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Class 11 Hindi Antra Chapter 9 Question Answer भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है?

January 27, 2023 by Bhagya

NCERT Solutions for Class 11 Hindi Antra Chapter 9 भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है?

Class 11 Hindi Chapter 9 Question Answer Antra भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है?

प्रश्न 1.
पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि ‘इस अभागे आलसी देश में जो कुछ हो जाए वही बहुत कुछ है?’ क्यों कहा गया है ?
उत्तर :
लेखक ने यह शब्द इसलिए कहे हैं क्योंकि हमारे देश के लोग बहुत आलासी हैं। अंग्रेजों के राज्य में भारतवासियों को उन्नति करने के बहुत अवसर मिले थे। परंतु हम अपनी आलसी प्रवृत्ति के कारण कुछ नहीं कर सके। इसलिए उन दिनों जो कुछ भी थोड़ा-बहुत किसी ने किया था उसी को लेखक बहुत कुछ मानने के लिए कह रहा है। उसके अनुसार कुछ न करने तथा भाग्य भरोसे बैठे रहने से तो अच्छा यही है कि जो हो रहा है, वही बहुत कुछ है।

प्रश्न 2.
‘जहाँ रॉबर्ट साहब बहादुर जैसे कलेक्टर हों, वहाँ क्यों न ऐसा समाज हो’ वाक्य में लेखक ने किस प्रकार के समाज की कल्पना की है ?
उत्तर :
रॉबर्ट साहब बहादुर कलेक्टर थे। लेखक ने अकबर के समाज के समान उनके समाज के बादशाह की कल्पना की थी। उनके वहाँ होने से बलिया का समस्त संभ्रांतवर्ग वहाँ एकत्र था। ऐसा लग रहा था मानो रॉबर्ट साहब बहादुर अकबर हैं तथा उनके मुंशी चुतर्भुज सहाय तथा बिहारीलाल अकबर के दरबारी अबुल फ़ज़ल और टोडरमल हैं। उसे यह समाज अत्यंत सभ्य, अनुशासित तथा श्रेष्ठ लग रहा था।

प्रश्न 3.
‘जिस प्रकार ट्रेन बिना इंजिन के नहीं चल सकती ठीक उसी प्रकार ‘हिंदुस्तानी लोगों को कोई चलानेवाला हो’ से लेखक ने अपने देश की खराबियों के मूल कारण खोजने के लिए क्यों कहा है ?
उत्तर :
हिंदुस्तानी लोगों की रेल की गाड़ी से तुलना इसलिए की गई है क्योंकि जैसे रेल की गाड़ी को चलाने के लिए इंजन की आवश्यकता होती है वैसे ही हिंदुस्तानी लोग स्वयं काम करने के आदी नहीं होते। उनसे काम करवाने के लिए इंजन समान मुखिया की आवश्यकता होती है। इसलिए वह देशवासियों को उन मूल कारखानों को खोजने के लिए कहता है जिनसे देश में खराबियाँ पैदा हो गई हैं। इन कमियों को ढूँढ़कर इन्हें दूर करने से ही हम अपने देश की उन्नति में सहायक हो सकते हैं तथा बिना किसी मुखिया के आगे बढ़ सकते हैं।

प्रश्न 4.
देश की सब प्रकार से उन्नति हो इसके लिए लेखक ने जो उपाय बताए हैं उनमें से किन्हीं चार का उदाहरण सहित उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
हर क्षेत्र में उन्नति करनी होगी, जैसे धर्म में, घर के काम में, रोजगार में, शिक्षा में और शारीरिक और मानसिक विकास में, समाज की सोच में, छोटे-बड़े में भेदभाव को दूर करने आदि, सब में उन्नति करनी होगी। ऐसी बातों और चीजों से दूर रहना होगा जो देश की उन्नति में बाधक हों। अपनी अंदर की कमियों को पहचान कर उसे पूरी आंतरिक शक्ति लगाकर दूर करना चाहिए। जिस प्रकार कोई दूसरा व्यक्ति घर में गलत विचार से घुस आता है उसे बाहर निकालने के लिए हम अपनी पूरी शक्ति लगाते हैं वैसे ही जो बातें उन्नति के मार्ग में काँटे बनती हों उन्हें जड़ से उखाड़कर फेंक देना चाहिए। इसके लिए कुछ लोग उन लोगों को जाति और धर्म का नाश करने वाले कहेंगे। कुछ लोग पागल और निकम्मा बताएँगे लेकिन उनकी बात को अनसुना करना है। केवल देश के हित के लिए सोचना है, तभी देश उन्नति कर सकेगा।

प्रश्न 5.
लेखक जनता से मत-मतांतर छोड़कर आपसी प्रेम बढ़ाने का आग्रह क्यों करता है ?
उत्तर :
लेखक जनता से मत-मतांतर के भेदभावों को छोड़कर आपस में प्रेमभाव से मिल-जुलकर रहने का आग्रह करता है क्योंक इससे आपसी भाई-चारा बढ़ेगा। इससे हम जाति तथा वर्गगत संकीर्णता से मुक्त होकर देश की उन्नति के लिए मिल-जुलकर प्रयास करेंगे तो भारतवर्ष को आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकेगा अतः एकता की शक्ति के सामने कोई भी टिक नहीं सकेगा।

