Students must start practicing the questions from CBSE Sample Papers for Class 12 Hindi with Solutions Set 9 are designed as per the revised syllabus.
CBSE Sample Papers for Class 12 Hindi Set 9 with Solutions
समय : 3 घंटे
पूर्णांक : 80
सामान्य निर्देश:
- इस प्रश्न-पत्र में खंड ‘अ’ में वस्तुपरक तथा खंड ‘ब’ में वर्णनात्मक प्रश्न पूछे गए हैं।
- खंड ‘अ’ में 40 वस्तुपरक प्रश्न पूछे गए हैं। सभी 40 प्रश्नों के उत्तर देने हैं।
- खंड ‘ब’ में वर्णनात्मक प्रश्न पूछे गए हैं। प्रश्नों के उचित आंतरिक विकल्प दिए गए हैं।
- दोनों खंडों के प्रश्नों के उत्तर देना अनिवार्य है।
- यथासभव दोनों खंडों के प्रश्नों के उत्तर क्रमशः लिखिए।
खंड ‘क’
अपठित बोध (18 अंक)
खंड ‘क’ में अपठित बोध के अंतर्गत अपठित गद्यांश व पद्यांश से संबंधित बहुविकल्पीय, अतिलघूत्तरात्मक तथा लघूत्तरात्मक प्रश्न पूछे गए हैं, जिनमें से बहुविकल्पीय तथा अतिलघूत्तरात्मक के प्रत्येक प्रश्न के लिए 1 अंक तथा लघूत्तरात्मक के लिए 2 अंक निर्धारित हैं।
प्रश्न 1.
निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर निर्देशानुसार लिखिए। (10)
जापान के विरुद्ध दूसरे विश्व महायुद्ध में अमेरिका ने अणुबम का प्रयोग किया। वर्ष 1945 की गर्मियों में जापान खंडहरों का देश बन गया। लाखों आदमी मर गए थे। 40% नगर नष्ट हो गए थे। शहर की आबादी आधी रह गई थी। भूखा जापान-चिथड़ों में लिपटी जनता दीन-हीन, स्तब्घ, हैरान और क्षत-विक्षत हो गई थी। जापान में न कोयला होता है, न लोहा, न तेल और न ही यूरेनियम। बस थोड़ी-सी कृषि योग्य भूमि। इस पराजय, दु:ख और विनाश के बावजूद भी जापान फिर खड़ा हो गया। यह दुनिया का सबसे ज्यादा विकसित और औद्योगिक राष्ट्र बन गया। यह चमत्कार कैसे हुआ? जापान की समृद्धि और प्रगति के लिए संभवत: राष्ट्रीय गुणों को टटोलना होगा, जो कि वहाँ की जनता की स्वाभाविक खूबियों और चरित्र से मिलता है।
जापान की पराजय के पश्चात् एक अमेरिकी व्यापारिक संस्था ने अपनी शाखा जापान में खोली। उसने शाखा में सभी कर्मचारी जापानी रखे। अमेरिकी नियम के अनुसार जापान में सप्ताह में पाँच दिन काम करने का निश्चय किया गया। दो दिन शनिवार और रविवार की छुट्टी रखी गई। उसने सोचा था कि उसकी उदारता का जापानी कर्मचारी और कारीगर स्वागत करेंगे, लेकिन यह देखकर संस्था के व्यवस्थापक को आश्चर्य हुआ कि जापानी कर्मचारी इस व्यवस्था का सामूहिक विरोध कर रहे थे। उसने कर्मचारियों को बुलाया और उसका कारण पूछा।
जापानी कर्मचारी एक आवाज़ में बोले- ‘हमें कष्ट है। हम दो दिन खाली नहीं रहना चाहते। हमारे लिए सप्ताह में केवल एक दिन का ही अवकाश काफी है। ज्यादा आराम से हम प्रसन्न नहीं होंगे। इससे हम आलसी बन जाएँगे, मेहनत के काम में हमारा दिल नहीं लगेगा, हमारा स्वास्थ्य गिरेगा। हमारा राष्ट्रीय चरित्र गिरेगा। अवकाश की वजह से हम व्यर्थ ही घूमेंगे-फिरेंगे, हम फिजूलखर्ची बनेंगे। जो छुट्टी हमारी सेहत बिगाड़े तथा आदत खराब करे, आर्थिक स्थिति खराब करे, हमें ऐसा अवकाश नहीं चाहिए।” अमेरिकी व्यवस्थापक ने अपनी टोपी सिर से नीचे उतारी। उसने जापानी कारीगरों का अभिवादन करते हुए कहा-“आप जापानी भाइयों की समृद्धि और सफलता का रहस्य आपका परिश्रम और लगन है। आप कभी भी बीमार तथा गरीब नहीं रह सकते।”
(क) जापान खंडहरों का देश कब बन गया? (1)
(i) वर्ष 1945 की गर्मियों में
(ii) वर्ष 1946 की सर्दियों में
(iii) वर्ष 1975 की वर्षा के कारण
(iv) ये सभी
उत्तर :
(i) वर्ष 1945 की गर्मियों में
(ख) जापानियों ने ज्यादा आराम के बारे में क्या बताया? (1)
(i) हम अधिक काम करेंगे
(ii) हम ज्यादा आलसी बन जाएँगे
(iii) हम ऊर्जावान बने रहेंगे
(iv) ये सभी
उत्तर :
(ii) हम ज्यादा आलसी बन जाएँगे
(ग) कथन (A) पराजय, दुःख और विनाश के बावजूद भी जापान फिर खड़ा हो गया। (1)
कारण (R) दुनिया का सबसे ज्यादा विकसित और औद्योगिक राष्ट्र बन गया।
(i) कथन (A) सही है, किंतु कारण (R) गलत है।
(ii) कथन (A) गलत है, किंतु कारण (R) सही है।
(iii) कथन (A) और कारण (R) दोनों सही हैं तथा कारण (R), कथन (A) की सही व्याख्या करता है।
(iv) कथन (A) और कारण (R) दोनों सही हैं, लेकिन कारण (R), कथन (A) की सही व्याख्या नहों करता है।
उत्तर :
(iii) कथन (A) और कारण (R) दोनों सही हैं तथा कारण (R), कथन (A) की सही व्याख्या करता है।
(घ) जापान पुन: विकसित और समृद्ध राष्ट्र कैसे बना? (1)
उत्तर :
जापान की जनता की कार्य के प्रति लगन, मेहनत, ईमानदारी आदि के कारण जापान पुन: विकसित और समृद्ध राष्ट्र बन गया।
(ङ) व्यापार की दृष्टि से जापान में कौन आया? उसके आश्चर्यचकित होने का क्या कारण था? (2)
उत्तर :
व्यापार की दृष्टि से अमेरिकी व्यापारिक संस्था जापान में आईं और उसने जापान में अपनी शाखा खोली। संस्था ने अमेरिकी नियमों के अनुसार सप्ताह में पाँच दिन काम करने का निश्चय किया तथा श्रनिवारु व रविवार का अवकाश रखा गया, लेकिन संस्था के संस्थापक को आश्चर्य हुआ कि आपानी कर्मचारी इस व्यवस्था का सामूहिक विरोध कर रहे थे।
(च) जापानी कर्मचारी व्यापारिक संस्था का विरोध क्यों कर रहे थे? उन्होने व्यवस्थापक से क्या कहा? (2)
उत्तर :
जापानी कर्मचारी व्यापारिक संस्था का विरोध शनिवार व रविवार का अवकाश रखने के कारण कर रहे थे। उन्होंने व्यवस्थापक से कहा कि हमें कष्ट है। हम दो दिन खाली नहीं रहना चाहते। हमारे लिए सप्ताह में केवल एक दिन का ही अवकाश काफी है। हम इससे प्रसन्न नहीं हैं। इससे हम आलसी बन जाएँगे, मेहनत के काम में हमारा मन नहीं लगेगा, हमारा स्वास्थ्य गिरेगा, हमारा राष्ट्रीय चरित्र गिरेगा तथा अवकाश की वजह से हम व्यर्थ ही घूमेंगे-फिरेंगे तथा फिजूलखर्ची करेंगे। इसलिए हमें ऐस्सा अवकाश नहीं चाहिए।
(छ) व्यवस्थापक पर कर्मचारियों की बात का क्या प्रभाव पड़ा? उसने उनसे क्या कहा? (2)
उत्तर :
व्यवस्थापक कर्मचारियों की बातों से बहुत प्रभावित हुआ। उसने अपनी टोपी सिर से नीचे उतारी और कारीगरों का अभिवादन करते हुए कहा “आप जापानी भाइयों की समृद्धि और सफलता का रहस्य आपका परिश्रम और लगन ही है। आप कभी भी बीमार तथा गरीब नहीं रह सकते।”
प्रश्न 2.
