गांधी, नेहरू और यास्सेर अराफ़ात Summary – Class 12 Hindi Antra Chapter 16 Summary
गांधी, नेहरू और यास्सेर अराफ़ात – भीष्म साहनी – कवि परिचय
प्रश्न :
भीष्म साहनी के जीवन का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनकी प्रमुख रचनाओं के नाम तथा भाषा-शैली की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
जीवन-परिचय : भीष्म साहनी का जन्म 1915 ई. में रावलपिंडी (अब पाकिस्तान) में हुआ। उनकी प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही हुई। इन्होंने उर्दू और अंग्रेजी का अध्ययन स्कूल में किया। उच्च शिक्षा के लिए ये लाहौर आ गए। गवर्नमेंट कॉलेज लाहौर से आपने अंग्रेज़ी साहित्य में एम.ए. किया। इसके पश्चात् पंजाब विश्वविद्यालय से पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त की। देश-विभाजन से पूर्व इन्होंने व्यापार के साथ-साथ मानद (ऑनरेरी) अध्यापन का कार्य किया। विभाजन के बाद पत्रकारिता तथा इप्टा नाटक-मंडली से जुड़ गए। आप मुंबई में बेरोजगार भी रहे। ये बलराज साहनी के भाई थे। दोनों की कला एवं साहित्य के प्रति गहरी रूचि थी।
साहित्यिक विशेषताएँ : बाद में भीष्म साहनी ने अंबाला के एक कॉलेज में तथा खालसा कॉलेज अमृतसर में अध्यापन किया। कुछ समय बाद वे स्थायी रूप से दिल्ली विश्वविद्यालय के जाकिर हुसैन कॉलेज में अध्यापन कार्य करने लगे। लगभग सात वर्ष तक ‘विदेशी भाषा प्रकाशन गृह’ मास्को में अनुवादक के पद पर काम करते रहे। रूस प्रवास के दौरान रूसी भाषा का अध्ययन किया तथा दो दर्जन रूसी पुस्तकों का हिंदी में अनुवाद किया। लगभग ढाई वर्ष तक ‘नयी कहानियाँ’ का कुशल संपादन किया। भीष्म साहनी ‘प्रर्गतिशील लेखक संघ’ तथा ‘अफ्रो-एशियाई लेखक संघ’ से भी जुड़े रहे। 2003 में उनका देहांत हो गया।
रचना-परिचय : भीष्म साहनी की प्रमुख कृतियाँ इस प्रकार हैं-
कहानी-संग्रह : भाग्य रेखा, पहला पाठ, भटकती राख, पटरियाँ, वाड्चू, शोभायात्रा, निशाचर, पाली, डायन। उपन्यास : झरोखे, कड़ियाँ, तमस, बसंती, मरयादास की माड़ी, कुंतो, नीलू नीलिमा नीलोफर।
नाटक : माधवी, हानूश, कबिरा खड़ा बाज़ार में, मुआवजे।
बालोपयोगी कहानियाँ : गुलेल का खेल।
भीष्म साहनी को ‘तमस’ उपन्यास के लिए ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया। हिंदी अकादमी दिल्ली ने उन्हें ‘शलाका सम्मान’ से गौरवान्वित किया।
भाषा-शिल्प : भीष्म साहनी की भाषा में उर्दू शब्दों का प्रयोग है जो विषय को आत्मीयता प्रदान करता है। उनकी भाषा-शैली में पंजाबी भाषा की सोंधी महक भी महसूस की जा सकती है। साहनी जी छोटे-छोटे वाक्यों का प्रयोग कर विषय को प्रभावी एवं रोचक बना देते हैं। संवादों के प्रयोग ने वर्णन में ताजगी ला दी है।
पाठ का संक्षिप्त परिचय –
‘गाँधी, नेहरू और यास्सेर अराफात’ उनकी आत्मकथा आज के अतीत का एक अंश है, जो कि एक संस्मरण है। इसमें लेखक ने किशोरावस्था से प्रौढ़ावस्था तक के अपने अनुभवां को स्मृति के आधार पर शब्दबद्ध किया है। सेवाग्राम में गाँधीजी का सान्निध्य, कश्मीर में जवाहरलाल नेहरू का साथ तथा फिलिस्तीन में यास्सेर अराफात के साथ व्यतीत किए गए चंद क्षणों को उन्होंने प्रभावशाली शब्द चित्रों के माध्यम से प्रस्तुत किया है। प्रस्तुत संस्मरण अत्यंत रोचक, सरस एवं पठनीय बन पड़ा है क्योंकि भीष्म साहनी ने अपने रोचक अनुभवों को बीच-बीच में जोड़ दिया है। इस पाठ के माध्यम से रचनाकार के व्यक्तित्व के अतिरिक्त राष्ट्रीयता, देशप्रेम और अंतराष्ट्रीय मैत्री जैसे मुद्दे भी पाठक के सामने उजागर हो जाते हैं।
