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Class 11 Hindi Antral Chapter 2 Question Answer हुसैन की कहानी अपनी ज़बानी

January 28, 2023 by Bhagya

NCERT Solutions for Class 11 Hindi Antral Chapter 2 हुसैन की कहानी अपनी ज़बानी

Class 11 Hindi Chapter 2 Question Answer Antral हुसैन की कहानी अपनी ज़बानी

प्रश्न 1.
लेखक ने अपने पाँच मित्रों के जो शब्द-चित्र प्रस्तुत किए हैं, उनसे उनके अलग-अलग व्यक्तित्व की झलक मिलती है। फिर भी वे घनिष्ठ मित्र हैं, कैसे?
उत्तर :
लेखक की बड़ैदा के बोडिंग स्कूल में पाँच लड़कों से मित्रता होती है। दो साल में वे लोग इतने नजदीक आ गए थे कि आज भी वे एक-दूसरे से दूर होते हुए दिल से दूर नहीं हैं। उन लोगों का व्यक्तित्व और कार्य-क्षेत्र अलग-अलग थे, फिर भी एक सूत्र ऐसा था जो उन सबको मित्रता के रिश्ते में बॉँधे हुए था। वह सूत्र था-उन सभी के अंदर एक कलाकार का छिपा हुआ होना। एक कलाकार दूसरे कलाकार का मन अच्छी तरह पढ़ लेता है। मोहम्मद इब्राहीम के व्यापारी थे, उन्हें खुशबुओं की अच्छी पहचान थी। एक दोस्त सियाजी रेडियो की आवाज़ थी। एक कराँची का नागरिक बन गया था। हामिद कंवर हुसैन को कुश्ती और दंड-बैठक लगाने का शौक था। वह गयें हाँकने में निपुण था। अब्बासजी अहमद मोतियों की तलाश में कुवैत पहुँच गया था और पाँचवाँ मित्र अब्बास अली फ़िदा अबा-कबा पहन मस्जिद का मेंबर बन गया और मकबूल फ़िदा हुसैन एक प्रसिद्ध पेंटर बन गए। इससे पता चलता है कि सब मित्रों के अंदर के कलाकार ने उन्हें कभी एक-दूसरे अलग नहीं होने दिया।

प्रश्न 2.
आप इस बात को कैसे कह सकते हैं कि लेखक का अपने दादा से विशेष लगाव रहा ?
उत्तर :
लेखक अपने दादा जी के देहांत के पश्चात उनके कमरे में बंद रहता था। उन्हीं की भूरी अचकन ओढ़कर उन्हीं के बिस्तर पर सोया रहता था। वह घर में किसी से बातचीत नहीं करता था और सदा गुमसुम रहता था।

प्रश्न 3.
“‘लेखक जन्मजात कलाकार है”‘-आत्मकथा में सबसे पहले यह कहाँ उद्घटित होता है ?
उत्तर :
“लेखक जन्मजात कलाकार है,” ‘इस बात का पता इस पाठ में उस समय चलता है जब बड़ौदा के बोडिंग स्कूल में ड्राइंग मास्टर मोहम्मद अथर की ब्लैक-बोई पर बनाई चिड़िया को मकबूल ने हूबहू अपनी स्लेट पर उतार दी। उस चिड़िया को देखकर ऐसा लग रहा था जैसे ब्लैक-बोर्ड से उड़कर चिड़िया मकबूल की स्लेट पर आ बैठी हो। इससे उसके जन्मजात कलाकार होने का पता चलता है।

प्रश्न 4.
दुकान पर बैठे-बैठे भी मकबूल के भीतर का कलाकार उसके किन कार्यकलापों से अभिव्यक्त होता है?
उत्तर :
दुकान पर बैठे-बैठे मकबूल के भीतर का कलाकार मचलता रहता था। जनरल स्टोर के सामने से जो भी गुज़र जाता, मकलूल उसके स्केच तैयार करता रहता था। जैसे दुकान के आगे से अकसर गुज़रनेवाली मेहतरानी (नौकरानी) जो हमेशा घूँषट ताने रहती थी, गेहूँ की बोरी उठाए मज़दूर की पेंचवाली पगड़ी का स्केच, पठान की दाढ़ी और माथे पर सिजदे के निशान, बुरका पहने औरत और बकरी का बच्या। उसने इन सबका बारीकी से निरीक्षण करके स्केच बना रखे थे। दुकान पर मेहतरानी अकसर कपड़े धोने का साबुन लेने आती थी। मकबूल ने उसके कई स्केच बनाए, थे। इससे पता चलता है कि दुकान पर बैठे-बैठे मकबूल के भीतर का कलाकार दुकान के कायों में भी कलाकारी दूँढ़ लेता था।

