परीक्षा Class 6 Summary Notes in Hindi Chapter 10
परीक्षा Class 6 Summary in Hindi
देवगढ़ रियासत के दीवान सरदार सुजानसिंह जब बूढ़े हुए तो उन्हें अहसास हुआ कि वे अब अच्छी तरह से राजकार्य करने के योग्य नहीं रह गए। यदि इस उम्र में राजकाज में किसी प्रकार की भूल हो गई तो उन्होंने जो पूरी जिंदगी नाम कमाया है उस पर दाग लग जाएगा और वे बिलकुल नहीं चाहते थे। इसी कारण उन्होंने अपने पद से त्यागपत्र देने की बात राजा से की और राजा ने इस शर्त पर स्वीकार किया कि अब वे ही अपने समान योग्य दीवान राज्य के लिए खोज कर दें दूसरे दिन ही सुजानसिंह ने विज्ञापन निकाला और राज्य के योग्य व्यक्तियों को पद के लिए आमंत्रित किया। साथ ही कहा कि शिक्षा से ज्यादा उम्मीदवार के व्यवहार को परखा जाएगा।
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दीवान पद के उम्मीदवार विज्ञापन पढ़कर देवगढ़ रियासत में एकत्रित होने शुरू हो गए। चूँकि इस ऊँचे पद के लिए शिक्षा या किसी अन्य प्रकार का कोई बंधन नहीं था केवल व्यवहार व आचार-विचार को परखना था; इसी कारण अधिक संख्या में उम्मीदवार रियासत पहुँचे और व्यवहार का झूठा दिखावा करने लगे। कोई सुबह जल्दी उठने लगा, तो कोई सेवकों से बड़े आदरपूर्वक बात करने लगा। सभी दीवान सूरजसिंह को आकर्षित करने में लगे हुए थे। दूसरी तरफ दीवान जी दिखावटी लोगों के बीच सच्चे इंसान को परख रहे थे।
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दीवान पद के लिए आए उम्मीदवारों में से कुछ ने हॉकी खेलने का कार्यक्रम रखा और मैदान में खेल आरंभ किया। वे सभी खेल में अपना-अपना कौशल दिखाने लगे। संध्या तक खेलते-खेलते तर हो गए परंतु हार-जीत का निर्णय ना हो सका। कुछ देर आराम करने के पश्चात वे सभी अपने ठहरने के स्थान की तरफ जाने लगे। रास्ते में एक नाला था जो मैदान से दूर हटकर था और उस पर कोई पुल नहीं था।
राहगीरों को उसी नाले में से चलकर जाना पड़ता था। तभी वहाँ एक किसान, अनाज से भरी गाड़ी लेकर उसी नाले में आया परंतु कीचड़ और ऊँचाई के कारण वो गाड़ी को नाले से बाहर नहीं निकाल पा रहा था। उसकी इस स्थिति को वहाँ से गुजरने वाले खिलाड़ी देखकर भी अनदेखा कर रहे थे और आगे बढ़ते जा रहे थे। किसान को उनकी सहायता की आवश्यकता तो थी पर वो मदद माँगने का साहस नहीं कर पा रहा था।
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जब नाले में फँसे किसान की किसी ने भी मदद नहीं की तब एक खिलाड़ी जो लंगड़ाता हुआ चल रहा था, किसान के पास आया उसने विनम्र भाव से सहायता करने की बात कही। उसने अपनी पूरी ताकत से बैलगाड़ी को बाहर निकाला। युवक घुटनों तक जमीन में गढ़ गया था परंतु उसने हिम्मत नहीं हारी और किसान को मुसीबत से बाहर निकाला। किसान ने युवक का धन्यवाद किया। और कहा कि – ” नारायण चाहेंगे तो दीवानी आपको ही मिलेगी ” । युवक को किसान सुजानसिंह की तरह लगा और किसान के भेष में दीवान भी युवक का संदेह भाँप गए ।
