NCERT Solutions for Class 11 Hindi Antra Chapter 17 बादल को घिरते देखा है
Class 11 Hindi Chapter 17 Question Answer Antra बादल को घिरते देखा है
प्रश्न 1.
इस कविता में बादलों के सौंदर्य-चित्रण के अतिरिक्त और किन दूश्यों का चित्रण किया है ?
उत्तर :
कवि नागार्जुन ने इस कविता में वर्णन किया है कि मानसरोवर में खिले कमलों पर पड़ी वर्षा की बूँदे छोटे-छोटे मोतियों जैसी लगती हैं। अनेक बड़ी-छोटी झीलों में समतल देशों की उमस से व्याकुल पक्षियों द्वारा कमल नाल के कड़वे मीठे तंतु खाते भी दिखाया है। साथ चकवा-चकई का प्रणय-कलह तथा किन्नर जाति के नर-नारियों के सौंदर्य और मादकता आदि दृश्य-बिंबों का सजीव वर्णन किया है।
प्रश्न 2.
‘प्रणय-कलह’ से कवि का क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
‘प्रणय-कलह’ से कवि का तात्पर्य है कि जब प्रेमी और प्रेमिका अथवा नायक और नायिका परस्पर सच्चा प्रेम करते हैं और किसी कारणवश उन्हें बिद्डड़ना पड़ता है तो वे जब अलग-अलग होते हैं तो उन्हें विरह-वेदना में दिन व्यतीत करने पड़ते हैं तो परंतु जब वे एक बार फिर मिलते हैं तो वे प्यार व्यक्त करने के साथ-साथ एक-दूसरे के प्रति गुस्सा भी प्रकट करते हैं। उनका यही प्यार और गुस्सा ‘प्रणय-कलह’ कहलाता है। कवि ने प्रस्तुत कविता में चकवा और चकई के माध्यम से यही दर्शाया है। जब चकवा और चकई रात होते ही एक-दूसरे से बिछुड़ जाते हैं तथा सुबह होते ही एक-दूसरे को एक बार फिर मिल जाते हैं तो ‘प्रणय-कलह’ की क्रिया से गुज़रते है।
प्रश्न 3.
कस्तूरी मृग के अपने पर ही चिढ़ने के क्या कारण हैं ?
उत्तर :
कवि हिमालय पर्वत में स्थित सैकड़ों-हज्ञारों फुट की ऊँचाई पर गहरी एवं दुर्गम बफ़ीली घाटी में अलख नाभि से उठने वाली फूलों की-सी सुगंध को सूँघकर कस्तूरी मृग उसके पीछे-पीछे दौड़ता-सा प्रतीत होता है परंतु वहाँ वह कहीं भी उस सुर्ंध को नहीं पकड़ पाता। वह बार-बार चक्कर काटता है और फिर वहीं आकर खड़ा हो जाता है। एक अजीब-सी सुगंध के पीछे दौड़ते कस्तूरी मृग को देखकर कवि को लगता है कि वह अपने-आप से ही चिढ़ रहा है।
प्रश्न 4.
बादलों का वर्णन करते हुए कवि को कालिदास की याद क्यों आती है ?
उत्तर :
जब कवि हिमालय की ऊँची चोटियों पर बादल को छिरकर बरसते देखता है तो वह कालिदास को याद करता हैं और सोचता है कि यहों चारों तरफ बादल-ही-बादल हैं। धन का देवता कुलेर और उसकी अलका नगरी बादलों में कही लुप्त हो जाती है। कालिदास मेषदूत में वर्णन करते हैं कि वर्षा का पानी (गंगाजल) अत्यधिक तीव्र वेग से आकाश में घूमने लगता है। जब वह पर्वत की चोटी पर बादलों को घिरते देखता हैं तो उसे कालिदास का मेघदूत कहीं भी दिखाई नहीं देता। कवि उसे कोरी कल्पना समझकर छोड़ने की बात करता है। इसी दृश्य को देखकर कवि को कालिदास की अचानक याद आ जाती है।
प्रश्न 5.
कवि ने ‘मामेघ को झंझानिल से गरज-गरज भिड़ते देखा है’ क्यों कहा है ?
उत्तर :
कवि ने ऐसा इसलिए कहा है, क्योंकि उसने शीत ॠत्तु की तेज हवाओं में बादलों को आपस में टकरा-टकराकर गरजते और बरसते हुए देखा है। कवि को ऐसा लगता था कि मानो तेज़ तुफान में बड़े-बड़े बादल आपस में टकराकर बरस रहे हैं।
प्रश्न 6.
