NCERT Solutions for Class 11 Hindi Antra Chapter 14 संध्या के बाद
Class 11 Hindi Chapter 14 Question Answer Antra संध्या के बाद
प्रश्न 1.
संध्या के समय प्रकृति में क्या-क्या परिवर्तन होते हैं, कविता के आधार पर लिखिए।
उत्तर :
संध्या के समय अस्त होते हुए सूर्य की किरणें जब वृक्षों के पत्तों पर पड़ती हैं तो उनका रंग ताँबाई और झरनों से बहनेवाले जल का वर्ण स्वर्णिम हो जाता है। ये किरणें गंगाजल को स्वर्णिम करती हुई उसके किनारे की रेत पर धूपछाँही बना देती है। जैसे-जैसे सूर्य डूबता जाता है वैसे-वैसे प्राकृतिक परिवेश बदलता रहता है। तांबाई से स्वर्णिम, फिर सुरमई और सूर्य के डूबते ही अँधेरा छा जाता है।
प्रश्न 2.
पंत जी ने नदी के तट का जो वर्णन किया है, उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
कवि कहता है कि जब सूर्य अस्त हो रहा होता है, तो उसकी स्वर्णमम किरणें गंगा के किनारे दूर तक पहले रेत में धूपछाँही बना देती हैं। लगातार बहती हवा के कारण रेत में साँपों की आकृति-सी बन जाती है। गंगा के नीले जल में लहरें ऐसी प्रतीत होती है, मानो बादलों की चाँदी के समान परछाई जल में प्रतिबिंबित हो रही है। रेत, जल और मंद-मंद बहती हवा मानो तीनों मोह-पाश में बँधकर उज्ज्वल प्रतीत होती हैं। हवा पिछलकर जैसे जल बन गई हो और जल जैसे द्रव्य-गुण त्यागकर एकाकार हो गया है।
प्रश्न 3.
शाम होते ही कौन-कौन घर लौट पड़ते हैं ?
उत्तर :
संध्या के समय और गायें अपने घर लौट रही हैं। दिनभर की मेहनत के कारण थके हुए किसान भी घर लौट रहे हैं। व्यापारी भी अपने कारोबार को समेटकर नाब द्वारा नदी पार कर अपने घरों को लौट रहे हैं। कुछ खानाबदोश अपने ऊँटों और घोड़ों के साथ खाली बोरियों को ही बिस्तर बना उसपर बैठे हुक्का पी रहे हैं।
प्रश्न 4.
संध्या के दुश्य में किस-किसने अपने स्वर भर दिए हैं ?
उत्तर :
संध्या के समय मंदिरों से शंख और घंटे की ध्वनि आने लगती है। अपने-अपने घोंसलों को लौटते हुए पक्षियों की ध्वनि से वातावरण गूँज उठता है। पंक्तियों में जाते हुए सोन-पक्षियों की द्रवित कर देनेवाली ध्वनियों सुनाई दे रही है। नदी तट पर वृद्धाओं और विधवाओं के भाक्ति गीतों का स्वर सुनाई देता है। सूर्य अपनी अस्ताचलगामी किरणों से प्रकृति को स्वर्णिम बना देता है।
प्रश्न 5.
बस्ती के छोटे-से गाँव के अवसाद को किन-किन उपकरणों द्वारा अभिव्यक्त किया गया है ?
उत्तर :
कवि ने गाँव के अवसाद को कुत्तों के भौकने, गीदड़ों की हुआँ-हुआं, धुआं देती ढिबरी, परचून की दुकान पर उपलब्य थोड़े-से सामान, सर्दी की ठिठुरन, मिट्टी से बने घरौदि नुमा घरों, फटी हुई हुई कथड़ी आदि के द्वारा अभिव्यक्त किया है।
प्रश्न 6.