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चुनाव प्रक्रिया पूरी होने के पश्चात सभी निर्णय का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। सभी के मन में एक ही सवाल था कि दीवान का पद किसे मिलेगा ? सभी उम्मीदवारों की दिल की धड़कन बढ़ी हुई थी। संध्या के समय राजा के दरबार में सभी की नजरें सुजानसिंह पर टिकी थी तभी उन्होंने पंडित जानकीनाथ को दीवान चुने जाने की बधाई दी।
उन्होंने बताया कि किस प्रकार स्वयं घायल होने पर भी पंडित जानकीनाथ ने एक गरीब किसान की मदद बिना किसी स्वार्थ के की। ऐसा व्यक्ति ना केवल उदार और साहसी है बल्कि ये कभी गरीबों को नहीं सताएगा ऐसा मुझे विश्वास है। ये कभी दया और धर्म के मार्ग से नहीं हटेगा। इसी कारण देवगढ़ रियासत के लिए यही योग्य उम्मीदवार है। इतना कहकर उन्होंने उसे दीवान घोषित कर दिया।
परीक्षा शब्दार्थ और टिप्पणी
पृष्ठ 105
विनय – प्रार्थना । अवस्था ढलना – बूढ़ा होना, उम्र ढलना। नेकनामी – प्रसिद्धि, यश नीतिकुशल- आचरण में निपुण । उपस्थित – प्रस्तुत, हाजिर।
पृष्ठ 106
हष्ट-पुष्ट- स्वस्थ, तंदरुस्त । मंदाग्नि कमजोर व्यक्ति (जिसमें भोजन पचाने की क्षमता कम हो ) । सुशोभित- सुंदर, शोभायमान । मुल्क – देश, राज्य, रियासत । तहलका- हलचल, खलबली । परखना आजमाना । सनद – शैक्षिक एवं दक्षता प्रमाण पत्र, प्रमाण पत्र। घृणा- नफरत । नम्रता- विनम्र, नरमी । सदाचार- अच्छा आचरण, अच्छा व्यवहार ।
पृष्ठ 107
मँजा हुआ खिलाड़ी – कार्य में निपुण । अप्रेंटिस- उम्मीदवार | भलेमानुस – अच्छे व्यक्ति ।
पृष्ठ 108
पथिक- राहगीर, रास्ते पर चलने वाला। ढकेलना- धक्का देकर आगे बढ़ाना। झुंझलाकर परेशान होकर । उभरना – बाहर निकालना । आपत्ति – मुसीबत |
पृष्ठ 109
सहमना – डरना। स्वार्थ- लालच । मद – नशा । उदारता- दया। वात्सल्य प्रेम अकस्मात अचानक । ठिठक जाना- रुक जाना। उकसाना जगाना, भड़काना । उबारना – बचाना। संदेह शक। भाँप जाना समझ जाना । तीव्र तेज पैठ जाना- घुस जाना ।
पृष्ठ 110
पहाड़ होना- कठिन होना । निदान- अंत में धनाढ्य – धनी लोग। कलेजा धड़कना – घबराना । सौभाग्य- अच्छा भाग्य। संकल्प – निश्चय ।
पृष्ठ 111
चित्त- हृदय, मन दृढ़ – मजबूत । कंटोप- टोपी, कानो को ढकने वाला।
परीक्षा पाठ लेखक परिचय
हिंदी के एक महान लेखक और कथा – सम्राट के नाम से प्रसिद्ध प्रेमचंद का वास्तविक नाम धनपतराय था । उन्होंने समाज-सुधार और राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत कई कहानियाँ और उपन्यास लिखे। उनकी अनेक कहानियाँ जैसे— ईदगाह, बड़े भाईसाहब, गुल्ली डंडा, दो बैलों की कथा आदि बड़ों और बच्चों के बीच बहुत पढ़ी और सराही गई हैं।
