सत्रिया और बिहू नृत्य Class 6 Summary Notes in Hindi Chapter 8
सत्रिया और बिहू नृत्य Class 6 Summary in Hindi
‘सत्रिया और बिहू नृत्य’ लेखिका एवं शिक्षिका जया मेहता की एक नृत्य कहानी है। यह अंश भारतीय नृत्यों से जुड़ी उनकी पुस्तक ‘नृत्य कथा’ से लिया गया है। पाठ में भारतीय संस्कृति, नृत्य, संगीत और मान्यताओं को अत्यंत रोचक ढंग से प्रस्तुत किया गया है।
विदेशी परिवार का भारत आगमन – लंदन के केजिंग्टन में रहने वाली एंजेला अपने माता-पिता की इकलौती संतान है। उसकी माँ एलेसेंड्रा डॉक्यूमेंट्री फिल्म निर्माता थी और ब्रिटिश अकादमी से असम राज्य की नृत्य परंपरा पर एक डॉक्यूमेंट्री बनाने के लिए वित्तीय मदद दी गई थी। ऐंजला को अपनी माँ के साथ भारत की यात्रा पर आने का मौका मिलता है। डॉक्यूमेंट्री के केंद्र में असम के जनजीवन में नृत्य के महत्त्व को तलाशना था। माँ ने यह भी बताया कि उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में स्थित असम अपने वन्य-जीवन, रेशम और चाय बगानों के लिए भी जाना जाता है।
बिहू नृत्य और उत्सव – एंजेला अपने माता-पिता के साथ गुवाहाटी के एक होटल में ठहरी। शाम को पास के एक गाँव मलंग में वह बिहू त्योहार देखने पहुँची। माँ ने एंजेला को बताया कि बिहू एक कृषि आधारित त्योहार है। जिसे साल में तीन बार मनाया जाता है। सबसे पहले जब किसान बीज बोते हैं, फिर जब वे धान रोपते हैं और फिर जब खेतों में अनाज तैयार हो जाता है।
ग्रामीण परिवेश में बिहू उत्सव – एंजेला और उसके माता-पिता गाँव में बिहू उत्सव में शामिल हुए। वे अत्यंत आश्चर्य और आनंद के साथ उत्सव से जुड़े रीति-रिवाज़ों और नृत्य को देख रहे थे। एक बड़े से बरगद के पेड़ के नीचे उत्सव मंच बनाया गया था जहाँ ग्रामीण लड़के-लड़कियाँ बसंत ऋतु के आगमन पर आकर्षक नृत्य प्रस्तुत कर रहे थे। एंजेला ने जाना कि बिहू नृत्य में लड़के वाद्ययंत्र बजाते हैं। और लड़कियाँ लाल व बादामी रंग की डिज़ाइनदार पोशाक धारण करती हैं। इस रंगारंग कार्यक्रम को देखने पर उसकी इच्छा हुई कि वह भी लंदन में अपने घर पर बसंत के आगमन पर ऐसे ही नृत्य करेगी।
भारतीय संस्कृति में संगीत और नृत्य का महत्त्व- एंजेला और उसके परिवार ने उत्सव में बने स्वादिष्ट पकवानों का भी पूरा आनंद लिया। उसने सीखा कि “पूरी दुनिया की संस्कृतियों में लोग नृत्य और संगीत से अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हैं।” एंजेला की माँ डॉक्यूमेंट्री शूटिंग में व्यस्त रहीं और एंजेला ने महसूस किया कि लंदन और भारतीय समाज व जीवन में सब कुछ कितना अलग था। उसके लिए बिहू उत्सव में शामिल होना अविस्मरणीय रहा।
दक्षिणापथ सत्र और सत्रिया नृत्य-आगे चलकर एलेसेंड्रा ने उत्तरी असम में स्थित सत्रों में (मठों की पीठ ) पहुँचकर सत्रिया नृत्य का फिल्मांकन किया । माजुली में स्थित दक्षिणासत्र में उनकी मुलाकात असम की जानी-मानी लेखिका रीना सेन से हुई। रीना सेन ने उनकी अच्छी आवभगत की। रीना सेन की बेटी अनु और एंजेला हमउम्र थीं और दोनों में अच्छी दोस्ती हो गई। एंजेला को अनु ने असमिया शब्द सिखाए और भारतीय खिलौने भी दिखाए। लकड़ी के खिलौने, गुड़िया, नारियल से बने घर और तीर-कमान एंजेला को अचंभित कर रहे थे। तीर-कमान लेकर दोनों सहेलियाँ राम और रावण पर आधारित खेल का आनंद उठाती रहीं। एलेसेंड्रा ने वैष्णव मठ के सभागार में सत्रिया नृत्य कर रहे युवा साधुओं की शूटिंग की।