प्रश्न 6.
आज देश की आर्थिक स्थिति के संदर्भ में निम्नलिखित वाक्य को एक अनुच्छेद में स्पष्ट कीजिए।
“जैसे हज्ञार धारा होकर गंगा समुद्र में मिली है, वैसे ही तुम्हारी लक्क्मी हज्ञार तरह से इंग्लैंड, फरांसीस, जर्मनी, अमेरिका को जाती है।”
उत्तर :
आज हमारे देश में अनेक विदेशी कंपनियाँ अपना समान बेच रही हैं। चीन, अमेरिका, इंगलैंड, जर्मनी, जापान आदि देशों से विभिन्न प्रकार की ऐसी वस्तुएँ भी हमारे देश में बेची जा रही हैं, जिनका उत्पादन हम भी करते हैं। उदाहरण के लिए चीन से साइकिल, मूर्तियाँ, खिलौने आदि भारतीय बाजारों में भारतीय उत्पादों को मात दे रहे हैं। इससे हमारे देश का धन देश में न रहकर विदेश जा रहा है। इससे हमारी आर्थिक स्थिति तो कमज़ोर होगी ही हमारे उद्योग जगत पर भी विपरीत प्रभाव पड़ेगा। इसलिए हमें अपनी लक्ष्मी को अपने ही देश में रोकने के उपाय करने चाहिए।

प्रश्न 7.
(क) पाठ के आधार पर निम्नलिखित का कारण स्पष्ट कीजिए-
बलिया का मेला और स्नान
एकादशी का व्रत
गंगा जी का पानी पहले सिर पर चढ़ाना
दीवाली मनाना
होली मनाना
(ख) उक्त संदर्भ में क्यों कहा गया है कि ‘यही तिहवार ही तुम्हारी मानो म्युनिसिपलिटी है’ ?
उत्तर :
(क) बलिया का मेला और स्नान-पर्व इसलिए मनाया जाता है कि साल में एक बार सब लोग एक स्थान पर मिल सके तथा एक-दूसरे का सुख-दुख जान सकें। मेले से घर गृहस्थी की वह वस्तुएँ भी खरीदी जा सकती हैं जो गाँव में नहीं मिलती हैं।
एकादशी का व्रत इसलिए रखा जाता है कि शरीर शुद्ध हो जाए।
गंगा जी का पानी पहले सिर पर इसलिए चढ़ाया जाता है जिससे गंगा जी में पैर डालते हुए तलुए से गरमी सिर में चढ़कर विकार न उत्पन्न करे।
दीवाली इसलिए मनाते हैं कि इस बहाने साल में एक बार घर की सफ़ाई हो जाती है।
होली इसलिए जलाकर मनाई जाती है कि बसंत की बिगड़ी हवा स्वच्छ हो जाए।

(ख) उक्त संदर्भ में यह शब्द इसलिए कहे गए हैं क्योंकि जो कार्य म्युनिसिपैलिटी को करने होते है वे कार्य इन त्योहारों को मनाने से हो जाते है।

प्रश्न 8.
आपके विचार से देश की उन्नति किस प्रकार संभव है ? कोई चार उदाहरण तर्क सहित दीजिए।
उत्तर :
देश की उन्नति के लिए हमें आलस्य त्याग कर मिल-जुलकर काम करना होगा। जनता को शिक्षित करना होगा तथा स्वदेशी आंदोलन को बल प्रदान करना होगा। किसान खेत में परिश्रम करके ही अनाज उत्पन्न करता है। शिक्षित व्यक्ति योजना बनाकर कार्य करते हुए अपने व्यापार/कार्य में उन्नति करता है। इसी प्रकार से देश को समर्पित राजनेताओं के कायों से देश की उन्नति हो सकती है। टाटा, बिरला जैसे उद्योगपति देश में उद्योग स्थापित कर देश की उन्नति में योगदान देते हैं। विद्यार्थी मन लगाकर पड़-लिखकर भावी देश के अच्छे नागरिक बनकर देश को उन्नत कर सकते हैं, जैसे पूर्व राष्ट्रपति डॉ० ए० पौ० जे० अब्दुल कलाम ने वैज्ञानिक बनकर देश की मिसाइल तकनीक को इन्नत किया।

