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Class 11 Hindi Antra Chapter 3 Question Answer टार्च बेचने वाले

January 27, 2023 by Bhagya

NCERT Solutions for Class 11 Hindi Antra Chapter 3 टार्च बेचने वाले

Class 11 Hindi Chapter 3 Question Answer Antra टार्च बेचने वाले

प्रश्न 1.
लेखक ने टार्च बेचने वाली कंपनी का नाम ‘सूरज छाप’ ही क्यों रखा ?
उत्तर :
‘सूरज छाप’ टार्च से लेखक का अभिप्राय यह है कि जैसे सूरज दिन में प्रकाश है, जिससे लोगों को चारों ओर सभी कुछ दिखाई देता है। किसी को किसी भी वस्तु से डर नहीं लगता। वैसे ही ‘सूरज छाप’ टार्च अँधेरे में सूरज का काम करेगी। सूरज जैसी चमक, रोशनी तथा गरमी भी देगी। सूरज छाप टार्च रात के अँधेरे का सूरज है।

प्रश्न 2.
पाँच साल बाद दोनों दोस्तों की मुलाकात किन परिस्थितियों में और कहाँ होती है ?
उत्तर :
पाँच साल बाद दोनों दोस्तों की मुलाकात एक प्रवचन स्थल पर होती है लेकिन दोनों की स्थितियों में अंतर था। दोनों में से एक उपदेशक बन जाता है और दूसरा दोस्त उसके उपदेश सुनने के लिए वहाँ आता है।

प्रश्न 3.
पहला दोस्त मंच पर किस रूप में था और वह किस अँधेरे की टार्च बेच रहा था ?
उत्तर :
पहला दोस्त मंच पर सुंदर रेशमी वस्त्रों में सजा बैठा था। वह तंदुरुस्त था। उसकी सलीके से संवारी गई लंबी दाढ़ी थी और पीठ पर लहराते हुए लंबे केश थे। उसके आगे हजारों नर-नारी श्रद्धा से सिर झुकाए बैठे थे। वह आत्मा के अंधकार को दूर करने की टार्च बेच रहा था। मनुष्य के चारों ओर अंधकार फैला हुआ है। अंतर की आँखों की दृष्टि समाप्त हो गई है। इसलिए बाहरी दृष्टि आत्मा के अँधेरे को दूर नहीं कर पाती है। इस अंदर के अंधकार से आदमी की आत्मा घुटती रहती है। वह कहता था कि डरने की कोई बात नहीं है, क्योंकि अंधकार के साथ ही प्रकाश भी होता है। अभी यह प्रकाश अज्ञान के अंधकार की कालिमा में छिपा हुआ है। उसे जागृत करने के लिए उसके पास आओ। वह इस अंधकार को दूर करने का तरीका समझाएगा।

प्रश्न 4.
भव्य पुरुष ने कहा, ‘जहीं अंधकार है वहीं प्रकाश है।’ इसका क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
भव्य पुरुष ने कहा कि जहाँ अंधकार है वहीं प्रकाश है। इससे अभिप्राय यह है कि अंधकार के साथ-साथ प्रकाश भी होता है। अंधकार की गोद में उजाले की किरण होती है। उसे देखने के लिए धैर्य रखना पड़ता है। जैसे रात्त के बाद सुबह आती है। रात की कालिमा ही सूरज की पहली किरण को अपने भीतर समेटे रहती है। सूरज की पहली किरण को देखने के लिए रात भर इंतज़ार करना पड़ता है। मनुष्य के शरीर की आत्मा में भी अज्ञान रूपी अंधकार होता है। वह अंधकार मनुष्य को अपने चारों तरफ़ से जकड़ लेता है अर्थात मनुष्य मोह, ममता, माया में फँसा हूआ है ? वह अपने माँ-बाप, बीवी-बच्चों की सुख-सुविधाओं के लिए गलत-से-गलत काम कर जाता है।

