NCERT Solutions for Class 11 Hindi Antra Chapter 15 जाग तुझको दूर जाना, सब आँखों के आँसू उजले
Class 11 Hindi Chapter 15 Question Answer Antra जाग तुझको दूर जाना, सब आँखों के आँसू उजले
1. जाग तुझको दूर जाना
प्रश्न 1.
‘जाग तुझको दूर जाना’ कविता में कवयित्री मानव को किन विपरीत स्थितियों में आगे बढ़ने के लिए उत्साहित कर रही है ?
उत्तर :
इस कविता में कवयित्री मानव को आँधी, तूफ़ान, भूकंप की चिंता न करते हुए सांसारिक माया-मोह के बंधनों को त्यागकर, समस्त सुखों, भोग-विलासों को छोड़कर, समस्त कष्टों को भूलकर और कठिनाइयों का सामना करते हुए निरंतर अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा दे रही हैं। वे उसे आलस्य त्याग कर जाग उठने के लिए कहती हैं।
प्रश्न 2.
‘मोम के बंधन’ और ‘ तितलियों के पर’ का प्रयोग कवयित्री ने किस संदर्भ में किया है और क्यों ?
उत्तर :
‘मोम के बंधन’ कथन में कवयित्री का आशय है कि हे मनुष्य ! तेरी मंज़ल अभी बहुत दूर है अर्थात स्वतंत्रता-प्राप्ति के लिए अनेक संघर्ष अभी बाकी हैं। तुझे अभी बहुत सफ़र तय करना है, इसलिए स्वतंत्रता-प्राप्ति की यात्रा पर जब तू चल पड़ेगा फिर तुझे ये मानवीय रिश्ते और आपसी संबंध नहीं रोक सकते अर्थात आज़ादी की लड़ाई में तुम्हें अपनों से मुँह मोड़ना होगा। ‘तितलियों के पर’ कथन में भी कवयित्री कहती है कि हे मानव । स्वतंत्रता-प्राप्ति के लिए तेरी संघर्षपूर्ण यात्रा अभी बाकी है, तेरी मंज़िल अभी दूर है, इसलिए जब तक स्वतंत्रता प्राप्त नहीं हो जाती तब तक तुम्हें ‘तितलियों के पर’ अर्थात ऐश्वर्यपूर्ण रंगीन जीवन से नाता तोड़ना होगा अर्थात खुशी और वैभवपूर्ण ज़िंदगी से दूर रहना होगा। इस प्रकार ‘मोम के बंधन’ का अर्थ रिश्ते-नाते अथवा आपसी सामाजिक संबंधों से हैं और ‘तितलियों के पर’ कथन में ऐश्वर्यपूर्ण ज़िंदगी की रंगीनियों (सुख-सुविधाएँ) का अर्थ निहित है।
प्रश्न 3.
कवयित्री किस मोहपूर्ण बंधन से मुक्त होकर मानव को जागृति का संदेश दे रही है ?
उत्तर :
कवयित्री मानव का सांसारिक माया-मोह, सुख-सुविधाओं, भोग-विलास, नाते-रिश्ते आदि के बंधनों से मुक्त होकर निरंतर अपने लक्य की ओर बढ़ते रहने के लिए जागृति का संदेश दे रही है।
प्रश्न 4.
कविता में ‘अमरता-सुत’ का संबोधन किसके लिए और क्यों आया है ?
उत्तर :
कविता में ‘अमरता-सुत’ संबोधन मानव के लिए आया है क्योंकि उसे अमर रहकर संसार की वेदनाओं और पीड़ाओं को समाप्त है। इसलिए कवयित्री उसे मृत्यु को हुदय में नहीं बसाने के लिए कहती है तथा अमरता का पुत्र बनकर निंरतर समस्त कठिनाइयों से जूझते हुए आगे बढ़ते रहने के लिए कहती है।
प्रश्न 5.