प्रश्न 9.
भाषण की किन्हीं चार विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। उदाहरण देकर सिद्ध कीजिए कि पाठ ‘भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है’ एक भाषण है।
उत्तर :
भाषण की प्रमुख चार विशेषताएँ निम्नलिखित है –
(क) रोचकता – अच्छा भाषण वही कहलाता है जो अपने भीतर रोचकता का गुण छिपाए हुए हों। उसमें श्रोता को अपने साथ बाँध लेने का गुण होना चाहिए। भाषण ऐसा होना चाहिए कि श्रोता का ध्यान पूरी तरह से भाषण देने वाले की ओर लगा रहे। रोचकता को बढ़ाने के लिए भाषण में काव्यांशों, चुटकलों, उदाहरणों, चटपटी बातों आदि का स्थान-स्थान पर प्रयोग किया जाना चाहिए।
(ख) स्पष्टता – भाषण में भाव, विषय और भाषा की स्पष्टता होनी चाहिए। भाषण देने वाले को पूर्ण रूप से पता होना चाहिए उससे कहाँ और क्या बोलना है। पहले से ही उसके मन में विचारों की व्यवस्था होनी चाहिए। उसे अपने विषय पर पूर्ण रूप से अधिकार होना चाहिए। उसकी भाषा में सरलता और स्पष्टता निश्चित रूप से होनी चाहिए।
(ग) ओज पूर्ण – वक्ता को भाषण देते समय उत्साह और ओज का परिचय देना चाहिए। उसकी वाणी ऐसी होनी चाहिए जो श्रोताओं की नस-नस में मनचाहा जोश भर दे। उसके भाषण में ऐसे भाव भरे होने चाहिए जिससे श्रोताओं को लगे कि वे वही तो सुनना चाहते थे जो वक्ता कर रहा है।
(घ) पूर्णता – भाषण में पूर्णता का गुण होना चाहिए। श्रोता को सदा ऐसा लगना चाहिए कि वक्ता के द्वारा कही जानेवाली बात पूर्ण है और उसमें किसी प्रकार का कोई अधूरापन नहीं है। वक्ता को किसी भी निश्चित उद्देश्य की पूर्ति की ओर स्पष्ट संकेत करना चाहिए।

उपरोक्त विशेषताओं के आधार पर हम कह सकते है कि ‘भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है’ पाठ एक भाषण है। इसमें सर्वत्र रोचकता बनी रहती है। वक्ता ने उदाहरणों के द्वारा अपने भाषण में रोचकता बनाए रखी है। वक्ता की भाषा सहज, सरल तथा अवसरानुकूल है, जैसे-‘ हम कुएँ के मेंछक, काठ के उल्लू, पिंजडे के गंगाराम ही रहे तो हमारी कमबखत कमबख्ती फिर कमबख्ती है।’ वक्ता का यह भाषण ओजपूर्ण है जो तत्कालीन हाथ-में भारतवासियों में कुछ करने का जोश भर देता है। वक्ता जो भी बात कहता है वह स्पष्ट और अपने में पूर्ण है।

प्रश्न 10.
‘अपने देश में अपनी भाषा की उन्नति करो’ से लेखक का क्या तात्पर्य है ? वर्तमान संदर्भ में इसकी प्रासंगिकता पर अपने विचार प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर :
लेखक के इस कथन का यह तात्पर्य है कि हम अपनी भाषा में अपने विचारों को अच्छी प्रकार से व्यक्त कर सकते हैं इसलिए हमें अपने देश की पहचान बनाने के लिए अपनी भाषा की भी उन्नति करनी चाहिए। अपनी भाषा अपनी राष्ट्रीयता के विकास में सहायक होती है। आज हिंदी को देश की राष्ट्रभाषा बनाया गया है। देश के अधिकांश भागों तथा अनेक विदेशी देशों में हिंदी पढ़ी, लिखी, बोली और समझी जाती है इसलिए इसे अपने शासन, दैनिक कार्य-व्यवहार की भाषा के रूप में अपनाना चाहिए क्योंक ‘निज भाषा उन्नति अहे, सब उन्नति को मूल।’

प्रश्न 11.
पाठ में कई वर्ष पुरानी हिंदी भाषा का प्रयोग है इसलिए चाहें, फैलावैं, सकैगा आदि शब्दों का प्रयोग हुआ है जो आज की हिंदी में चाहे, फैलाएँ, सकेगा आदि लिखे जाते हैं। निम्नलिखित शब्दों को आज की हिंदी में लिखिए। जैसे-मिहनत, छिन-प्रतिछ्छि, तिहवार। इसी प्रकार पाठ में से अन्य दस शब्द छाँटकर लिखिए।
उत्तर :

  • मिहनत – मेहनत
  • तिहवार – त्योहार
  • करें – करें
  • सुधरैगा – सुधरेगा
  • बढ़ती – बढ़ोतरी
  • कहैंगे – कहेंगे
  • फैलावैं – फैलावें
  • छिन-प्रतिछिन – क्षण-प्रतिक्षण
  • पहिनकर – पहनकर
  • पहिले – पहले
  • छोड़ – छोड़े
  • अबकी – इस बार की
  • मुझको – मुझे
  • मिहनत- मेहनत