निम्नलिखित पद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर निर्देशानुसार लिखिए। (8)
निज रक्षा का अधिकार रहे जन-जन को
सबकी सुविधा का भार किंतु शासन को।
मैं आर्यों का आदर्श बताने आया,
जन-सम्मुख धन का तुच्छ जताने आया।
सुख-शांति हेतु मैं क्रांति मचाने आया,
विश्वासी का विश्वास बचाने आया,
मैं आया उनके हेतु कि जो तापित हैं,
जो विवश, विकल, बल-हीन, दीन शापित हैं।
हो जाएँ अभय वे जिन्हें कि भय भासित हैं,
जो कौणप-कुल से मूक-सदृश शासित हैं।
मैं आया, जिसमें बनी रहे मर्यादा,
बच जाए प्रबल से, मिटै न जीवन सादा।
सुख देने आया, दु:ख झेलने आया।
मैं मनुष्यत्व का नाट्य खेलने आया,
मैं यहाँ एक अवलंब छोड़ने आया,
गढ़ने आया हुँ, नहीं तोड़ने आया।
जगदुपवन के झंखाड़ छाँटने आया।
मैं राज्य भोगने नहीं, भुगाने आया।
हंसों को मुक्ता-मुक्ति चुगाने आया।
भव में नव वैभव व्याप्त कराने आया।
नर को ईश्वरता प्राप्त कराने आया।
संदेश यहाँ मैं नहीं स्वर्ग का लाया,
इस भूतल को ही स्वर्ग बनाने आया।
अथवा आकर्षण पुण्यभूमि का ऐसा,
अवतरित हुआ मैं, आप उच्च फल जैसा।
(क) प्रस्तुत पद्यांश के अनुसार शासक का क्या कार्य होता है? (1)
(i) प्रजा के लिए धन की व्यवस्था करना
(ii) प्रजा के लिए सभी प्रकार के सुख-साधनों का प्रबंध करना
(iii) प्रजा के लिए मनोरंजन की व्यवस्था करना
(iv) प्रजा के लिए धरती को स्वर्ग बनाना
उत्तर :
(ii) प्रजा के लिए सभी प्रकार के सुख-साधनों का प्रबंध करना
(ख) निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए (1)
1. राम इस धरती पर भयाक्रांत लोगों को अभय दान करने आए थे।
2. राम इस धरती को स्वर्ग समान बनाने आए थे।
3. राम इस धरती पर स्वर्ग का संदेश लेकर आए थे। उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं?
(i) केवल 1
(ii) केवल 3
(iii) 1 और 2
(iv) 2 और 3
उत्तर :
(iii) 1 और 2
(ग) सुमेलित कीजिए (1)
सूची I | सूची II |
A. धरती को बनाने की | 1. रक्षा करने हेतु |
B. बलहीन, दीन और शापित की | 2. शासन |
C. देशवासियों की सुख-सुविधा का भार | 3. स्वर्ग |
कूट
A B C
(i) 2 2 1
(ii) 1 2 3
(iii) 2113
(iv) 3 1 2
उत्तर :
(iv)
सूची I | सूची II |
A. धरती को बनाने की | 3. स्वर्ग |
B. बलहीन, दीन और शापित की | 1. रक्षा करने हेतु |
C. देशवासियों की सुख-सुविधा का भार | 2. शासन |
(घ) श्रीराम इस धरती पर किनके लिए आए हैं? (1)
उत्तर :
श्रीराम इस धरती पर बलहीनों, दीन-हीन और विवश लोगों के लिए आए हैं, जिससे कि वे निर्भय होकर जीवनयापन कर सकें।
(ङ) मनुष्यत्व का नाटक किस प्रकार खेला गया? (2)
उत्तर :
मनुष्य का जीवन एक नदी के रूप में है और सुख और दुःख उसके दो किनारे हैं, लेकिन मनुष्य के जीवन में दुःखों की अधिकता होती है, क्योंकि वह धन की इच्छा रखता है और स्वार्थ के वश में रहता है। श्रीराम ने मनुष्य के रूप में जन्म लेकर मनुष्य की तरह ही जीवन में अनेक कष्टों को झेला और दूसरे लोगों को कष्टों से मुक्ति दिलाई। श्रीराम द्वारा मनुष्यत्व का नाटक खेला गया। श्रीराम स्वयं भगवान थे, वे पलभर में सब कुछ करने में समर्थ थे, लेकिन उन्होने एक मुनष्य की तरह ही कष्टपूर्ण जीवन व्यतीत किया और दीन-दुखियों को कष्टों से मुक्ति दिलाने में अहम भूमिका निभाई।
(च) श्रीराम ने कविता में अपने आने का उद्देश्य क्या बताया? (2)
उत्तर :
श्रीराम ने अपने पृथ्वी पर आने के मुख्य उद्देश्य के बारे में बताया है कि मैं एक आधारहीन समाज को आधार देने आया हूँ। मैं समाज को ऊँच-नीच के भेदभाव के कारण तोड़ने नही, बल्कि प्रेम में जोडने के लिए आया हैँ। इस संसाररूपी उपवन में जो कुरीतियाँ कुप्रथाएँ व्याप्त हो गई है, मैं उन कुरीतियों और कुप्रथाओं से समाज को मुक्ति दिलाने के लिए आया हूँ।
जो सज्जन लोग हैं, उन्हें समाज में सम्मान दिलाने, नए ऐश्वर्य से युक्त और मनुष्य को ईश्वरमय बनाने के लिए मैं इस धरा पर अवतरित हुआ हूँ। मैं यहाँ स्वर्ग का कोई संदेश देने नहीं आया हूँ, बल्कि इस धरा को ही स्वर्ग के समान बनाने के लिए आया हैँ अर्वात् जाति-पॉति, भेदभाव, ऊँच-नीच आदि भावनाओं को समाप्त कर एक नवीन समाज की पुनस्स्थापना के लिए, जिसमें सभी समान हों, निर्मय हों और प्रेमपूर्वक रहें।
खंड ‘ख’
अभिव्यक्ति और माध्यम पाठ्यपुस्तक (22 अंक)
खंड ‘ख’ में अभिव्यक्ति और माध्यम से संबंधित वर्णनात्मक प्रश्न पूछे गए हैं, जिनके निर्धारित अंक प्रश्न के सामने अंकित हैं।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित 3 विषयों में से किसी 1 विषय पर लगभग 120 शब्दों में रचनात्मक लेख लिखिए। (6 × 1 = 6)
(क) भारतीय संस्कृति में अतियि का स्थान
उत्तर :
भारतीय संस्कृति में अतिथि का स्थान
भारतीय संस्कृति में अतिथि का स्थान देव तुल्य माना जाता है। भारतीय संस्कृति अपने उच्च एवं उदात्त मूल्यों के कारण विश्वभर में प्रसिद्ध है। ‘अविथि देवो मव:’ अर्थत् अतिथि को देवता के समान मानना भारतीय संस्कृति का एक ऐसा ही मूल्य है, जो इसकी महानता को प्रदर्शित करता है। हमारे यहाँ प्राचीनकाल से हीं अतिथि को आदरणीय मानते हुए उसे देवता तुल्य समझा गया है। भारतीय संस्कृति में सेवा को बहुत महत्त्व दिया गया है। अतिचि को देवता मानना इसी सेवा-भाव का विस्तारित रूप है।