प्रश्न 5.
प्रचार-प्रसार के पुराने तरीकों और वर्तमान तरीकों में क्या क़रक आया है ? पाठ के आधार पर बताएँ।
उत्तर :
प्रचार-प्रसार के पुराने तरीकों और वर्तमान तरीकों में बहुत अंतर है। पहले समय में फ़िल्मों के प्रचार-प्रसार के लिए पोस्टरों का सहारा लिया जाता था। फिल्म का पोस्टर ताँगे में ब्रास बैंड के साथ शहर की गालियों में गुज्जरता था। फिल्मी पोस्टर रंगीन पतंग के कागज़ पर हीरो-हिरोइन की तस्वीरों के साथ छापे जाते थे। उन पोस्टरों को फ़िल्म के प्रचार के लिए गली-गली बांटा जाता था। बदलते समय के साथ जहाँ फ़िल्मों की तकनीक में बदलाव आया है, वहीं उसके प्रचार-प्रसार के तरीकों में भी अंतर आया है।

आज फिल्मों के पोस्टर तो बनते हैं परंतु उनकी पहले जैसी अहमियत नहीं है। इलेक्ट्रॉनिक्स युग में प्रचार-प्रसार के साधनों न क्रांति ला दी है। अब किसी भी वस्तु का प्रसार-प्रचार अखबार, मैगजीन, रेडियो, टेलीविजन और फ़ोन के द्वारा चारों ओर एक ही समय में किया जा सकता है। प्रचार-प्रसार के नए और पुराने तरीकों में एक अंतर यह भी आया है कि पहले लोग फ़िल्म की कहानी जानने के लिए उत्पुकता से प्रतीक्षा करते थे, अब लोगों को फ़िल्म के रिलीज होने से पहले ही उसके अच्छे और न अच्छे होने का पता चल जाता है। यह बदलते समय के प्रचार-प्रसार की बदलती तकनीक से ही संभव हुआ है।

प्रश्न 6.
कला के प्रति लोगों का नज्ञरिया पहले कैसा था ? उसमें अब क्या बदलाव आया है ?
उत्तर :
पहले लोग कला को राजे-महाराजे और अमीरों का शौक मानते थे। आर्ट का केंद्र में वे लोग रहते थे जिनके पास खाली समय होता था और जिन्हें रोटी कमाने की चिंता नहीं होती थी। इसीलिए आर्ट की कलाकृतियाँ राजे-महाराजों और अमीरों की दीवारों की शोभा बनकर रह गई थी, इसी कारण आम लोगों में इसे अच्छी नजरों से नहीं देखा जाता था। अब समय के बदलाव ने लोगों की सोच बदल दी है। आर्ट बड़े लोगों का कैंद्र नहीं रह गया। आम लोगों में भी आर्ट की समझ आने लगी है। आर्ट ने एक व्यवसाय का रूप ले लिया है और इसने आम लोगों में अपना विशेष स्थान बना लिया। अब कलाकृतियाँ बड़े घरों की ही नहीं, आम घरों के दीवारों की शोभा बनने लगी हैं। घरों में पेंटिग करना और लगाना सम्मान की बातें समझी जाने लगी है। अब कलाकारों को समाज में हेय दृष्टि से नहीं, सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है।