प्रश्न 12.
निम्नलिखित पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए-
(क) राजे-महाराजों को अपनी पूजा, भोजन, झूठी गप से छुद्टी नहीं।
(ख) सबके जी में यही है कि पाला हर्मी पहले छू लें।
(ग) हमको पेट के धंधे के मारे छुट्टी ही नहीं रहती बाबा, हम क्या उन्नति करें।
(घ) यह तो वही मसल हुई कि एक बेफ़िकरे मँगनी का कपड़ा पहिनकर महफ़िल में गए।
उत्तर :
(क) लेखक का इस पंक्ति से यह आशय है कि भारत पर ब्रिटिश सरकार का शासन था। उस समय देश की स्थिति बहुत दयनीय थी। सरकारी अधिकारी हिंदुस्तानियों के विषय में नहीं सोचते थे। हिंदुस्तानियों को भी यह आदत पड़ी हुई थी कि जब तक कोई उन्हें उनकी शक्ति का अहसास नहीं करवाता वह आगे बढ़कर कार्य नहीं करते। उस समय राजेमहाराजों के पास इतना समय नहीं था कि वे अपनी प्रजा के हित के लिए सोचें। वे लोग तो ब्रिटिश सरकार द्वारा की जा रही झूठी प्रशंसा में डूबे हुए थे। उनका पेट भर गया तो प्रजा का पेट भी भरा समझते थे। राजा-महाराजा झूठे दिखावे पसंद जीवन के आदी हो चुके थे। इसलिए प्रजा ने भी अपना हित सोचना छोड़ दिया था।

(ख) लेखक का इस पंक्ति से आशय है कि उस समय भारत पर ब्रिटिश सरकार का शासन था। उस समय लोगों के पास उन्नति के अवसर थे। नए-नए यंत्रों का निर्माण हो रहा था। पुस्तके नवीन ज्ञान से भरी हुई थी। सभी दूसरे देश उस अवसर का लाभ उठाकर उन्नति की घुड़-दौड़ में शामिल थे। सब के दिल में यही इच्छा थी कि उनका देश उन्नति करने में दूसरे देशों से पिछड़ न जाए। यहाँ तक कि जापानी भी उस समय अपने-आपको देश की उन्नति के लिए तैयार कर चुके थे। केवल हिंदुस्तानियों के दिल में उन्नति की सोच उत्पन्न नहीं हुई थी।

(ग) इस पंक्ति से लेखक का आशय है कि हिंदुस्तान में लोग उन्नति करने का अर्थ ही नहीं जानते हैं। उनके लिए उन्नति करना सिर्फ़ बातें करना है। यदि किसी को देश की उन्नति करने के लिए प्रेरित किया जाए तो वह कहेगा कि हम उन्नति कैसे कर सकते हैं हमें तो अभी अपने और परिवार का पटे भरने से ही फुरसत नहीं हैं यह काम उन लोगों का है जिनका पेट-भरा हुआ है।

(घ) इस पंक्ति से लेखक का आशय है कि हमारे देश में रोज़गार के अपार साधन हैं लेकिन हम काम नहीं करना चाहते। हमारे देश का रुपया बाहर के देशों में जा रहा है और वहाँ का बना हुआ सामान हमारे देश में आ रहा है। छोटी-से-छोटी वस्तु भी बाहर से मँगवाई जा रही है। प्रतिदिन की जरूरतों का सामान भी बाहर से आ रहा है। पहनने के लिए कपड़ा, बालों के लिए कंघी, रोशनी करने के लिए बत्ती आदि सभी सामान बाहर से आ रहा है, इसलिए लेखक यह उदाहरण दे रहा है कि हम लोग दूसरों से सामान माँगकर स्वयं को सजा रहे हैं।

प्रश्न 13.
निम्नलिखित गद्यांशों की व्याख्या कीजिए –
(क) सास के अनुमोदन से ……….परदेस चला जाएगा।
(ख) दरिद्र कुटुंबी इस ……… हिंदुस्तान की है।
(ग) वास्तविक धर्म तो ……… बदले जा सकते हैं।
उत्तर :
उत्तर के लिए सप्रसंग व्याख्या भाग देखिए।

योरयता-विस्तार –

प्रश्न 1.
देश की उन्नति के लिए भारतेंदु ने जो आह्वान किया है उसे विस्तार से लिखें।
उत्तर :
पाठ का सार पढ़कर लिखें।

प्रश्न 2.
पंक्ति पूरी कीजिए, अर्थ लिखिए और इन्हें जिन कवियों-शायरों ने लिखा है, कहा है, उनका नाम लिखिए।
(क) अजगर करै न चाकरी, पंछी करै न काम
(ख) अबकी चढ़ी कमान, को जानै फिर कब चढ़़
(ग) शौक तिफ़्ली से मुझे गुल की जो दीदार का था
उत्तर :
(क) “अजगर करे न चाकरी पंछी करै न काम दास मलूका कहि गए, सबके दाता राम।” इस पंक्ति के कवि मलूकादास हैं। इस पंक्ति का अर्थ है कि हिंदुस्तान में व्यक्ति छोटा हो या बड़ा हो, वह काम करना पसंद नहीं करता, उसे खाली बैठकर खाने की आदत हो गई है. इसलिए कवि ने कहा है कि ऐसे लोगों के मालिक भगवान ही हैं।