लाला के मन में उठने वाली दुविधा को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
लाला की दयनीय आर्थिक स्थिति का वर्णन करते हुए कवि कहता है कि अपनी छोटी एवं संकुचित दुकान को देखकर वह स्वयं को दयनीय, दुखी और अपमानित अनुभव करता है। यह संकुचित आय उसकी भूख और प्यास को खत्म नहीं कर पा रही है। उसके जीवन की सभी आकांक्षाएँ लगभग मृतप्राय हो चुकी हैं। बिना किसी आय के उसका अंधकारमय जीवन उसकी दयनीय आर्थिक स्थिति को प्रदर्शित कर रहा है, वह जीवन-भर अपनी दुकान की गद्दी पर बैठा हुआ ऐसा प्रतीत होता है जैसे किसी निर्जीव और बेकार अनाज का ढेर हो अर्थात् उसके जीवन में सजीवता नहीं बची है। वह थोड़ी-सी आय के लिए बात-बात में झूठ बोलता है तथा अपने ही वर्ग के साथ प्रतिस्पर्धा के कारण अपने जीवन को तबाह कर रहा है।
प्रश्न 7.
सामाजिक समानता की छवि की कल्पना किस तरह अभिव्यक्त हुई है ?
उत्तर :
कवि कहता है कि ग्रामीण परिवेश में लगभग सभी परिवार अपने-अपने मिट्टी के घरों में अलग-अलग विचारधारा के साथ जीवन जी रहे हैं। कवि का कहना है कि आपसी वैमनस्य और विरोधों के बजाए उन्हें सभी मिल-जुलकर सामाजिक जीवन जीना चाहिए अर्थात अलग-अलग वर्गों में न रहकर उन्हें आपसी भाई-चारे के साथ जीवनयापन करना चाहिए। उन्हें मिल-जुलकर सामाजिक सद्भावना के साथ समाज का निर्माण करना चाहिए। तभी सभी सुंदर और सरल जीवन का आनंद पाए। समाज को बिलकुल शोषण मुक्त बनाएँ और समाज में प्रत्येक व्यक्ति धन-धान्य से परिपूर्ण हो।
प्रश्न 8.
‘कर्म और गुण के समान …… हो वितरण’ पंक्ति के माध्यम से कवि कैसे समाज की ओर संकेत कर रहा है ?
उत्तर :
भारतवर्ष में संपूर्ण आय-व्यय का बँटवारा व्यक्ति के गुण और कार्य के आधार पर नहीं होता है। ग्रामीण परिवेश में लोग सारा दिन काम करते हैं, परंतु फिर भी उन्हें ठीक से तीन समय का खाना नहीं प्राप्त होता। बस्ती का व्यापारी लाला सुबह निकलने से पहले ही दुकान पर बैठ जाता है परंतु उसकी आर्थिक दशा अभी भी दयनीय बनी हुई है और शहरी क्षेत्र में रहनेवाले व्यापारी अब महाजन बन गए हैं। शहरी और ग्रामीण आर्थिक दशा में इतना बड़ा अंतर देखकर कवि का यह मानना है कि व्यक्ति को उसके कर्म और गुण के आधार पर ही आय प्राप्त होनी चाहिए।
प्रश्न 9.
निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य-साँदर्य स्पष्ट कीजिए-
तट पर बगुलों-सी वृद्धाएँ
विधवाएँ जप ध्यान में मगन,
मंथर धारा में बहता
जिनका अदुश्य, गति अंतर-रोदन।
उत्तर :
काव्य-साँदर्य-प्रस्तुत पंक्तियां कविवर सुमित्रानंदन की कविता ‘संध्या के बाद’ से अवतरित हैं। इन पंक्तियों में कवि ने सांध्यकालीन वातावरण में नदी के तट पर बैठी बूढ़ी स्त्रियों और विधवाओं की दशा का वर्णन किया है जो ऐसे ध्यान मग्न होकर परमात्मा का नाम जप रही हैं जैसे बगुले ध्यानपूर्वक पानी देख रहे हों। नदी के बहते पानी में इन बूढ़ी स्त्रियों और विधवाओं की न दिखने वाली पीड़ा जैसे धीरे-धीरे बह रही हो अर्थात् कवि ने बूढ़ी स्त्रियों और विधवाओं की पीड़ाजन्य स्थिति का वास्तविक वर्णन किया है। भाषा में भावुकता एवं माधुर्य है। उपमा अलंकार का स्वाभाविक प्रयोग है।
प्रश्न 10.