Class 6 Hindi परीक्षा पाठ
जब रियासत देवगढ़ के दीवान सरदार सुजानसिंह बूढ़े हुए तो परमात्मा की याद आई। जाकर महाराज से विनय की कि दीनबंधु ! दास ने श्रीमान की सेवा चालीस साल तक की, अब मेरी अवस्था भी ढल गई, राज-काज सँभालने की शक्ति नहीं रही। कहीं भूल चूक हो जाय तो बुढ़ापे में दाग लगे । सारी ज़िंदगी की नेकनामी मिट्टी में मिल जाए।
राजा साहब अपने अनुभवशील नीतिकुशल दीवान का बड़ा आदर करते थे। बहुत समझाया, लेकिन जब दीवान साहब ने न माना, तो हारकर उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली; पर शर्त यह लगा दी कि रियासत के लिए नया दीवान आप ही को खोजना पड़ेगा।
दूसरे दिन देश के प्रसिद्ध पत्रों में यह विज्ञापन निकला कि देवगढ़ के लिए एक सुयोग्य दीवान की ज़रूरत है। जो सज्जन अपने को इस पद के योग्य समझें, वे वर्तमान सरकार सुजानसिंह की सेवा में उपस्थित हों।
यह ज़रूरी नहीं है कि वे ग्रेजुएट हों, मगर हृष्ट-पुष्ट होना आवश्यक है, मंदाग्नि के मरीज को यहाँ तक कष्ट उठाने की कोई ज़रूरत नहीं। एक महीने तक उम्मीदवारों के रहन-सहन, आचार-विचार की देखभाल की जाएगी। विद्या का कम, परंतु कर्तव्य का अधिक विचार किया जायेगा। जो महाशय इस परीक्षा में पूरे उतरेंगे, वे इस उच्च पद पर सुशोभित होंगे।
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इस विज्ञापन ने सारे मुल्क में तहलका मचा दिया। ऐसा ऊँचा पद और किसी प्रकार की कैद नहीं? केवल नसीब का खेल है। सैकड़ों आदमी अपना-अपना भाग्य परखने के लिए चल खड़े हुए। देवगढ़ में नए-नए और रंग-बिरंगे मनुष्य दिखाई देने लगे। प्रत्येक रेलगाड़ी से उम्मीदवारों का एक मेला-सा उतरता।
कोई पंजाब से चला आता था, कोई मद्रास से, कोई नए फैशन का प्रेमी, कोई पुरानी सादगी पर मिटा हुआ। रंगीन मामे, चोगे और नाना प्रकार के अंगरखे और कंटोप देवगढ़ में अपनी सज-धज दिखाने लगे। लेकिन सबसे विशेष संख्या ग्रेजुएटों की थी, क्योंकि सनद की कैद न होने पर भी सनद से परदा तो ढका रहता है।
सरदार सुजानसिंह ने इन महानुभावों के आदर-सत्कार का बड़ा अच्छा प्रबंध कर दिया था। हर एक मनुष्य अपने जीवन को अपनी बुद्धि के अनुसार अच्छे रूप में दिखाने की कोशिश करता था। मिस्टर ‘अ’ नौ बजे दिन तक सोया करते थे, आजकल वे बगीचे में टहलते हुए ऊषा का दर्शन करते थे।
मिस्टर ‘द’, ‘स’ और ‘ज’ से उनके घरों पर नौकरों की नाक में दम था, लेकिन ये सज्जन आजकल ‘आप’ और ‘जनाब’ के बगैर नौकरों से बातचीत नहीं करते थे। मिस्टर ‘ल’ को किताब से घृणा थी, परंतु आजकल वे बड़े-बड़े ग्रंथ देखने-पढ़ने में डूबे रहते थे। जिससे बात कीजिए, वह नम्रता और सदाचार का देवता बना मालूम देता था। लोग समझते थे कि एक महीने का झंझट है, किसी तरह काट लें, कहीं कार्य सिद्ध हो गया तो कौन पूछता है?