Gandhi Nehru Aur Yasser Arafat Class 12 Hindi Summary
1. गाँधीजी
1938 ई. के आसपास की बात है। लेखक के भाई बलराज साहनी ‘सेवाग्राम’ में रहकर ‘नई तालीम’ पत्रिका में सह-संपादक के रूप में काम कर रहे थे। उसी साल हरिपुरा में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ था। लेखक कुछ दिन भाई के साथ बिताने की इच्छा से उनके पास चला गया। लेखक वर्धा स्टेशन पर उतरकर एक ताँगे में बैठकर देर रात सेवाग्राम पहुँचा। कहीं कोई रोशनी नहीं थी। गाँधी जी प्रातः सात बजे घूमने निकलते थे। वे लेखक के भाई के क्वार्टर के सामने से ही निकलते थे। दोनों भाइयों ने उनके साथ चलने का निश्चय किया। सुबह गाँधीजी तो निश्चित समय पर निकले, पर लेखक और उसके भाई को देर हो गई। वे कुछ कदम बढ़ाकर उनसे जा मिले। भाई ने लेखक का परिचय गाँधीजी से कराया-‘यह मेरा भाई है, कल रात ही पहुँचा है।’ गाँधीजी ने हँसकर कहा कि ‘अच्छा इसे भी घेर लिया।’ लेखक ने गाँधीजी के साथ चलने वाले कुछ लोगों को पहचान लिया-
डॉ. सुशीला नख्यर, गाँधीजी के निजी सचिव महादेव देसाई आदि को। लेखक ने गाँधीजी से बात करने के लिए उन्हें याद दिलाया कि वे बहुत साल पहले उसके शहर रावलपिंडी में आए थे। यह सुनकर गाँधीजी की आँखों में चमक आ गईं। उन्होंने मिस्टर जॉन के बारे में पूछा। वे शहर के जाने-माने बैरिस्टर थे। गाँधीजी ने उन दिनों की याद करते हुए कहा कि उन दिनों वे बहुत काम कर लेते थे। सभी लोग रावलपिंडी और कोहाट से जुड़ी अपनी यादें सुनाने लगे। शीघ्र ही वे आश्रम के अंदर चले गएं। लेखक सेवाग्राम में लगभग तीन सप्ताह तक रहा। वहाँ पालथी मारे बैठी कस्तूरबा लेखक को अपनी माँ जैसी लगती थीं। उन दिनों एक जापानी भिक्षु अपने चीवर वस्त्रों में गाँधीजी के आश्रम की प्रदक्षिणा करता। वह प्रार्थना स्थल पर पहुँचकर बड़े आदर भाव से गाँधी जी को प्रणाम करता था और एक ओर बैठ जाता था।
लेखक को सेवाग्राम में अनेक जाने-माने देशभक्त देखने को मिले। पृथ्वीसिंह आजाद वहीं आए हुए थे। उनके मुँह से वह किस्सा सुना कि उन्होंने हथकड़ियों से भागती रेलगाड़ी से कैसे छलांग लगाई और गुमनाम रहकर बरसों अध्यापन कार्य करते रहे। वहाँ मीरा बेन, खान अब्दुल गफ्फार खाँ तथा राजेंद्र बाबू को देखने का अवसर मिला।
एक बार गाँधी जी ने एक लड़के के लिए जरूरी मीटिंग छोड़ दी और उसे उल्टी करवा, उसका फूला पेट ठीक किया। गाँधी जी के चेहरे पर लेशमात्र भी क्षोभ का भाव न था। गाँधीजी एक कुटिया में टी.बी. के मरीज का हालचाल पूछते थे। उसका इलाज गाँधी जी की देख-रेख में ही चल रहा था।
2. नेहरूजी
पं. नेहरू कश्मीर यात्रा पर आए हुए थे। वहाँ उनका भव्य स्वागत हुआ था। शेख अब्दुल्ला के नेतृत्व में झेलम नदी पर अमीराकदल तक उनकी शोभा यात्रा देखने का अवसर लेखक को प्राप्त हुआ था। यह एक अद्भुत दृश्य था। नेहरू जी को जिस बंगले पर ठहराया गया था वह लेखक के फुफेरे भाई का था। लेखक भी पंडित जी की देखभाल करने के लिए वहाँ पहुँच गया था। दिन भर नेहरूजी जगह-जगह घूमते तथा स्थानीय नेताओं के साथ बातचीत में व्यस्त रहते थे। शाम को बंगले पर खाने के समय लेखक भी और लोगों के साथ इसमें शामिल हो जाता। नेहरू जी को नजदीक से देखने का यह सुनहरा मौका था। उस रोज खाने की मेज पर बहुत ही प्रतिष्ठित व्यक्ति थे-शेख अब्दलुला, अब्दुल गफ्फार खाँ, श्रीमती रामेश्वरी नेहरू, उनके पति आदि। धर्म की बात चलने पर रामेश्वरी और नेहरूजी के बीच बहस छिड़ गई। बाद में नेहरू जी ठंडे पड़ गए। वे एक किस्सा सुनाने लगे। उन्होंने विख्यात लेखक अनातोले फ्रांस द्वारा लिखित एक मार्मिक कहानी सुनाई।