आशय स्पष्ट कीजिए :
(क) ताम्रपर्ण, पीपल से, शतमुख/झरते चंचल स्वर्णिम निईर।
(ख) दीपशिखा-सा ज्वलित कलश/नभ में उठकर करता नीराजन।
(ग) सोन खगों की पाँति/आर्र्र ध्वनि की नीरव नभ करती मुखरित।
(घ) मन से कढ़ अवसाद श्रांति/आँखों के आगे बुनती जाला।
(ङ) क्षीण ज्योति ने चुपके ज्यों/गोपन मन को दे दी हो भाषा।
(च) बिना आय के क्लांति बन रही/उसके जीवन की परिभाषा।
(छ) व्यक्ति नही, जग की परिपाटी/दोषी जन के दु:ख क्लेश की।
उत्तर :
(क) संध्या के समय अस्ताचलगामी सूर्य की रक्तिम किरणें जब वृक्षों के पत्तों पर पड़ती हैं तो उनका रंग ताँबई हो जाता है, साथ ही सैकड़ों धाराओं में बहते हुए झरनों के जल का वर्ण स्वर्णिम हो जाता है।
(ख) कवि का मानना है कि दीपों की ज्योति के समान मंदिरों के शिखरों पर चमक्ता हुआ कलश ऐसा प्रतीत हो रहा है मानो वह आकाश में सिर उठाकर जोर-जोर से परमात्मा का नाम जप रहो हो।
(ग) अस्ताचलगामी सूर्य के कारण वातावरण में धीरे-धीर अंधकार फैल रहा है जिसे देखकर पंक्ति में जाते हुए सोन पक्षियों की द्रवित कर देने वाली ध्वनि आकाश की खामोशी को भंग कर रही है।
(घ) कबि बस्ती के छोटे व्यापारियों की दयनीय आर्थिक दशा का वर्णन करते हुए लिखता है कि वे दिन निकलने से पहले ही टिन की ढिबरी जलाकर ग्राहकों के आने की प्रतीक्षा करने लगते हैं। उस ढिबरी से रोशनी से अधिक धुआँ निकलता है। इसी धुएँ के समान उनके मन में उत्पन्न अंतद्वर्वद्व के कारण उनके जीवन में भी दुख और पीड़ा रूपी धुआँ उनकी आँखों में भर जाता है।
(ङ) कवि बस्ती के छोटे व्यापारियों की दयनीय आर्थिक दशा का वर्णन करते हुए लिखता है कि अपनी दयनीय आर्थिक स्थिथि के कारण उनके हृदय की मूक वेदना और पीड़ा ढिबरी की कॉपती लौ के समान काँप रही है। इस कंपित ढ़िबरी की ज्योति में मानो उसके हुदय की छिपी पीड़ा और वेदना स्वयं ही मुखरित हो रही है।
(च) कवि कहता है कि बस्ती के छोटे व्यापारी की आर्थिक स्थिति दयनीय है। बिना किसी आय के उसका जीवन अंधकारमय तथा कष्टों से भरा हो गया है। उसे अपने जीवन की परिभाषा यही लगती है कि सदा अभावों से ग्रस्त रहना ही उसकी नियति है।
(छ) कवि का मानना है कि किसी व्यक्ति विशेष के दुखी रहने, कष्ट सहने तथा अभाव में जीने का दोषी केवल वह व्यक्ति ही नहीं बल्कि वह समाज भी है जिस समाज की व्यवस्था ने उस व्यक्ति को दुख सहते रहने योग्य बना दिया है।
योग्यता-विस्तार –
प्रश्न 1.
कविता में निम्नलिखित उपमान किसके लिए आए हैं ?
(क) ज्योति स्तंभ-सा …………..
(ख) केचुल-सा …………..
