो।
(घ) तलवार और सुई दोनों घातक हैं।
उत्तर:
(ख) तलवार और सुई दोनों का अपनी-अपनी जगह महत्व है।
[2]
तरुवर फल नहिं खात हैं सरवर पियहिं न पान ।
कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान ||
शब्दार्थ : तरुवर- वृक्ष। खात-खाते । सरवर सरोवर । पियत – पीते । पान – पानी परकाज-दूसरे का कार्य । हित- भलाई। संपति-धन- – दौलत । सचहिं- एकत्रित करना / जोड़ते हैं। सुजान – बुद्धिमान / सज्जन ।
व्याख्या -रहीम जी कहते हैं कि दूसरों के हित के कारण ही वृक्ष अपने फलों को स्वयं नहीं खाते तथा सरोवर अपना जल नहीं पीते । ठीक इसी प्रकार दूसरों के प्रति उपकार की भावना रखने के कारण ही सज्जन धन जोड़ते हैं।
बहुवैकल्पिक प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
इस दोहे में किस भावना को दर्शाया गया है?
(क) परोपकार
(ख) दयालुता
(ग) दरिद्रता
(घ) सहिष्णुता
उत्तर:
(क) परोपकार
प्रश्न 2.
वृक्ष की विशेषता क्या होती है?
(क) वह पत्तों से घिरा रहता है।
(ख) वह कभी अपने फल नहीं खाता।
(ग) वह डालियों से झुक जाता है।
(घ) वह मीठे फल प्रदान करता है।
उत्तर:
(ख) वह कभी अपने फल नहीं खाता।
प्रश्न 3.
सरोवर क्या ग्रहण नहीं करते?
(क) सुगंधित पदार्थ
(ख) हवा
(ग) जल
(घ) पूजा की सामग्री
उत्तर:
(ग) जल
प्रश्न 4.
‘परकाज’ शब्द का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
(क) दूसरा काज
(ख) दूसरों के काम आना
(ग) दूसरों के हित के लिए
(घ) नई चीजें लेना
उत्तर:
(ग) दूसरों के हित के लिए
प्रश्न 5.
सज्जन पुरुषों को संपत्ति का संग्रह किसलिए करना चाहिए?
(क) अपने बुढ़ापे के लिए
(ख) दूसरों की सहायता हेतु
(ग) अमीरी का रौब जमाने के लिए
(घ) खुश रहने के लिए
उत्तर:
(ख) दूसरों की सहायता हेतु
[3]
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो छिटकाय ।
टूटे से फिर ना मिले, मिले गाँठ परि जाए ।।
शब्दार्थ : छिटकाय चटका कर । परि जाय-पड़ जाती है।
व्याख्या/ आशय – रहीम कहते हैं- प्रेम धागे के समान अखंड और कोमल होता है। इसे कभी भी जान-बूझकर तोड़ना नहीं चाहिए । यदि एक बार यह धागा टूट गया तो फिर जुड़ नहीं पाता। यदि जोड़ भी दिया जाए तो उसमें गाँठ पड़ जाती है। आशय यह है कि यदि किसी से प्रेम संबंध एक बार टूट जाए तो दोबारा संबंध बन भी जाए तो पहले जैसे नहीं बनते। मन मुटाव रह ही जाता है।
बहुवैकल्पिक प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
‘रहिमन धागा प्रेम का’ का क्या आशय है?
(क) धागा प्रेम के समान कच्चा है।
(ख) प्रेम धागे के समान कच्चा है।
(ग) प्रेम धागे के समान अटूट है।
(घ) प्रेम और धागा एक जैसे हैं।
उत्तर:
(ग) प्रेम धागे के समान अटूट है।
प्रश्न 2.
धागे और प्रेम में क्या समानता होती है?
(क) दोनों बाँधते हैं
(ख) दोनों तोड़ते हैं
(ग) दोनों जोड़ते हैं
(घ) दोनों टूटते हैं।
उत्तर:
(ग) दोनों जोड़ते हैं
प्रश्न 3.
प्रेम के धागे को तोड़ने का क्या आशय है?
(क) दुश्मनी बनाना
(ख) मित्रता तोड़ना
(ग) मित्रता करना
(घ) प्रेम भाव समाप्त करना ।
उत्तर:
(घ) प्रेम भाव समाप्त करना ।
प्रश्न 4.