पीरस शहर में एक गरीब बाजीगर (नट) रहत्म था। क्रिसमस के पर्व पर पेरिस निवासी फूलों के गुच्छे लिए गिरजे की ओर जा रहे थे। गिरजे के बाहर वह बाजीगर हताश-सा खड़ा था। वह फटेहाल था। उसने माता मरियम को अपना करतब दिखाकर अभ्यर्थना करने की बात सोची। गिरजा खाली होने पर वह गिरजे में घुस गया और कपड़े उतारकर करतब दिखाने लगा। वह हाँफने लगता है। उसके हाँफने की आवाज बड़े पादरी के कान में पड़ गई। बाजीगर का करतब देखकर पादरी तिलमिला उठता है। उसने उसे लात मारकर बाहर निकालने का विचार किया। पादरी देखता है कि माता मरियम अपने मंच से उतर आई है और नट के माथे का पसीना पोंछकर उसके सिर को सहलाने लगी। मेज पर बैठे सभी व्यक्ति नेहरू जी की इस कहानी को ध्यानपूर्वक सुन रहे थे।
नेहरू जी का कमरा ऊपर वाली मंजिल पर था। वे रात देर तक चिद्वियाँ लिखवाते रहे थे। लेखक ने सुबह उठकर देखा कि नेहरू जी फर्श पर बैठकर चरखा कात रहे थे। लेखक नीचे उतरकर अखबार पढ़ने लगा। तभी नेहरू जी के उतरने की आवाज आई। उन्हें साथियों के साथ पहलगाम के लिए रवाना होना था। नेहरू जी ने लेखक से माँगकर अखबार पढ़ा। लेखक तो उनका आग्रह सुनकर पानी-पानी हो गया।
3. यास्सेर अराफात
उन दिनों लेखक अफ्रो-एशियाई लेखक संघ में कार्यकारी महामंत्री पद पर सक्रिय था। ट्यूनीसिया की राजधानी ट्यूनिस में अफ्रो-एशियाई लेखक संघ का सम्मेलन होने जा रहा था। भारत से जाने वाले प्रतिनिधिमंडल में कमलेश्वर, जोगिंदर पाल, बालूराव, अब्दुल बिस्मिल्लाह आदि थे। महामंत्री के नाते लेखक भी अपनी पत्नी के साथ वहाँ कुछ दिन पहले ही पहुँच गया था। ‘ लोटस’ लेखक संघ की पत्रिका थी। ट्यूनिस में उन दिनों फिलिस्तीनी अस्थायी सरकार का सदर मुकाम हुआ करता था। यह सरकार यास्सेर अराफात के नेतृत्व में काम कर रही थी। लेखक-संघ की गतिविधियों में इस अस्थायी सरकार का बड़ा योगदान था। एक दिन ‘लोटस’ के तत्कालीन संपादक आए और लेखक तथा उनकी पत्नी को सदर मुकाम के कार्यक्रम में ले गए। उनके वहाँ पहुँचने पर यास्सेर अराफात अपने एक दो साथियों के साथ उन्हें अंदर लिवा ले गए।
वास्तव में उन दोनों को दिन के भोजन पर आमंत्रित किया गया था। अंदर पहुँचने पर सदरमुकाम के लगभग 20 अधिकारी और कुछ फिलिस्तीनी लेखक तपाक से मिले। वहाँ लंबी सी खाने की मेज लगी हुई थी। एक बड़ा-सा भुना हुआ बकरा रखा था। लेखक और पत्नी को कमरे के बाई ओर बिठाया गया, जहाँ चाय-पानी का प्रबंध था। यास्सेर अराफात उनके साथ बैठकर बातें करने लगे। जब लेखक ने गाँधीजी तथा अन्य नेताओं का जिक्र किया तब अराफात बोले वे आपके ही नहीं, हमारे भी नेता हैं। उतने ही आदरणीय जितने आपके लिए।”
बीच-बीच में आतिथ्य चल रहा था। अराफात फल छील-छीलकर लेखक को खिला रहे थे, उनके लिए शहद की चाय बना रहे थे और भी बातें चलती रहीं। लेखक को गुसलखाने जाने की जरूरत हुई। उसे तब बड़ी झेंप हुई जब गुसलखाने के बाहर यास्सेर अराफात हाथ में तौलिया लिए खड़े थे।
शब्दार्थ एवं टिप्पणी –