‘बादल को घिरता देखा है’-पंक्ति को बार-बार दोहराए जाने से कविता में क्या साँदर्य आया है ?
उत्तर :
इस कविता में ‘बादल को घिरते देखा है’ पंक्ति को बार-बार दोहराए जाने का सर्वाधिक उपयुक्त कारण यह है कि कवि ने इस कविता में जितने भी दृश्य चित्र बनाए हैं उन सबमें बादल को घिरते दिखाया गया है। हिमालय की ऊँची सफ़ेद चोटियों पर मानसरोवर और अन्य झीलों में पावस, शीत, ग्रीष्म और वसंत ऋतु के साथ-साथ तथा किन्नर जाति के वर्णन में बादल घिरकर आते हैं।
प्रश्न 7.
निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए –
(क) निशाकाल से चिर-अभिशापित-बेबस उस चकवा-चकई का/बंद हुआ क्रंदन, फिर उनमें । उस महान सरवर के तीरे/शैवालों की हरी दरी पर प्रणय-कलह छिड़ते देखा है।
(ख) अलख नाभि से उठनेवाले/निज के ही उन्माद परिमल/के पीछे धावित हो-होकर / तरल तरुण कस्तूरी मृग को/अपने पर चिढ़ते देखा है।
उत्तर :
(क) कवि कहता है कि हिमालय की ऊँची स्वर्णिम चोटियों के बीच मानसरोवर झील है। वसंत ऋतु में उदय होते सूर्य की स्वर्णिम किरणें बर्फ़ की सफ़ेद चादर से ढकी चोटियों पर पड़ती हैं। मंद-मंद गति से हवा चल रही है। इस सुंदर एवं स्वच्छ वातावरण में चकवा और चकई एक-दूसरे से रात भर अलग-अलग रहने का सदा से अभिशाप है। परंतु सुबह होते ही उन बेबस और व्याकुल चकवा और चकई की विरह-चीखें बंद हो जाती हैं। कवि कहता हैं कि मैने चकवा – चकई को हिमालय स्थित मानसरोवर के किनारे शैवाल की हरी चादर पर प्यारा-भरी छेड़छाड़ करते देखा है अर्थात् रात-भर विरह वेदना से उभरकर सुबह जब दोनों मिलते हैं, तो, वे एक-दूसरे के साथ प्रेम भरी क्रीड़ाएँ करते हैं।
(ख) कवि कहता है कि हिमालय पर्वत में स्थित सैकड़ो-हजारों फुट की ऊँचाई पर गहरी और दुर्गम बफ़ीली घाटी में अनेक प्रकार के फूलों की सुगंध-सी बिखरी हुई है। चारों ओर सुंंधमय वातावरण है परंतु मृग जिसके पास स्वयं कस्तूरी की सुगंध होती है, वह इस नशीली सुंध के पीछे-पीछे दौड़ रहा है तथा ऐसा प्रतीत होता है जैसे बेचैन होकर कस्तूरी मृग अपने ही ऊपर चिढ़ रहा हो। यह सारा घटनाक्रम मैने अपनी आँखों से देखा है।
प्रश्न 8.
संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए :
(क) छोटे-छोटे मोती जैसे …………………. कमलों पर गिरते देखा है।
(ख) समतल देशों से आ-आकर …………………….. हंसों को तिरते देखा है।
(ग ) ऋतु वसंत का सुप्रभात था …………. अगल-बगल स्वर्णिम शिखर थे।
(घ) बूँड़ा बहुत परंतु लगा क्या .जाने दो, वह कवि-कल्पित था।
उत्तर :
इसी कविता का सप्रसंग व्याख्या भाग देखिए।
योर्यता-विस्तार –
1. अन्य कवियों की ऋतु संबंधी कविताओं का संग्रह कीजिए।
2. कालिदास के ‘मेघदूत’ का संक्षिप्त परिचय प्राप्त कीजिए।
3. बादल से संबंधित अन्य कवियों की कविताएँ याद कर अपनी कक्षा में सुनाइए।
4. एन० सी० ई० आर० टी० ने कई साहित्यकारों, कवियों पर फिल्में तैयार की हैं। नागार्जुन पर भी फिल्म बनी है। उसे देखिए और चर्चा कीजिए।
उत्तर :
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Class 11 Hindi NCERT Book Solutions Antra Chapter 17 बादल को घिरते देखा है
कध्य पर आधारित प्रश्न –
प्रश्न 1.