(ख) अबकी चढ़ी कमान, को जानै फिर कब चढ़़ै। जिनि चुक्के चौहान, इक्के मारय इक्क सर।” इस पंक्ति के कवि चंद हैं। इस पंक्ति का अर्थ है कि मनुष्य को जब भी कुछ करने का अवसर मिले उसका लाभ उठा लेना चाहिए। पता नहीं फिर अवसर मिले या न मिले। पृथ्वीराज चौहान को अंधा करके गियासुद्दीन ने शब्दभेदी बाण चलाने के लिए कहा और उसने उस अवसर का लाभ उठाकर गियासुद्दीन का ही सिर काट डाला।

(ग) “शशक तिफ़्ली से मुझे गुल की जो दीदार का था। न किया हमने गुलिस्ताँ का सबक याद कभी” इस पंक्ति के शायर मीरहसन हैं। इस पंक्ति में शापर ने नौजवान पीढ़ी को बचपन से ही गलत रास्ता दिखाने का प्रयत्त किया। उसे दुनियादारी का कोई भी सबक नहीं। इसका अर्थ है कि मैंने कभी भी दुनियादारी का सबक नहीं सीखा क्योंकि बचपन से ही मुझे बाज़ार के फूलों को देखने का शौक लग गया था।

प्रश्न 3.
भारतेंदु उर्दू में किस उपनाम से कविताएँ लिखते थे ? उनकी कुछ उर्दू कविताएँ ढूँढ़कर लिखें।
उत्तर :
विद्यार्थी इस प्रश्न का उत्तर अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं लिखें।

प्रश्न 4.
पृथ्वीराज चौहान की कथा अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
लेखक अपने भाषण में पृथ्वीराज चौहान की कथा से लोगों को यह प्रेरणा देना चाहते हैं कि यदि उन्हें कुछ करने का अवसर मिले तो उसका लाभ उठाकर अपना कार्य पूरा कर लेना चाहिए। पृथ्वीराज चौहान को गौरी युद्ध में पराजित करके कैदी बनाकर उसे अपने साथ दिल्ली ले गया था। पृथ्वीराज के साथ उसका मित्र चंद कवि भी उसके साथ कैदी था। पृथ्वीराज की आँखें फोड़ दी गई थीं। शहाबुद्दीन के भाई गियासुद्दीन को किसी ने बताया कि पृथ्वीराज शब्दभेदी बाण बहुत अच्छा चलाता है।

अंधे पृथ्वीराज चौहान की परीक्षा लेने के लिए एक सभा रखी गई। लोहे के सात तावे बनवाए गए जिन्हें पृथ्वीराज ने आवाज़ सुनकर तीर से फाड़ने थे। तीर-चलाने के लिए एक संकेत निश्चित किया कि जब गियासुद्दीन ‘हूँ’ कहे तभी तीर छोड़ा जाएगा। चंद कवि पृथ्वीराज चौहान के साथ मैदान में था। चंद कवि ने उस समय पृथ्वीराज के लिए यह दोहा पढ़ा कि “अबकी चढ़ी कमान, को जानै फिर कब चढ़ै। जिनि चुक्के चौहान, इक्के मारण इक्क सर॥” चंदकवि को पृथ्वीराज का तैयार होने का इशारा समझकर गियासुद्दीन ने ‘हूँ’ कहा तो पृथ्वीराज ने उसी बाण से उसे मार दिया। इस प्रकार पृथ्वीराज चौहान ने अवसर पाकर अपना काम पूरा किया। उसी प्रकार यदि उन लोगों को उन्नति करने का अवसर मिला है तो उसका लाभ उठाना चाहिए।

Class 11 Hindi NCERT Book Solutions Antra Chapter 9 भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है?

प्रश्न 1.
क्या भारतेंदु जी का भाषण तत्कालीन परिस्थितियों में ही नहीं अपितु आज की परिस्थितियों में भी उच्चित जान पड़ता है ? कारण लिखिए।
उत्तर :
तत्कालीन समाज में भारतेंदु जी के भाषण का अपना महत्व था। उस समय भारत पर ब्रिटिश शासन था। राजे-मह्हाराजे अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए त्रिटिश लोगों की जी-हुजूरी करते थे। आम लोग भी हाथ पर हाथ रखे बैठे थे। उन लोगों में भी उन्नति करने का साहस नहीं था। वे लोग राजाओं तथा ब्राह्मणों का मुँह देखते थे। छोटा काम करने में शर्म अनुभव करते थे। नौकरी उन लोगों को मिलती नहीं थी। लोग विदेशी माल को श्रेष्ठ समझते थे जिससे अपने देश का धन बाहर जाने लगा था। भारतेंदु जी ने अपने भाषण के माध्यम से लोगों को सचेत करने का प्रयत्न किया था।

उस समय यह कहा जाता था कि हिंदुस्तान गुलाम है इसलिए कुछ नहीं किया जा सकता था। लेकिन आज हिंदुस्तान आजाद है फिर भी देश के नवयुवक कुछ करना नहीं चाहते है। उनमें पहले के नबयुवकों की तरह ही आलस्य भरा हुआ है। छोटा काम या अपना रोज़गार करने में शर्म अनुभव करते हैं। नौकरी की प्रतीक्षा में खाली बैठकर गण्पें लगाते हैं। देश को चलानेवाली सरकार भी अपना स्वार्थ पूरा करने में लगी हुई है। बड़े-बड़े सरकारी अधिकारी, नेता लोगों की जी-हुजूरी करने में लगे रहते हैं।