गाँडा = बाजू और गले में पहने जाने वाला ताबीज या काला धागा (Atalisman), प्रदक्षिणा = परिक्रमा (Circumambulation), घुप्प = गहरा, घोर $($ Dark), झिंझोड़कर = पकड़कर जोर से हिलाना (To shake), पालथी = बैठने का एक आसन जिसमें दाहिने और बाएँ पैरों के पंजे क्रम से बाई और दाई जाँघ के नीचे दबे रहते हैं (A posture of sitting), चीवर = वस्त्र, पहनावा, बौद्ध भिक्षों का ऊपरी पहनावा (A dress of Buddhist , क्षोभ = रोषयुक्त, असंतोष (Anger), रुग्ण = बीमार, अस्वस्थ (lll), दिक् = तपेदिक (T. B.), लब्धप्रतिष्ठ = प्रसिद्धि प्राप्त हुआ, यश अर्जित करना (Famous), अभ्यर्थना = प्रार्थना, निवेदन (Request), दत्तचित्त = जिसका मन किसी कार्य में अच्छी तरह लगा हो, एकाग्र (Concentrated), लरजना = काँपना, हिलना-डुलना (Shaking), नजरसानी = पुनर्विंचार, पुनरीक्षण, नजर डालना (To review), सदरमुकाम = राजधानी (Capital), आँखों में चमक आना = प्रसन्न होना (Happiness), हाथ-पैर पटकना = बेचैन होना, तड़पना (Restlessness), पेट पालना = गुजारा करना (Livelihood), पानी-पानी होना = शर्मिदा होना (Ashamed), आँखें गाढ़ना = एक जगह नजर टिकाना (To see at one place), पुलक उठना = प्रसन्न हो जाना (To be become happy), घेर लेना = अपनी ओर कर लेना (To bring own side), तिलमिला उठना = कष्ट या पीड़ा से विकल हो जाना (Tofeel uneasy), एक नजर देखना = अवलोकन करना, ध्यान से देखना (Tosee), चल बसना = दिवंगत होना (Dead)।
गांधी, नेहरू और यास्सेर अराफ़ात सप्रसंग व्याख्या
1. “याद है। मैं कोहाट से रावलपिंडी गया था “मिस्टर जॉन कैसे हैं ?”
मैंने जॉन साहब का नाम सुन रखा था। वे हमारे शहर के जाने-माने बैरिस्टर थे, मुस्लिम सज्जन थे। संभवतः गाँधीजी उनके यहाँ ठहरे होंगे।
फिर सहसा ही गाँधीजी के मुँह से निकला-
“अरे, मैं उन दिनों कितना काम कर लेता था। कभी थकता ही नहीं था।”” हमसे थोड़ा ही पीछे, महादेव देसाई, मोटा-सा लटु उठाए चले आ रहे थे। कोहाट और रावलपिंडी का नाम सुनते ही आगे बढ़ आए और उस दौरे से जुड़ी अपनी यादें सुनाने लगे और एक बार जो सुनाना शुरू किया तो आश्रम के फाटक तक सुनाते चले गए।
किसी-किसी वक्त गाँधीजी, बीच में, हँसते हुए कुछ कहते। वे बहुत धीमी आवाज में बोलते थे, लगता अपने आपसे बातें कर रहे हैं, अपने साथ ही विचार विनिमय कर रहे हैं। उन विनों को स्वयं भी याद करने लगे हैं।
प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ भीष्म साहनी द्वारा रचित आत्मकथा ‘आज के अत्तीत’ के एक अंश ‘गाँँद, नेहरू और यास्सेर अराफात’ से उद्धुत हैं। यहाँ लेखक महात्मा गाँधी के साथ सेवाप्राम आश्रम की एक घटना का उल्लेख करता है। वह प्रात:कालीन सैर पर गाँधीजी के साथ है।
व्याख्या : जब लेखक गाँधीजी को उनको रावलपिंडी यात्रा की याद दिलाता है तब गाँधीजी कहते हैं कि उन्हें उस यात्रा की भली प्रकार याद है तब वे कोहाट से रावलपिंडी गए थे। वे लेखक से मिस्टर जॉन का हाल-चाल पुछते हैं। लेखक ने जॉन साहब का पूरा नाम सुन रखा था। वे रावलपिंडी के जाने-माने बैरिस्टर थे और मुस्लिम सज्जन थे। लेखक को लगा कि संभवतः वहाँ गाँधीजी ठहरे होंगे। फिर गाँधीजी अपने उन दिनों के उत्साह को याद करने लगे। तब वे बहुत काम कर लेते थे और कभी थकते नहीं थे। तभी लेखक देखता है कि गाँधीजी के निजी सचिव महादेव देसाई एक मोटा-सा लट् उठाए चले आ रहे हैं। कोहाट और रावलपिंडी का नाम सुनकर वे आगे बढ़ आते हैं और उस दौरे से संबंधित अपनी यदें सुनाने लगते हैं। उनकी यादों का सिलसिला खत्म होने को नहीं आता। वे सभी आश्रम के फाटक तक आ पहुँचते हैं।