‘जाग तुझको दूर जाना’ स्वाधीनता आंदोलन की प्रेरणा से रचित एक जागरण गीत है। इस कथन के आधार पर कविता की मूल संबेदना को लिखिए।
उत्तर :
महादेवी द्वारा रचित कविता ‘जाग तुझको दूर जाना’ में स्वतंत्रता आंदोलन की परिस्थितियों का वर्णन किया गया है। इस कविता में भारतीयों का आह्वान किया गया और कहा है कि वे स्वतंत्रता-प्राप्ति के संघर्ष में प्राणों की चिंता न करें। संसार के मोह-माया के बंधन तुम्हें रोक नहीं पाएँगे। तुम अपने कर्तव्य का निर्वाह सदैव सच्चाई के साथ करो। महादेवी वर्मा की देश के प्रति गहरी संवेदनशीलता कवि को अत्यंत भावुक बना देती है। वे कहती हैं कि प्रत्येक भारतीय का यह परम कर्तव्य है कि स्वतंत्रता-प्राप्ति में अगर उन्हें आँधी-तूफ़ान का भी सामना करना पड़े तो वे नहीं घबराएँ क्योंकि उन्हें ‘अमरता का सुत’ बनना है। कवयित्री मनुष्य को सावधान भी करती है कि वह संसार के मोह-माया के बंधनों में न पड़कर विजय प्राप्त करे, इसलिए उसे रुकना नहीं है, निरंतर चलते जाना है क्योंकि उसकी मंजिल अभी दूर है।
प्रश्न 6.
निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य-साँदर्य स्पष्ट कीजिए-
(क) विश्व का क्रंदन ……….. अपने लिए कारा बनाना।
(ख) कह न ठंडी साँस ………… सजेगा आज पानी।
(ग) है तुझे अंगार-शय्या ………… कलियाँ बिछाना।
उत्तर :
(क) प्रस्तुत पंक्ति में महादेवी वर्मा मानव का आह्वान करते हुए कहती है कि हे मानब! संपूर्ण संसार पीड़ाओं और वेदनाओं से ग्रस्त होकर रो रहा है। जब चारों ओर से दुखों का रुदन सुनाई पड़ेगा क्या तू जीवन की मौज-मस्ती में पड़कर भँवरों की मधुर गुंजार में कहीं खो जाएगा। प्रश्न यह भी है कि फूल्लों पर पड़े हुए ओस के कण क्या तुम्हें डूबो देंगे ? अर्थात् तू भावुकता के कारण संसार की पीड़ाओं से मुँह मोड़ लेगा ? हे मानव! तू अपने सांसारिक बंधनों के कारण अपने जीवन को ही अपने लिए कारागार मत बना लेना अर्थात मोह-माया में पड़कर सांसारिक दुखों को मत भूल जाना। प्रश्न तथा रूपक अलंकार है। चित्रात्मकता, गेयता तथा उद्बोधनात्मकता विद्यमान है। भाषा तत्सम प्रधान एवं भावपूर्ण है।
(ख) प्रस्तुत पंक्तियों में कवयित्री महादेवी वर्मा मानव को प्रेरित करते हुए कहती है कि हे मनुष्य । जब तेरे हृदय में आग धधक रही होगी तभी तेरी आँखों में आँसू आएँगे अर्थात तू संसार की पीड़ाओं के कारण अवश्य रोएगा। अगर जीवन संघर्ष में तेरी ह्वार भी हो गई तो उसे विजय मानना क्योंकि दीपक की लौ ही अमर होती है और उसपर मँडराने वाला पतंगा उस लौ में जलकर राख हो जाता है अर्थात् पतंगे की भौँति बंधनों में पड़कर तू अपने जीवन को समाप्त मत करना। तुझे अंगारों की शैय्या पर दूसरों के लिए मृदुल कलियाँ बिछानी होंगी अर्थात स्वयं जलकर दूसरों के दुख खत्म करने होंगे। विरोधाभास अलंकार है। भाषा तत्सम-प्रधान है। लार्षणिकता एवं प्रतीकात्मकता विद्यमान है। ‘ठंडी साँस लेना’ मुहावरे का सटीक प्रयोग किया गया है। गेयता का गुण है। उद्बोधनात्मक शैली है।
(ग) कवयित्री मानव को निरंतर संघर्षरत रहने तथा अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहने की प्रेरणा देते हुए कहती है कि उसे सदा अंगारों की शय्या अथवा कठिनाइयों से भरे मार्ग पर चलना है। उसे स्वयं कष्ट सहन कर दूसरों को सुख प्रदान करना है। वह मानव को परमार्थ के लिए प्रेरित कर रही है। भाषा तत्सम-प्रधान, प्रतीकात्मक तथा लाक्षणिक है। रूपक अलंकार है। गेयता का गुण विद्यमान है। उद्बोधनात्मक शैली है।
प्रश्न 7.