आज भी विदेशी माल को देशी माल के सामने ऊँची गुणवत्ता का समझा जाता है, हिंदू-मुसलमानों में पहले की तरह मतभेद आज भी विद्यमान हैं। दोनों जातियाँ एक-दूसरे की निंदा करने में परहेज नहीं करती हैं। धर्म का स्वरूप ब्राह्मणों ने अपने स्वार्थ के लिए और भी बिगाड़ दिया है। आज भी दूसरों से माँगकर अपने को सजाना ऊँचा समझा जाता है। अब की और उस समय की परिस्थितियों में कोई अधिक अंतर नहीं आया है। इसलिए भारतेंदु जी का भाषण आज भी उतना ही उचित जान पड़ता है जितना उस समय था।

आज के नवयुवक को अपने देश की उन्नति के लिए आलस्य और जी हुजूरी की आदत का त्याग करके, हिम्मत और उत्साह से काम में लग जाना चाहिए। छोटे-से-छोटे काम से परहेज नहीं करना चाहिए। धर्म के स्वाथीं रूप को त्याग कर धर्म के वास्तविक रूप का पूजन करना चाहिए। एक ही देश में रहकर हिंदू-मुसलमानों को आपसी वैर भुलाकर देश की उन्नति के कार्य करने चाहिए। सरकार और सरकारी अधिकारियों को स्वयंहित के स्थान पर जनहित के लिए काम करना चाहिए। यदि सब लोग मिल-जुलकर काम करें तथा नवयुवक शक्ति को उत्साह और हिम्मत को साथ लेकर चलें तो भारतवर्ष की उन्नति संभव है।

प्रश्न 2.
अकबर बादशाह और रॉबर्ट साहब बहादुर में क्या समानता थी ?
उत्तर :
रॉबर्ट साहब बहादुर एक कलेक्टर थे। वे अकबर बादशाह की तरह सारे समाज को एक ही स्थान पर एकत्र होने का अवसर देते थे, जिससे समाज के लोगों में एकता का संचार हो। अकबर बादशाह के साथियों की तरह ही रॉबर्ट साहब बहादुर के साथी थे जो उन्हें आम लोगों को आपस में मिलाने में सहायक थे। अंकबर के दरबार में अबुल फ़ज़ल, बीरबल, टोडरमल आदि थे तो रॉबर्ट साहब के साथ मुंशी चतुर्भुज सहाय, मुंशी बिहारी लाल साहब आदि थे।

प्रश्न 3.
उस समय के हाकिम कैसे थे ?
उत्तर :
उस समय के हाकिम राजा-महाराजाओं की झूठी प्रशंसा में लगे रहते थे या उन्हें सरकारी काम घेरे रहते थे। जो समय उनके पास बचता उसे अपने मनोरंजन में इस्तेमाल करते थे। वे आम लोगों की समस्याओं की ओर ध्यान नहीं देते थे। जब राजा लोग अपनी प्रजा की ओर ध्यान नहीं देते थे तो वे लोग भी अपना कीमती समय आम लोगों की परेशानियाँ सुनकर खोना नहीं चाहते थे।

प्रश्न 4.
लेखक ने हिंदुस्तानियों को काठियावाड़ी घोड़े क्यों कहा है ?
उत्तर :
लेखक के अनुसार उस समय सारे संसार में औद्योगिक क्रांति की लहर आई हुई थी। सभी देशों के लोग, अपने देश की उन्नति में लगे हुए थे परंतु भारतीयों के सामने उन्नति के सभी साधन थे, उन्होंने साधनों का लाभ-नहीं उठाया। वे लोग केवल बातों में लगे रहे। वे जाति-पॉति, ऊँच-नीच और दिखावे की ज़िदी में उलझे रहे। भारतीयों ने दूसरे देशों को उन्नति करते हुए देखकर भी अनदेखा कर दिया। भारतीयों की स्थिति भी औद्योगिक क्रांति की लहर में जैसी थी वैसी ही बनी रही। इसलिए लेखक ने उन्हें काठियावाड़ी घोड़े कहा है जो घोड़ों की दौड़ में भागते नहीं हैं वहीं खड़े-खड़े मिद्टी खोदते रहते हैं।

प्रश्न 5.
भारतेंदु जी के अनुसार बलिया में स्नान मेला लगने का क्या कारण था ?
उत्तर :
भारतेंदु जी के अनुसार बलिया में स्नान मेला लगने से सारा समाज एक स्थान पर एकत्रित होता था जो लोग सालभर नहीं मिल पाते थे, वे ऐसे स्नान मेलों में आपस में मिल जाते थे और एक-दूसरे का सुख-दुख बाँटते थे। लोगों को अपनी ज़रूरत की जो चीजें अपने गाँव में नहीं मिलती, वे चीजें वहाँ से ले जाते थे। मेला लोगों को धर्म से और आपस में भी जोड़ता था।