कविता में चित्रित प्रकृति एवं जन-जीवन को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
कवि नागार्जुन द्वारा रचित कविता ‘बादल को घिरते देखा है’ में प्रकृति के साथ-साथ जन-जीवन का भी सुंदर चित्रण हुआ है। कवि कहता हैं कि मैने हिमालय की ऊँची बर्फीली निर्मल एवं सफ़ेद चोटियों पर बादलों को घिरते देखा है। उन्होंने मानसरोवर झील के साथ हिमालय में स्थित अन्य बड़ी-छोटी झीलों का भी सुंदर वर्णन किया है। वसंत ऋत्तु में संपूर्ण पर्वतीय क्षेत्र फूलों से भर जाता है। मंद-मंद समीर बहती है। सूर्य की किरणें बर्फ़ीली चोटियों पर जब पड़ती हैं तो उन्हें भी स्वर्णिम बना देती हैं। रात-भर एक-दूसरे से अलग रहने के कारण चकवा-चकई पुनः जब सुखा मिलते हैं तो वे ‘प्रणय-कलह’ की अनेक क्रियाएँ करते है।
कैलाश पर्कत के गगनचुंबी शिखरों पर मूसलाधार एवं भीषण वर्षा का भी कवि ने सुंदर एवं स्वाभाविक चित्रण किया है। हिमालय से निकलने वाले सौ छोटे-बड़े झरने देवदार के जंगलों में कल-कल करते हुए बहते हैं। इन्हीं देवदार के जंगलों में किन्नर जाति के लोग भोज पत्रों की कुटिया बनाकर रहते हैं। किन्नर जाति की स्त्रियाँ रंग-बिंगे फूलों की मालाएं बनाकर अपने बालों में गुँथती हैं। इंदनील की मणियों की मालाएँ उन्होंने अपने सुंदर एवं सुघड़ गलों में डाल रखी हैं। कानों में नील कमल के कुंडल लटकाए हुए हैं। लाल कमलों से अपनी वेणी को गुँथा हुआ है। दूसरी ओर नर चाँदी और मणियों से बनी सुराही में अंगूरों की शराब भरकर चंदन की तिपाई पर रखकर बाल कस्तूरी मृगों की छालों पर पालथी मारकर बैठे है। उनकी आँखों में शराब की मस्ती है। कवि कहता है कि ये मदमस्त किन्नर और किन्नरियां अपनी कोमल अँगुलियों को बांसुरी पर फेरकर मधुर तान छेड़ते है। इस प्रकार कवि ने प्रकृति के साथ पर्कतीय क्षेत्रों में जन-जीवन का बहुत ही सुंदर एवं स्वाभाविक चित्रण किया है।
प्रश्न 2.
निम्नलिखित पंक्तियाँ किन-किन ऋतुओं से संबंधित हैं ?
(क) तिक्त-मधुर विसतंतु खोजते हंसों को तिरते देखा है।
(ख) निशाकाल से चिर अभिशापित प्रणय-कलह छिड़ते देखा है।
(ग) महामेघ को झंझानिल से गरज-गरज भिड़ते देखा है।
उत्तर :
(क) उपर्युक्त पंक्तियों में कवि ने वर्षा क्तु का वर्णन किया है। जब समतल देशों में गर्मी के कारण उमस हो जाती है तो इसी उमस से व्याकुल होकर पक्षियों के समूह हिमालय की ओर पलायन कर जाते हैं। हिमालय में अनेक छोटी-बड़ी झीलें हैं। वहाँ मौसम बहुत ही सुहावना होता है। वहाँ ये पक्षी झीलों में खिले कमल की नाल के कड़वे-मीठे तंतु खाते हैं।
(ख) उपर्युक्त पंक्तियों में कवि ने वसंत ऋत्तु का वर्णन किया है। पर्वतीय क्षेत्रों में बसंत में मंद-मंद हवा बह रही है। उदय होते सूर्य की कोमल किरणें शिखरों के बीच से निकल रही हैं। चकवा और चकई दोनों रात-भर एक-दूसरे से अलग रहने के कारण दु:खी थे, परंतु सुबह होते ही उनका पुनर्मिलन होता है। वे खुशी और दु:ख के कारण ‘प्रण्य-कलह’ की क्रीड़ाएँ करते हैं।