कवयित्री ने स्वाधीनता के मार्ग में आनेवाली कठिनाइयों को इंगित कर मनुष्य के भीतर किन गुणों का विस्तार करना चाहा है ? कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कवयित्री ने इस कविता में मनुष्य को अपने भीतर निम्नलिखित गुणों का विस्तार करने की प्रेरणा दी है –
(i) ‘चिह्न अपने छोड़ आना’ पंक्ति के माध्यम से कवयित्री ने मनुष्य को कहा है कि मंज़िल प्राप्त करने में तुम्हें अगर प्राण कुर्बान भी करने पड़ें तो तू मत घबराना अपनी कुर्बानी देकर आनेवाली पीढ़ियों के लिए अपने पैरों के निशान छोड़ जाना ताकि आनेवाली पीढ़ियाँ तुम्हें अपना प्रेरणा स्रोत बना सकें।
(ii) ‘अपने लिए कारा बनाना’ पंक्ति में कवयित्री ने मनुष्य के गुणों का वर्णन करते हुए कहा है कि उसे संसारिक मोह-माया और बंधनों रूपी जीवनकारा में न बैधना चाहिए अर्थात मोह-माया और संसारिक बंधनों का त्यागकर अपनी मंज्जिल प्राप्त करनी चाहिए।
(iii) ‘मृत्यु को डर में बसाना’ पंक्ति के माध्यम से महादेवी वर्मा मनुष्य को कहना चाहती है कि वह मृत्यु से न डरे बलिक अगर मंज़िल प्राप्त करते समय उसे अपने प्राणों का बलिदान भी करना पड़े वह न घबराए।
(iv) ‘मृदुल कलियाँ बिछाना’ पंक्ति के माध्यम से कवयित्री ने कहा है कि हे मनुष्य । तुझे जीवन-संघर्ष में अनेक कठिनाइयों से गुज़रना पड़ेगा। तुम्हें आनेवाली पीढ़ियों को सुखद बनाने के लिए उनकी अंगार-शख्या पर मृदुल कलियों को बिछाना होगा अर्थात दूसरों के लिए रास्ता आसान बनाना होगा।
2. सब आँखों के आँसू उजले
प्रश्न 8.
महादेवी वर्मा ने ‘आँसू’ के लिए ‘उजले ‘ विशेषण का प्रयोग किस संदर्भ में किया है और क्यों ?
उत्तर :
कवयित्री ने ‘आँसू’ के लिए ‘उजले’ विशेषण का प्रयोग इसलिए किया है क्योंक वे मन की सत्य भावनाओं के प्रतीक हैं। अत्यधिक दुख होने पर अथवा बहुत अधिक सुख मिलने पर ये स्वयं ही मनुष्य की आँखों से छलछला आते हैं।
प्रश्न 9.
सपनों को सत्य रूप में छालने के लिए कवयित्री ने किन यथार्थपूर्ण स्थितियों का सामना करने को कहा है ?