प्रश्न 6.
लेखक के समय हिंदुस्तान की दशा कैसी थी ?
उत्तर :
लेखक के समय में हिंदुस्तान की स्थिति बहुत दयनीय थी। देश पर ब्रिटिश सरकार का शासन था। उस समय राजा-महाराजा, नवाबअमीर लोग अपने स्वाथ्थों में खोकर देश को हानि पँहुच रहे थे। देश के नवयुवकों में जी-हुज़ूरी की आदत पड़ गई थी। सामने उन्नति के अवसर होते हुए भी हम कुछ नहीं कर रहे थे। केवल काठियावाड़ी घोड़ों की तरह वहीं खड़े-खड़े टाप रहे थे।

प्रश्न 7.
किन लोगों को निकम्मेपन ने घेर रखा था ?
उत्तर :
लेखक बलिया में स्नान-पर्व पर एकत्रित समाज को संबोधित कर रहा था। उसके अनुसार देश में विद्या और नीति को बढ़ावा देने का कार्य राजा और ब्राह्मण का था लेकिन उस समय राजा और ब्राह्मण लोगों को सारे संसार के निकम्मेपन ने घेर रखा था। राजा लोगों को भोजन, झूठी प्रशंसा और गप्पें लगाने से फुरसत नहीं थी। ब्राह्मण लोगों को अपने स्वार्थ के लिए धर्म का स्वरूप बदलने से फुरसत नहीं थी। उन लोगों के निकम्पेपन से देश की स्थिति खराब हो गई थी।

प्रश्न 8.
हमारे देश में छाए आलस्य के विषय में भारतेंदु ने क्या कहा है ?
उत्तर :
भारतेंदु जी ने देश में छाए आलस्य के विषय में कहा है कि देश के नवयुवक, बच्चों और बूढ़ों सब पर आलस्य छाया हुआ है। कोई स्वयं से कुछ करना नहीं चाहता है। सब लोग राजा-महाराजाओं का मुँह देखते रहते हैं कि वे लोग कुछ कहेंगे तथी कुछ किया जाएगा। पंडित जी अपनी कथा में काम करने का उपाय बताएँगे। ऐसा कुछ नहीं होनेवाला है। देश की उन्नति के लिए आलस्य का त्याग करके, कमर कसकर काम करने के लिए तैयार हो जाना चाहिए।

प्रश्न 9.
देश का रुपया और बुद्धि बढ़े, इसके लिए क्या करना चाहिए ?
उत्तर :
भारतेंदु जी बलिया में र्नान पर्व पर गए हुए थे। वहॉं पर उनके कुछ मित्रों ने ‘देश की उन्नति कैसे हो’ के विषय में बोलने के लिए कहा। लेखक ने अपने भाषण में कहा कि हमारे देश में लोगों को आलस्य ने घेर रखा है। ब्रिटिश शासन में देश की उन्नति के साधन चारों ओर बिखरे पड़े हैं लेकिन लोग उसका लाभ नहीं उठाते। देश का रुपया, देश से बाहर बिदेशों में जा रहा है जिससे देश में धन की कमी हो रही है। जनगणना की रिपोर्ट देखने से पता चलता है कि देश में जनसंख्या तो बढ़ रही है रुपया कम हो रहा है।

इसका कारण है-अपना काम स्वय न करना इस बात की की प्रतीक्षा करना कि कोई हमें आदेश दे और हम काम करें। हमें यदि उन्नति करनी है तो हमें अपनी इस आदत को बदलना पड़ेगा। दूसरे देशों की बनी चीज्रों का उपयोग मत करो। अपनी ज़रूरत की वस्तुएँ अपने देश में बनाओ। इससे रोज़गार भी बढ़ेगा और देश का रुपया देश में ही रहेगा। लोगों को आलस्य और जी-हुजूरी की आदत त्याग कर, कमर कसकर देश की उन्नति के लिए अपने बल और बुद्धि का प्रयोग करना चाहिए जिससे जनसंख्या के साथ-साथ देश का रुपया बढ़ेगा तथा मानव की बुद्धि का विकास होगा।

प्रश्न 10.
ऐसी कौन-सी बातें हैं जो समाज विरुद्ध मानी जाती हैं, किंतु धर्मशास्त्रों में उनका विधान है ?
उत्तर :
लेखक देश की उन्नति के लिए कुछ उपाय बता रहा है। देश की उन्नति तभी संभव है यदि धर्म के मूल रूप में उन्नति हो। धर्मनीति और समाजनीति दूध पानी की तरह मिले हुए हैं। धर्मशास्त्रों में कई ऐसी बातों का विधान है जो समाज में मान्य नहीं हैं। कुछ लोगों ने अपने स्वार्थ के लिए धर्म के मूल कारण को समझे बिना ही नए-नए धर्म बनाकर शास्त्रों में लिख दिए। उनके लिए सभी तिथियाँ व्रत हो गई हैं और सभी स्थान तीर्थ बन गए हैं। उन्होंने समाज के हित में लिखी गई ऋषि-मुनियों की बातों का विरोध अपने स्वार्थ के लिए किया है। धर्मशास्त्रों में विधवा विवाह, जहाज़ में सफ़र करने तथा लड़कों का छोटी आयु में विवाह न करने का विधान था। छोटी आयु में लड़कों का विवाह करने में उनका बल, वीर्य और आयु कम हो जाते हैं।