प्रश्न 7.
इस पाठ में मकबूल के पिता के व्यक्तित्व की कौन-कौन सी बारेते उभरकर सामने आती हैं ?
उत्तर :
लेखक के अनुसार मकबूल के पिता का व्यक्तित्व उस समय के आम लोगों से भिन्न था। मकबूल के पिता ने अपने भाइयों और बच्चों की उन्नति के लिए हमेशा पुरानी मान्यताओं को तोड़ा था। वे एक तरक्की-पसंद इनसान थे। उन्हें नौकरी करना एक सज़ा लगती थी, इसीलिए उन्होंने अपने भाइयों तथा बच्चों को हमेशा व्यापार करने के लिए प्रेरित किया। मकबूल के पिता के व्यक्तित्व की विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
(i) यथार्थवादी – मकबूल के पिता यथार्थ में जीनेवाले इनसान थे, इसीलिए उन्होंने मकबूल को अपने पिता के मृत्यु के उपरांत बड़ौदा के बोडिंग स्कूल में भेज दिया। मकबूल अपने दादा से बहुत प्यार करता था। उनके मरने के बाद वह उनके कमरे में जाकर चुपचाप बैठा रहता था। मकबूल के पिता ने उसे दादा की यादों से दूर करने के लिए और उसके अच्छे भविष्य के लिए अपने से दूर बड़ौदा पढ़ने के लिए भेज दिया।
(ii) धर्म में विश्वास – मकबूल के पिता का धर्म में विश्वास था। उन्होंने मकबूल को बड़ौदा पढ़ाई के साथ अपने धर्म की शिक्षा, रोजा, नमाज़, अच्छे आचरण के चालीस सबक, पाकीज्ञागी के बारह सबक के लिए भेजा।
(iii) नौकरी एक सज्ञा – मकबूल के पिता सर करौम भाई की मालवा टेक्सटाइल में टाइमकीपर थे। उन्हें नौकरी करना अच्छा नहीं लगता था। नौकरी को वे एक सजा मानते थे। उन्हॉने यह सजा अट्ठाईस साल तक भुगती अर्थात नौकरी की।
(iv) व्यापार में रुचि – मकबूल के पिता तरक्की-पसंद इनसान थे। नौकरी करते हुए भी वे व्यापार में रुचि रखते थे। व्यापार संबंधी कई तरह की किताबें इकट्ठी कर रखी थी। उन्होंने अपने भाई मुरादअली को कई बार काम खुलवाकर दिया। यदि एक काम न चलता तो वे दूसरा काम खुलवा देते थे। अपने भाई के साथ टुकान पर खाली समय या छुट्टी के दिन मकबूल को बैठने के लिए जरूर भेजते थे, जिससे मकबूल बिज्जनेस के गुण सीख सके।
(v) नई सोच के इनसान – मकबूल के पिता काजी और मौलवियों के पड़ोस में रहते थे जहाँ पेंटिंग या पेंटर को अच्छी नज़ों से नहीं देखा जाता था। परंतु अपने बेटे मकबूल की प्रतिभा को नई रोशनी देने के लिए उन्होंने सभी पुरानी मान्यताओं को तोड़ दिया और अपने बेटे को जिंदगी में रंग भरने की इज्ञाज़त दे दी।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि उस समय के वातावरण में मकबूल के पिता की सोच आजाद विचारोंवाली थी। उसकी इस सोच ने आगे चलकर मकबूल की ज़िंदगी बदल दी।

Class 11 Hindi NCERT Book Solutions Antral Chapter 2 हुसैन की कहानी अपनी ज़बानी

प्रश्न 1.
मकबूल के अब्बा ने उसे बड़ौदा के बोडिंग स्कूल भेजने का निर्णय क्यों लिया ?
उत्तर :
मकबूल के दादा जी का देहांत हो गया था। उसे अपने दादा जी से बहुत प्यार था। दादा जी के देहांत के बाद वह पूरा दिन दादा जी के कमरे में बंद रहता था। घर में किसी से बात नहीं करता था। गुमसुम-सा रहने लगा था। रात को दादा जी के बिस्तर पर उनकी भूरी अचकन ओढ़कर सोता था। उस समय उसे देखकर ऐसा लगता था, जैसे दादा की बगल में सोया हो। उसकी ऐसी स्थिति देखकर, उसके अब्या ने उसे इस वातावरण से दूर करने के लिए बड़ौदा के बोडिंग स्कूल में डाल दिया।