वह गलत काम मोह में पड़कर करता है। इस प्रकार मनुष्य माया के जाल में उलझता ही चला जाता है। उसे कुछ नहीं सूझता। ऐसा नहीं है कि मनुष्य की आत्मा में अंधकार-ही-अंधकार है। वहाँ किसी कोने में अच्छाई भी दबी हुई होती है, जो उसे इन बुराई से डराती रहती है लेकिन उसकी आवाज़ दबी हुई होती है, जिसे वह बुराइयों के शोर में सुन नहीं पाता है। जब मनुष्य किसी सक्जन की संगति में आ जाता है तो उसकी दबी अच्छाई सिर उठाने लगती है और बुराइयाँ शोर मचाते हुए इधर-उधर भाग जाती है।

अच्छाई को उठाने के लिए किसी सिद्ध पुरुष का साथ चाहिए क्योंकि वह सिद्ध पुरुष ही उसकी अच्छाइयों को पहचानकर उन्हें बाहर निकालने में सहायता करता है। सिद्ध पुरुष उसी प्रकार मनुष्य की सहायता करते हैं जैसे प्रकृति सूरज की किरण की करती है। रात के सन्नाटे को समाप्त करने के लिए सुबह के समय पक्षी चहचहाकर रात की कालिमा को दूर भगा देते हैं और सूरज की किरण को देखकर खुशी से उनकी चहक और बढ़ जाती है, इसीलिए भव्य पुरुष ने ठीक कहा है कि जहाँ अंधकार होता है वहाँ प्रकाश अवश्य आता है।

प्रश्न 5.
भीतर के अंधेरे की टार्च बेचने और ‘सूरज छाप’ टार्च बेचने के धंधे में क्या अंतर है ? पाठ के आधार पर बताइए।
उत्तर :
दो दोस्त टार्च बेचने का काम करते हैं। एक भीतर के अँधेर की टार्च बेचता है और दूसरा सूरज छाप टार्च बेचता है। दोनों बेचते टार्च ही हैं लेकिन दोनों के बेचने के ढंग अलग-अलग हैं। भीतर की टार्च बेचनेवाले साधारण पुरुष नहीं होते। वह सिद्ध पुरुष होते हैं। उनका स्थान उच्च होता है। वह जनता को भटकाव के मार्ग से बचाते हैं। हज़ारों नर-नारी उनके स्वरूप तथा वाणी से प्रभावित होते हैं। भीतर की टार्च बेचनेवाले आत्मा के अंदर फैले अंधकार की बात करते हैं। यदि आत्मा ही अंधकार में होगी तो आदमी संसार को कैसे पार कर सकेगा। अंधकार मनुष्य की आत्मा ही नहीं, उसका संपूर्ण व्यक्तित्व निगल जाता है।

वे मनुष्य को आत्मा में फैले अंधकार से डराते हैं और अपने पास आने के लिए प्रेरित करते हैं। उनके पास आत्मारूपी अँधेरे को प्रकाश में लाने का उपाय होता है क्योंकि अंधकार के साथ ही प्रकाश होता है, जो साधारण मनुष्य को दिखाई नहीं देता है। वह केवल सिद्ध पुरुषों को ही दिखाई देता है, इसलिए वे लोगों को जागृत करते हैं और अंधकार को मिटाने के लिए अपने साधना मंदिर में बुलाते हैं। जहाँ मनुष्य के पहुँचने पर उसे अपने चारों ओर प्रकाश ही प्रकाश दिखाई देगा। इस प्रकार भीतर की टार्च बेचनेवाला हज्ञारों लोगों को एक साथ प्रेरित करता है और अपने पास बुलाता है।

‘सूरज छाप टार्च’ बेचनेवाले साधारण पुरुष होते हैं। वह खुले मैदान या चौराहे पर कुछ लोगों को इकट्ठा करते हैं और अपनी बात कहते हैं। सूरज छाप टार्च बेचने वाले भी भीतर की टार्च बेचनेवालों की तरह लोगों में अँधेरे का भय उत्पन्न करते हैं लेकिन इनका अँधेरा आत्मा का नहीं होता। यह अँधेरा बाहर का होता है। यह अँधेरा रातें काली होने पर फैलता है जिसमें आदमी को अपना हाथ दिखाई नहीं देता है। आदमी रास्ता भटक जाता है। अँधंरे में उसके पैर काँटों पर पड़ जाते हैं। वह घायल हो जाता है।