दूसरों की सेवा करने का अवसर बड़े सौभाग्य से मिलता है। अतिचि का उचित आदर-सत्कार करने से अतिथि प्रसन्नता एवं अपनेपन का अनुभव करता है तथा हमारे मन में संतुष्टि का भाव आता है। अतिथि को सम्मान देने वाले व्यक्ति के यश में वृद्धि होती है, उसके घर में सुख-समृद्धि का वास रहता है और वह सज्जनों के आशीर्वादद का पात्र बनता है, इसलिए भारतीय संस्कृति में अतिथि को देव्ता मानकर उसकी सेवा करने की सीख दी गई है।
वर्तमान समय में ‘अतिथि देवो भव:’ का आदर्श धीरे-धीरे परिवर्तित हो रहा है। आजकल प्राय: सभी व्यक्तियों की जीवन-शैली बहुत व्यस्त हो गई है। ऐसे में लोगों के पास दूसरों के लिए तो क्या स्वयं के लिए भी समय नहीं है। अतः आज लोगों के पास अतिथि के सेवा-सत्कार के लिए पर्याप्त समय ही नहीं है, लेकिन फिर भी लोग अपने अतिथियों का ध्यान रखने की कोशिश करते हैं।
आज के समय में अविधि बनने वाले व्यक्ति को अपने संबंधी की व्यावहारिक कठिनाइयों को समझना चाहिए। उसे छोटी-मोटी गलतियों या भूलों को नजरअंदाज करते हुए अपना मंतव्य पूरा हो जाने के बाद आतिथ्य करने वाले परिवार या व्यक्ति का धन्यवाद करते हुए समय पर विदा लेनी चाहिए, तभी अतिथि का मान बना रहता है।
(ख) जीवन में कुसंगति के दुष्परिणाम
उत्तर :
जीवन में कुसंगति के दुष्परिणाम
कुसंगति का अर्थ है-बुरी संगत, कुबुद्धि, दुर्भाव, कुरुचि आदि। कुसंगति में फँसे व्यक्तियों का विकास सर्वथा अवरुद्ध हो जाता है। बचपन में बालक अबोध होता है। उसे अच्छे-युरे की पहचान नहीं होती। यदि वह अच्छी संगति में रहता है, तो उसमें अच्छे संस्कार आते है और यदि उसकी संगति बुरी है, तो उसकी आदतें भी बुरी हो जाती हैं।
कुसंगति के द्वारा व्यकित हीन-भावना से ग्रस्त होकर अपने मार्ग से विर्चलित हो जाता है। जिस व्यक्ति में. कुबुद्धि, दुर्भाव आदि भावनाएँ व्याप्त होती हैं, उसे स्वयं ही धन, वैभव, यश आदि से हाथ धोना पड़ता है। सत्संगति मे रहकर व्यक्ति योग्य और कुसंगति में पड़कर व्यक्ति अयोग्य बनकर समाज और परिवार दोनों से निरादर प्राप्त करता है। कुसंगति व्यक्ति के जीवन में दुःखों का भंडार लाती है।
कुसंगति का मानव जीचन पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। कुसंगति से सदा हानि होती है। कुसंगति काजल की कोठरी के समान है, जिससे बेदाग निकलना असंभव है। जीजाबाई की संगति में शिचाजी ‘छत्रपति शिवाजी’ बने, दस्यु रत्नाकर सुसंगति के प्रभाव से ‘महर्षि वाल्मीकि’ बने, जिन्होने रामायण नामक अमर काव्य लिखा। वहीं दूसरी ओर कुसंगति में पड़कर भीध्म पितामह, गुरु द्रोणाचार्य, कर्ण, दुर्योधन आदि पतन के गर्त में चले गए। ये सभी अपने आप में विद्धान और वीर थे, लेकिन कुसंगति का प्रभाव इन्हें विनाश की ओर खींच लाया।
विद्यार्थी जीवन में सत्संगति का विशेष महत्त्व है। वे जैसी संगति में रहते हैं, स्वय्य वैसे ही बन जाते हैं। कुसंगति व्यक्ति को अंदर से कलुषित कर उसका सर्वनाश कर देती है। इसलिए कहा गया है कि “दुर्जन यदि विद्वान भी हो, तो उसका संग त्याग देना चाहिए।” हम जैसी संगति में रहते हैं, वैसा ही हमारा आचरण बन ज़ाता है। तुलसीदास का कथन है
‘बिनु सत्संग बिवेक न होई।’
अत: मनुष्य का प्रयास यही होना चाहिए कि वह कुसंगति से बचे और सुसंगति में रहे, तभी उसका कल्याण निश्चित है।
(ग) आज़ादी के 75 वर्षों बाद भारत की स्थिति
उत्तर :
आजादी के 75 वर्षो बाद भारत की स्थिति
भारतवर्ष को प्राचीनकाल में आर्यावर्त, जंबूदीप, हिंदुस्तान तथा सोने की चिडिया आदि अनेक नामों से जाना जाता था। हिंदुस्तान विश्व में अपनी संस्कृति एवं सभ्यता के नाम से जाना जाता है। आज भी भारत का नाम लेते ही शांतिप्रिय देश की छवि सामने आ जाती है। अपनी विशेषताओं के कारण ही भारतवर्ष विश्य पटल पर अपनी अमिट छाप बनाए हुए है।
स्वतंत्रता से पूर्व भारत ब्रिटिश सरकार के आधिपत्य में था। गुलामी से पूर्व भारत गणराज्यों में बँटा हुआ था। उस समय यह सोने की चिड़िया कहलाता था। अंग्रेजों ने कूटनीति के व्यापार द्वारा भारत की संपदा का दोहन किया और इसे पूर्ण रूप से अपने आधिपत्य में ले लिया। कठिन संघर्षों तथा बलिदानों के खून से सींची गई 75 वर्ष पहले मिली आजादी, प्रत्येक भारतीय को स्वतंत्रता का रोमांचित अनुभव कराती है।
आज आजादी के 75 वर्ष बाद धारत विश्व आर्थिक जगत की एक महत्त्वपूर्ण शक्ति बन चुका है। इतना ही नहीं, आज का भारत परमाणु शक्ति के साथ-साथ जन शक्ति का भी विशाल सागर बन चुका है। गुलामी की बेड़ियों में अनेक वर्षों तक जकड़े होने के बावजुद भी भारतवर्ष ने विश्वास के साथ उत्तरोत्तर वृद्धि करते हुए विकसित देशों से टक्कर लेते हुए आज विश्व पटल पर अपना तिरंगा लहरा दिया है। विश्व के चीन, जापान, अमेरिका, रूस, फ्रांस, ब्रिटेन, कनाडा, स्विट्जरलैंड, साउथ अफ्रीका आदि शक्तिशाली देश सभी क्षेत्रों में भारत के साथ व्यापांरिक, आर्थिक, सामाजिक, नैतिक आदि सभी प्रकार के संबंध बनाने में लगे हुए हैं।
भारत आज विश्व की छठी अर्थव्यवस्था के रूप में स्थान बना चुका है। आज भारत सरकार मेक इन इंडिया, स्मार्ट इंडिया, सर्वशिक्षा अभियान, स्वच्छता अभियान, नारी सशक्तीकरण, सुकन्या समृद्धि योजना, वृद्धावस्था पेंशन योजना, स्वरोजगार योजना जैसी असंख्य योजनाओं के क्रियान्वयन के द्वारा भारत के सभी नागरिकों को उनके अधिकार दिलाने तथा उनके जीवन को सुशहाल बनाने में लगी हुई है।