उत्तर :
कवयित्री का मानना है कि सपनों को सत्य रूप में ढालने के लिए मनुष्य को जीवन में आनेवाली कठिनाइयों, सुख-दुखों आदि का साहसपूर्वक सामना करना चाहिए ताकि किसी भी स्थिति में विचलित नहीं होना चाहिए।
प्रश्न 10.
‘नीलम मरकत के संपुट हो, जिनमें बनता जीवन-मोती ‘ पंक्ति में ‘नीलम मरकत’ और ‘जीवन-मोती’ के अर्थ को कविता के संद्भ में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘नीलम मरकत’ से कवयित्री का आशय जीवन की कठोर सच्चाइयों से है जिनका साहसपूर्वक सामना करने से ही मनुष्य के जीवन रूपी मोती का निमाण होता है।
‘जीवन-मोती’ का अर्थ मनुष्य का सत्य पर आधारित जीवन है।
प्रश्न 11.
प्रकृति किस प्रकार मनुष्य को उसके लक्ष्य तक पहुँचाने में सहायक सिद्ध होती है ? कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
महादेवी वर्मा द्वारा रचित ‘सब ऑँखों के आसू उजले’ नामक कविता में कवयित्री ने प्रकृति के उपादानों के माध्यम से स्वप्न बुने है और इन स्वप्नों में सत्य को उद्घाटित किया है। फूलों में मकरंद भरना, सूर्य के प्रकाश से संसार को आलोकिक करना, झरने का बहना, दीपक का जलकर सृष्टि को प्रकाशवान करना तथा फूलों का सुगंध बिखेरकर संसार को सुगंध से भर देना प्रकृति के स्वप्न हैं जिनमें सत्य निहित होता है। मृत्यु के बाद पुनर्जीवन प्राप्त करना स्वप्न को साकार करना है। कविता के अंत में कवयित्री भी कामना करती है कि हे प्रभु ! संसार के सुख-दुख को भोगकर अब मेरे प्राण मुझे छोड़कर जा रहे हैं मेरा यह स्वप्न है कि तू इन्हें नवजीवन दे दो। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि इस कविता में ‘स्वप्न’ और ‘सत्य’ को संपूर्णता के साथ चित्रित किया गया है।
प्रश्न 12.
निम्नलिखित पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए-
(क) आलोक लुटाता वह ………… कब फूल जला?
(ख) नभ तारक-सा ………….. हीरक पिघला ?
उत्तर :
(क) कवयित्री का मानना है कि परमात्मा ही इस संसार के प्राणियों को सुख-दुख देता है। कभी वह संसार को सूर्य के प्रकाश से तो कभी फूलों की सुगंध से भर देता है। दोनों ही संसार में आनंद बिखेरते हैं परंतु ये सब कब और कैसे होगा यह उस परमात्मा पर ही निर्भर करता है।
(ख) कवयित्री कहती है कि सूर्य के अस्त होते ही वातावरण अंधकारमय हो जाता है फ्लस्वरूप दिन का सूर्य रूपी सत्य रात को चाँद-सितारे बनकर आकाश को चूमता प्रतीत होता है। यही सत्य दिन की गरमी को खत्म कर ठंडक रूपी मधुर रस में परिवर्तित कर देता है। चाँद-सितारे वातावरण को शीतलता प्रदान करते हुए ऐसे प्रतीत होते हैं मानो केशर किरणों के समान झूम रहे हों। स्वयं को अमूल्य बनाने के लिए स्वप्न कब शीशे के समान टूटकर स्वयं को कब हीरा बना लेते हैं यह जीवन की सच्चाई केवल परमात्मा ही जानता है। अर्थात् जीवन के स्वप्न को सत्य में परिवर्तित केवल परमात्मा ही कर सकता है।
प्रश्न 13.