लेखक बताता है कि कभी-कभी गाँधीजी हैसते हुए भी कुछ कहते थे। वे बड़ी धीमी आवाज में बोलते थे। इससे लगता था कि वे अपने आपसे बातें कर रहे हैं। वे उन दिनों को याद करने लगते हैं।
विशेष :
- इस गद्यांश से गाँधीजी के स्वभाव पर प्रकाश पड़ता है।
- संवाद-शैली का प्रयोग किया गया है।
- भाषा सरल एवं सुबोध है।
2. यह भी लगभग उसी समय की बात रही होगी। पंडित नेहरू काश्मीर यात्रा पर आए थे, जहाँ उनका भव्य स्वागत हुआ था। शेख अब्दुल्ला के नेतृत्व में, झेलम नदी पर, शहर के एक सिरे से दूसरे सिरे तक, सातवें पुल से अमीरा कदल तक, नावों में उसकी शोभा यात्रा देखने को मिली थी जब नदी के दोनों ओर हजारों हजार काश्मीर निवासी अदम्य उत्साह के साथ उनका स्वागत कर रहे थे। अद्भुत वृश्य था।
प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाट्युपस्तक ‘अंतरा भाग-2’ में संकलित भीष्म साहनी की आत्मकथा ‘आज के अतीत’ का एक अंश है। यहाँ लेखक नेहरू जी की कश्मीर यात्रा का एक संस्मरण सुना रहा है। उस समय लेखक भी वहाँ उपस्थित था।
व्याख्या : यह घटना भी लगभग 1938 के आसपास की है। उन दिनों पंडित जवाहरलाल नेहरू कश्मीर यात्रा पर आए हुए थे। वहाँ उनके आगमन पर भष्य स्वागत का आयोजन किया गया। इस स्वागत आयोजन का नेत्वत्व शेख अब्दुल्ला ने किया था। उस समय नेहरू जी की भव्य-शोभा यात्रा निकाली गई थी। यइ शोभा-यात्रा झेलम नदी पर आयोजित की गई थी। यह शोभा यात्रा इस नदी के एक सिरे से लेकर दूसरे सिरे तक थी। सातवें पुल से लेकर अमीराकदल तक नावों में इस शोभा यात्रों को निकाला गया था। झेलम नदी के दोनों किनारों पर हजारों कश्मीरी बड़े उत्साह के साथ पंडित नेहरू का स्वागत कर रहे थे। उनका जोश देखते ही बनता था। यह दृश्य बड़ा ही अद्भुत था।
विशेष :
- लेखक ने पं. नेहरू के कश्मीर में हुए भव्य स्वागत का सुंदर वर्णन किया है।
- वर्णनात्मक शैली का अनुसरण किया गया है।
- वाक्य-गठन का चमत्कार देखते बनता है।
3. दिन-भर तो पंडितजी, स्थानीय नेताओं के साथ, जगह-जगह घूमते, विचार-विमर्श करते, बड़े व्यस्त रहते, पर शाम को जब बँगले में खाने पर बैठते तो और लोगों के साथ मैं भी जा बैठता। उनका वार्तालाप सुनता, नेहरूजी को नजदीक से देख पाने का मेरे लिए यह सुनहरा मौका था।
उस रोज खाने की मेज पर बड़े लब्धप्रतिष्ठ लोग बैठे थे-शेख अब्दुल्ला, खान अब्दुल गफ्फार खाँ, श्रीमती रामेश्वरी नेहरू, उनके पति आदि। बातों-बातों में कहीं धर्म की चर्चा चली तो रामेश्वरी नेहरू और जवाहरलाल जी के बीच बहस-सी छिड़ गई। एक बार तो जवाहरलाल बड़ी गर्मजोशी के साथ तनिक तुनककर बोले, “मैं भी धर्म के बारे में कुछ जानता हूँ।” रामेश्वरी चुप रहीं। शीघ्र ही जवाहरलाल ठंडे पड़ गए और धीरे-से बोले, “आप लोगों को एक किस्सा सुनाता हूँ।” और उन्होंने फ्रांस के विख्यात लेखक, अनातोले फ्रांस द्वारा लिखित एक मार्मिक कहानी कह सुनाई।
प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ भीष्म साहनी की आत्मकथा ‘आज के अतीत’ के एक अंश ‘गाँधी, नेहरू और यास्सेर अराफात’ से अवतरित हैं। इसमें पंडित जवाहरलाल नेहरू की कश्मीर यात्रा के समय का एक संस्मरण है।