पौराणिक कथा पर आधारित महिला सत्रिया नृत्य – भगवान विष्णु के दो द्वारपालों जय-विजय की पौराणिक कहानी पर आधारित महिला सत्रिया नृत्य बहुत दिलचस्प था। इसमें शक्ति, बल और आकर्षण का प्रदर्शन अद्भुत था। इस नृत्यवाटिका में महिला कलाकारों ने कमाल का अभिनय किया। द्वारपाल जय और विजय निद्रा में लीन भगवान विष्णु से बड़े ऋषियों को मिलने नहीं देते। फलस्वरूप उन्हें असुर बनने का श्राप मिलता है। नींद टूटने पर भगवान दोनों को श्राप से बचाने का वचन देते हैं। बाद में जय और विजय दोबारा भगवान विष्णु के द्वारपाल बनते हैं। एंजेला इस नृत्यनाटिका से बहुत प्रभावित हुई। उसके ख्यालों में केवल सत्रिया नृत्य घूम रहा था। उसने सत्रिया कलाकारों के साक्षात्कार कार्यक्रम में हिस्सा लिया।
भारत की सुनहरी यादें – लंदन वापस लौटने के बाद भी एंजेला भारतीय नृत्य और संगीत में खोई रही । अपनी माँ की सहायता से एंजेला ने लंदन में समृद्ध भारतीय नृत्य परंपरा पर अपनी कक्षा में प्रस्तुतीकरण दिया। स्वयं किए गए नृत्य की वीडियो रिकॉर्डिंग भी प्रस्तुत की। एंजेला की रुचि असम के नृत्यों-बिहू और सत्रिया में बनी रही ।
सत्रिया और बिहू नृत्य शब्दार्थ और टिप्पणी
पृष्ठ 75
प्राचीन – पुराना । मोहक – लुभावना । अंदाजा – अनुमान। डॉक्यूमेंट्री – वृत्तचित्र |
पृष्ठ 76
बसंत ऋतु विशेष बहार का मौसम | रेशम – रेशा / सिल्क। समृद्ध-संपन्न, खुशहाल । चाय के बागान – वह भूमि जिसका प्रयोग चाय उगाने के लिए किया जाता है।
पृष्ठे 77
धान रोपना – चावल की फसल तैयार करना । माहौल- वातावरण । हतप्रभ – स्तब्ध मंत्रमुग्ध – मोहित हो जाना। वाद्ययंत्र – संगीत उपकरण। पोशाक पहनावा ।
पृष्ठ 78
अचंभित चकित । लजीज स्वादिष्ट । बहुतायत – अधिकता । फिल्मांकन – चलचित्रण, फिल्म बनाना । साक्षात्कार- प्रत्यक्ष भेंट, मुलाकात।
पृष्ठ 79
नारियल की जटा – नारियल के छिलके । असमिया- असम की भाषा या लिपि । मठ ऐसे संस्थान जहाँ गुरु अपने शिष्यों को शिक्षा प्रदान करते हैं। वैष्णव- भगवान विष्णु का उपासक ।
पृष्ठ 80
सत्रिया नृत्य – नृत्य नाटिका की शैली जो हाथ और चेहरे के माध्यम से पौराणिक कहानियाँ बनाती हैं। आकर्षण – खिंचाव / लुभावना।
पृष्ठ 81
मुद्राएँ-भाव-भंगिमा। बारीकियाँ – सूक्ष्म अंतर या भेद। प्रदर्शन – दिखलाना, प्रस्तुत करने की क्रिया । नृत्यांगना – नृत्य कला में निपुण स्त्री ।
सत्रिया और बिहू नृत्य पाठ लेखक परिचय
जया मेहता एक नृत्यांगना हैं, लेखिका हैं, शिक्षिका हैं और आप जैसे बच्चों की मित्र भी हैं। इसलिए तो वे इतनी सरलता से आपके लिए भारतीय नृत्यों की सुंदरता और बारीकियों को शब्दों में पिरो लेती हैं। इनका जन्म 1977 में हुआ। यह पाठ उनकी भारतीय नृत्यों से जुड़ी एक पुस्तक ‘नृत्य कथा’ से लिया गया है जिसका हिंदी अनुवाद शिवेंद्र कुमार सिंह ने और चित्रांकन सुरुबा नतालिया ने किया है। जया मेहता स्वयं भी ओडिसी नृत्य में पारंगत हैं और कई वर्षों से देश-विदेश में नृत्य प्रस्तुतियाँ दे रही हैं।
Class 6 Hindi सत्रिया और बिहू नृत्य पाठ
भारत एक विशाल देश है। इसकी रंग-बिरंगी, सुंदर, प्राचीन और जीवन से भरी संस्कृति पूरी दुनिया में अनोखी है। भारत के प्रत्येक स्थान का नृत्य, संगीत, कला, खान-पान, भाषा, पहनावा, रहन-सहन के तरीके, सब कुछ इतना मोहक है कि पूरी दुनिया से लोग भारत की ओर खिंचे चले आते हैं। इस पाठ में भी एक परिवार एक दूसरे देश से भारत में आया है। आइए, पढ़ते हैं कि वे कौन हैं, भारत में कहाँ आए हैं, और क्यों आए हैं?