काव्य-सॉंदर्य स्पष्ट कीजिए :
संसृति के प्रति पग में मेरी. एकाकी प्राण चला।
उत्तर :
इन पंक्तियों में कवयित्री कहती हैं कि हे परमात्मा ! मेरा जीवन अब अंतिम चरण में है अर्थांत मेंरे शरीर से प्राण निकलनेवाले हैं अब तुम मेरे जीवन को नवजीवन में परिवर्तित कर दो। मेरे प्रतिपल परिवर्तित होते जीवन में तुमने कितनी साधनाएँ की होंगी उन सभी को गिन लीजिए। इस दुखी संसार में सुख-दुख एकाकार होकर मेरे प्राण अकेले चले जा रहे हैं अर्थात मेरे जीवन का अंत होनेवाला है और मैंने यह जान लिया है कि जीवन के प्रत्येक स्वप्न में सत्य समाहित होता है। अनुप्रास अलंकार है। भाषा तत्सम प्रधान, लाक्षणिक एवं प्रतीकात्मक है। उद्बोधनात्मक शैली है। गेयता का गुण विद्यमान है।
प्रश्न 14.
‘सपने-सपने में सत्य ढला’ पंक्ति के आधार पर कविता की मूल संवेदना को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘सपने-सपने में सत्य बला’ महादेवी वर्मा द्वारा रचित कविता ‘सब आँखों के आँसू उजले’ की अंतिम पंक्ति है। इस कविता की मूल संवेदना यह है कि प्रकृति के प्रत्येक क्रिया-कलाप में सत्य निहित होता है। कवयित्री का मानना है कि फूलों में मकरंद का होना, दिन का प्रकाशमय होना, सूर्य की स्वर्णिम किरणों में घुल-मिलकर झरने का बहना, दीपक का जलना तथा फूल का चारों ओर सुगंध बिखेर देना सभी प्रकार के प्रकृति क्रिया-कलापों में सत्य ही प्रदर्शित होता है। जीवन के प्रत्येक-कदम पर मनुष्य को सच्चाई का सामना करना पड़ता है। कवयित्री कविता के अंत में कहती है कि हे परमात्मा ! मेरी जीवन यात्रा में मैने अनेक अच्छे बुरे अनुभव प्राप्त किए। अब इन्हीं सुखों और दुखों के बीच मेंर प्राण निकल रहे हैं। तुम इन्हें नवजीवन दे दो।
योग्यता-विस्तार –
प्रश्न 1.
स्वाधीनता आंदोलन के कुछ जागरण गीतों का एक संकलन तैयार कीजिए।
प्रश्न 2.
महादेवी वर्मा और सुभद्रा कुमारी चौहान की कविताओं को पढ़िए और महादेवी वर्मा की पुस्तक ‘पथ के साथी’ से सुभद्रा कुमारी चौहान का संस्मरण पढ़िए तथा उनके मैत्री-संबंधों पर निबंध लिखिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने विद्यालय के पुस्तकालय की संबंधित पुस्तकों से ज्ञात करें।
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कथ्य पर आधारित प्रश्न –
प्रश्न 1.
नाश-पथ पर चिह्न अपने छोड़ना किसको संबोधित है ?
उत्तर :
नाश-पथ पर अपने चिहन छोड़ना मानव को संबोधित किया गया है।
प्रश्न 2.
‘तू न अपनी छाँह को अपने लिए कारा बनाना’ का क्या आशय है ?
उत्तर :
‘तू न अपनी छाँह को अपने लिए कारा बनाना’ का आशय है कि है मनुष्य । जीवन की मौज-मस्ती और मोह-बंधन तुम्हें अपने मोह पाश में बाँध लेंगे। चूंकि तुम्हें अभी बहुत दूर जाना है इसलिए इन मोह-माया के बंधनों को तुम अपने लिए कारा (जेल) मत बना लेना अर्थात् मोह-माया के बंधनों को तोड़कर ही मनुष्य मोक्ष को प्राप्त कर सकता है।
प्रश्न 3.