वर्तमान में भारत लगभग सभी क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता प्राप्त कर चुका है। आजादी के 75 वर्षो में भारत ने संसार के लगभग सभी देशों से अपने पारस्परिक संबंधों को मजबूती प्रदान की है। भारत के प्रगतिशील कदमों की चुनौतियों को मानते हुए अंतर्राष्ट्रीय मंचों एवं वार्ताओं में भारत की बातों को पूरी गंभीरता के साथ सुना और समझा जाता है तथा भारत की सराहना की जाती है। भारत विश्व शांति का अग्रदूत है और हमेशा बना रहेगा तथा निरंतर प्रगति करते हुए एक दिन विश्व सभ्यता की प्रथम और विशालतम अर्थव्यवस्था बन जाएगा।
प्रश्न 4.
निम्नलिखित प्रश्नों को ध्यानपूर्वक पढिए और किन्हीं 4 प्रश्नों के उत्तर लगभग 40 शब्दों में लिखिए। (2 × 4 = 8)
(क) नाटक लेखन का प्रथम अंग किसे माना गया है एवं कहानी का नाट्य रूपांतरण करने से पहले क्या-क्या शर्त अनिवार्य हैं?
उत्तर :
नाटक का प्रथम अंग समय के बंधन को माना गया है। समय का यह बंधन नाटक की रचना पर अपना पूरा प्रभाव डालता है, इसलिए नाटक की शुरुआत से लेकरं अंत तक एक निश्चित समय-सीमा के भीतर ही नाटक को पूरा होना होता है। नाटक का विषय भूतकाल हो या भविष्यकाल इन दोनों ही स्थितियों में वर्तमान काल में संयोजित होता है। यही कारण है कि नाटक के मंच निर्देश हमेशा वर्तमान काल में लिखे जाते हैं। चाहे काल कोई भी हो उसे एक समय में, एक स्थान विशेष पर वर्तमान काल में ही घटित होना होता है।
कहानी का नाट्य रूपांतरण करने से पहले यह जानकारी होनी आवश्यक है कि वर्तमान रंगमंच में क्या संभावनाएँ हैं और यह तभी संभव है, जब अच्छे नाटक देखे जाएँ। इसके अतिरिक्त कहानी को नाटक में रूपांतरित करने के लिए कहानी की विषय-वस्तु तथा कथावस्तु को समय और स्थान के आधार पर दृश्यों में विभाजित किया जाता है। तात्पर्य यह है कि यदि कोई घटनाः एक स्थान और एक समय में ही घट रही है, तो वह एक दृश्य होगा।
(ख) चरमोत्कर्ष से क्या अभिप्राय है? कहानी में चरमोत्कर्ष का चित्रण अत्यंत सावधानीपूर्वक क्यों करना चाहिए?
उत्तर :
जब कहानी पढ़ते-पढ़ते पाठक कौतूहल (जिज्ञासा) की पराकाष्ठ़ा पर पहुँच जाता है, तब उसे कहानी का चरमोत्कर्ष या चरम स्थिति कहते हैं। कथानक के अनुसार, कहानी चरमोत्कर्ष (क्लाइमेक्स) की ओर बढ़ती है। कहानी का चरमोत्कर्ष पाठक को स्वयं सोचने और लेखकीय पक्षधर की ओर आने के लिए प्रेरित करने वाला होना चाहिए। पाठक को यह भी लगना चाहिए कि उसे स्वतंत्रता दी गई है और उसने जो निष्कर्ष निकाले हैं, वह उसके अपने हैं। कहानीकार को कहानी के चरमोत्कर्ष का चित्रण अत्यंत सावधानीपूर्वक करना चाहिए, क्योकि भावों या पात्रों के अतिरिक्त अभिव्यक्ति ही चरमोत्कर्ष के प्रभाव को कम कर सकती है।
(ग) विशेष लेखन में डेस्क पर काम करने वाले उपसंपादकों व संवाददाताओं से क्या अपेक्षा की जाती है?
उत्तर :
पत्र-पत्रिकाओं व समाचार-पत्रों के अतिरिक्त टी. वी. और रेडियो चैनलों में विशेष लेखन के लिए अलग डेस्क होता है। उस विशेष डेस्क पर काम करने वाले पत्रकारों का समूह भी अलग होता है। इन डेस्कों पर काम करने वाले उपसंपादकों और संवाददाताओं से अपेक्षा की जाती है कि संबंधित विषय या क्षेत्र में उसकी विशेषज्ञता होगी; जैसे-समाचार-पत्रों या अन्य माध्यमों में बिजनेस यानी कारोबार और व्यापार का अलग डेस्क होता है, इसी प्रकार खेल की खबरों और फीचर के लिए खेल डेस्क होता है। इन डेस्कों पर काम करने वाले संवाददाताओं के बीच काम का विभाजन सामान्यतया उनकी रुचि तथा संबंधित विषय के ज्ञान को ध्यान में रखते हुए किया जाता है।
(घ) समाचार मुख्य रूप से कितने प्रकार के होते हैं? संक्षेप में चर्चा कीजिए।
उत्तर :
समाचार के प्रकार
मुख्य रूप से समाचार चार प्रकार के होते हैं-
- राष्ट्रीय
- अंतर्राष्ट्रीय
- प्रादेशिक
- स्थानीय
विदेशों से प्राप्त होने वाले समाचार ‘अंतराष्ट्रीय समाचार’ कहलाते हैं, जबकि ‘राष्ट्रीय’ समाचारों का संबंध अपने देश के समाचारों से होता है। देश के विभिन्न प्रदेशों से प्राप्त होने वाले समाचारों को ‘प्रादेशिक समाचार’ की श्रेणी में रखा जाता है। स्थानीय समाचारों से समाचार-पत्रों की गतिशीलता बढ़ती है। स्थानीय समाचार, समाचार-पत्र के प्रकाशन स्थान या उसके आस-पास के क्षेत्र से संबंधित खबरों के समूह होते हैं।
(ङ) रेडियो नाटक की प्रमुख विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए। (2)
उत्तर :
रेडियो नाटक की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
- रेडियो नाटक में पात्रों से संबंधित सभी जानकारियाँ संवादों के माध्यम से मिलती हैं।
- पात्रों की चारित्रिक विशेषताएँ संवादों के द्वारा ही उजागर होती हैं।
- नाटक का पूरा कथानक संवादों पर ही आधारित होता है।
- इसमें ध्वनि प्रभावों और संवादों के माध्यम से ही कथा को श्रोताओं तक पहुँचाया जाता है।
- संधादों के माध्यम से ही रेडियो नाटक का उद्देश्य स्पष्ट होता है।
- संवादों के द्वारा ही श्रोताओं को संदेश दिया जाता है।
प्रश्न 5.