प्रश्न 2.
पाठ में बड़ौदा के किस मूर्ति का वर्णन किया गया है ?
उत्तर :
बड़ैदा शहर महाराजा सियाजीराव गायकवाड़ का शहर था। इस शहर का राजा मराठा था और प्रजा गुजराती थी। शहर में दाखिल होने पर ‘ हिज हाइनेस’ की पाँच धातुओं से बनी मूर्ति दिखाई देती थी। वह मूर्ति शानदार घोड़े पर सवार ‘दौलते बरतानिया’ के मेडल लटकाए हुए थी।’

प्रश्न 3.
मकबूल ने अपने उस्तादों के साथ किस प्रकार फोटो खिंचवाए ?
उत्तर :
स्कूल में वार्षिक समारोह मनाया जा रहा था। उस समारोह में खास मेहमानों और उस्तादों का गुरुप फोटोग्राफ खींचा जा रहा था। मकबूल उनके साथ फोटो खिंचवाना चाहता था। इसके लिए वह अवसर दूँढ़ रहा था। फोटोग्राफर ने ट्राइपॉड पर रखे कैमरे पर काला कपड़ा ढका और उसके अंदर जा घुसा। उसने अपने कैमरे का फोकस जमाया। जैसे ही उसने ‘रेडी’ कहा, मकबूल दौड़कर ग्रुप के कोने में खड़ा हो गया। इस प्रकार उसने उस्तादों की बिना इजाज़त के अपनी कई फोटो उस्तादों के साथ खिंचवाई।

प्रश्न 4.
स्कूल के समारोह में मकबूल ने किस विषय पर भाषण दिया ?
उत्तर :
स्कूल के समारोह के लिए मौलवी अकबर ने मकबूल को इलम (ज्ञान) पर दस मिनट का भाषण तैयार करवाया। उसमें एक फ़ारसी का शेर था-‘कस्बे कमाल कुन कि अज्ञीजे जहाँ शवी’। कस बेकमाल नियारजद अज़ीजे मन। दुनिया का चहेता वही बन सकता है जिसके पास कोई हुनर का कमाल हो। वही लोगों के दिलों को भी जीत सकता है। जिसके पास हुनर नहीं वह कभी भी लोगों के दिलों को जीत नहीं सकता।

प्रश्न 5.
मकबूल के पिता ने अपने छोटे भाई को कौन-कौन से काम खुलवा कर दिए ?
उत्तर :
मकबूल के पिता को नौकरी करना एक सज़ा की तरह लगती थी। उनकी बिजनेस में दिलचस्पी थी। इसीलिए उन्होंने अपने भाई मुरादअली की पहलवानी छुड़वाकर उसे जनरल स्टोर खुलवाकर दिया। जनरल स्टोर न चला तो फिर कपड़े की दुकान खुलवाकर दी, वह भी नहीं चली, तो तोपखाना रोड पर आलीशान रेस्तराँ खुलवाकर दिया। उन्होंने इन सभी कामों पर मकबूल को भी बिजनेस के गुण सीखने के लिए बैठाया।

प्रश्न 6.
मकबूल ने पहली ऑयल पेंटिंग कैसे बनाई ?
उत्तर :
मकबूल दुकान के सामने से गुजरने वाले सभी लोगों पर स्केच बनाया करता था। एक दिन दुकान के सामने से फिल्मी इस्तिहार का ताँगा गुज़ा। उसमें कोल्हापुर के शांताराम की फिल्म ‘सिंहगढ़’ के पोस्टर थे। यह पोस्टर रंगीन पतंग के कागज पर छपे होते थे। पोस्टर पर मराठा योद्धा की फोटो थी, जिसके एक हाथ में तलवार और दूसरे हाथ में ढाल थी। उस पोस्टर के चित्र देखकर मकबूल का मन किया कि उसकी ऑयल पेंटिंग बनाई जाए। उसने कभी ऑयल कलर का प्रयोग नहीं किया था। वह अब्बा से ऑयल कलर के लिए पैसे नहीं माँग सकता था, क्योंकि अब्बा का सपना उसे बिज्जनेसमैन बनाना था। मकबूल ने ऑयल कलर ट्यूब खरीदने के लिए अपने स्कूल की दो किताबें बेच दीं। ऑयल कलर ट्यूब से दुकान पर बैठकर ऑँयल पेंटिंग बनाई। उसके अब्बा ने उसकी पेंटिंग देखी तो डाँटने के स्थान पर उसे गले लगा लिया।