(ग) दीप शिखा-सा …………..
(घ) बगुलों-सी …………..
(ङ) स्वर्ण चूर्ण-सी …………..
(च) सनन् तीर-सा …………..
उत्तर :
(क) अस्त होते सूर्य के लिए
(ख) गंगा के बहते जल
(ग) मंदिर के कलश लिए
(घ) नदी तट पर ध्यान मग्न वृद्धाओं के लिए
(ङ) गायों के पैरों से उठती धूल के लिए
(च) पक्षियों के पंखों और कंठों का स्वर।
Class 11 Hindi NCERT Book Solutions Antra Chapter 14 संध्या के बाद
कथ्य पर आधारित प्रश्न –
प्रश्न 1.
विधवाओं का अंतर-रोदन से कवि का क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
विधवाओं का अंतर-रोदन से कवि का तात्पर्य है कि भारतवर्ष में विधवाओं की स्थिति अत्यंत दयनीय एवम् पीड़ाजन्य है। विधवाओं का सारा जीवन संघर्ष और दुखों में ही व्यतीत होता है। संध्या समय विधवाएँ नदी के किनारे परमात्मा के ध्यान में मग्न हो रही हैं और कवि को ऐसा लगता है, मानो उनके मन की पीड़ा और स्दन दोनों अदृश्य होकर नदी की धीर-धीर धारा में बह रहे हैं।
प्रश्न 2.
खेत, बाग, गृह, तरु इत्यादि निष्रभ विषाद में क्यों डूब रहे हैं ?
उत्तर :
खेत, बाग, घर और वृक्ष आदि निष्रभ दुख में इसलिए डूबे हुए हैं क्योंकि संपूर्ण वातावरण में जाड़ों की सुनसान रात ने अपने आगोश में घेर लिया है। चारों ओर सन्नाटा है। ऐसे वातावरण में खेत, बाग, गृह और तरु इत्यादि की अन्य क्रियाएँ लगभग शिथिल पड़ गई हैं। इसी सन्नाटे और शिथिलता में ये सभी अपने दुख और विषाद में डूब जाते हैं।
प्रश्न 3.
गोपन मन को भाषा देने से कवि का क्या आशय है ?
उत्तर :
सूर्य अभी उदय नहीं हुआ है। जल्दी सुबह अभी धुँधलका छाया हुआ है। बस्ती का व्यापारी अभी से यीन की ढिबरी जलाकर अपनी दुकान पर आ बैउा है। दुकान पर अभी कोई ग्राहक नहीं आया है। ऐसे वातावरण में उसका मन आर्थिक दुर्दशा के कारणों पर विचार करने लगता है। उसका मन इसी बेबसी के कारण मूक निराश और हददय में दुख क्रंदन लगने लगता है। ढिबरी के मद्धम प्रकाश में उसके मन में छिपे दुख एवं विषाद परिभाषित हो जाते हैं।
प्रश्न 4.
कवि सभी के सुंदर अधिवास की कामना क्यों करता है ?
उत्तर :
ग्रामीण परिवेश में कम आटा के कारण ग्रामीण लोग पूरा जीवन कार्य करके भी अपने लिए एक सुंदर और स्वच्छ घर नहीं बना सकते। वे झोंपड़ियों में निवास करते हैं। उनके घरों में अंधकार छाया रहता है। वे अपने संपूर्ण जीवन में दुखी, पीड़ित और भयग्रस्त रहते हैं। सुंदर घर को कवि मूलभूत आवश्यकता मानता है इसलिए कवि संसार के प्रत्येक प्राणी के लिए सुंदर अधिवास (घर) की कामना करता है।
प्रश्न 5.
‘पीला जल रजत जलद से बिंबित’ से कवि का क्या आशय है ?
उत्तर :
सूर्य जब अस्त हो रहा है तो उसकी स्वर्णिम किरणें जब नीले पानी की लहरों पर पड़ती है तो नदी का जल पीले रंग में परिवर्तित हो जाता है। यही बहता पीला जल ऐसा प्रतीत होता है मानो चाँदी जैसे बादलों की छाया पानी में दिखाई पड़ रही है।
प्रश्न 6.