व्याख्या : श्रीनगर में पंडित नेहरू का बड़ा व्यस्त कार्यक्रम रहता था। वे स्थानीय नेताओं के साथ बातें करते, जगह-जगह घूमते तथा लोगों से विचार-विमर्श करते रहते थे। जब वे शाम को बँगले में खाने के लिए बैठते तब लेखक भी अन्य लोगों के साथ वहाँ जा बैठता जाता था। वह उनकी बातचीत सुनता रहता था। उसके लिए नेहरूजी को नजदीक से देखने का यह सुनहरा मौका था। एक दिन की बात है कि खाने की मेज पर बड़े प्रसिद्ध व्यक्ति बैठे थे।
इनमें शेख अब्दुल्ला, खान अब्दुल गफ्फार खाँ, श्रीमती रामेश्वरी नेहरू तथा उनके पति थे। बातों-बातों में धर्म पर चर्चा छिड़ गई। रामेश्वरी नेहरू और जवाहरलाल जी के बीच गरमा-गरम बहस होने लगी। जवाहरलाल जी गर्मी में आ गए और तुनककर बोले कि वे भी धर्म के बारे में काफी जानते हैं। रामेश्वरी चुप हो गई। इससे शीप्र ही नेहरूजी ठंडे पड़ गए और कहने लगे-मैं आप लोगों को एक किस्सा सुनाता हूँ। इसके बाद उन्होंने फ्रांस के विख्यात लेखक अनातोले फ्रांस द्वारा लिखित एक मार्मिक कहानी सुनाई।
विशेष :
- इस गद्यांश से नेहरूजी के स्वभाव पर प्रकाश पड़ता है।
- वर्णनात्मक शैली अपनाई गई है।
4. द्यूनीसिया की राजधानी ट्यूनिस में अफ्रो-एशियाई लेखक संघ का सम्मेलन होने जा रहा था। भारत से जाने वाले प्रतिनिधि मंडल में सर्वश्री कमलेश्वर, जोगिंदरपाल, बालू राव, अब्दुल बिस्मिल्लाह आदि थे। कार्यकारी महामंत्री के नाते मैं अपनी पत्नी के साथ कुछ दिन पहले गया था। ट्यूनिस में ही उन दिनों लेखक संघ की पत्रिका ‘लोटस’ का संपादकीय कार्यालय हुआ करता था। एकाध वर्ष पहले ही पत्रिका के प्रधान संपादक, फैज अहमद फैज चल बसे थे।
ट्यूनिस में ही उन दिनों फिलिस्तीन अस्थायी सरकार का सदरमुकाम हुआ करता था। उस समय तक फिलिस्तीन का मसला हल नहीं हुआ था और ट्यूनिस में ही, यास्सेर अराफात के नेतृत्व में यह अस्थायी सरकार काम कर रही थी। लेखक संघ की गतिविधि में भी फिलिस्तीनी लेखकों, बुद्धिजीवियों तथा अस्थायी सरकार का बड़ा योगदान था।
प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश भीष्म साहनी द्वारा रचित आत्मकथा ‘आज के अतीत’ के एक अंश ‘गाँधी, नेहरू और यास्सेर अराफात’ से अवतरित है। इस गद्यांश में लेखक अपने द्यूनीसिया प्रवास का वर्णन कर रहा है।
व्याख्या : लेखक बताता है कि उन दिनों ट्यूनीसिया की राजधानी ट्यूनिस में अफ्रीका और एशिया के लेखकों का एक सम्मेलन होने जा रहा था। लेखक इस संघ का कार्यकारी महामंत्री था। इसमें भारत की ओर से जो प्रतिनिधि मंडल गया था, उसमें कमलेश्वर जोगिंदरपाल, बालू राव, अब्दुल बिस्मिल्लाह आदि शामिल थे। लेखक अपनी पत्नी के साथ कुछ दिन पहले ही वहाँ पहुँच गया था उन दिनों लेखक संघ की एक पत्रिका ‘लोटस’ निकला करती थी। उसका संपादकीय कार्यालय ट्यूनिस में था। उस पत्रिका के संपादक फैज अहमद फैज का निधन हो गया था।
ट्यूनिस में उन दिनों फिलिस्तीन अस्थायी सरकार की राजधानी हुआ करती थी। उस समय तक फिलिस्तीनी समस्या सुलझी नहीं थी। ट्यूनिस में यास्सेर अराफात के नेतृत्व में यह अस्थायी सरकार काम कर रही थी। लेखक संघ की गतिविधियों को चलाने में फिलिस्तीनी लेखकों, बुद्धिजीवियों तथा अस्थायी सरकार की बड़ी मदद रहती थी।
विशेष :
- इस गद्यांश में तत्कालीन फिलिस्तीनी आंदोलन की एक झलक मिल जाती है।
- वर्णनात्मक शैली का प्रयोग किया गया है।
- भाषा सरल एवं सुबोध है।