इस भयानक अँधेरे में शेर, चीते और साप हो सकते हैं। यही अंधकार घर में भी होता है। जब आधी रात को आँख खुलती है तो रोशनी नहीं होती, उस समय अँधेरे में किसी भी चीज़ से टकरा सकते हैं, जिससे आदमी घायल हो सकता है। यदि घर में साँप घुसा हो और अँधेरे में उसपर पैर पड़ जाएँ तो साँप उसे डँस सकता है और उसकी मौत भी हो सकती है। सूरज छाप टार्च बेचने वाला वहाँ खड़े लोगों को अँधेरे से डरा देता है और लोग अँधेरे से बचने के लिए ‘सूरज छाप टार्च’ खरीदने लगते हैं। इस प्रकार भीतर की टार्च बेचनेवाले और सूरज छाप टार्च बेचनेवालों का संबंध अँधेरे से है लेकिन दोनों के अँधेरे में अंतर है और अँधेरे से प्रकाश में लाने के ढंग भी अलग हैं।

प्रश्न 6.
‘सवाल के पाँव ज़मीन में गहरे गड़े हैं। यह उखड़ेगा नहीं।’ इस कथन में मनुष्य की किस प्रवृत्ति की ओर संकेत है और क्यों ?
उत्तर :
इस कथन में मनुष्य की किसी भी समस्या को टालने की प्रवृत्ति की ओर संकेत किया गया है क्योंकि मनुष्य बहुत ही सुविधाभोगी प्राणी है। वह किसी भी जटिल समस्या अथवा सवाल का उत्तर नहीं दे पाने पर उसे टाल देना ही उचित समझता है। समस्याओं के समाधान के लिए कमेटियाँ बनाकर उस समस्या को टाल दिया जाता है तथा सवालों पर विचार करने के लिए समय माँग लिया जाता है। इस प्रकार सवालों और समस्याओं को टालकर उनसे छुटकारा पा लिया जाता है।

प्रश्न 7.
‘व्यंग्य विधा में भाषा सबसे धारदार है।’ परसाई जी की इस रचना को आधार बनाकर इस कथन के पक्ष में अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर :
हरिशंकर परसाई मे अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज में व्याप्त विभिन्न विसंगतियों पर प्रहार किया है। इसके लिए वे भावानुकूल भाषा-शैली का प्रयोग करने में सिद्धहस्त हैं। ‘टार्च बेचनेवाले’ आलेख में लेखक ने टार्च बेचनेवाले दो मित्रों के माध्यम से स्पष्ट किया है कि किस प्रकार से एक मित्र अपनी चालाकी से टार्च बेचते-बेचते धर्माचार्य बन जाता है। लोगों के अंधविश्वासों पर कटाक्ष किया गया है। भाषा में बोलचाल के शब्दों की अधिकता है, जैसे-टार्च, क्रूरता, हरामखोरी, घायल, बीवी, यार, किस्मत आदि। कहीं-कहीं तत्सम शब्द भी दिखाई देते हैं, जैसे-सर्वग्राही, पुष्ट, संपूर्ण, प्रवचन, भव्य, वैभव। लेखक ने मुख्य रूप से व्यंग्यात्मक वर्णन प्रधान भैली अपनाई है। कहीं-कहीं संवादात्मकता से रेचक्ता मेंृृद्धि छुई है जैसे ‘मैै कहा, यार, तू तो बिलकुल बदल गया।’ उसने गंभीरता से कहा,’परिवर्तन जीवन का अनंतक्रम है।’
मँने कहा,’ साले, फििलासफ़ी मत बघार यह बता कि तूने इतनी दौलत कैसे संभाली ?’
उसने पूछा- ‘तुम इन सालों में क्या करते रहे ?’
मैंने कहा- घूम-घूमकर टार्च बेचता रहा।’
लेखक ने मुहावरों का सार्थक प्रयोग किया है तथा शब्द-चित्रों के माध्यम से तथाकथित धर्माचायों पर भी व्यंग्य किया है जब टार्च बेचनेवाले को धर्माचार्य बनने की प्रेरणा मिलती है-‘एक शाम जब मैं एक शहर की सड़क पर चला जा रहा था, मैने देखा कि पास के मैदान में खूब रोशनी है और एक तरफ़ मंच सजा है। लाउडस्पीकर लगे हैं। मैदान में हजारों नर-नारी श्रद्धा से झुके बैठे हैं। मंच पर सुंदर रेशमी वस्त्रों से सजे एक भव्य पुरुष बैठे हैं। वे खूब पुष्ट हैं, सँवारी हुई लंबी दाढ़ी है और पीठ पर लहराते लंबे केश।’ यहीं से वह प्रेरणा प्राप्त कर उपदेशक बन जाता है।
इस प्रकार लेखक की भाषा-शैली धारदार, रोचकता से परिपूर्ण तथा सामाजिक विकृतियों पर कटाक्ष करने में सक्षम है।