(ग) उपर्युक्त पंक्तियों में शरद ॠतु में होनेवाली वर्षा का वर्णन किया गया है। कवि कहते हैं कि कैलाश पर्वत की चोटियों पर बादल आपस में टकरा-टकराकर घनघोर वर्षा करते हैं।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित पद्यांशों का आशय स्पष्ट कीजिए –
(क) एक-दूसरे से विरहित प्रणय-कलह छिड़ते देखा है।
(ख) अलख नाभि से उठने वाले अपने पर चिढ़ते देखा है।
(ग) बूंढ़ा बहुत परंतु लगा क्या जाने दो, वह कवि कल्पित था।
(घ) मैंने तो भीषण जाड़ों में गरज-गरज भिड़ते देखा है।
उत्तर :
(क) कवि कहता हैं कि वसंत ॠतु में पर्वतीय क्षेत्रों में मौसम अत्यंत सुहावना हो जाता है। चकवा-चकई रात-भर अलग-अलग रहकर दुखी हैं। वे रातभर क्रंदन करते हैं परंतु जैसे ही सुबह होती है वे दोनों एक बार फिर मिलते हैं तथा झील में स्थित शैवाल की दरी पर ‘प्रणयकलह’ करते हैं अर्थात बिहुड़े की पीड़ा और पुनर्मिलन की खुशी उन्हें उद्वेलित कर देती है।
(ख) कवि के अनुसार हिमालय पर्वत पर सैकड़ों हजारों फुट ऊँचाई पर स्थित दुर्गम घाटी में अनेक प्रकार के फूल खिले हुए हैं। संपूर्ण घाटी खुशबू से लबालब है। कस्तूरी मृग फूलों की सुगंध को पकड़ना चाहता है, परंतु वह उसे नहीं पकड़ सकता जबकि उसकी नाभि में कस्तूरी की सुगंध होती है। वह सुगंध न पकड़ने से बेचैन हो जाता है। उसे इधर-उधर दौड़ते देखकर ऐसा लगता है जैसे वह स्वयं ही चिढ़ रहा हो।
(ग) कवि जब हिमालय पर्वत में जाड़ों की मूसलाधार घनषोर वर्षो को देखता हैं तो उसे लगता है कि देखता है कवित कालिदास ने भी अपने मेघदूत में ऐसा ही वर्णन किया है। वे पर्वतीय क्षेत्र में मेघदूत को ढूँढतेत हैं परंतु कालिदास का मेघदूत उन्हें कहीं दिखाई नहीं पड़ता इसलिए कवि इसे कालिदास की कल्पना मानकर छोड़ देते हैं।
(घ) कवि हिमालय पर शरद ॠत्तु में घनघोर वर्षा का वर्णन करते हुए कहता हैं कि मैं कैलाश पर्वत की ऊँंची चोटियों पर महामेघ को झंझावात करते तथा आपस में टकरा-टकराकर बरसते देखा है अर्थात् कवि ने कैलाश पर्कत पर आपस में टकराकर गरजते बादलों का स्वाभाविक चित्रण किया है।
प्रश्न 4.
‘बादल को घिरते देखा है’ कविता में कवि ने प्रकृति के जिन उपकरणों का प्रयोग किया है, उनपर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
कवि ने हिमालय की ऊँची बर्फीली निर्मल एवं सफेदद चोटियों पर बादलों को घिरते देखा है। उसने मानसरोवर झील के साथ हिमालय में स्थित अन्य बड़ी-छोटी झीलों का भी सुंदर वर्णन किया है। वसंत ऋ्तु में संपूर्ण पर्वतीय क्षेत्र फूलों से भर जाता है। मंद्द-मंद समीर बहती है। सूर्य की किरणें बर्फीली चोटियों पर जब पड़ती हैं तो उन्हें भी स्वर्णिम बना देती हैं। रात-भर एक-दूसरे से अलग रहने के कारण चकवा-चकई पुन: जब सुबह मिलते हैं तो वे ‘प्रणय’ की अनेक क्रियाएँ करते हैं। कैलाश पर्वत के गगनवुंबी शिखरों पर मूसलाधार एवं भीषण वर्षा का भी कवि ने सुंदर एवं स्वाभाविक चित्रण किया है। हिमालय से निकलने वाले सौकड़ों छोटे-बड़े झरने देवदार के जंगलों में कल-कल करते हुए बहते हैं।
प्रश्न 5.