5. ऐन सात बजे, आश्रम का फाटक लाँघकर गांधी जी अपने साथियों के साथ सड़क पर आ गए थे। उन पर नज़र पड़ते ही मैं पुलक उठा। गाँधी जी हू-ब-हू वैसे ही लग रहे थे, जैसा उन्हें चित्रों में देखा था, यहाँ तक कि कमर के नीचे से लटकती घड़ी भी परिचित-सी लगी। बलराज अभी भी बेसुध सो रहे थे। हम रात देर तक बातें करते रहे थे। मैं उतावला हो रहा था। आखिर मुझसे न रहा गया और मैंने झिंझोड़कर उसे जगाया।
प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश भीष्म साहनी द्वारा रचित आत्मकथा ‘आज के अतीत’ का एक अंश है। यहाँ लेखक सेवाग्राम आश्रम में महात्मा गाँधी के साक्षात् दर्शन का अनुभव साझा कर रहा है।
व्याख्या : लेखक सेवाग्राम में उन दिनों रह रहे अपने बड़े भाई बलराज साहनी के पास कुछ दिनों के लिए रहने गया। वहाँ वह एक दिन तड़के उठकर कच्ची सड़क पर गाँधी जी के आने की राह देख रहा था कि ठीक सात बजे गाँधी जी आश्रम का फाटक खोलकर अपने अन्य साथियों के साथ सड़क पर प्रकट हुए। उन पर नज़र पड़ते ही लेखक का चित्त प्रसन्न हो गया। अभी तक लेखक ने गाँधी जी को केवल चित्रों में ही देखा था। प्रत्यक्ष रूप से देखने पर वे वैसे ही हू-ब-हू प्रतीत हुए जैसे चित्रों में दिखाई देते थे। अभी भी उनकी कमर के नीचे घड़ी लटक रही थी। लेखक को यह घड़ी परिचित सी लगी। इधर बाहर यह सब हो रहा था, पर लेखक के बड़े भाई बेसुध होकर सोए पड़े थे। दोनों भाई रात को देर तक बातें करते रहे थे। इसी कारण भाई सोए हुए थे। लेखक तो गाँधीजी को देखने के लिए उतावला हो रहा था। लेखक से रहा नहीं गया। उसने भाई बलराज को झिझोड़कर जगा दिया।
विशेष :
- वर्णनात्मक शैली का अनुसरण किया गया है।
- सीधी-सरल भाषा का प्रयोग किया गया है।
- गाँधी जी का शब्द-चित्र प्रस्तुत है।
6. उन्हीं दिनों सेवाग्राम में अनेक जाने-माने देशभक्त देखने को मिले। पृथ्वीसिंह आज़ाद आए हुए थे, जिनके मुँह से वह सारा किस्सा सुनने को मिला कि कैसे उन्होंने हथकड़ियों समेत, भागती रेलगाड़ी में से छलाँग लगाई और निकल भागने में सफल हुए और फिर गुमनाम रहकर बरसों तक एक जगह अध्यापन कार्य करते रहे। उन्हीं दिनों वहाँ पर मीरा बेन थीं, खान अब्दुल गफ्फ़ार खान आए हुए थे, कुछ दिन के लिए राजेंद्र बाबू भी आए थे। उनके रहते यह नहीं लगता था कि सेवाग्राम दूर पार का कस्बा हो।
प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश भीष्म साहनी द्वारा रचित आत्मकथा ‘आज के अतीत’ से अवतरित है। लेखक कुछ दिनों के लिए गाँधी जी के आश्रम सेवाग्राम में रहने लगा। यहाँ वहीं के अनुभवों का जिक्र है।
व्याख्या : लेखक जिन दिनों सेवाग्राम में था, उन्हीं दिनों कई देशभक्त भी वहाँ थे। लेखक को उन्हें देखने का अवसर मिला। वहाँ प्रसिद्ध वीर पृथ्वीसिंह आज़ाद भी आए हुए थे। उनकी बहादुरी के चर्चे उन दिनों चर्चा में थे। उनकी बहादुरी का किस्सा लेखक को उन्हीं के मुँह से सुनने को मिला। उन्होंने बताया वे हथकड़ियों सहित चलती रेलगाड़ी से छलाँग लगाकर भाग निकलने में सफल रहे थे। फिर गुमनामी में रहकर एक जगह पढ़ाने का काम करते रहे। उन दिनों आश्रम में मीराबेन, खान अब्दुल गफ्फ़ार खान तथा राजेंद्र बाबू भी थे। उनके रहने से वहाँ खूब चहल-पहल रहती थी। तब सेवाग्राम एक महत्तपूर्ण स्थान बन गया था। तब सेवाग्राम दूर का कस्बा प्रतीत नहीं होता था।
विशेष :
- लेखक ने सेवाग्राम के बारे में अपने अनुभव बताए हैं।
- पृथ्वीसिंह आज़ाद के वीरतापूर्ण कारनामे की झलक मिलती है।
- भाषा सरल एवं सुबोध है।