निम्नलिखित प्रश्नों को ध्यानपूर्वक पदिए और किन्हीं 2 प्रश्नों के उत्तर लगभग 80 शब्दों में लिखिए। (4 × 2 = 8)
(क) स्तंभ लेखन किसे कहते हैं? समझाइए। (4)
उत्तर :
स्तंभ लेखन विचारपरक लेखन का प्रमुख रूप है। कुछ महत्त्वपूर्ण लेखक अपने विशेष विचारों के लिए जाने जाते हैं। लेखकों की लोकप्रियता को व उनकी लेखन-शैली को देखते हुए समाचार-पत्र में उन्हें नियमित स्तंभ लिखने के लिए कहा जाता है, जिसमें उन्हें विषय का चुनाव व उसमें विचार व्यक्त करने की पूरी स्वतंत्रता होती है।
कुछ लेखकों के स्तंभ इतने अधिक लोकप्रिय होते हैं कि उन्हें उनके स्तंभ द्वारा ही पहचाना जाता है। स्तंभ लेखन में लेखक के स्वयं के विचार प्रमुख होते हैं। अपने विचारों को लेखक स्तंभ लेखन में प्रस्तुत करता है, परंतु लिखते समय लेखक तथ्यों को भी ध्यान में रखता है।
(ख) पत्रकारीय लेखन का सबसे जाना-पहचाना रूप समाचार लेखन है। समाचार को कैसे लिखा जाता है? (4)
उत्तर :
पत्रकारीय लेखन का सबसे जाना-पहचाना रूप समाचार लेखन है। आमतौर पर अखबारों में समाचार पूर्णकालिक और अंशकालिक पत्रकार लिखते हैं, जिन्हें संबाददाता या रिपोंटर कहते हैं। समाचार पत्रों में प्रकाशित अधिकांश समाचार एक विशेष शैली में लिखे जाते हैं। समाचार लेखन की यह शैली उल्टा पिरामिड शैली के नाम से जानी जाती है। यह शैली समाचार लेखन की सबसे लोकत्रिय व बुनियादी शैली है। समाचार लेखन की इस शैली के अनुसार किसी भी घटना, समस्या या विचार के सबसे महत्त्वपूर्ण तथ्य को प्रारंभ में लिखा जाता है। उसके बाद कम महत्त्वपूर्ण सूचना व तथ्य दिए जाते हैं और अंत में समाचार को समाप्त किया जाता है।
(ग) पत्रकार कितने प्रकार के होते हैं? स्पष्ट कीजिए। (4)
उत्तर :
पत्रकार निम्न तीन प्रकार के होते हैं
(i) पूर्णकालिक पत्रकार यह किसी समाचार संस्था में कार्य करने वाला नियमित वेतनभोगी कर्मचारी होता है।
(ii) अंशकालिक पत्रकार इसे स्ट्रिंगर भी कहा जाता है। यह पत्रकार किसी समाचार संगठन के लिए एक निश्चित मानदेय पर कार्य करने वाला कर्मंचारी होता है।
(iii) फ्रीलांसर अर्थात् स्वतंत्र पत्रकार ऐसे पत्रकार का संबंध किसी विशेष समाचार संस्था या संगठन से नहीं होता, बल्कि यह अलग-अलग अखबारों के लिए भुगतान के आधार पर लिखता है।
खंड ‘ग’
पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-2 एवं वितान भाग-2 (40 अंक)
खंड ‘ग ‘ में पाठ्यपुस्तक आरोह भाग- 2 से गद्य व पद्य खंड से बहुविकल्पीय प्रश्न, अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न व लघूत्तरात्मक प्रश्न तथा वितान भाग- 2 से लघूत्तरात्मक प्रश्न पूछे गए हैं, जिनके निर्धारित अंक प्रश्न के सामने अंकित हैं।
प्रश्न 6.
निम्नलिखित पद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़र सर्वाधिक उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनकर ल्भिखिएक)
सारी मुश्किल को धैर्य से समझे बिना
मैं पेंच को खोलने के बजाय
उसे बेतरह कसता चला जा रहा था
क्योंकि इस करतब पर मुझे
साफ सुनाई दे रही थी
तमाशबीनों की शाबाशी और वाह वाह।
आखिरकार वही हुआ जिसका मुझे डर था
जोर जबरदस्ती से
बात की चूड़ी मर गई
और वह भाषा में बेकार घूमने लगी!
हार कर मैंने उसे कील की तरह
उसी जगह ठोंक दिया।
ऊपर से ठीक-ठाक
पर अंदर से
न तो उसमें कसाव था
न ताकत!
बात ने, जो एक शरारती बच्चे की तरह मुझसे खेल रही थी,
मुझे पसीना पोंछते देख कर पूछा-
“क्या तुमने भाषा को
सहूलियत से बरतना कभी नहीं सीखा?”
(क) ‘बात के पेंच’ से अभिप्राय है (1)
(i) गुण
(ii) भाव
(iii) अर्थ
(iv) विशेषण
उत्तर :
(iii) अर्थ
(ख) बात क्या बनकर रह गई?