प्रश्न 8.
आशय स्पष्ट कीजिए-
(क) “आजकल सब जगह अँधेरा छाया रहता है। रातें बेहद काली होती हैं। अपना ही हाथ नहीं सूझता।”
(ख) “प्रकाश बाहर नहीं है, उसे अंतर में खोजो। अंतर में बुझी उस ज्योति को जगाओ।”
(ग) “धा बही करूँगा, अपनी टार्च बेचूँगा। बस कंपनी बदल रहा हूं।”
उत्तर :
(क) सूरज छाप टार्च बेचनेवाले का इस पंक्ति से अभिप्राय यह है कि रातें काली होने से सब जगह अधरा छाया रहता है जिससे आदमी को अपना ही हाथ दिखाई नहीं देता। इसलिए अँधेरे से बचने के लिए सूरज छाप टार्च खरीदों।

(ख) सिद्ध पुरुष का इस पंक्ति से अभिप्राय यह है कि आत्मा के अंधकार को दूर करने के लिए प्रकाश की किरण अपने अंदर बूँढनी चाहिए क्योंकि वह मनुष्य के अंतर में ही स्थित है। उस किरण से आत्मा के अंधकार से बुझ गई ज्योति को जलाओ।

(ग) इस पंक्ति से अभिप्राय यह है कि जो व्यक्ति लोगों को दिन के अँधेरे का डर दिखाता है उसे किसी भी नाम से पुकारा जाए अर्थात उसका नाम दार्शनिक साधु या संत कुछ भी हो सकता है क्योंक वह अँधेरे का डर दिखाकर लोगों को अपनी कंपनी की टार्च बेचना चाहता है। उसे तो केवल अपना स्वार्थ सिद्ध करना है चाहे वह इसे जैसे भी सिद्ध करे।

योग्यता-विस्तार –

प्रश्न 1.
‘पैसा कमाने की लिप्सा ने आध्यात्मिकता को भी एक व्यापार बना दिया है।’ इस विषय पर कक्षा में परिचर्चा कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी पाखंडी धर्मगुरुओं की घटनाओं का उल्लेख कर चर्चा कर सकते हैं।

प्रश्न 2.
समाज में फैले अंधविश्वासों का उल्लेख करते हुए एक लेख लिखिए।
उत्तर :
बिल्ली का रास्ता काटना, बाहर निकलते समय किसी का छींकना, टोना-टोटका करना, भूत-प्रेत की छाया पड़ना आदि अंधविश्वासों के आधार पर लेख लिखा जा सकता है।

प्रश्न 3.
एन० सी० ई० आर० टी० द्वारा हरिशंकर परसाई पर बनाई गई फिल्म देखिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका से अनुरोध करें।

Class 11 Hindi NCERT Book Solutions Antra Chapter 3 टार्च बेचने वाले

प्रश्न 1.
लेखक को चौराहे पर कौन मिलता है और वह क्या काम करता था ?
उत्तर :
लेखक को चौराहे पर एक दाढ़ीवाला आदमी मिलता है। उसने लंबा कुरता पहना हुआ था। वह दाढ़ीवाला आदमी चौराहे पर ‘सूरज छाप टार्च’ बेचा करता था लेकिन अब उसने ‘सूरज छाप टार्च’ बेचना बंद कर दिया है। उसे यह काम व्यर्थ लगता है क्योंकि उसने आत्मा की टार्च बेचने का नया काम सीख लिया है जिसमें लागत कुछ नही लगती केवल लाभ-ही-लाभ मिलता है तथा समाज में इज्जात भी मिलती है।