सिकता, सलिल-समीर किसके स्हेह-सूत्र में बँधे हुए हैं ?
उत्तर :
साँझ के समय सूर्य की स्वर्णिम किरणें नदी के किनारे पड़ी सपों के आकार की रेत और पानी में नीले रंग की लहरों पर भी पड़ती हैं। रेत पर सर्पांकार और पानी नीले रंग की लहरियाँ बनाने में बहती हवा ही बड़ा कारण है। इस प्रकार सिकता (रेत) सलिल (पानी) और समीर (हवा) तीनों ही साँझ के स्नेह-सूत्र में बँधे हुए हैं।
प्रश्न 7.
‘संध्या के बाद’ कविता में चित्रित संध्या का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर :
‘संध्या के बाद’ शीर्षक कविता में पंत जी ने संध्याकालीन ग्राम्य प्रकृति की शोभा का चित्र खींचा है। अस्त होते हुए सूर्य की किरणें वृक्षों की चोटियों पर नृत्य करती हैं। पीपल के पत्तों से छन-छनकर आने वाली किरणें ऐसी लगती हैं, मानो ताँबे के पत्तों से सोने के सौ-सौ झरने फूट पड़े हों। प्रकाश एवं छाया के संयोग से गंगा की जल-धारा साँप की चितकबरी केंचुली के समान लगती है। मंदिरों में शंख तथा घंटें की ध्वनियाँ गूँजती हैं। गंगा-तट पर जप-ध्यान में लीन वृद्धाएँ बगुलों की-सी लगती हैं। पक्षियों का स्वर वातावरण में संगीत भर देता है। किसान तथा व्यापारी थके-हारे वापस लौटते है। सूर्य के डूबते ही सारा ग्राम प्रदेश निराशा तथा उदासी से भर जाता है।
प्रश्न 8.
इस कविता में कवि ने विधवाओं के अंतर-रोदन को अदृश्य क्यों कहा है ?
उत्तर :
भारतीय समाज में विधवा का जीवन बड़ा दुखपूर्ण तथा शोचनीय होता है। वह खुलकर रो भी नहीं सकती। वह अपने पति की याद को हदय से सँजोए घुटनभरा जीवन व्यतीत करती रहती है। उसके दुख को बाँटनेवाला भी कोई नहीं। वह मन-ही-मन रोती है। उसके आँसू प्रत्यक्ष रूप से दिखाई नहीं देते, इसलिए कवि ने विधवाओं के अंतररोदन को अदृश्य कहा है।
प्रश्न 9.
गाँव का साहूकार अपने जीवन से असंतुष्ट क्यों है ?
उत्तर :
गाँव का साहूकार अपने जीवन से असंतुष्ट इसलिए है क्योंकि उसको धंधे से कुछ लाभ नहीं होता। शहर के बनियों की तुलना में वह अपने आपको अत्यंत तुच्छ समझता है। उसका जीवन निर्धनता और विवशता में बीतता है। वह झूठ का भी सहारा लेता है, कम भी तोलता है, फिर भी वह अपने परिवार का भरण-पोषण अच्छी तरह नहीं कर सकता। न तो अच्छे कपड़े जुटा सकता है और न रहने के लिए अच्छे भवन का निर्माण कर सकता है। उसके पास अपने धंधे को आगे बढ़ाने के भी साधन नह्ही –
शहरी बनियों-सा वह भी उठ, क्यों बन जाता नहीं महाजन ?
रोक दिए हैं किसने उसकी, जीवन उन्नति के सब साधन ?
इस तरह, अभावग्रस्त जीवन के कारण ही गाँव का साहूकार अपने जीवन से असंतुष्ट है।
प्रश्न 10.
सामाजिक विषमता को दूर करने के लिए कविता में क्या विचार व्यक्त किए गए हैं ?