एंजेला लंदन के जाने-माने इलाके केंजिंग्टन में रहती थी। उसका स्कूल घर से दूर नहीं था। उसका कोई सगा भाई-बहन भी नहीं था। उसे जेम्स और कीरा नाम के दोस्तों के साथ समय बिताना पसंद था। वे सब आपस में मिलकर कई काल्पनिक खेल खेला करते थे। उन्हें ऐसी कहानियों का पात्र बनने में मज़ा आता था, जिनमें दूर-दराज़ की दुनिया का जिक्र हो । एंजेला को हर उस कहानी से प्यार था, जिसमें उसे ताजमहल, एफिल टॉवर या कोलोजियम की यात्रा पर जाना हो। उसे बिल्कुल अंदाज़ा नहीं था कि जल्दी ही यात्राओं की उसकी ये कहानियाँ सच साबित होने वाली हैं।
एंजेला की माँ एलेसेंड्रा एक डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म निर्माता थीं। उन्हें लंदन की ब्रिटिश अकादमी से असम की नृत्य परंपरा पर एक डॉक्यूमेंट्री बनाने के लिए वित्तीय मदद दी गई थी। पेचीदा बात यह थी कि उनके पास इस काम को पूरा करने के लिए सिर्फ़ एक महीने का वक्त था। उन्होंने एंजेला के स्कूल से उसकी बसंत की छुट्टियों को एक हफ़्ते और बढ़ाने की अनुमति ले ली, जिससे एंजेला और उसके पिता ब्रायन भी उनके साथ जा सकें। एंजेला बहुत जल्दबाजी में बनाई गई इस यात्रा की योजना से हैरान थी, पर उसकी माँ समय से यह काम पूरा कर सकें, इसलिए वे सभी जल्दी ही तैयार हो गए।
जब तक एंजेला कुछ समझ पाती, तब तक वह लंदन से नई दिल्ली होते हुए गुवाहाटी की उड़ान पर थी। यात्रा के दौरान माँ ने एंजेला को असम की खूबसूरती के बारे में कुछ बातें बताई। असम, भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में है, जिसे अपने वन्य- जीवन, रेशम और चाय के बागानों के लिए जाना जाता है। इसके साथ असम में नृत्य की भी एक समृद्ध परंपरा है।
एलेसेंड्रा की डॉक्यूमेंट्री के केंद्र में असम के जनजीवन में नृत्य के महत्व को तलाशना था। वे जब यहाँ आ रहे थे तब अप्रैल का महीना चल रहा था। असम में यह नए साल का वक्त होता है। बसंत के आने की खुशी में वे सभी एक त्योहार मनाते हैं, जिसे ‘बिहू’ कहा जाता है। एंजेला उसी रात इसे देखने जाने वाली थी।
गुवाहाटी के एक होटल में सामान्य होने के बाद वे उसी शाम पास के एक गाँव मलंग में गए। गाँव पहुँचने पर माँ ने एंजेला को बताया कि बिहू एक कृषि आधारित त्योहार है। भारत में जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा किसानों का है। असम में बिहू साल में तीन बार मनाया जाता है। सबसे पहले जब किसान बीज बोते हैं, फिर जब वे धान रोपते हैं और फिर तब, जब खेतों में अनाज तैयार हो जाता है।
एंजेला कार से उतरी, वहाँ आस-पास उत्सव जैसा माहौल देखकर वह हतप्रभ थी। वहाँ एक बड़े से बरगद के पेड़ के नीचे मंच बनाया गया था। वह जगह लोगों से भरी हुई थी। एंजेला ने एक पेड़ के नीचे एक साथ इतने लोगों को पहले कभी नहीं देखा था। वहाँ खुले आसमान के नीचे लोगों के बीच बैठकर उसे ऐसा लग रहा था, जैसे वह आश्चर्यजनक रूप से किसी टाइम मशीन में आकर बैठ गई हो ! या क्या वह उस वक्त किसी सपनों की दुनिया में थी? वह मंत्रमुग्ध होकर वहाँ लड़के-लड़कियों को बसंत ऋतु के आगमन पर नृत्य करते देख रही थी।