इस कविता में महादेवी ने आँसू को किन-किन रूपों में प्रस्तुत किया है ?
उत्तर :
महादेवी वर्मा ने आँसू के बारे में कहा है कि किसी के आँसू तेरे हदयय की कठोरता को पिषला नहीं सक्ते ? मंजिल-प्राप्ति की आग जो तैरे हदयय में जगी है और संघर्ष के बाद जब तुझे जीत प्राप्त होगी तभी तेर आँखों में खुशी के आसू आएँगे। इस प्रकार मंज़िल प्रापित में आँसुओं की भावुक्ता और जीत के बाद आँखों में आए आँसुओं का वर्णन किया गया है।
प्रश्न 4.
‘जिसने उसको ज्वाला सौंपी …….. कब फूल जला’ छंद में फूल और सौरभ के माध्यम से क्या भाव प्रकट किया गया है ?
उत्तर :
उपर्युक्त छंद में फूल और सौरभ के माध्यम से भाव प्रकट किया गया है कि दीपक को ज्वाला प्रदान करनेवाला और फूल को सुगंध प्रदान करनेवाला परमात्मा ही होता है। दीपक प्रकाश के माध्यम से संसार को आलौकिक कर देता है और फूल सारे संसार में सुगंध भर देता है। इन दोनों का स्वभाव एक-सा होता है परंतु कब दीप जलेगा और कब फूल खिलेगा यह केवल परमात्मा जानता है।
प्रश्न 5.
निझर सुर-धारा और मोती को महादेवी ने किस तरह आँसू से जोड़ा है ?
उत्तर :
निईर को सौ-सौं धाराओं में बहले चंचल जल के माध्यम से आँसुओं से जोड़ा गया है।
जीवन के सत्य मिलकर तारों का समूह बनकर सुरधारा को आँसुओं के रूप में चूमते हैं।
जीवन रूपी मोती की चमक भी आँसुओं के रूप में चित्रित की गई।
प्रश्न 6.
“हार भी तेरी बनेगी ………. कलिया बिछाना” पंक्तियों में पतंग और दीपक की किन विशेषताओं को महादेवी वर्मा ने रेखांकित किया है ?
उत्तर :
प्रस्तुत काव्य पंक्तियों में महादेवी वर्मा ने पतंगा के बारे कहा है कि पतंगा ज्योति पुंज पर राख होने के लिए ही चक्कर काटता रहता है अर्थात पतंगे का जीवन क्षणिक होता है वह अपनी मंजिल को प्राप्त नहीं कर सकता। दीपक की विशेषताओं का वर्णन करते हुए कवयित्री कहती हैं कि दीपक की जलती हुई लौं अमरता की प्रतीक है क्योंकि दीपक की इसी लौ को पाने के लिए पतंगा अपने जीवन को खत्म कर देता है इस प्रकार पतंगा क्षीण जीवन जीता है और दीपक अमर हो जाता है।
प्रश्न 7.
प्रेम में हार भी जीत की निशानी बन जाती है-इस उदाहरण को किस उदाहरण पुष्ट किया गया है ?
उत्तर :
कवयित्री महादेवी का मानना है कि मानवीय जीवन संघवों, दुखों और असफलताओं का जीवन है। यहाँ पग-पग पर हार का सामना करना पड़ता है। अगर तुम्हें देश के प्रति प्रेम है तो स्वतंत्रता-प्रापि के लिए तुम्हें बार-बार संघर्ष करना पड़ेगा। देश-प्रेम और स्वतंत्रता-प्राप्ति इतनी आसान नहीं है। देश की स्वतंत्रता-प्राप्ति की लड़ाई अगर तू हार भी गया तो वह तुम्हारी पराजय नहीं बल्कि विजय होगी क्योंकि हार में भी जीत के लक्षण निहित होते हैं। जिस प्रकार जो जवान आजादी की लड़ाई में शहीद हो गए हैं वे मरे नहीं हैं बल्कि अमर हो गए हैं। वे हारकर भी जीत गए हैं। इस प्रकार देश-प्रेम में हार भी जीत की निशानी बन जाती है।
प्रश्न 8.