प्रश्न 7.
लेख में लेखक ने किन-किन पेंटरों का नाम लिया ? जिन्होंने पेंटिंग की दुनिया में अपना प्रभाव दिखाया।
उत्तर :
लेखक ने लेख में बेंद्रे, राजा रविवर्मा और गजेंद्रनाथ टैगोर का वर्णन किया है। इन लोगों ने हिंदुस्तान के शुरू के मॉडर्न आर्ट में प्रयोग किए थे। बेंद्रे का प्रयोग मोंडन आर्ट का हिंदुस्तान में पहला क्रांतिकारी कदम था। बेंद्रे की पेंटिंग में जवानी का गुलाबीपन कुछ समय तक लोगों के जेहन में तरोताजा रहा। राजा रविवर्मा ने पेंटिंग में पश्चिमी सेकेंड हैंड रियलिज्म का प्रयोग किया। गगनेंद्रनाथ टैगोर ने क्यूबिस्टिक तजुर्बे से पेंिंग से शुरुआत की, लेकिन ज्यादा आगे नहीं बढ़ पाए। बेंद्रे के जादू ने अपना प्रभाव लोगों पर ज्यादा छोड़ा था।

प्रश्न 8.
मकबूल अब लड़का नहीं रहा, क्योंकि उसके दादा चल बसे।
(क) दादा के चल बसने से मकबूल लड़का क्यों नहीं रहा?
(ख) आपके अपने दादा जी के साथ कैसे संबंध हैं?
उत्तर :
(क) दादा जी की मृत्यु के बाद् मकबूल ने बच्चों जैसी शरारतें करना छोड़ दिया था। वह गुमसुम-सा रहने लगा था तथा हर समय दादा जी के कमरे में बैठा रहता था। वह सोता भी दादा जी के पलंग पर था और साथ में उनकी भूरी अचकन ओढ़ लेता था। उसकी बालपन की हरकतों के न होने से वह अब लड़का नहीं रह गया था।
(ख) मेरे अपने दादा जी के साथ अत्यंत मधुर संबंध हैं। वे मुझे अनेक अच्छी और नीतिगत बातें बताते हैं। उनके साथ सुखह की सैर पर भी जाता हूँ। में अपनी प्रत्येक समस्या का समाधान उनसे प्राप्त कर लेता हूँ। वे मेरे सबसे अच्छे मित्र भी हैं। उनका साथ मुझे बहुत अच्छा लगता है।

प्रश्न 9.
दो अक्तूबर, स्कूल गांधीजी की सालगिरह मना रहा है। क्लास शुरू होने से पहले मकबूल गांधीजी का पोट्रेट बलैकबोर्ड पर बना चुका है।
(क) इस कथन से मकबूल की किस विशेषता का पता चलता है?
(ख) आपको किस कला में रुचि है और क्यों?
उत्तर :
(क) इस कथन से ज्ञात होता है कि चित्रकला में मकबूल को बहुत रुचि थी। इसलिए वह चित्रकला में दस में से दस नंबर प्राप्त करता था। उसके बनाए गांधीजी के इस पोट्रेट की उसके अध्यापक ने भी प्रशंसा की थी।
(ख) मुझे संगीतकला में बहुत रुचि है। बचपन से ही मैं भजनों, गानों को बहुत ध्यान से सुनता था। बड़े होने पर मैंने गिटार बजाना सीखा। जब भी मेरा मन व्याकुल होता है तब मैं गिटार बजाता हैँ और अपनी प्रिय धुनें निकालकर अत्यंत शांति का अनुभव करता हूँ। संगीत मुझे अपार आनंद प्रदान करता है।

प्रश्न 10.
मकबूल के अब्बा की रोशनखयाली न जाने कैसे पचास साल की दूरी नज्रअंदाज़ कर गई।
(क) मकबूल के अख्या की रोशनखयाली क्या थी?
(ख) कला के प्रति तब और अब के लोंगों के क्या विचार हैं?
उत्तर :
(क) मकबूल के पिता ने मकबूल की चित्रकला के प्रति रुचि देखते हुए उस समय की कला के प्रति दकियानूसी विचारधारा का विरोध करते हुए मकबूल को जिंद्गी को संगों से भरने के लिए कह दिया। उन्हें विश्वास था कि आनेवाले समय में मकबूल एक सुप्रसिद्ध चित्रकार बन जाएगा।
(ख) पहले समय में लोग कला को व्यर्थ और विलास की वस्तु मानकर कलाकारों का तिरस्कार ही करते थे तथा उन्हें विशेष महत्व नहीं देते थे, परंतु अब कला के प्रति लोगों की सोच में परिवर्तन आया है और वे कला तथा कलाकार को सम्मान देते हुए उन्हें विशेष महत्व देते हैं। कला को एक श्रेष्ठ व्यवसाय भी माना जाने लगा है।

