मैया मैं नहिं माखन खायो Class 6 Summary Notes in Hindi Chapter 9
मैया मैं नहिं माखन खायो Class 6 Summary in Hindi
श्रीकृष्ण माता यशोदा से कहते हैं कि- हे माता मैंने माखन नहीं खाया है। प्रातः होते ही आप मुझे मधुबन में गौओं के पीछे भेज देती हो। चारों पहर तो मैं वन में भटकता रहता हूँ और शाम को ही मैं घर आता हूँ। मैं तो छोटा बालक हूँ | जिसके छोटे-छोटे हाथ हैं। मैं अपने इन छोटे हाथों से किस प्रकार से छींको (दही रखने का बर्तन ) प्राप्त कर सकता हूँ। सभी ग्वाल-बाल तो मेरे शत्रु हैं जो ये माखन मेरे मुख पर जबरदस्ती लगा देते हैं।
माँ! तू मन की बड़ी भोली है, इनकी बातों में आ जाती है। तेरे दिल में जरूर कोई भेद है, जो मुझे पराया समझकर मुझ पर संदेह कर रही हो । ये ले अपनी लाठी और कम्बल ले ले, इन्होंने मुझे बहुत नाच नचाया है। सूरदास जी कहते हैं तब हँसकर यशोदा ने श्रीकृष्ण को अपने हृदय से लगा लिया ।
मैया मैं नहिं माखन खायो शब्दार्थ और टिप्पणी
(पृष्ठ 94 )
माखन – मक्खन (दूध से बना पदार्थ ) । भोर- प्रातः । गैयन – गौओं । पाछे-पीछे। मधुबन – ब्रजभूमि के एक वन का नाम । बंसीवट – बरगद का वह पेड़ जिसके नीचे श्रीकृष्ण वंशी बजाते थे। साँझ साँयकाल (शाम को ) । बहियन – हाथ | छीको – खूँटी आदि में लटकाया जाने वाला एक उपकरण (जैसे- हँड़िया छीका पर लटका देना। ग्वाल- अहीर, गोपालक | बैर-शत्रु, दुश्मन । बरबस – जबरदस्ती ( बलपूर्वक किया गया कार्य) । लपटायो – लगाना । भोरी – भोली । कहे कहने में। पतियायो विश्वास करना, सच समझ लेना । जिय- हृदय भेद-संशय, शंका। उपजि – उत्पन्न होना। पराया- दूसरा । लकुटि लाठी । कमरिया – कंबल । बिहँसि – हँसकर । उर – हृदय । कंठ – गला ।
मैया मैं नहिं माखन खायो कविता कवि परिचय
आपने जो रचना अभी पढ़ी है, वह सूरदास द्वारा रचित है। माना जाता है कि उनका जन्म 15वीं शताब्दी में हुआ था। सूरदास ने अपना अधिकांश जीवन मथुरा, गोवर्धन सहित ब्रज के क्षेत्रों में श्रीकृष्ण के गुणगान में भजन गाते हुए बिताया। उनकी रचनाएँ ब्रजभाषा में उपलब्ध हैं। ये रचनाएँ इतनी सुंदर हैं कि आज भी लोगों के बीच बहुत प्रचलित हैं। उनकी अधिकतर कविताओं में श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का मनोहारी वर्णन है। ये कविताएँ अत्यंत लोकप्रिय हैं और देशभर में प्रेम से गाय हैं। अपनी उत्कृष्ट रचनाओं के लिए वे महाकवि सूरदास कहलाते हैं। उनकी मृत्यु 16वीं शताब्दी में हुई थी।
Class 6 Hindi मैया मैं नहिं माखन खायो कविता
मैया मैं नहिं माखन खायो।
भोर भयो गैयन के पाछे, मधुबन मोहि पठायो।
चार पहर बंसीवट भटक्यो, साँझ परे घर आयो।
मैं बालक बहिन को छोटो, छीको केहि बिधि पायो।
ग्वाल-बाल सब बैर परे हैं, बरबस मुख लपटायो ।
तू माता मन की अति भोरी, इनके कहे पतियायो।
जिय तेरे कछु भेद उपजि हैं, जानि परायो जायो॥
ये ले अपनी लकुटि कमरिया, बहुतहिं नाच नचायो।
सूरदास तब बिहँसि जसोदा, लै उर कंठ लगायो ॥
– सूरदास