लेकिन मनुष्यों का वह बूढ़ा जौहरी आड़ में बैठा हुआ देख रहा था कि इन बगुलों में हंस कहाँ छिपा हुआ है।
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एक दिन नए फैशनवालों को सूझी कि आपस में हॉकी का खेल हो जाए। यह प्रस्ताव हॉकी के मँजे हुए खिलाड़ियों ने पेश किया। यह भी तो आखिर एक विद्या है। इसे क्यों छिपा रखें। संभव है, कुछ हाथों की सफ़ाई ही काम कर जाए। चलिए तय हो गया, फील्ड बन गई, खेल शुरू हो गया और गेंद किसी दफ्तर के अप्रेंटिस की तरह ठोकरें खाने लगी।
रियासत देवगढ़ में यह खेल बिल्कुल निराली बात थी। पढ़े-लिखे भलेमानुस लोग शतरंज और ताश जैसे गंभीर खेल खेलते थे। दौड़-कूद के खेल बच्चों के खेल समझे जाते थे।
खेल बड़े उत्साह से जारी था। धावे के लोग जब गेंद को लेकर तेज़ी से उड़ते तो ऐसा जान पड़ता था कि कोई लहर बढ़ती चली आती है। लेकिन दूसरी ओर खिलाड़ी इस बढ़ती हुई लहर को इस तरह रोक लेते थे कि मानो लोहे की दीवार है।
संध्या तक यही धूमधाम रही। लोग पसीने से तर हो गए। खून की गरमी आँख और चेहरे से झलक रही थी। हाँफते हाँफते बेदम हो गए, लेकिन हार-जीत का निर्णय न हो सका।
अँधेरा हो गया था। इस मैदान से ज़रा दूर हटकर एक नाला था। उस पर कोई पुल न था। पथिकों को नाले में से चलकर आना पड़ता था। खेल अभी बंद ही हुआ था और खिलाड़ी लोग बैठे दम ले रहे थे कि एक किसान अनाज से भरी हुई गाड़ी लिए हुए उस नाले में आया।
लेकिन कुछ तो नाले में कीचड़ था और कुछ उसकी चढ़ाई इतनी ऊँची थी कि गाड़ी ऊपर न चढ़ सकती थी। वह कभी बैलों को ललकारता, कभी पहियों को हाथ से ढकेलता, लेकिन बोझ अधिक था और बैल कमज़ोर ।
गाड़ी ऊपर को न चढ़ती और चढ़ती भी तो कुछ दूर चढ़कर फिर खिसककर नीचे पहुँच जाती। किसान बार-बार ज़ोर लगाता और बार-बार झुंझलाकर बैलों को मारता, लेकिन गाड़ी उभरने का नाम न लेती।
बेचारा इधर-उधर निराश होकर ताकता मगर वहाँ कोई सहायक नज़र न आता। गाड़ी को अकेले छोड़कर कहीं जा भी नहीं सकता। बड़ी आपत्ति में फँसा हुआ था। इसी बीच में खिलाड़ी हाथों में डंडे लिए घूमते-घामते उधर से निकले।
किसान ने उनकी तरफ़ सहमी हुई आँखों से देखा; परंतु किसी से मदद माँगने का साहस न हुआ। खिलाड़ियों ने भी उसको देखा मगर बंद आँखों से, जिनमें सहानुभूति न थी। उनमें स्वार्थ था, मद था, मगर उदारता और वात्सल्य का नाम भी न था ।
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लेकिन उसी समूह में एक ऐसा मनुष्य था जिसके हृदय में दया थी और साहस था। आज हॉकी खेलते हुए उसके पैरों में चोट लग गई थी। लँगड़ाता हुआ धीरे-धीरे चला आता था। अकस्मात उसकी निगाह गाड़ी पर पड़ी। ठिठक गया। उसे किसान की सूरत देखते ही सब बातें ज्ञात हो गई। डंडा एक किनारे रख दिया। कोट उतार डाला और किसान के पास जाकर बोला, “मैं तुम्हारी गाड़ी निकाल दूँ?”