उत्तर :
हमारे समाज में ऊँच-नीच तथा अमीर-गरीब के बीच गहरी खाई का कारण अर्थ (धन) का अनुचित विभाजन है। सारी पूँजी पर पूँजीपतियों का अधिकार है। शोषक ऐश्वर्य का जीवन जीता है जबकि निर्धन शोषण की चक्की में पिस रहा है। समाजवाद के उदय द्वारा ही इस विषमता को समाप्त किया जा सकता है। समाजवाद उस सामाजिक व्यवस्था को कहते हैं जिसमें सबको जीवनोपयोगी वस्तुएँ सरलता से प्राप्त हो जाती हैं। गाँव के लाला के माध्यम से कवि ने यही कामना की है –
जन का श्रम जन में बँट जाए, प्रजा सुखी हो देश-देश की।
प्रश्न 11.
देश में समाजवाद लाने में हमारी कथनी और करनी का अंतर किस प्रकार बाधक होता है?
उत्तर :
समाजवाद के द्वारा समाज में समता का उदय होता है। इससे ऊँच-नीच का, छोटे-बड़े का तथा अमीर-गरीब का अंतर समाप्त हो जाता है। सभी को अपने श्रम का उचित फल मिलता है। लेकिन व्यक्तिगत लाभ तथा स्वार्थ का मोह समाजवाद में बाधा उपस्थित करता है। गाँव का लाला भी समाजवाद का सपना देखता है, पर अवसर मिलते ही वह इस सपने का गला घोंट देता है और ठगी का सहारा लेता है। इस प्रकार कथनी और करनी का अंतर समाजवाद में बाधा उपस्थित करता है।
प्रश्न 12.
भाव स्पष्ट कीजिए-
(क) शंख घंट बजते मंदिर में, लहरों में होता लय-कंपन,
दीप-शिखा सा ज्वलित कलश, नभ में उठकर करता नीरांजन !
(ख) दरिद्रता पापों की जननी, मिटें जनों के पाप, ताप, भय,
सुंदर हों अधिवास, वसन, तन, पशु पर फिर मानब की हो जय।
उत्तर :
(क) पहाड़ी कस्बे की संध्या का वर्णन करते हुए कवि लिखता है कि मंदिर में शंख और घंटे बज रहे हैं। उनकी गंभीर ध्वनि से लहरों में कंपन हो रहा है। मंदिर का कलश संध्याकालीन सूर्य के रक्तिम प्रकाश में दीपक की लौ के समान जगमगाता हुआ आकाश में खड़ा आरती कर रहा हो।
(ख) गरीबी समस्त पापों की जननी है। इसलिए कवि चाहता है कि प्रत्येक व्यक्ति पाप, संकट, भय आदि से मुक्त हो जाए तथा उसका घर, वस्त्र, शरीर आदि सब कुछ सुंदर बन जाए। कवि पाशविकता पर मानवता की विजय का संदेश देकर ‘सर्वें भवंतु सुखिनः’ का संदेश दे रहा है।
प्रश्न 13.
सुमित्रानंदन पंत का जन्म कब और कहाँ हुआ था ?
उत्तर :
सुमित्रानंदन पंत का जन्म सन 1900 ई० में अल्मोड़ा जिले के कौसानी गाँव में हुआ था।
प्रश्न 14.
पंत जी ने कब, कौन-सी पत्रिका, किस उद्देश्य से निकाली थी ?
उत्तर :
पंत जी ने सन् 1938 ई० में ‘रूपाभ’ नामक पत्रिका प्रगतिशील साहित्य के विकास और प्रचार के उद्देश्य से निकाली थी।
प्रश्न 15.
पंत जी को कौन-कौन से पुरस्कार प्राप्त हुए ?
उत्तर :
पंत जी को सोवियत भूमि नेहरू पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार तथा भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुए थे।
प्रश्न 16.
पंत जी की साहित्यिक यात्रा के तीन उत्थान कौन-से थे ?