(i) शब्दों की गठरी
(ii) व्यंग्य
(iii) सुंदर
(iv) प्रभावहीन
उत्तर :
(i) शब्दों की गठरी
(ग) भ्रम क्या है? (1)
(i) भाषा की दुरुहता से चमत्कार उत्पन्न होना
(ii) बात को बढ़ा-चढ़ाकार कहना
(iii) बात का प्रभावहीन होना
(iv) बात में कसाव होना
उत्तर :
(i) भाषा की दुरुहता से चमत्कार उत्पन्न होना
(घ) कथन (A) बात की चूड़ी मर गई।
कारण (R) बात निरर्थक और उद्देश्यहीन हो गई।
(i) कथन (A) सही है, किंतु कारण (R) गलत है।
(ii) कथन (A) गलत है, किंतु कारण (R) सही है।
(iii) कथन (A) और कारण (R) दोनों सही हैं, लेकिन कारण (R), कथन (A) की सही व्याख्या नहीं करता है।
(iv) कथन (A) और कारण (R) दोनों सही हैं तथा कारण (R), कथन (A) की सही व्याख्या करता है।
उत्तर :
(iv) कथन (A) और कारण (R) दोनों सही हैं तथा कारण (R), कथन (A) की सही व्याख्या करता है।
(ङ) सुमेलित कीजिए (1)
सूची I | सूची II |
A. बात की चूड़ी मर जाना | 1. बात को सहज और स्पष्ट करना |
B. बात की पेंच खोलना | 2. बात में कसावट का न होना |
C. पेंच को कील की तरह ठोक देना | 3. कथ्य और भाषा का सही सामंजस्य बनना |
D. बात का बन जाना | 4. बात का प्रभावहीन हो जाना। |
कूट
A B C B
(i) 1 2 3 4
(ii) 3 4 2 1
(iii) 4 1 2 3
(iv) 2 3 4 1
उत्तर :
(iii)
सूची I | सूची II |
A. बात की चूड़ी मर जाना | 4. बात का प्रभावहीन हो जाना। |
B. बात की पेंच खोलना | 1. बात को सहज और स्पष्ट करना |
C. पेंच को कील की तरह ठोक देना | 2. बात में कसावट का न होना |
D. बात का बन जाना | 3. कथ्य और भाषा का सही सामंजस्य बनना |
प्रश्न 7.
निम्नलिखित प्रश्नों को ध्यानपूर्वक पढ़कर दिए गए 3 प्रश्नों में से किन्हीं 2 प्रश्नों के लगभग 60 शब्दों में उत्तर लिखिए। (3 × 2 = 6)
(क) “कैमरे में बंद अपाहिज’ करणणा के मुखौटे में छिपी क्रुरता की कविता है” अपने विवार लिखिए। (3)
उत्तर :
‘कैमरे में बंद अपाहिज’ कविता मानवीय करुणा को तो प्रस्तुत करती ही है, साथ ही इस कविता में ऐसे लोगों की बनावटी करुणा का भी वर्णन मिलता है, जो दु:ख-दर्द बेचकर, प्रसिद्धि एवं आर्थिक लाभ प्राप्त करना चाहते हैं। एक अपाहिज व्यक्ति के साथ झुठी सहानुभूत्ति जताकर उसकी करुणा का व्यवसायीकरण करना चाहते हैं। एक अपाहिज की करुणा को पैसे एवं प्रसिद्धि के लिए टेलीविज्ञन पर कुरेदना वास्तव में क्रूरता की चरम सीमा है। किसी की हीनता, अभाव, दु:ख और कष्ट सदा से करुणा के कारण अथवा उद्दीपन रहे हैं, परंतु इन कारणों को सार्वजनिक कार्यक्रम के रूप में प्रसारित करना और अपने चैनल की श्रेष्ठता साबित करने के लिए तमाशा बनाकर उसे फूहड ढंग से प्रदर्शित करना क्रूरता है। सांसारिक भौतिकहीनता इतनी नहीं अखरती, जितनी शारीरिकहीनता से वेदना होती है। उसके साथ इस खिलवाड़को क्रूरता की पराकाष्ठा ही कहा जाएगा।
(ख) कवि ने कविता की उड़ान और खिलने को चिड़िया और फूलों से किस तरह भिन्न बताया है? (3)
उत्तर :
कवि का मानना है कि कविता की उड़ान सीमाहीन एवं अनंत होती है, क्योकि कविता में कवि का मन भावों एवं असीम कल्पनाओं के पंख लगाकर उइता है, जबकि चिड़िया के पंखों की एक निश्चित सीमा एवं सीमित सामर्थ्य होता है। इसके अतिरिक्त चिड़िया सभी स्थानों तक उड्रकर नहीं पहुँच सकती, जबकि कविता की उड़ान में यह संभव है। इस प्रकार, सीमा एवं सामर्थ्य संबंधी अंतर चिड़िया और कविता की उड़ान का मुख्य अंतर है।
कवि कहता है कि कविता एवं फूल दोनों खिलते हैं, लेकिन फूल एक बार खिलकर मुरझा जाते हैं, नष्ट हो जाते है, जबकि दूसरी ओर कविता एक बार खिलने अर्थात् शब्दों के रूप में अभिव्यक्ति प्राप्त कर लेने के बाद निरंतर नया अर्थग्रहण करके विकसित होती रहती है।
(ग) तुलसीदास के सवैये के आधार पर प्रतिपादित कीजिए कि उन्हें भी जातीय भेदभाव का दबाव झेलना पड़ा था। (3)
उत्तर :
तुलसीदास जी सामाजिक यथाथं एवं जातिगत ताने-बाने से अच्छी तरह परिचित चे। उन्होंने इस जाति व्यवस्था को लगभग पूरी तरह नकार दिया। उन्हें कोई राजपूत कहे या जुलाहा, इससे उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। जाति प्रथा का सबसे मजनूत रूप विवाह के रूप में दिखता है, जहाँ अपनी जाति से बाहर निकलना एक तरह से सामाजिक ‘निषेध’ माना जाता है।
तुलसीदास जी जातीय भेदभाव को नकारने के बाधजूद उसका दबाव महसूस करते हैं। यही कारण है कि वे कहते हैं कि किसी की बेटी के साथ अपने बेटे का विवाह करके किसी की जाति को बिगाइना नहीं चाहते है। जो जिस रूप में है, वह उसी रूप में ख्रुश रहे, संतुष्ट रहे, लेकिन वे स्वयं के लिए शोषक आति व्यवस्था से बाहर होने की घोषणा करते हैं।
प्रश्न 8.
निम्नलिखित प्रश्नों को ध्यानपूर्वक पढ़कर दिए गए 3 प्रश्नों में से किन्हीं 2 प्रश्नों के लगभग 40 शब्दों में उत्तर लिखिए। (2 × 2 = 4)
(क) ‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है’ कविता के आधार पर बताइए कि ममता की शक्ति किस प्रकार उजागर हुई है? (2)
उत्तर :
कवि ने पद्यांश में दर्शाया है कि माँ की ममता में अद्धुत शक्ति होती है। चिड़िया जब बचचों के लिए भोजन लेने दूर निकल जाती है, तो वापसी में उसके पंख जल्दी-जल्दी चलते है, क्योंकि बच्चों के प्रति ममता के कारण उसकी उड्ञान की गति और उसके मन की व्यग्रता बढ़ जाती है।
(ख) ‘छोटा मेरा खेत’ कविता में कवि ने कवि-कर्म और कृषक-कार्य को समान बताया है। कैसे? (2)
उत्तर :
‘छोटा मेरा खेत’ कविता में कवि ने कवि के कार्य और कृषक के कार्य में समानता बताई है। जिस प्रकार एक किसान खेत में बीज बोता है, वह बीज अंकुरित होकर पौधा बनता है तथा परिपक्व होने पर सभी का पेट भरता है, उसी प्रकार कागज रूपी खेत पर कवि भावनात्मक कल्पना से बीजारोपण करता है। कल्पना का आश्रय पाकर यही भाव विकसित होकर रचना का रूप धारण कर लेता है।
(ग) फिराक की रुबाइयों में घरेलू वातावरण के मोहक चित्र हैं। इस कथन की सोदाहरण पुष्टि कीजिए। (2)
उत्तर :
फिराक की रुबाइयों में घरेलू जीवन के अत्यंत सुंदर चित्र उपस्थित हैं; जैसे-माँ अपने प्यारे शिशु को लेकर आँगन में खड्री है, वह उसे झुलाती है, हँसाती है। बच्चे के नहलाने के दृश्य का सजीव चित्रांकन हुआ है। इसी प्रकार दीवाली व रक्षाबंधन जैसे पर्व को जिस प्रकार अभिव्यक्त किया गया है, वह आम आदमी से जुड़ा हुआ है। बच्चे का किसी वस्तु के लिए जि़द करना और माँ द्वारा उसे बहलाना जैसे दृश्य आम परिवारों में भी दिखाई देते हैं।
प्रश्न 9.
निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़र उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनकर लिखिए। (1 × 5 = 5)
शांत दर्शकों की भीड़ में खलबली मच गई-‘पागल है पागल, मरा-ऐ! मरा-मरा।’… पर वाह रे बहादुर! लुट्टन बड़ी सफ़ाई से आक्रमण को सँभालकर निकलकर उठ खड़ा हुआ और पैंतरा दिखाने लगा। राजा साहब ने कुश्ती बंद करवाकर लुट्टन को अपने पास बुलवाया और समझाया। अंत में, उसकी हिम्मत की प्रशंसा करते हुए, दस रुपये का नोट देकर कहने लगे-“जाओ, मेला देखकर घर जाओ।…”
(क) शांत भीड में खलबली क्यों मच गई? (1)
(i) चाँद सिंह द्वारा लुट्टन सिंह को झपटकर दबोच लेने के कारण
(ii) राजा द्वारा कुश्ती न करने का आदेश देने के कारण
(iii) भीड़ में उपद्रवियों के घुस आने के कारण
(iv) उपर्युक्त सभी
उत्तर :
(i) चाँद सिंह द्वारा लुट्टन सिंह को झपटकर दबोच लेने के कारण
(ख) आक्रमण को सँभालकर कौन उठ खड़ा हुआ? (1)
(i) लुट्टन सिंह पहलवान
(ii) चाँद सिंह पहलवान
(iii) राजा साहब
(iv) मैनेजर साहब
उत्तर :
(i) लुट्टन सिंह पहलवान
(ग) राजा साहब ने लुट्टन सिह की प्रशंसा क्यों की? (1)
(i) क्योंकि उसने चाँद सिंह को कुश्ती की चुनौती दी थी
(ii) क्योंकि उसने गाँव के लोगों की सहायता की थी
(iii) क्योकि उसने अपने परिवार को संभाला था
(iv) क्योंकि उसने कुश्ती के लिए संघर्ष किया था
उत्तर :
(i) क्योकि उसने चाँद सिंह को कुश्ती की चुनौती दी थी
(घ) सुमेलित कीजिए
सूची I | सूची II |
A. लुट्टन | 1. गाँव का पहलवान |
B. पैंतरा दिखाना | 2. चाँद सिंह |
C. शेर का बच्चा | 3. मुद्रा दिखाना |
कूट
A B C
(i) 3 1 2
(ii) 1 3 2
(iii) 1 2 3
(iv) 2 1 3
उत्तर :
(iv)
सूची I | सूची II |
A. लुट्टन | 2. चाँद सिंह |
B. पैंतरा दिखाना | 1. गाँव का पहलवान |
C. शेर का बच्चा | 3. मुद्रा दिखाना |
(ङ) राजा द्वारा लुट्टन सिंह को दस रुपये का नोट देकर मेला देखकर घर जाने को कहने के पीछे क्या कारण था?
(i) कुश्ती लड़ने के लिए तैयार करना
(ii) कुश्ती लड़ने से मना करना
(iii) कुश्ती की प्रतियोगिता हार जाना
(iv) कुश्ती की प्रतियोगिता जीत जाना
उत्तर :
(ii) कुश्ती लड़ने से मना करना
प्रश्न 10.
निम्नलिखित प्रश्नों को ध्यानपूर्वक पढ़कर दिए गए 3 प्रश्नों में से किन्हीं 2 प्रश्नों के लगभग 60 शब्दों में उत्तर लिखिए। (3 × 2 = 6)
(क) पुत्र की चाह में परिवार के लोग ही कन्या को जन्म देने वाली माँ के दुश्मन हो जाते हैं। इस प्रवृत्ति पर ‘भक्तिन’ पाठ के आधार पर टिप्पणी कीजिए। (3)
उत्तर :
भारत एक पुरुष प्रधान देश रहा है। मध्यकालीन भारत में तो बेटियों को बोझ समझा जाता था। समाज में आज भी होने वाली कन्या-भ्रूण हत्या की घटनाएँ इसी मनोवृत्ति का प्रमाण देती हैं। साथ ही यह माना जाता है कि बेटी का विवाह करने पर वह तो दूसरे घर की हो जाती है, जबकि उनमें बेटे से अपने वंश को आगे बढ़ाने की इच्छा बनी रहती है।
पुत्र को बुढ़ापे की लाठी माना जाता है और अंतिम समय में उनसे माँ-बाप की सेवा की उम्मीद भी की जाती है। ऐसे ही दकियानूसी विचार हमारे समाज में आज भी व्याप्त हैं। इन दकियानूसी विचारों द्वारा ही पुत्र की चाह में परिवार के लोग ही कन्या को जन्म देने वाली माँ के दुश्मन हो जाते हैं। अत: इसी कारण भक्तिन भी पुत्र की महिमा में अंधी जिठानियों की घृणा एवं उपेक्षा की पात्र बनी रही।
(ख) ‘शिरीष के फूल’ में लेखक ने संसार में मानवीय मूल्यों को बनाए रखने के लिए गाँधीजी के समान अवधूतों की आवश्यकता पर बल दिया है। क्यों? (3)
उत्तर :
गाँधीजी में शिरीष के समान कठोरता के साथ-साथ कोमलता का गुण भी विय्यमान धा। वे अपने परिवेश से रस खींचकर कोमल एवं कठोर बन गए थे। जनसामान्य के साथ कोमलता का व्यवहार करने वाले गाँधीजी कमी-कभी देश और समाज के हित के लिए अत्यधिक कठोर बन जाते थे। वे स्वतंत्रता आदोलन के दौरान होने वाली हिंसा, खून-खराबा, अग्निदाह आद् हिंसात्मक गतिविधियों के बीच में अहिसक बने रहते थे, इसलिए लेखक ने संसार में मानवीय मूल्यों को बनाए रखने के लिए गाँधीजी के समान अवधूतों की आवश्यकता पर बल दिया है।
(ग) ‘शीतल वाणी में आग’ के होने का क्या अभिप्राय है? (3)
उत्तर :
वाणी भावों की अभिव्यक्ति का माध्यम है। भावों का आवास हदय है। भाव कोमल एवं कठोर दोनों प्रकार के हो सकते हैं। कवि शांत भाव से कविता कर रहा है, पर उसके अंदर अत्यधिक वैचारिक उथल-पुथल है। उसमें पर्याप्त आग किपी हुई है। कवि के सामान्य शब्दों में भी शक्ति, क्षमता और क्रांति की आग व्याप्त है। वास्तव में, वह अपनी शीतल वाणी में ही जनमानस के सोए हुए हदयों को जागृत करने की शक्ति रखता है। इसी भाव को व्यक्त करते हुए कवि कहता है कि “शीतल वाणी में आग लिए फिरता हूँ” ऐसा कहकर कवि ने विरोधाभास अलंकार का प्रदर्शन किया है।
प्रश्न 11.