किसान ने देखा एक गठे हुए बदन का लंबा आदमी सामने खड़ा है। झुककर बोला, “हुजूर, , मैं आपसे कैसे कहूँ?” युवक ने कहा, “मालूम होता है, तुम यहाँ बड़ी देर से फँसे हो। अच्छा, तुम गाड़ी पर जाकर बैलों को साधो, मैं पहियों को ढकेलता हूँ, अभी गाड़ी ऊपर चढ़ जाती है।”
किसान गाड़ी पर जा बैठा। युवक ने पहिये को ज़ोर लगाकर उकसाया। कीचड़ बहुत ज्यादा था। वह घुटने तक ज़मीन में गड़ गया, लेकिन हिम्मत न हारी। उसने फिर ज़ोर किया, उधर किसान ने बैलों को ललकारा। बैलों को सहारा मिला, हिम्मत बँध गई, उन्होंने कंधे झुकाकर एक बार ज़ोर किया तो गाड़ी नाले के ऊपर थी।
किसान युवक के सामने हाथ जोड़कर खड़ा हो गया। बोला, “महाराज, आपने आज मुझे उबार लिया, नहीं तो सारी रात मुझे यहाँ बैठना पड़ता।”
युवक ने हँसकर कहा, “अब मुझे कुछ इनाम देते हो?” किसान ने गंभीर भाव से कहा, “नारायण चाहेंगे तो दीवानी आपको ही मिलेगी।”
युवक ने किसान की तरफ़ गौर से देखा। उसके मन में एक संदेह हुआ, क्या यह सुजानसिंह तो नहीं हैं? आवाज़ मिलती है, चेहरा-मोहरा भी वही। किसान ने भी उसकी ओर तीव्र दृष्टि से देखा। शायद उसके दिल के संदेह को भाँप गया। मुस्कराकर बोला, “गहरे पानी में पैठने से ही मोती मिलता है।”
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निदान महीना पूरा हुआ। चुनाव का दिन आ पहुँचा। उम्मीदवार लोग प्रातःकाल ही से अपनी किस्मतों का फैसला सुनने के लिए उत्सुक थे। दिन काटना पहाड़ हो गया। प्रत्येक के चेहरे पर आशा और निराशा के रंग आते थे। नहीं मालूम, आज किसके नसीब जागेंगे! न जाने किस पर लक्ष्मी की कृपादृष्टि होगी।
संध्या समय राजा साहब का दरबार सजाया गया। शहर के रईस और धनाढ्य लोग, राज्य के कर्मचारी और दरबारी तथा दीवानी के उम्मीदवारों का समूह, सब रंग-बिरंगी सज-धज बनाए दरबार में आ विराजे ! उम्मीदवारों के कलेजे धड़क रहे थे।
जब सरदार सुजानसिंह ने खड़े होकर कहा, “मेरे दीवानी के उम्मीदवार महाशयो ! मैंने आप लोगों को जो कष्ट दिया है, उसके लिए मुझे क्षमा कीजिए। इस पद के लिए ऐसे पुरुष की आवश्यकता थी, जिसके हृदय में दया हो और साथ-साथ आत्मबल। हृदय वह जो उदार हो, आत्मबल वह जो आपत्ति का वीरता के साथ सामना करे और इस रियासत के सौभाग्य से हमें ऐसा पुरुष मिल गया। ऐसे गुणवाले संसार में कम हैं और जो हैं, वे कीर्ति और मान के शिखर पर बैठे हुए हैं, उन तक हमारी पहुँच नहीं। मैं रियासत के पंडित जानकीनाथ-सा को दीवानी पाने पर बधाई देता हूँ।”
रियासत के कर्मचारियों और रईसों ने जानकीनाथ की तरफ़ देखा। उम्मीदवार दल की आँखें उधर उठीं, मगर उन आँखों में सत्कार था, इन आँखों में ईर्ष्या ।
सरदार साहब ने फिर फरमाया, “आप लोगों को यह स्वीकार करने में कोई आपत्ति न होगी कि जो पुरुष स्वयं जख्मी होकर भी एक गरीब किसान की भरी हुई गाड़ी को दलदल से निकालकर नाले के ऊपर चढ़ा दे उसके हृदय में साहस, आत्मबल और उदारता का वास है। ऐसा आदमी गरीबों को कभी न सतावेगा। उसका संकल्प दृढ़ है, जो उसके चित्त को स्थिर रखेगा। वह चाहे धोखा खा जाए, परंतु दया और धर्म से कभी न हटेगा।”
– प्रेमचंद