उत्तर :
पंज जी की साहित्यिक यात्रा का प्रथम चरण छायावादी काव्य, दूसरा प्रगतिवादी काव्य और तीसरा चरण अरविंद दर्शन से प्रभावित अध्यात्मवादी काव्य था।
प्रश्न 17.
संध्या के समय गाँव में लौटते हुए पशु-पक्षियों, व्यक्तियों का वर्णन करें।
उत्तर :
संध्या के समय पक्षी अपने घोंसलों, गाएँ अपने ठिकानों पर तथा किसान अपने घरों में लौट आए हैं। पैठ से व्यापारी भी ऊँटों, घोड़ों पर अपने खाली बोरे लादे वापस आ गए हैं। गाँव में आकर सभी अपने-अपने घरों में छिप गए हैं तथा गाँव में खामोशी-सी छा गई है।
प्रश्न 18.
कवि ने रात की भयानकता का कैसे चित्रण किया है ?
उत्तर :
कुत्ते परस्पर लड़-झगड़कर रात की भयानकता को और अधिक भयानक बना रहे हैं। झोंपड़ों से निकलता हुआ धुआँ तथा हलका प्रकाश वातारण में उदासी भर रहा है। चारों ओर व्याप्त निस्तब्धता वातावरण को और भी भयानक बना रही है।
प्रश्न 19.
बुढ़िया के आने पर व्यापारी क्या करता है ?
उत्तर :
बुढ़िया के आने पर ऊँचता हुआ व्यापरी सचेत हो जाता है। वह अपनी समाजवादी कल्पनाओं पर विराम लगाकर बुढ़िया को आधा पाव आया देते हुए भी डंडी मारकर अपनी स्वार्थी मानसिकता का परिचय दे देता है।
काव्य-सौंदर्य पर आधारित प्रश्न
प्रश्न 1.
निम्नोक्त पंक्तियों का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए-
(क) दूर तमस रेखाओं-सी
उड़ती पंखों की गाति-सी चित्रित्र।
सोन खणों की पाँति,
आर्द्र ध्वनि से नीख नभ करती मुखरित।
(ख) माली की मंडई से उठ
नभ के नीचे नभ-सी धूमाली।
मंद पवन में तिरती
नीली रेशम की सी हलकी जाली।
उत्तर
(क) इन पर्तियों में कवि ने संध्या समयषर लौटते हुए पक्षियों की पंक्ति को अंधकार की काली रेखा के समानबताया है। अंधकार की तरह पक्षियों का रंग भी काला होता है इसलिए पक्षियों की पंक्ति की समानता अंधकार की काली रेखा से की गई है। पद्षियों के मधुर स्वर शांत आकाश मे गूँजते रहते हैं।
(ii) ‘तमस रेखाओं-सी’ में उपमा अलंकार का सरहनीय प्रयोग है।
(iii) ‘नीरव-नभ’ में अनुप्रास अलंकार की शोभा है।
(iv) तमस, आर्द्र, ध्वनि, नीख चित्रित, मुखरित-तत्सम शब्दावली का प्रयोग है।
(v) भाषा सहज, सरल एवं प्रभावशाली है।
(vi) चित्रात्मक शैली का प्रयोग हैं।
(vii) ‘खगो’ के लिए ‘सोन’ विशेषण का सटीक प्रयोग है।
(ख) इन पंक्तियों में कवि ने अंधियारी सुखह का वर्णन किया है।
(ii) आसमान में छाई धुँध का वर्णन किया है।
(iii) आकाश मे धुएँ की पंक्ति कवि को रेशम की जाती के समान प्रतीत हो रही है।
(iv) ‘माली की मंडई’ नभ के नीचे नभ’ में अनुप्रास अंलकार है।
(v) ‘नभ-सी धूमाली’, रेशम की-सी जाली’ में उपमा अलंकार है।
(vi) चित्रात्मक शैली का प्रयोग है।
प्रश्न 2.
पंत की भाषा-शैली के विषय में लिखिए।
उत्तर :
इसके उत्तर के लिए कवि-परिचय में ‘भाषा-चैली’ वाला भाग देखें।