निंधधात्मक प्रश्नोत्तर –

प्रश्न 1.
लेख के आधार पर बताएँ कि मकबूल ने पेंटर बनने का सफ़र कैसे तय किया ?
उत्तर :
मकबूल में आर्ट को समझने की प्रतिभा जन्मजात थी। सबसे पहले उन्होंने बड़ौदा के बोडिंग स्कूल के ड्राइंग मास्टर की ब्लैक-बोई पर बनाई चिड़िया की हूबहू नकल की। उस चिड़िया को देखकर ऐसा लगता था जैसे ब्लैक-बोर्ड से उड़कर चिड़िया मकबूल की स्लेट पर आ बैठी हो। दो अक्तूबर को मकबूल ने क्लास शुरू होने से पहले ब्लैक-बोई पर गांधी जी का पोट्रेट बनाया जिसकी तारीफ़ अब्बास तैयबजी ने की। बड़ौदा का स्कूल छोड़ने पर मकबूल अपने चाचा के साथ खाली समय उनकी दुकान पर बैठता था।

मकबूल का ध्यान दुकान की चीजों के नाम और दाम पर कम रहता था। उसका सारा ध्यान दुकान की अन्य क्रियाकलापों में अधिक लगता था। अकसर वह जनरल स्टोर के सामने से गुज़रने वाले राहगीरों के स्केच बनाता रहता था। घूँघट निकाले मेहतरानी का स्केच, गेहूँ की बोरी उठाए मज़दूर की पेंचवाली पगड़ी का स्केच, पठान की दाढ़ी और माथे पर सिजदे के निशान वाला स्केच, बुरका पहने औरत और बकरी के बच्चे का स्केच। इस तरह मकबूल अपने पेंटिंग के शौक को पूरा करता रहा।

एक दिन दुकान के आगे से फ़िल्मी इश्तिहार (पोस्टर) का ताँगा गुज़रा, जिसमें कोलहापुर के शांताराम की फ़िल्म ‘सिंहगढ़’ के पोस्टर थे। उस पोस्टर पर एक मराठा योद्धा का चित्र था जिसके एक हाथ में तलवार और दूसरे हाथ में ढ्वाल थी। उस पोस्टर को देखकर मकबूल के मन में उसकी ऑयल पेंटिंग बनाने का विचार आया। उसने तब तक कोई ऑयल पेंटिंग नही बनाई थी। अपने शौक को पूरा करने के लिए उसने अपनी दो किताबें बेचकर ऑयय कलर द्यूब खरीदी और चाचा की दुकान पर बैठकर ऑयल पेंटिंग बनाई। चाचा ने इस बात की शिकायत अपने बड़े भाई मकबूल के पिता से की।

उन्होंने पेंटिंग देखकर उसे गले लगा लिया। मकबूल की मुलाकात इंदौर में बेंद्रे साहब से हुई। वह उनसे अकसर मिलने लगा और पेंटंग के गुर सीखने लगा। उसकी लगन देखकर एक दिन बेंद्रे ने उसके कहने पर उसके पिता से मुलाकात की और उसके काम पर बात की। मकबूल के पिता ने भी सारी पुरानी परंपराओं को तोड़ते हुए मकबूल को अपनी जिंद्यी में रंग भरने की इज्ञाजत दे दी। इस प्रकार मकबूल ने अपना पेंटर बनने का सफ़र तय किया।