‘टूटे से फिर ना मिले’ का आशय है-
(क) प्रेम टूटने से फिर लोग नहीं मिलते।
(ख) एक बार टूटने पर प्रेमी नहीं मिल पाते।
(ग) प्रेम टूटने से फिर मन नहीं मिलते।
(घ) टूटने का अवसर बार-बार नहीं मिलता।
उत्तर:
(ग) प्रेम टूटने से फिर मन नहीं मिलते।
प्रश्न 5.
‘गाँठ परि जाय’ का सांकेतिक अर्थ बताइए-
(क) संबंधों में खटास आना
(ख) संबंधों में दूरी आना
(ग) संबंधों में दुश्मनी होना
(घ) धागे में गाँठ पड़ जाना ।
उत्तर:
(ख) संबंधों में दूरी आना
[4]
रहिमन पानी राखिये, बिनु पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरै, मोती, मानुष, चून।।
शब्दार्थ : पानी- चमक, सम्मान, जल। सून- व्यर्थ, शून्य । ऊबरै- उभरे, चमके। मानुष- मनुष्य । चून- आटा ।
व्याख्या / आशय – पहला अर्थ मनुष्य के सम्मान के लिए है कि मनुष्य का सम्मान सदा बना रहना चाहिए । पानी का दूसरा अर्थ चमक से है कि पानी के बिना मोती की चमक नहीं उभर सकती। तीसरा अर्थ यह है कि पानी के बिना चूने की सफ़ेदी नहीं आती और आटे में पानी न मिलाया जाए तो उसकी रोटी नहीं बन सकती ।
बहुवैकल्पिक प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
‘रहिमन पानी राखिए’ का आशय है-
(क) रहीम के लिए पानी रखो।
(ख) भगवान के लिए पानी की रक्षा करो।
(ग) रहीम कहते हैं- पानी बनाए रखो ।
(घ) पानी को रखा रहने दो।
उत्तर:
(ग) रहीम कहते हैं- पानी बनाए रखो ।
प्रश्न 2.
‘बिन पानी सब सून’ का आटे के प्रसंग में क्या अर्थ है?
(क) पानी न हो तो रोटी नहीं खाई जा सकती।
(ख) पानी न हो तो रोटी नहीं बन सकती।
(ग) पानी न हो तो रोटी में स्वाद नहीं आता ।
(घ) पानी न हो तो रोटी सूनी लगती है ।
उत्तर:
(ख) पानी न हो तो रोटी नहीं बन सकती।
प्रश्न 3.
मोती के संदर्भ में पानी का क्या अर्थ है?
(क) तालाब
(ख) सीपी
(ग) चमक
(घ) मूल्य
उत्तर:
(ग) चमक
प्रश्न 4.
‘मानुष’ के संदर्भ में पानी का आशय है-
(क) मान-सम्मान
(ख) गुण
(ग) स्वभाव
(घ) भोजन
उत्तर:
(क) मान-सम्मान
प्रश्न 5.
दोहा मनुष्य को अपने स्वभाव के लिए क्या प्रेरणा देता है?
(क) अहंकार बनाए रखो ।
(ख) स्वाभिमानी बने रहो ।
(ग) मान-सम्मान बनाए रखो।
(घ) व्यक्तित्व बचाए रखो ।
उत्तर:
(ग) मान-सम्मान बनाए रखो।
[5]
रहिमन बिपदाहू भली, जो थोरे दिन होय ।
हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कोय ।।
शब्दार्थ : विपदा विपत्ति / कठिन समय । थोरे- थोड़े । हित- हितैषी । अनहित – हितैषी न होना । जगत-संसार ।
व्याख्या – रहीमदास जी का कहना है कि जो विपत्ति कुछ समय के लिए आती है वह अच्छी होती है क्योंकि विपत्ति के समय ही पता चलता है कि इस संसार में कौन हमारा हितैषी है और कौन नहीं।
बहुवैकल्पिक प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
रहीम ने कैसी विपत्ति को सही कहा है?