मार्ग की बाधाओं को कवयित्री ने किन-किन प्रतीकों के माध्यम से व्यक्त किया है ?
उत्तर :
कवयित्री महादेवी के अनुसार जीवन एक मार्ग है। दुख एवं पीड़ाएँ इस मार्ग की बड़ी बाधाएँ हैं। संधर्ष और असफलताएँ इस मार्ग को और भी अवरुद्ध कर देती हैं। मनुष्य को बार-बार दुखों और संघषों का सामना करना पड़ता है। मार्ग की बाधाओं को कवयित्री ने हिमालय की बर+फ से ढकी बर+फीली चोटियों, प्रकृति में आँधी और तु+फान का आना, चारों ओर काली आँधी से प्रचंड अंधकार छा जाना, मोम के बंधन, तितालियों के पर, मधुप की मधुर गुनगुन, फूलों पर पड़ी ओस की बूँदे, अपने प्रति मोह की धारा बनना, ठंडी साँसें तथा अंगार शय्या पर मृदुल कलियाँ बिछाना आदि प्रतीकों के माध्यम से व्यक्त किया है।
प्रश्न 9.
महादेवी की वेदनानुभूति पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर :
महादेवी वर्मा के काव्य का प्रमुख तत्व विरह वेदना है। इन्हें ‘वेदना की कवयित्री’ भी कहा जाता है। इनके काव्य में वेदना के लिए आत्म-समर्पण, सँदर्य तथा आनंद है। इन्हें ‘ वेदना की सामग्री’ भी कहा जाता है। महादेवी वर्मा ने स्वयं अपने बारे में लिखा। ”दुख मेंर निकट जीवन का ऐसा काव्य है जो सारे संसार को एक सूत्र में बाँधे रखने की क्षमता रखता है। हमारे असंख्य सुख हमें चाहे मनुष्यता की पहली सीढ़ी तक न पहुँचा सकें। किंतु हमारा एक बूँद आँसू भी जीवन को अधिक मधुर, अधिक उर्वर बनाए बिना नहीं गिर सक्ता।” महादेवी को स्वयं पर पूरा भरोसा है कि वेदना की सहायता से अपने प्रिय का साक्षात्कार किया जा सकता है।
प्रश्न 10.
‘जाग तुझको दूर जाना’ कविता का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘जाग तुझको दूर जाना’ महादेवी वर्मा का एक गीत है। इस गीत के माध्यम से कवयित्री मानव को निरंतर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है। कवयित्री मनुष्य का आह्वान करते हुए कहती है कि मनुष्य को सदैव जीत के लिए तत्पर रहना चाहिए। कवयित्री ने ये गीत स्वाधीनता आंदोलन की प्रेरणा से रचित जागरण गीत है। कवयित्री ने अपने इस गीत द्वारा भीषण कठिनाइयों की चिंता न करते हुए कोमल बंधनों के आकर्षण से मुक्त होकर अपने लक्ष्य की ओर निरंतर बढ़ते रहने का आहवान किया है। मोह-माया के बंधन में जकड़े मानव को जगाते हुए महादेवी ने कहा है जाग तुझको दूर जाना है।
प्रश्न 11.
महादेवी वर्मा के दूसरे गीत ‘सब आँखों के आँसू उजले’ का संदेश स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कवयित्री ने अपने दूसरे गीत ‘सब आँखों के आँसू उजले’ गीत में जीवन के सत्य को प्रकृति के माध्यम से उद्धाटित किया है। प्रकृति के उस स्वरूप की चर्चा की है जो सत्य है, यथार्थ है और जो लक्ष्य तक पहुँचने में मानव की मदद करता है। महादेवी वर्मा मानव को संदेश देना चाहती है कि प्रकृति के इस परिवर्तनशील यथार्थ से जुड़कर मनुष्य अपने सपनों को साकार करने की राहें चुने।
प्रश्न 12.