प्रश्न 2.
प्रवचनकर्ता के प्रवचन सुनकर वह व्यक्ति क्यों हँस रहा था ?
उत्तर :
प्रवचनकर्ता के प्रवचन सुनकर वह व्यक्ति इसलिए हैंस रहा था क्योंकि जब वह ‘सूरज छाप टार्च’ बेचता है तो वह भी लोगों को दिन के अँधेरे से डरा देता है और लोग उसकी टार्च जल्दी से खरीद लेते है। ऐसे ही यह प्रवचनकर्ता भी लोगों के भौतर आत्मा के अंधकार की बात करता है। लोग आत्मा की बातें करनेवालों के चक्कर में जल्दी फँस जाते हैं और अपनी आत्मा के उद्धार के लिए जल्दी से प्रवचनकर्ता के चरणों में पहुँच जाते हैं। उस व्यक्ति को लगता है कि यह प्रवचनकर्ता भी टार्च बेचनेवाला है। दोनों में अंतर इतना है कि यह ऊँचे मंच पर बैठकर लोगों को बेवकूफ़ बना रहा है और वह चौराहे पर खड़े होकर बेवकूक़ बनाता है। उस व्यक्ति को अंधकार से प्रकाश में लाने की बातें सुनकर हैसी आ रही थी।

प्रश्न 3.
दूसरे दोस्त के साथ ऐसी क्या घटना घटती है कि उसे ‘सूरज छाप टार्च’ बेचना व्यर्थ लगने लगता है ?
उत्तर :
पाँच साल पहले दो दोस्त बिछुड़े से पहले, पाँच साल बाद मिलने का स्थान निश्चित करके आलग-अलग दिशअंओं में अपनी-अपनी किस्मत आजमाने के लिए निकल पड़ते हैं। ‘सूरज छाप टार्च’ बेचनेवाला दोस्त पाँच साल बाद निश्चित स्थान पर पहुँचता है लेकिन उसका दोस्त वहाँ नही आता है। वह सोचता है कि या तो वह भूल गया या फिर नश्वर संसार चला गया है। वह उसे ढूँढ़ने के लिए निकल पड़ता है। एक दिन उसका मित्र उसे उपदेशक के रूप में मिलता है और उसकी धन-दौलत और चमक-दमक से प्रभावित होता है। वह हैरान होता है कि उसने पाँच साल में इतनी दौलत और इक्जत कैसे कमा ली जबकि उसके उपदेश टार्च बेचनेवाले जैसे हैं।

वह उससे पूछता है। उत्तर में उसका दोस्त उसे आत्मा की टार्च का रहस्य बताता है जिसमें लागत कुछ नही है। इसकी कंपनी भी बहुत पुरानी है जिसकी विश्वसनीयता पर लोग जल्दी से विश्वास कर लेते है। वह उसके पास दो दिन रहकर आत्मा की टार्च बेचना सीख सकता है। इस प्रकार ‘सूरज छाप टार्च’ बेचनेवाले को अपनी कंपनी व्यर्थ लगती है क्योंकि सारा दिन टार्च बेचकर भी वह कुछ विशेष नहीं कमा पाता और यह बिन लागत की टार्च लोगों में आसानी से बेचकर धन-दौलत कमाई जा सकती है। समाज में इस काम को आदर से देखा जाता है और श्रद्धा से पूजा जाता है।

प्रश्न 4.
टार्च बेचने का डंग क्या था ?
उत्तर :
टार्च बेचने के लिए वे लोगों से कहते कि आजकल सब जगह अँधेरा छाया हुआ है। यह अँधेरा घर और बाहर दोनों जगह हैं। आदमी अँधेरे में भटक जाता है। उसे कुछ दिखाई नहीं देता है। वह कभी भी गिर सकता है। शेर, चीते, सापप और बिच्छू चारों ओर घूम रहे हैं, इन सबसे बचने के लिए अंधकार में प्रकाश की जरूरत है, इसलिए ‘सूज छाप टार्च’ खरीदो और अपने चारों और फैले अँधेरे को दूर करो।

