पहली बूँद Class 6 Summary Notes in Hindi Chapter 3
पहली बूँद Class 6 Summary in Hindi
प्रस्तुत कविता ‘पहली बूँद’ कवि गोपालकृष्ण कौल जी के द्वारा रचित है। इस कविता के माध्यम से उन्होंने वर्षा के सौंदर्य और महत्त्व पर प्रकाश डाला है। जब आकाश से वर्षा की मोती रूपी बूँदें धरा पर गिरती हैं तो सूखी धरा में नव-जीवन आ जाता है । तत्पश्चात् चारों तरफ़ हरियाली ही हरियाली छा जाती है।
धरती के सूखे होंठों पर बारिश की बूँद अमृत के समान गिरते ही मानो वर्षा होने से बेजान और सूखी पड़ी धरती को नवीन जीवन ही मिल गया हो । धरती रूपी सुंदरी के रोमों की पंक्ति की तरह हरी घास भी मुसकाने लगी और खुशियों से भर उठी। पहली बूँद कुछ इस तरह धरती पर आई, जिसका खूबसूरत एहसास और परिणाम धरती को मिला।
नीला आसमान नीली आँखों के समान है और काले बादल उन नीली-नीली आँखों की काली पुतली के समान है। मानो बादल धरती के दुःखों से दुखित होकर वर्षा रूपी आँसू बहा रहा है। इस प्रकार धरती की प्यास बुझ जाती है। वर्षा का प्रेम पाकर धरती की प्यास बुझ जाती है और धरती के मन में फिर से हरा-भरा होने की इच्छा जाग उठी है। पहली बूँद कुछ इस तरह धरती पर आई जिसका खूबसूरत एहसास और परिणाम धरती को मिला।
पहली बूँद कविता कवि परिचय
धरती के सूखे अधरों पर ‘पहली बूँद’ के गिरने का अद्भुत दृश्य रचने वाले बाल साहित्यकार गोपालकृष्ण कौल (1923-2007) ने बच्चों के लिए देश-प्रेम, प्रकृति और जीव-जंतुओं से जुड़ी बहुत-सी मनोरम कविताएँ लिखी हैं। अपनी एक अन्य कविता ‘हम कुछ सीखें’ में वे कहते हैं— “देश हमें देता है सब कुछ, हम भी तो कुछ देना सीखें।”
Class 6 Hindi पहली बूँद कविता
वह पावस का प्रथम दिवस जब,
पहली बूँद धरा पर आई।
अंकुर फूट पड़ा धरती से,
नव-जीवन की ले अँगड़ाई।
धरती के सूखे अधरों पर,
गिरी बूँद अमृत-सी आकर ।
वसुंधरा की रोमावलि-सी,
हरी दूब पुलकी-मुसकाई।
पहली बूँद धरा पर आई ।।
आसमान में उड़ता सागर,
लगा बिजलियों के स्वर्णिम पर
बजा नगाड़े जगा रहे हैं,
बादल धरती की तरुणाई ।
पहली बूँद धरा पर आई।।
नीले नयनों-सा यह अंबर,
काली पुतली-से ये जलधर।
करुणा-विगलित अश्रु बहाकर,
धरती की चिर-प्यास बुझाई।
बूढ़ी धरती शस्य – श्यामला
बनने को फिर से ललचाई ।
पहली बूँद धरा पर आई।।
– गोपालकृष्ण कौल