प्रश्न 2.
मकबूल के पाँचों मित्रों के व्यक्तित्व का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर :
मकबूल की बड़ौदा के बोर्डिग स्कूल में पाँच लड़कों से मुलाकात हुई। वहाँ की दो साल की नजदीकियाँ इतनी गहरी हो गई कि वे लोग दिल से कभी दूर नहीं हुए। वे सभी लोग अलग-अलग क्षेत्रों में कार्य करते हुए, एक-दूसरे से अलग रहते हुए भी दिल से एक-दूसरे के पास थे। लेखक ने अपने पाँचों मित्रों के व्यक्तित्व का वर्णन इस प्रकार किया है-
(i) मोहम्मद इब्राहीम गोहर अली डभोई के अत्तर व्यापारी का बेटा था। उसका कद छोटा था। नजरों में एक ठहराव था। उसमें गुणों का भंडार था। वह सदा से अंबर और मुश्क के अत्तर में डुबा हुआ था। वह आगे अत्तर का ही व्यापारी बना।
(ii) अरशद डॉक्टर मनव्वरी का लड़का था। उसके चेहरे पर हमेशा हैंसी रहती है। उसे खाने-पीने और गाने का शौक था, परंतु उसका शरीर कसरती पहलवान वाला था।
(iii) हामिद कंबर हुसैन मकबूल का तीसरा मित्र था; उसे कुश्ती और दंड-बैठक का शौक था। वह खुए-मिजाज स्वभाव का था। वह बातें मिलाने और गण्पे हाँकने में उस्ताद था।
(iv) चौथा मित्र अब्बासजी अहमद था। उसका शरीर मजबूत था। उसका रंग खिला हुआ था। उसकी आँखें जापानियों की तरह खिंची-खिंची थी। उसके हैंसने का ढंग दूसरों को लुभाने वाला था। वह स्वभाव से बिज़नेसमैन था।
(v) अब्बास अली फििदा मकबूल का पाँचवाँ मित्र था। उसके बोलने का ढंग बहुत नर्म था। उसका माथा बहुत ऊँचा था। वह वक्त का बहुत पाबंद था। उसे खामोश रहना परंद था। उसके हाथों में हमेशा किताब रहती थी। उसे पढ़ने का बहुत शौक था।

प्रश्न 3.
मकबूल की बेंद्रे से हुई मुलाकात का वर्णन कीजिए और बेंद्रे की पेंटिंग पर उसके क्या विचार थे?
उत्तर :
मकबूल की बेंद्रे साहब से मुलाकात इंदौर के सर्राफ़ा बाजार के पास ताँबे-पीतल की दुकानोंवाली गली में हुई थी। वहाँ पर लँंडस्केप बना रहा था। बेंद्रे साहब वहाँ पर ऑनस्पॉट पेंटिंग करते थे। मकबूल को उनकी तकनीक बहुत परंद आई। वे टिंटेड पेपर पर ‘गोआश वोंटर कलर’ का प्रयोग करते थे। इस मुलाकात के बाद मकबल अकसर बैंद्रे के साथ लैंडस्केप पेंट करने जाया करता था। 1933 में बेंद्रे ने अपने घर में कैनवास ‘बैगबांड’ नाम की पेंटिग पेंट की। उस पेंटिंग का मोंडल अपने छोटे भाई को बनाया।

उसे एक पठान का रूप दे दिया जिसमें फ्रैंच इंप्रेशन की इलक थी। उस पेंटिंग ने बेंद्रे ने रॉयल अकादमी के रुखे रियालिज्म के साथ, उस पर एक्सप्रेशानिस्ट ब्रश स्ट्रोक का प्रयोग किया। बेंद्रे के इस प्रयोग पर बंबई आर्ट सोसाइटी ने चाँदी का मेडल दिया। बेंद्रे की पेंटिंग हिंदुस्तान में मॉडर्न आर्ट का पहला कदम थी। इस पेटिंग में जोश की सुखी कम थी। उसमें जवानी का गुलाबीपन ज्यादा था। बेंद्रे का यह गुलाबीपन कुछ समय तक आर्ट की दुनिया में अपनी छाप छोड़ गया। उन्हें बड़ौदा के ‘फ़ैकल्टी ऑफ फ़ाइन आर्ट’ का डीन बना दिया गया, जहाँ वे हर दिल अज़ीजा बन गए। बेंद्रे ने मकबूल को पेंटिंग की दुनिया में आगे बढ़ने का रास्ता दिखाया।

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