(क) जो थोड़े दिन की होती है।
(ख) जो मेहमान की भाँति आती है।
(ग) जो क्षणिक होती है।
(घ) जो सदैव रहती है।
उत्तर:
(क) जो थोड़े दिन की होती है।
प्रश्न 2.
थोड़े दिन की विपदा को ‘भला’ क्यों कहा गया है ?
(क) वह कुछ ही दिन परेशान करती है।
(ख) वह कोई सीख नहीं देती।
(ग) वह हमें यह बोध करवाती है कि हमारा हितैषी कौन है।
(घ) इनमें से कोई नहीं है।
उत्तर:
(ग) वह हमें यह बोध करवाती है कि हमारा हितैषी कौन है।
प्रश्न 3.
‘जगत’ शब्द से तात्पर्य है-
(क) संसार
(ग) भूमि
(ख) देश
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) संसार
प्रश्न 4.
विपत्ति हमें किसकी पहचान करवाती है?
(क) यह सज्जन की पहचान करवाती है।
(ख) यह दुर्जन की पहचान करवाती है।
(ग) यह हितैषी / अहितैषी की पहचान करवाती है।
(घ) यह मनुष्य को सबक सिखाती है।
उत्तर:
(ग) यह हितैषी / अहितैषी की पहचान करवाती है।
प्रश्न 5.
यह दोहा व्यावहारिक है या नीतिपरक-
(क) नीतिपरक
(ख) व्यावहारिक
(ग) व्यावहारिक एवं नीतिपरक दोनों
(घ) इनमें से कोई नहीं ।
उत्तर:
(ख) व्यावहारिक
[6]
रहिमन जिह्वा बावरी, कहि गइ सरग पताल ।
आपु तो कहि भीतर रही, जूती खात कपाल ।।
शब्दार्थ : जिह्वा – जीभ । बावरी – पागल कह गई- बोल गई। सरग, पताल – स्वर्ग पाताल । भीतर – अंदर । जूती – जूतियाँ । खात-खाने पड़ते हैं । कपाल – सिर।
व्याख्या – रहीमदास का कहना है कि हमें अपनी जीभ से सोच-समझकर बोलना चाहिए। कई बार तो यह बिगड़ते हुए सभी कार्यों को सँवार देती है और कई बार हमें बने-बनाए कामों को बिगाड़ देती है । यह स्वर्ग से पाताल तक की बातें करने की क्षमता रखती है। बात कहने के बाद यह मुँह के अंदर हो जाती है और बेचारे सिर को जुतियाँ खानी पड़ती है अर्थात मनुष्य को पछताना पड़ता है।
बहुवैकल्पिक प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
‘जिह्वा’ शब्द से आप क्या समझते हैं?
(क) जीभ
(ख) सिर
(ग) मुँह
(घ) कपोल
उत्तर:
(क) जीभ
प्रश्न 2.
‘कहि गई सरग पाताल’ पंक्ति का अर्थ बताइए-
(क) स्वर्ग से पाताल तक की बातें
(ख) न जाने कहाँ-कहाँ की बातें
(ग) जो बातें दूसरों को अच्छी नहीं लगती
(घ) (क) और (ख) दोनों।
उत्तर:
(घ) (क) और (ख) दोनों।
प्रश्न 3.
जीभ को ‘बावरी’ क्यों कहा है?
(क) क्योंकि यह जीभ घूमती रहती है।
(ख) जिस प्रकार पागल सोच-समझकर नहीं बोलता वैसे ही यह जीभ भी कई बार कुछ भी बोल जाती है।
(ग) यह तेज हवा की भाँति बहने का दम रखती है।
(घ) इनमें से कोई नहीं ।
उत्तर:
(ख) जिस प्रकार पागल सोच-समझकर नहीं बोलता वैसे ही यह जीभ भी कई बार कुछ भी बोल जाती है।
प्रश्न 4.
जीभ किसके भीतर रहती है?
(क) मुँह के
(ख) दिमाग के
(ग) पाताल में
(घ) स्वर्ग में
उत्तर:
(क) मुँह के
प्रश्न 5.
कई बार दिमाग को पछताना क्यों पड़ता है?