कवि ने प्रस्तुत कविता में बादल को किस ॠतु में घिरते देखा है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कवि ने बादल को वर्षा ऋतु में घिरते देखा है। कवि ने अपनी इस कविता में इस संदर्भ में स्पष्ट किया है कि जब समतल क्षेत्रों में उमस हो जाती है तो पक्षी हिमालय की ओर जाते हैं। कवि ने लिखा है –
‘पावस की उमस से आकुल, तिक्त-मधुर वसतंतु खोजते,
हंसों को तिरते देखा है, बादल को घिरते देखा है।’
प्रश्न 6.
कविता में ‘चकवा-चकई’ के प्रसंग द्वारा कवि क्या कहना चाहता है? विस्तारपूर्वक स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
‘चकवा-चकई’ के से कवि यह कहना चाहता है कि जब प्रेमी और प्रेमिका अथवा नायक और नायिका आपस में सच्चा प्रेम करते हैं और किसी कारणवश उन्हें बिद्ुड़ान पड़ता है तो वे जब अलग-अलग होते हैं, तो उन्हें विरह-वेदना में दिन व्यतीत करने पड़ते हैं। परंतु जब वे एक बार फिर मिलते हैं तो वे प्यार व्यक्त करने के साथ-साथ एक-दूसरे के प्रति गुस्सा भी प्रकट करते हैं। उनका यही प्यार और गुस्सा ‘प्रणय-कलह’ कहलाता है। कवि ने प्रस्तुत कविता में चकवा और चकई के माध्यम से यही दर्शाया है। चकवा और चकई रात होते ही एक-दूसरे से बिछुड़ जाते हैं तथा सुबह होते ही एक-दूसरे को एक बार फिर जाते हैं और जब वे मिलते हैं तो ‘ ‘र्रणय-कलह’ की क्रिया से गुजरते हैं।
प्रश्न 7.
बादल के घिरते समय वातावरण कैसा था ? स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर :
बादलों के घिरते समय हिमालय पर्वत की चोटियाँ स्वच्छ और निर्मल बर्फ से ढकी हुई थीं। मैदानी क्षेत्रों की उसम से व्याकुल होकर पक्षी हिमालय की झीलों में तैरने लगे थे। मानसरोवर में खिले हुए कमलों पर बादलों से निकलने कर पड़नेवाली बूँदे मोतियों जैसी लग रही थीं।
प्रश्न 8.
कविता में किन्नर-किन्नरियों की वेषभूषा और साज-सज्जा का चित्रण अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर :
इन्हीं देवदार के जंगलों में किन्नर जाति के लोग भोज पत्रों की कुटिया बनाकर रहते हैं। किन्नर जाति की स्त्रियाँ रंग-बिंगे फूलों की मालाएँ बनाकर अपने बालों में गूँथती हैं। इंद्रनील की मणियों की मालाएँ उन्होने अपने सुंदर एवं सुषड़ गलों में छल रखी हैं। कानों में नील कमल के कुंडल लटकाए हुए हैं। लाल कमलों से अपनी वेणी को गूँथा हुआ है। नर चाँदी और मणियों से बनी सुराही में अंगूरों की शराब भरकर चंदन की तिपाई पर रखकर बाल कस्तूरी मृरों की छालों पर पालथी मारकर बैठे हैं। उनकी आँखों में शराब की मस्ती है। कवि कहता हैं कि ये मदमस्त किन्नर और किन्नरियाँ अपनी कोमल अंगुलियों को बाँसुरी पर फेर्रकर मधुर तान छेड़ते हैं।
प्रश्न 9.
नागार्जुन का जन्म कब और कहाँ हुआ था ?
उत्तर :
नागार्जुन का जन्म बिहार के सतलखा नामक गाँव में सन् 1911 में हुआ था।
प्रश्न 10.
नागार्जुन ने कब और कहाँ से किस धर्म की दीक्षा ली थी ?
उत्तर :
नागार्जुन ने सन 1936 में ग्रीलंका जाकर बौद्ध धर्म की दीक्षा ली थी।
प्रश्न 11.
नागार्जुन ने किस मासिक और साप्ताहिक पत्रिका का संपादन किया था ?
उत्तर :
नागार्जुन ने ‘दीपक’ मासिक और ‘विश्वंधु’ साप्ताहिक पत्रिका का संपादन किया था।
प्रश्न 12.
नागार्जुन की प्रमुख काव्य रचनाएँ कौन-सी हैं ?