लड़कों का विवाह करने से पहले उन्हें घर-गृहस्थी और दुनियादारी की शिक्षा देनी चाहिए। उन का बौद्धिक विकास करना चाहिए। रोज़गार के उचित अवसर प्रदान करने चाहिए। बहु-विवाह तथा सती प्रथा का विरोध किया गया है। लड़कियों को शिक्षा देने का विधान है जिससे वे अपने कुल धर्म को समझें और आनेवाली पीढ़ी का उचित मार्गदर्शन कर सके। ये बातें उस समय समाज विरोधी मानी जाती थीं। यदि उस समय के लोगों ने धर्मशास्त्रों के सही अर्थ को जाना होता तो देश उन्नति की ओर अग्रसर होता। धर्मशास्त्र में लिखी बातें समाज के विरूद्ध नहीं हैं अपितु समाज के हित में हैं।

प्रश्न 11.
‘भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है ?’ निरंध में लेखक ने क्या स्पष्ट करना चाहा है?
उत्तर :
वास्तव में “भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है ?” निबंध न होकर भारतेंदु का एक भाषण है। इसमें उन्होंने एक और त्रिटिश शासन की मनमानी पर एक व्यंग्य किया है, तो दूसरी ओर अंग्रेजों के परिश्रमी स्वभाव के प्रति आदर भी है। भारतेंदु ने आलसीपन, समय के अपव्यय आदि कमियों को दूर करने की बात करते हुए भारतीय समाज की रूड़ियों और गलत जीवन शैली पर भी प्रहार किया है। जनसंख्या नियंत्रण, श्रम की महत्ता, आत्मबल और त्याग भावना को भारतेंदु ने उन्नति के लिए अनिवार्य माना है।

प्रश्न 12.
लेखक ने कोचवान का उदाहरण देकर क्या स्पष्ट करना चाहा है?
उत्तर :
लेखक ने कोचवान का उदाहरण देकर विलायती लोगों की जागरूकता एवं कर्मठता को उजागर करना चाहा है वहीं दूसरी ओर भारतीयों के निकम्मेपन को भी उजागर किया है जैसे विलायत में गाड़ी का कोचवान भी अखबार पढ़ता है। जब मालिक उतरकर किसी दोस्त के यहाँ गया, तो उसी समय कोचवान गद्दी के नीचे से अखबार निकाल कर पढ़ लेता है। यहाँ भारत में उतनी देर कोचवान हुक्का पिएगा या गप मारेगा। वो गप भी निकम्मी होगी।

प्रश्न 13.
लेखक ने धर्म के संबंध में अपने कौन-से विचार प्रकट किए हैं ?
उत्तर :
लेखक ने धर्म के विषय में अपने विचार प्रकट करते हुए कहा है कि लोगों ने धर्म का असली अर्थ समझने के स्थान पर धर्म को केखल ईश्वर के चरण कमल पूजने का काम समझ लिया है। धर्म के ठेकेदारों ने अपने स्वार्थ के लिए धर्म का स्वरूप बदल रखा है। आज आवश्यकता है तो सिर्फ़ धर्म के अर्थ को जानने की। जो बात मानब हित में है उसे सहज स्वीकार कर लेना चाहिए और जो बात अहित में है उसे त्याग देना चाहिए।

प्रश्न 14.
लेखक ने भारत में रहनेवाले के लिए क्या करना आवश्यक माना है ?
उत्तर :
लेखक ने भारत में रहनेवाले के लिए फिर चाहे वह किसी भी जाति, धर्म और स्थान का हो उसे केवल देश हित की सोचनी चाहिए। मिलकर रहने से काम बड़ेगा काम बढ़ने से रुपया बड़ेगा और वह रुपया हमारे देश में रहेगा। आज हमें इतना कमज़ोर नहीं होना चाहिए कि अपनी निजी आवश्यकताओं के लिए दूसरों पर निर्भर होना पड़े। विदेशी भाषा और वस्तु को अपनाने से देश की उन्नति संभव नहीं है। उसके लिए अपनी भाषा सीखनी चाहिए जिससे उन्नति हो सके।

प्रश्न 15.
लेखक के अनुसार देश का भला सोचनेवाले लोगों को क्या भूल जाना चाहिए ?
उत्तर :
लेखक के अनुसार देश का भला सोचनेवाले लोगों को अपना सुख, धन तथा मान का बलिदान करना चाहिए। अपने अंदर की कमियों के मूल कारण को दूँढ़कर दूर करना चाहिए। देश की उन्नति के लिए यदि बदनामी भी गले लगानी पड़े तो तैयार रहना चाहिए। इसके बिना देश का भला नहीं हो सकता।

11th Class Hindi Book Antra Questions and Answers 

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