(क) क्योंकि कई बार जीभ बिना सोचे-समझे कुछ भी बोल देती है जो किसी के लिए हानिकारक होता है।
(ख) जीभ बोलने से पूर्व दिमाग को कुछ बताती नहीं है।
(ग) जीभ सदा दिमाग को मात देना चाहती है।
(घ) जीभ के कुछ भी बोल देने पर दिमाग को ताने सुनने पड़ते हैं और तब जीभ प्रसन्न होती है।
उत्तर:
(क) क्योंकि कई बार जीभ बिना सोचे-समझे कुछ भी बोल देती है जो किसी के लिए हानिकारक होता है।
[7]
कहि रहीम संपति सगे बनत बहुत बहु रीत ।
बिपति कसौटी जे कसे ते ही साँचे मीत । ।
शब्दार्थ : संपति- धन-दौलत सगे-अपने बनत बन जाते हैं। बहु – बहुत से । रीत ढंग । बिपति – मुसीबत | कसौटी – परखना । तेई वही । साँचे सच्चे । मीत- मित्र ।
व्याख्या – रहीम जी कहते हैं कि जब तक मनुष्य के पास धन-दौलत और मान-सम्मान रहता है तब तक लोग उसके साथ अनेक प्रकार के रिश्ते-नाते बनाने के लिए कई प्रकार के ढंग निकालते रहते हैं लेकिन जो लोग दुख, दरिद्रता और विपत्ति के समय काम आते हैं, वही सच्चे मित्र होते हैं।
बहुवैकल्पिक प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
संपत्ति आने पर क्या होता है?
(क) संबंधी घर पर आने लगते हैं।
(ख) अधिक लोगों से जान-पहचान होती है।
(ग) लोग रिश्ते-नाते बनाने के अनेक ढंग निकाल लेते हैं।
(घ) लोग ईर्ष्या करते हैं।
उत्तर:
(ग) लोग रिश्ते-नाते बनाने के अनेक ढंग निकाल लेते हैं।
प्रश्न 2.
रिश्ते नाते कब तक साथ देते हैं?
(क) जब तक हमारे पास अधिक धन-दौलत होती है।
(ख) जब हम बलशाली होते हैं।
(ग) जब हमारा स्वभाव हँसमुख होता है।
(घ) जब हम विदेश गमन की सोचते हैं।
उत्तर:
(क) जब तक हमारे पास अधिक धन-दौलत होती है।
प्रश्न 3.
सच्चे मित्र की क्या विशेषता होती है?
(क) सच्चा मित्र हर कार्य में सहयोगी होता है।
(ख) मार्गदर्शक होता है।
(ग) सदा सच बोलता है।
(घ) मुश्किल के समय भी मित्र का साथ नहीं छोड़ता ।
उत्तर:
(घ) मुश्किल के समय भी मित्र का साथ नहीं छोड़ता ।
प्रश्न 4.
सच्चे मित्र को कब परखा जा सकता है?
(क) समारोह में
(ख) सबके समक्ष
(ग) विपत्ति आने पर
(घ) हर पल
उत्तर:
(ग) विपत्ति आने पर
प्रश्न 5.
मित्र का चुनाव सोच-समझकर करना चाहिए, सदा ऐसा मित्र बनाना चाहिए जो-
(क) हमारा गलत मार्गदर्शन न करे।
(ख) मुश्किल समय में हमारा सहारा बन सके।
(ग) हमारे धन का लोभ न रखता हो ।
(घ) दिए गए सभी ।
उत्तर:
(घ) दिए गए सभी ।
परीक्षोपयोगी अन्य आवश्यक प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
रहीम ने सच्चे मित्र की पहचान करने का क्या तरीका बताया है?
उत्तरः
रहीम बताते हैं कि सच्चे मित्र की पहचान विपत्तिकाल में होती है। विपत्तिकाल में भी जो व्यक्ति हमारा साथ देता है, वही सच्चा मित्र होता है। हमारे धन-दौलत से आकर्षित होकर तो अनेक व्यक्ति अनेक प्रकार से हमसे मित्रता करने की प्रयास करते हैं, पर वे स्वार्थी होते है, सच्चे मित्र नहीं।
प्रश्न 2.
प्रेम के बारे में रहीम के विचार क्या हैं ?