प्रश्न 5.
दिन-दिहाड़े वह अंधकार से लोगों को किस तरह डराता था ?
उत्तर :
पहले मित्र ने अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए ‘सूरज छाप टार्च’ बेचना शुरू कर दिया था। वह लोगों को एक चौराहे या मैदान में इकट्ठा करके दिन-दिहाड़े उन्हें अँधेरे का डर दिखाता था। वह उन्हें कहता था कि रातें बहुत काली होती हैं, जिससे चारों ओर अँधेरा रहता है। अंधकार में आदमी को अपना ही हाथ दिखाई नहीं देता। रास्ता दिखाई न देने पर आदमी भटक जाता है। अँधेरे में साँप, बिच्छू, शेर, चीते कुछ भी नज़र नहीं आते। इनके काटने से आदमी मर भी सकता है। अँधेरे के साथ प्रकाश भी है। यह प्रकाश आप ‘सरज छाप टार्च’ से प्राप्त कर सकते हैं। सूरज छाप टार्च खरीदो, अंधकार दूर करो। उसकी इन बातों से भयभीत होकर लोग उससे टार्च खरीद लेते थे।

प्रश्न 6.
दाड़ी-कुरते वाले के साथ प्रारंभ में लेखक की क्या बातचीत होती है ?
उत्तर :
लेखक को कुछ दिन से चौराहे पर टार्च बेचनेवाला आदमी दिखाई नहीं दिया था। एक दिन अचानक वह मिल जाता है। उसकी वेशभूषा बदली हुई थी। उसने लंबा कुरता पहन रखा था और दाढ़ी बढ़ा रखी थी। लेखक उससे पूछता है कि इतने दिन वह कहाँ था और ये दाढ़ी क्यों बढ़ा रखी है ? आज वह टार्च क्यों नहीं बेच रहा है ? दाढ़ीवाला व्यक्ति उत्तर देते हुए कहता है कि उसने ‘सूरज छाप’ टार्च बेचनी बंद कर दी है। अब उसकी आत्मा में टार्च जल उठी है। उस टार्च के आगे सभी प्रकार की टार्चें बेकार हैं। लेखक ने उसकी बातों से अनुभव किया कि वह संन्यास ले रहा है, क्योंक जिनकी आत्मा में प्रकाश की टार्च जल जाती है, वह इसी तरह की बातें करने लगते हैं।

दाढ़ीवाले व्यक्ति को लेखक की बातें बुरी लगती हैं। उसे दुख होता है कि लेखक उसके बारे में ऐसा सोचता है। वह साधु जैसी बाते करता है न कि उनके समान कठोर वचनोंवाली। इससे केवल उसकी आत्मा ज़खी नहीं हुई अपितु लेखक की भी आत्मा जख्मी हुई है क्योंक सभी की आत्मा एक है। लेखक को उसकी बातें उचित लगती हैं। चह दाढ़ीवाले से ऐसा करने के पीछे का कारण पूछता है। लेखक अपनी तरफ़ से अनुमान लगाता है कि इसकी घरवाली ने इसे छोड़ दिया होगा या काम-धंधे के लिए उधार मिलना बंद हो गया होगा या साहूकारों या पुलिस थाने में फँस गया होगा। टार्च बेचनेवाले के अंदर आत्मा में टार्च कैसे घुस सकती है ? दाढ़ीवाला लेखक की जिज्ञासा को शांत करता है कि उसके साथ एक घटना घट गई थी जिससे उसका जीवन बदल गया है।

प्रश्न 7.
पाँच साल पहले दोनों दोस्तों की कहानी क्या थी ? उनके धंधे क्या थे ?
उत्तर :
पाँच साल पहले दोनों दोस्त बेकार थे। दोनों साथ-साथ रहते हुए एक-दूसरे का सुख-दुख बाँटते और बेकार की बातों में समय बरबाद करते थे। एक दिन दोनों दोस्त एक स्थान पर निराश बैठे थे। उनकी निराशा का कारण यह था कि उन्हें एक सीधे-सादे सवाल का जबाव नहीं मिल रहा था। उस सवाल का जबाव न मिलने का कारण उनका खाली बैठकर सोचते रहना था। उनके आगे सवाल यह था कि पैसा कैसे पैदा करें? वे दोनों जितना उस सवाल को अपने से दूर करते, वह दूसरे रास्ते से उनके सामने आकर खड़ा हो जाता था।