कवयित्री ने किसे और कैसे विनाश के मार्ग पर अपने पद चिह्न-छोड़ने को कहा है ?
उत्तर :
कवयित्री ने मानब को निरंतर जागृत रहने की प्रेरणा दी है कि चाहे अंधकार की प्रचंड छाया संपूर्ण प्रकाश को अंधकार में परिवर्तित कर दे। चाहे निष्टुर तू+फान संपूर्ण आकाश में आकाशीय बिजलियों की वर्षा कर दे किंतु तुम्हें निरंतर चलते हुए विनाश के रास्ते पर अपने पैरों के निशान छोड़ते जाना है, इसलिए तुम्हें निरंतर जागना होगा तथा चलना होगा।
प्रश्न 13.
कवयित्री किसे अपनी कहानी ठंडी साँसों से कहने की बात करती है ?
उत्तर :
कवयित्री मानव को सचेत करते हुए उसे जीत के लिए सदैव तत्पर रहने को कहती है। वह मानव से कहती है कि उसका जीवन आग में जलती कहानी है तथा उसका सारा जीवन दुखों और संघर्षों से भरा पड़ा है। इसलिए मानव तुम इस अपनी संघर्षमय कहानी को ठंडी साँसों से मत कहो। अगर तू जीवन संघर्ष में हार भी गया तो वह तेरी पराजय न होकर विजय होगी क्योंकि हार में जीत के लक्षण दिखाई पड़ते है।
प्रश्न 14.
कवयित्री ने प्रकृति के माध्यम से जीवन की सच्चाई को कैसे प्रकट किया है ?
उत्तर :
कवयित्री ने ‘सब आँखों के आँसू उजले’ गीत के माध्यम से जीवन की सच्चाई को प्रकृति के माध्यम से प्रकट किया है। महादेवी का मानना है कि जीवन का सत्य ही सौ-सौ धाराओं को बनाकर चंचल झरने के रूप में स्थिर धरती से मिलकर एक हो जाता है। परमात्मा द्वारा प्रदान जीवन की सच्चाई ही सागर का करुण जल बनकर संपूर्ण पृथ्वी को चारों और से घेर लेती है। ये सभी सत्य परिवर्तन मात्र परमात्मा की इच्छा पर निर्भर हैं।
काव्य-सौंदर्य पर आधारित प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
आधुनिक गीतकारों में महादेवी वर्मा का स्थान निर्धारित कीजिए।
उत्तर :
गीतिकाव्य वह होता है जो संगीत की माधुरी से युक्त आत्मपूरक होता है। इस प्रकार का काव्य कल्पना प्रधान होते हुए अनुभूति से भी युक्त होता है। हिंदी में गीतिकाव्य की परंपरा ‘बीसलदेव रासो’ से आरंभ होती है जो नरपति नाल्ह द्वारा रचित है। महादेवी का गीत सरस, स्वाभाकिक तथा रोचक है। इसमें प्रतीकात्मकता तथा रागात्मकता का सुंदर निरूपण हुआ है। इनका गीतिकाव्य आत्मनिवेदन के रस से सराबोर है। जितनी विशेषताएँ महादेवी के काव्य में देखने को मिलती है उतनी किसी ओर अन्य कवि के काव्य में नहीं मिलती हैं। महादेवी की गीतियाँ विरहिणी के प्रिय के प्रति आत्मनिवेदन, याचना, दैन्यता आदि भावों से अनुप्राणित एवं तरलायित हैं। वहाँ सामान्य से सामान्य भाव का भी गहन, स्वाभाविक गीतिमय चित्रण उपलब्ध होता है।