उत्तरः
प्रेम के बारे में रहीम के विचार स्पष्ट हैं। वे प्रेम की नाजुकता को समझते थे। यही कारण है कि उन्होंने प्रेम को धागे के समान बताया है। धागा टूटने पर फिर पहली स्थिति में नहीं आ पाता। इसी प्रकार प्रेम में दरार आने पर पुन: पहले जैसी स्थिति नही आ पाती।
प्रश्न 3.
परोपकार की शिक्षा देने के लिए रहीम ने किस प्रकार दी है ?
उत्तरः
परोपकार की शिक्षा देने के लिए रहीम ने फलदार वृक्षों की तथा नदियों, तालाबों के माध्यम से की है। वृक्ष अपने फल स्वयं नहीं खाते, नदियाँ अपना पानी स्वयं नहीं पीती। वे सदैव परोपकार में लीन रहती है। सज्जन/ चतुर व्यक्ति भी धन-सम्पत्ति का संग्रह स्वयं के लिए न करके दूसरों के लिए ही करते हैं। यही सच्चा परोपकार है।
भाषा की बात
1. रहीम के दोहों की काषाषा है :
- ब्रज भाषा
- अवधी भाषा
ब्रज भाषा के प्रमुख कवि : सूरदार, बिहारी, घनानंद
अवधी भाषा के प्रमुख कवि : तुलसीदास
2. दोहों में से ब्रज भाषा और अवधी भाषा के शब्द चुनकर लिखिए।
ब्रज भाषा के शब्द : ……………………
अवधी भाषा के शब्द :……………………
3. पर्यायवाची शब्द
- तरुवर : वृक्ष, पेड़, पादप, विटप
- जगत : संसार, विश्व, जग
- मित्र : मीत, सखा, बंधु
- ये याद करें।
4. फलों के नाम चुनिए :
रहीम के अन्य दोहों का संकलन
1. एकै साथे सब सधै, सब साधे सब जाय।
रहिमन मूलहिं सींचिबों, फूले फलै अधाय।।
भाव : हमें केवल एक ही ईश्वर की साधना करने में ध्यान लगाना चाहिए। इसी से सभी देवता सध जाते हैं। हमें मूल को सींचना चाहिए। इसी से पर्याप्त मात्रा में फूल-फूल मिल जाते हैं। सभी देवताओं की साधने में सभी चले जाते हैं।
2. बड़े बड़ाई न करें, बड़ों न बोले बोल।
रहिमन हीरा कब कहै, लाख टका मेरा मोल॥
भाव : बड़े मनुष्य बढ़-चढ़कर अपनी बड़ाई नहीं करते। उनके बड़े काम ही उन्हें बड़ा बनाते हैं। हीरा स्वयं कभी नहीं कहता कि मेरा मूल्य लाख टका है।
3. समय पाय फल होत हैं, समय पाय झरि जात।
सदा रहे नहीं एक-सी, का रहीम पछितात।।
भाव : समय सदा एक समान नहीं रहता। समय आने पर ही पेड़ में फल लगते हैं और समय बदल जाने पर वे झड़ जाते हैं। समय बदलता रहता है, अत: इसके लिए पछताना व्यर्थ है।
4. रहिमन वे नर पर चुके, जो कछु माँगन जाहिं।
उनते पहले वे मुए, जिन मुख निकसत नाहिं।।
भाव : रहीम उन लोगों की निंदा करते हैं जो किसी से कुछ माँगने जाते है। उनसे भी बुरे व्यक्ति वे हैं जो होते हुए भी किसी को कुछ देने से मना कर देते हैं।
5. बिगरी बात बने नहीं लाख करो किन कोय।
रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय”।
भाव : रहीम दास बात बिगड़ने से रोकने के लिए कहते हैं। यदि एक बार बात बिगड़ जाए तो लाख उपाय करने पर भी वह पुन: बनती नहीं। उदाहरण देकर समझाते हैं कि यदि दूध एक बार फट जाए तो उसके मथने पर भी मक्खन नहीं निकाला जा सकता।
कबीर के दोहों का संक्लन
1. मन के हारे हार है, मन के जीने जीत।
कहे कबीर हरि पाइये, मन ही के परतीत॥
2. धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय।
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय॥
3. बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर॥
4. बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिय कोय।
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।।
5. ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय।
औरन को शीतल करै, आपहु शीतलहोयम
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