उन दोनों ने बड़ी ताकत लगाकर सवाल को उठाकर फेंकने की कोशिश की, लेकिन वह फिर सामने था। उन्हें लगा कि यह सवाल टलने वाला नहीं है, क्योंकि इसकी जड़े बहुत गहरी हैं। इसके लिए कुछ करना होगा। दाढ़ी वाले मित्र ने कहा कि यह सवाल उनके सामने से तभी हटेगा जब हम कुछ करने के लिए यहाँ से जाएँगे अथांत कुछ काम-धंधा करेंगे। वे दोनों काम करने के लिए तैयार हो जाते हैं। वे दोनों अलग-अलग दिशाओं में जाकर काम-धंधे में अपनी किस्मत आज्जमाना चाहते हैं।

दोनों चलने से पहले यह तय करते हैं कि पाँच साल बाद दोनों के हालात कैसे भी रहें यही आकर मिलेंगे। पहला मित्र दूसरे मित्र से अलग होना नहीं चाहता था क्योंकि दोनों का साथ बहुत पुराना था। दूसरा मित्र उसे समझाता है कि उसने किस्मत आजमानेवाले जितने भी दोस्तों की कहानी पढ़ी है सभी अलग-अलग दिशाओं में जाते हैं। साथ-साथ काम के लिए जाना कभी-कभी टकराव का कारण बन जाता है और दोस्ती समाप्त हो जाती है। इसलिए अलग-अलग दिशाओं में भाग्य आज्रमाएँ।

प्रश्न 8.
लेखक की किस बात से दाढ़वाले व्यक्ति को आघात पहुँचा और उसने क्या कहा ?
उत्तर :
लेखक ने व्यक्ति की बढ़ी हुई दाढ़ी देखकर कहा, “तुम शायद संन्यास ले रहे हो। जिसकी आत्मा में प्रकाश फैल जाता है, वह इसी तरह हरामखोरी पर उतर आता है। किससे दीक्षा ले आए ?’ लेखक की इस बात से दाढ़ीवाले व्यक्ति को अत्यंत पीड़ा हुई और उसने कहा, “ऐसे कठोर वचन मत बोलिए। आत्मा सबकी एक है। मेरी आत्मा को चोट पहुँचाकर आप अपनी ही आत्मा को घायल कर रहे हैं।”

प्रश्न 9.
लेखक ने दाड़ीवाले की बात सुनकर उसके संन्यासी होने के क्या-क्या तक दिए ?
उत्तर :
लेखक ने कहा, “यह सब तो ठीक है मगर बताओ कि तुम एका-एक ऐसे कैसे हो गए ?
क्या बीबी ने त्याग दिया ?
क्या उधार मिलना बंद हो गया ?
क्या साहूकारों ने क्यादा तंग करना शुरू कर दिया ?
क्या चोरी के मामले में फैस गए हो ?
आखिर बाहर का टार्च भीतर आत्मा में कैसे घुस गया ?”

प्रश्न 10.
एक शाम शहर की सड़क पर लेखक ने क्या देखा ?
उत्तर :
एक शाम शहर की सड़क पर जब लेखक जा रहा था तब उसने देखा कि पास के मैदान में खूब रोशनी है और एक तरफ़ मंच सजा है। लाउडस्पीकर लगे हैं। मैदान में हज्ञारों नर-नारी श्रद्धा से झुके बैठे हैं। मंच पर सुंदर रेशमी वस्त्रों से सजे एक भव्य पुरुष बैठे हैं। वे खूब पुष्ट हैं। सँवारी हुई लंबी दाढ़ी है और पीठ पर लहराते लंबे केश हैं।

प्रश्न 11.
भव्य पुरुष लग रहे थे और उन्होंने क्या करना शुस्ू किया ?
उत्तर :
भव्य पुरुष फ़िल्मों के संत लग रहे थे। उन्होंने गुरु-गंभीर वाणी से प्रवचन शुरू किया। वे इस तरह बोल रहे थे जैसे आकाश के किसी कोने से कोई रहस्यमय संदेश उनके कानों में पड़ रहा है और वे उसे भाषण के रूप में दे रहे हैं।