एंजेला ने इस बात पर ध्यान दिया कि लड़कों ने वाद्ययंत्र ले रखे हैं और लड़कियों ने लाल और बादामी रंग की गहरी डिजाइन वाली खूबसूरत पोशाक पहन रखी है। वे सभी काफ़ी रंगीन और मस्त लग रहे थे। उनका हिलता-डुलता शरीर, हाथ-पैर की हलचल से समझ आ रहा था कि वे मौज-मस्ती के नृत्य में खोए हुए हैं। उसकी इच्छा हुई कि वह भी अपने घर पर बसंत के आगमन पर ऐसे ही नृत्य करेगी।
बिहू नृत्य और इसके उत्सव से अचंभित एंजेला और उसके परिवार ने इसके साथ-साथ लजीज पकवानों का पूरा आनंद लिया। जब वे वापस लौटे, तब माँ ने एंजेला से पूछा कि ‘उसे बिहू कैसा लगा?’ एंजेला के मन में कई तरह के विचार चल रहे थे। उसे अच्छा लगा कि इस उत्सव और नृत्य दोनों को ‘बिहू’ कहा जाता है। उसने माँ से पूछा कि क्या संगीत और नृत्य सिर्फ़ त्योहारों पर ही होते हैं। माँ ने बताया, “पूरी दुनिया की संस्कृतियों में लोग नृत्य और संगीत से अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हैं। खासतौर से भारत में बहुतायत ऐसा होता है। असम का बिहू नृत्य ग्रामीण जनजीवन के साथ-साथ फसल लगाने से लेकर बसंत के आगमन तक से जुड़ा हुआ है।”
एंजेला की माँ अगले कुछ दिन डॉक्यूमेंट्री के तथ्य जुटाने और साक्षात्कार लेने में व्यस्त रहीं, एंजेला ने काफ़ी सारी बातों पर दूर से ही गौर किया। उसने महसूस किया कि लंदन के जीवन से यहाँ सब कुछ कितना अलग था ! उसे अपनी माँ पर गर्व हुआ। वे एक वैज्ञानिक कहानीकार की तरह हैं, जो अपनी फ़िल्मों के द्वारा बहुत-सी चीज़ें एक साथ दिखाते हैं।
अगले दिन वे उत्तरी असम की तरफ़ रवाना हुए, जहाँ सभी ‘सत्रों’, अर्थात मठों की पीठ है। वे सभी एक सत्र के पास रहने के लिए जाने वाले थे और सत्रिया नृत्य का फ़िल्मांकन करने वाले थे। जब वे ‘दक्षिणापथ सत्र’ पहुँचे, तब वहाँ उनकी मुलाकात रीना सेन से हुई, जो असम की एक जानी-मानी लेखिका हैं। उस हफ़्ते उन लोगों को रीना सेन के घर पर ही रुकना था। रीना आंटी की एक बिटिया थी— अनु। अनु और एंजेला ने तुरंत एक-दूसरे की तरफ़ देखा। उन दोनों की ही उम्र दस साल
थी, दोनों ने अंग्रेज़ी में बातचीत शुरू की। अनु ने एंजेला को कुछ असमिया शब्द भी सिखाए। एंजेला को अनु के खिलौने बहुत अच्छे लगे, जो थोड़े अलग तरह के थे। गुड़िया, लकड़ी के खिलौने और नारियल की जटा से बने घर । कितने अनोखे खिलौने! उसने लंदन में ऐसे खिलौने कभी नहीं देखे थे। अनु का पसंदीदा खिलौना लकड़ी का बना तीर-कमान था, जिसे लेकर उसे राम बनना बहुत अच्छा लग रहा था। एंजेला उसकी विरोधी बनी थी, शक्तिशाली रावण । वे एक साथ खेल रहे थे, उस कूद-फाँद और लड़ाई का कोई अंत नहीं था।
एंजेला और अनु ने देखा कि एलेसेंड्रा ने वैष्णव मठ के सभागार में नृत्य कर रहे युवा साधुओं का फ़िल्मांकन किया। एंजेला आश्चर्य से सोच रही थी कि क्या सत्रिया नृत्य सिर्फ़ लड़कों और पुरुषों के लिए है? एंजेला और अनु सोच रहे थे कि काश वे भी इन युवा साधुओं की तरह गा सकते, नृत्य कर सकते और छद्म युद्ध लड़ सकते!