उत्तर :
नागार्जुन की प्रमुख काव्य कृतियाँ-युगधारा, भस्मांकर, प्यासी पथराई आँखें तथा सतरंगे पंखोवाली है।’
प्रश्न 13.
कवि ने बादलों को घिरते हुए कहाँ देखा था ?
उत्तर :
कवि ने बादलों को घिरे हुए निर्मल, स्वच्छ, उज्ज्वल बर्फ से ढके हिमालय पर्कत की चोटियों पर देखा था।
प्रश्न 14.
हंस हिमालय की झीलों में कहाँ से और क्यों आकर तैरते हैं?
उत्तर :
मैदानी क्षेत्रों में पावस त्रु की उमस से व्याकुल होकर हंस हिमालय की ओर आ जाते हैं तथा यहाँ की झीलों में तैरते हैं।
प्रश्न 15.
वसंत ऋतु की प्रभात की वेला का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
वसंत ऋतु के प्रभात के समय मंद-मंद वायु चलती है। प्रभातकालीन सूर्य की कोमल स्वर्णिम किरणों से आस-पास के पर्वों की चोटियाँ भी स्वर्णिम दिखाई देती हैं।
प्रश्न 16.
‘चकवा-चकई’ क्यों क्रंदन कर रहे थे और उनका यह क्रंदन कैसे बंद हुआ ?
उत्तर :
रात होते ही चकवा-चकई एक-दूसरे से अलग होकर रात व्यतीत करते हैं, इसलिए वे क्रंदन कर रहे थे। परंतु दिन निकलते ही वे आपस में मिल जाते हैं तो उनका क्रंदन भी बंद हो जाता है।
प्रश्न 17.
मानसरोवर के कमल कैसे हैं ? उनपर वर्षा की बूँदें कैसे गिरती हैं ?
उत्तर :
मानसरोवर के कमल स्वर्णिम रंग के हैं। उनपर वर्षा की बूँदे छोटे-छोटे मोतियों के समान गिरती हैं।
प्रश्न 18.
नागार्जुन द्वारा रचित दो उपन्यासों के नाम लिखिए।
उत्तर :
रतिनाथ की चाची, बलचनमा, नई पौध, उप्रतारा तथा कुंभीपाक नागार्जुनन के प्रमुख उपन्यास हैं।
काव्य-सौंदर्य पर आधारित प्रश्न –
प्रश्न 1.
कविता का काव्य-साँदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कवि नागार्जुन ने अपनी कविता ‘बादल को घिरते देखा है’ में भावनाओं का सुंदर वर्णन किया है। कवि हिमालय की बर्फ से ढकी सुंदर एवं सफेेद चोटियों का सुंदर वर्णन करते हैं। जब समतल देशों में वर्षा ऋहु में उमस हो जाती है तो पक्षियों के समूह हिमालय में स्थित अनेक झीलों की ओर चले जाते हैं। वहाँ वे कमल के कड़वे और मीठे तंतुओं को खाते हैं। बसंत ॠलु में मंद-मंद समीर बहती है। चकवा-चकई रातभर अलग होकर विरह वेदना से पीड़ित हैं परंतु सुबह एक बार फिर उनका मिलन होता है। इसी मिलन की बेला में वे प्रणय-क्लह की क्रीड़ाएँ करते हैं। देवदार के घने जंगलों में छोटे-बड़े अनेक झरने बहते हैं।
कवि ने इन्हीं जंगलों में रहने वाले किन्नर-किन्नयियों की जीवन-शैली का भी सुंदर वर्णन किया है। किन्नियों के रूप सँददर्य का वर्णन अत्यंत मनोरम एवं सुंदर है। वे अपने वेणी में कमल के फूलों को गूँथती हैं। कानों में उन्होंने नील कमल के कुंडल लटकाए हुए हैं। उनके सुंदर गलों में इंद्र नील के मनकों की मालाएँ हैं। पुरुष वर्ग के लोग सुखपान करने में मस्त हैं। वे मृगों की छाल पर पालथी मारे बैंे हैं तथा चाँदी और मणियों से बनी सुखही को चंदन से बनी तिपाई पर रखते हैं। किन्नर जाति के नर-नारियों की आँखों में अजीब तरह की मस्ती है। वे अपनी कोमल और मुलायम अँगुलियों से बाँसुरी की तान छेड़कर संपूर्ण वातावरण को संगीतमय बनाते हैं।