प्रश्न 12.
दाढ़ीवाले भव्य पुरुष ने अपने भाषण में क्या कहा ?
उत्तर :
दाढ़ी वाले भव्य पुरुष ने अपने भाषण में कहा, “में आज मनुष्य को एक घने अंधकार में देख्त रहा हूं। उसके भीतर कुछ बुझ गया है। यह युग ही अंधकारमय है। यह सर्वग्राही अंधकार संपूर्ण विश्व को अपने उदर में छिपाए है। आज मनुष्य इस अंधकार से घबरा उठा है। वह पथ-प्रष्ट हो गया है। आज आत्मा में भी अंधकार है। अंतर की आँखें ज्योतिहीन हो गई हैं। वे उसे भेद नहीं पातीं। मानव-आत्मा अंधकार में घुटती है। में देख रहा हूँ मनुष्य की आत्मा भय और पीड़ा से त्रस्त है।”

प्रश्न 13.
प्रवचन के अंत में पहुँचने पर भव्य पुरुष ने क्या कहा ?
उत्तर :
प्रवचन के अंत में पहुँचने पर भव्य पुरुष ने कहा-” भाइयो और बहनो डरो मत। जहाँ अंधकार है, वहीं प्रकाश है। अंधकार में प्रकाश की किरण है, जैसे प्रकाश में अंधकार की किचित कालिमा है। प्रकाश भी है। प्रकाश बाहर नहीं है, इसे अंतर में खोजो। अंतर में बुझी उस ज्योति को जगाओ। मै तुम सबका उस ज्योति को जगाने के लिए आहवान करता हु। में तुम्हारे भीतर उसी शाश्वत ज्योति को जगाना चाहता हूँ। हमारे साधना मंदिर में आकर उस ज्योति को अपने भीतर जगाओ।”

प्रश्न 14.
भव्य पुरुष ने लेखक को कब और कैसे पहचाना ?
उत्तर :
भव्य पुरुष जब अपना प्रवचन समाप्त कर मंच से नीचे उतरकर कार में बैठ रहे थे तब लेखक वहीं पास में खड़ा था। लेखक उन्हें उनकी बढ़ी हुई दाढ़ी के कारण पहचान नहीं सका, लेकिन दाढ़ी वाले भव्य पुरुष ने लेखक को तुरंत पहचान लिया, क्योंकि लेखक उस समय अपने मौलिक रूप में था। पहचानते ही उन्होंने लेखक से कहा-‘ अरे तुम’ और उसका हाथ खींचकर कार में बिठा लिया।

प्रश्न 15.
“तुम मुझे नहीं जानते, मैं टार्च क्यों बेचूँगा म मैं साधु, दार्शनिक और संत कहलाता हूँ।”‘ दाढ़ीवाले व्यक्ति की यह बात सुनकर लेखक ने क्या कहा ?
उत्तर :
लेखक ने दाढ़ीवाले व्यक्ति की बात सुनकर कहा कि-” तुम कुछ भी कहलाओ, बेचते तुम टार्च हो। तुम्हारे और मेरे प्रवचन एक जैसे हैं। चाहे कोई दार्शनिक बने, संत बने या सापु बने, अगर वह लोगों को अँधेरे का डर दिखाता है, तो जरूर अपनी कंपनी का टार्च बेचना चाइता है। तुम जैसे लोगों के लिए हमेशा ही अंधकार छाया रहता है। बताओ -तुम्हारे जैसे किसी आदमी ने हज्तारों में कभी भी यह कहा है कि आज दुनिया में प्रकाश फैला है ? कभी नहीं कहा! क्यों ? इसलिए कि उन्हें अपनी कंपनी का टार्च बेचना है। मैं स्वयं भरी दोपहर में लोगों से कहता हूँ कि अंधकार छाया है। बता किस कंपनी का टार्च बेचता है ?”

प्रश्न 16.
लेखक के प्रश्न ‘कहाँ है तेरी दुकान’ का दाढ़ीवाले ने क्या उत्तर दिया ?
उत्तर :
दाढ़ीवाले व्यक्ति ने लेखक से कहा कि उसके टार्च की कोई दुकान बाज्ञार में नहीं है। वह बहुत सूक्ष्म है। मगर उसकी कीमत बहुत मिल जाती है। उसने लेखक से कहा कि वह उसके पास एक-दो दिन रह जाए तो उसे सब ठीक से समझ आ जाएगा।

11th Class Hindi Book Antra Questions and Answers

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