माँ ने एंजेला को बताया कि बीसवीं शताब्दी के मध्य में कुछ साधु मठों से बाहर आकर पुरुषों और महिलाओं को सत्रिया नृत्य सिखाने लगे। शुरू में ऐसे साधुओं को मठों से निकाल दिया गया, लेकिन आधुनिक दौर में महिला सत्रिया कलाकारों के लिए मंच पर नृत्य करना आम बात हो गई है। उस रात माँ महिला सत्रिया नृत्यांगनाओं का फ़िल्मांकन करने वाली थीं।
एंजेला बहुत उत्साहित थी, उसने रीना आंटी से आग्रह किया कि वे अनु को भी सत्रिया नृत्य में ‘महिला-नृत्य’ को देखने के लिए साथ आने दें। आंटी ने स्वीकृति दे दी, उस रात अनु और एंजेला सत्रिया नृत्य देखने गए, जिसमें भगवान विष्णु के दो द्वारपालों जय-विजय की कहानी थी। परदा उठा और एंजेला ने देखा कि सफ़ेद पगड़ीनुमा टोपी में दो महिलाएँ नृत्य और नाटक की शैली में कमाल का अभिनय कर रही हैं।
जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ी उन दोनों ने देखा कि किस तरह जय और विजय ने कई बड़े ऋषियों को भगवान विष्णु से मिलने नहीं दिया, क्योंकि उस वक्त भगवान विष्णु सो रहे थे। वे ऋषि नाराज़ हो गए। उन्होंने जय-विजय को असुर बनने का श्राप दे दिया। भगवान विष्णु की नींद जब टूटी, तब उन्हें अपने द्वारपालों को बचाने के लिए आना पड़ा। उन्होंने वचन दिया किया कि वे जय और विजय को मारकर उन्हें श्राप से बचा लेंगे। बाद में जय और विजय दोबारा भगवान विष्णु के द्वारपाल बने।
एंजेला को यह कहानी नाटकीय और दिलचस्प लगी। सत्रिया महिला नृत्यांगनाओं ने जिस प्रकार की शक्ति, बल और आकर्षण प्रदर्शित किया, वह अद्भुत था ! एंजेला को लगा कि उन महिला कलाकारों की प्रस्तुति सत्रिया नृत्य करने वाले कलाकारों से भी बेहतर थी।
इसके बाद के दिनों में अनु और एंजेला के ख्यालों में बस सत्रिया नृत्य ही घूम रहा था। उन दोनों ने स्वर्ग के द्वारपाल जय-विजय की तरह हथियार और तलवार चलाते हुए नृत्य किया। एलेसेंड्रा बच्चों की इस उत्सुकता को समझ गई और वे उन्हें सत्रिया कलाकारों के होने वाले साक्षात्कार में साथ लेकर गई।
एंजेला और अनु बहुत खुश थीं! उन नृत्यांगनाओं के नाम प्रिया और रीता थे। वे लड़कियों को सत्रिया और बिहू की कुछ खूबसूरत मुद्राएँ और बारीकियाँ सिखा रही थीं। एंजेला अत्यधिक प्रसन्न थी। वापस लौटने के बाद भी वह चलने, खाना खाने और यहाँ तक कि खेलने के दौरान भी नृत्य करती रही। वापस लंदन जाने के बाद वह उन सभी रिकॉर्डिंग्स को देखती रही, जो उसकी माँ ने रिकॉर्ड की थी। पूरे उत्साह के साथ वह असम की समृद्ध नृत्य परंपरा को याद करती रही। रंग-बिरंगा सत्रिया और आनंदित करने वाला बिहू।
माँ उसकी गहरी रुचि को समझ गई और उन्होंने पापा के साथ मिलकर एंजेला के लिए असमी नृत्य पर एक शानदार योजना तैयार की। एंजेला ने लंदन में अपनी कक्षा में, स्वयं किए गए नृत्य की वीडियो रिकॉर्डिंग के साथ उसका प्रदर्शन किया। उसके सहपाठियों और शिक्षकों को यह बहुत पसंद आया। एंजेला इस बात से बहुत रोमांचित थी कि वह असम के खूबसूरत नृत्यों की झलक उन सभी को दिखा पाई। उसे बहुत अच्छा लग रहा था। माँ को भी हर बार ऐसे ही अच्छा लगता होगा, जब वे कोई फ़िल्म बनाती होंगी। अब एंजेला के पास अपने लिए, असम के नृत्यों बिहू और सत्रिया के साथ अपना खुद का मनोरंजन था।
लेखिका— जया मेहता
अनुवादक — शिवेंद्र कुमार सिंह