7. नेहरू आए। मेरे हाथ में अखबार देखकर चुपचाप एक ओर को खड़े रहे। वह शायद इस इंतजार में खड़े रहे कि मैं स्वयं अखबार उनके हाथ में दे दूँगा। मैं अखबार की नज़रसानी क्या करता, मेरी तो टाँगें लरज़ने लगी थीं, डर रहा था कि नेहरू जी बिगड़ न उठें। फिर भी अखबार को थामे रहा। कुछ देर बाद नेहरू जी धीरे-से बोले-
“आपने देख लिया हो तो क्या मैं एक नज़र देख सकता हूँ?” सुनते ही मैं पानी-पानी हो गया और अखबार उनके हाथ में दे दिया।
प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश भीष्म साहनी द्वारा अपनी रचित आत्मकथा ‘आज के अतीत’ से लिया गया है। इस संस्मरण में लेखक ने कश्मीर यात्रा में नेहरू जी से हुई भेंट का उल्लेख किया है।
व्याख्या : लेखक अखबार पढ़ रहा था। यह अखबार नेहरू जी को भी पढ़ना था, पर वे शरारत वश इस अखबार को तब तक पढ़ते रहने का निश्चय किया जब तक नेहरूजी स्वयं न माँगें। पर वे लेखक के हाथ में अखबार देखकर शिष्टाचार वश चुपचाप एक ओर खड़े रहे और प्रतीक्षा करते रहे कि कब मैं उनके हाथ में अखबार दूँ। यह स्थिति देखकर लेखक घबरा गया। घबराहट में उसकी टाँगें काँपने लगीं। उसे लगा कि नेहरू जी कहीं नाराज़ न हो जाएँ। कुछ देर बाद नेहरू जी स्वयं बोले-‘ यदि आपने अखबार पढ़ लिया हो तो क्या मैं भी इसे एक नज़र देख सकता हूँ ?’ उनके यह कहते ही लेखक तो शमिंदा हो गया और अखबार नेहरूजी के हाथ में दे दिया।
विशेष :
- लेखक ने नेहरूजी के साथ हुई अपनी पहली मुलाकात का प्रभावी अंकन किया है।
- नेहरूजी के स्वभाव की विनम्रता झलकती है।
- विषयानुकूल भाषा का प्रयोग किया गया है।
8. धीरे-धीरे बातों का सिलसिला शुरू हुआ। हमारा वार्तालाप ज्यादा दूर तक तो जा नहीं सकता था। फ़लिस्तीन के प्रति साम्राज्यवादी शक्तियों के अन्यायपूर्ण रवैए की हमारे देश के नेताओं द्वारा की गई भर्त्सना, फ़िलिस्तीन आंदोलन के प्रति विशाल स्तर पर हमारे देशवासियों की सहानुभूति और समर्थन आदि। दो-एक बार जब मैंने गाँधी जी और हमारे देश के अन्य नेताओं का जिक्र किया तो अराफ़ात बोले-‘वे आपके ही नहीं, हमारे भी नेता हैं। उतने ही आदरणीय जितने आपके लिए।”
प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश भीष्म साहनी द्वारा रचित संस्मरणात्मक निबंध ‘गांधी, नेहरू और यास्सेर अराफ़ात’ से अवतरित है। लेखक अफ्रो-एशियाई लेखक संघ के सम्मेलन में भाग लेने के लिए ट्यूनिस गया था। तब तक फिलिस्तीन का मसला हल नहीं हुआ था। वहीं लेखक की भेंट यास्सेर अराफ़ात के साथ हुई। यास्सेर अराफ़ात ने लेखक को भोज पर आर्मंत्रित किया था।
व्याख्या : खाने की मेज पर यास्सेर अराफ़ात के साथ लेखक की बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ। यह बातचीत लंबी नहीं जा सकती थी, क्योंकि बातचीत का दायरा सीमित था। हमारे देश के नेता फिलिस्तीन आंदोलन के प्रति सहानुभूति और समर्थन के भाव रखते थे। वे फिलिस्तीन की मुक्ति के हिमायती थे। साम्राज्यवादी शक्तियाँ अन्याय करती थीं। यास्सेर अराफ़ात भी भारतीय नेताओं के प्रति आदर-सम्मान का भाव रखते थे। गाँधी जी तथा देश के अन्य नेताओं का ज़िक्र करने पर अराफ़ात बोले-” गाँधीजी केवल आपके ही नेता नहीं, हमारे भी आदरणीय नेता हैं।” यास्सर अराफ़ात उनका बहुत आदर-सम्मान करते थे।
विशेष :
- लेखक की यास्सेर अराफ़ात के साथ हुई भेंट का वर्णन हुआ है।
- इससे भारतीय नेताओं की लोकप्रियता का पता चलता है।
- भाषा सरल, सुबोध एवं प्रभावपूर्ण है।