निम्नलिखित प्रश्नों को ध्यानपूर्वक पढ़कर दिए गए 3 प्रश्नों में से किन्हीं 2 प्रश्नों के लगभग 40 शब्दों में उत्तर लिखिए। (2 × 2 = 4)
(क) चूरन बेचने वाले भगत जी को लेखक अपने जैसे विद्वानों से भी श्रेष्ठ विद्वान क्यों मानता है? (2)
उत्तर :
लेखक के अनुसार, चूरन बेचने वाले भगत जी को वह शक्ति प्राप्त है, जो हममें से शायद ही किसी को प्राप्त हो, जैसे उनका मन अडिग रहता है। पैसा उनसे आगे होकर भीख माँगता है कि मुझे लो, लेकिन उनका मन तो चंचल नहीं-है, इसलिए वे उस पैसे को लेते ही नहीं और बाजार का जादू मी ऐसे श्रेष्ठ व्यक्ति के हुदय को नहीं पिघला पाता, इसलिए लेखक भगत जी को श्रेष्ठ विद्धान मानता है।
(ख) ‘काले मेघा पानी दे’ पाठ में लेखक ने लोक प्रचलित विश्वासों को अंधविश्वास कहकर उनके निराकरण प़र बल दिया है। इस कथन की विवेचना कीजिए। (2)
उत्तर :
लेखक ने इंदर सेना के कार्यक्रमों को अधविश्वास का नाम दिया है। आम आदमी इंदर सेना के काम को लोक प्रचलित विश्वास कहते हैं, परंतु लेखक इन्हें गलत बताता है। लेखक इन अंधविश्वासों को खत्म करने के लिए कहता है, क्योंकि इन्हें दूर करने से ही समाज का विकास हो सकता है।
(ग) ‘श्रम विभाजन और जाति-प्रथा’ पाठ में डॉ. आंबेडकर अपनी कल्पना में समाज का कैसा रूप देखते हैं? (2)
उत्तर :
डॉ. आंबेडकर की कल्पना का आदर्श समाज स्वतंत्रता, समता और भ्रातृत्व अर्थात् भाईचारे पर आधारित है। उनके आदर्श समाज में जातीय भेदभाव का तो नामोनिशान ही नहीं है। इस आदर्श समाज में करनी पर बल दिया जाता है, कबनी पर नही।
पूरक पाठ्यपुस्तक वितान भाग-2
प्रश्न 12.
निम्नलिखित प्रश्नों को ध्यानपूर्वक पढ़कर दिए गए 3 प्रश्नों में से किन्हीं 2 प्रश्नों के लगभग 100 शब्दों में उत्तर लिखिए। (5 × 2 = 10)
(क) यशोधर जी धार्मिक गतिविधियों में भी रुचि रखते हैं। ‘सिल्वर वैडिंग’ पाठ के आधार पर लिखिए। (5)
उत्तर :
यशोधर जी शाम को मंदिर जाते हैं और प्रबचन भी सुनते हैं। पूजा भी वे नियम से ही करते हैं और निश्चित सिद्धांतों वाले व्यक्ति हैं, क्योंकि उनका विश्वास पुराने रीति-रिवाजों में बना हुआ है। जैसे-जैसे उनकी उम्र डलती जा रही है, वैसे-वैसे वह मी किशनदा की तरह रोज़ मंदिर जाने, संध्या-पूजा करने और गीता प्रेस गोरखपुर की किताबें पढ़ने का प्रयत्न करने लगे हैं।
पूजा में मन नहीं लगने पर भी वे प्रयत्नपूर्वक अपने मन को भागवत-भजन में लगाने की कोशिश करते रहते हैं।
किशनदा से मिले संस्कारों व परंपराओं को जीवित रखने की कोशिश करते हुए वे घर में होली गवाना, ‘जन्यो पुन्यू ‘ के दिनसब कुमाउँनियों को जनेऊ बदलने के लिए अपने घर आमंत्रित करना, रामलीला की तालीम के लिए क्वार्टर का कमरा देना आदि कार्य करते हैं। इससे पता चलता है कि धार्मिक गतिविधियों के प्रति विश्वास उनके मन में समाया हुआ है।
(ख) “नगर की जल निकासी बेजोड़ तथा अद्भुत थी।” अतीत में दबे पाँव’ पाठ के आधार पर मुअनजो-दड़ो की जल निकासी व्यवस्था की उत्कृष्टता पर टिप्पणी कीजिए। (5)
उत्तर :
मुअनजो-दड़ो में पानी की निकासी का सुव्यवस्थित प्रयंध बहुत ही प्रशंसनीय है। घरों की नालियों में पक्की ई्टें होती थीं। बकी हुई नालियाँ मुख्य सड़क के दोनों ओर समांतर दिखाई देती हैं। बस्ती के भीतर भी इनका यही रूप है। प्रत्येक घर में एक स्नानघर है। घरों के भीवर से पानी या मैल की नालियाँ बाहर हौदी तक आती हैं और फिर नालियों के जाल से जुड़ आती हैं। कहीं-कहीं वे खुली हैं, पर ज़्यादातर बंद हैं।
स्वास्थ्य के प्रति मुअनजो-दझो के निवासियों के सरोकार का यह बेहतर उदाहरण है। इसलिए वहाँ की जल निकासी व्यवस्था अत्यधिक सुदृछ है। वर्तमान समय में भी इसी तकनीक को अपनायागया है। बडेे-बड़े शहरों और महानगरों में जो सीवर व्यवस्था है, वह किसी रूप में मुअनजो-दड़ो की जल निकासी व्यवस्था से प्रभावित रही होगी। यही कारण है कि जिस प्रकार आज की नालियाँ और सीवर के होल ढके हुए होते हैं, उसी प्रकार साफ़-सफ़ाई और स्वास्थ्य की दृष्टि से सभी छोटी-बड़ी नालियाँ ढकी होती थीं। अंतत: कहा जा सकता है कि नगर की जल निकासी बेजोड़ तथा अद्भुत थी।
(ग) ‘जूझ’ कहानी के शीर्षक की सार्थकता सिद्ध कीजिए। (5)
उत्तर :
‘जूझ़’ कहानी का शीर्षक पाठ के अनुरूप ही है। यह एक बालक की गरीबी, अपने पिता के स्वभाव से दु:खी रहना तथा स्कूल जाने पर बच्चों द्वारा खिल्ली उड़ाना और दिन का अधिकतर समय खेत में काम करना इत्यादि दर्शाता है। उसके पिता ने ही उसके संघर्षं को और बढ़ा दिया था।
पहले तो उसे पाठशाला नहीं जाने दिया और जब राव जी के कहने पर पाठशाला भेजा तो भी उसे पिता की शर्तों का पालन करना पड़ता था। यदि काम अधिक होता, तो उसे पाठशाला से छुट्टी भी करनी पड़ती थी। अत: इन सब बातों से सिद्ध होता है कि वह बालक हमेशा परेशानियों से जूझ्झता ही रहा है।
जूझने की प्रवृत्ति लेखक के जीवन की हर घटना में सर्वंत्र रूप से व्याप्त है। अपने जीवन में लेखक ने संघर्षों से जूझते हुए अपने लक्ष्य को प्राप्त किया। उसका लक्ष्य था-बडे होकर एक शिक्षित व्य्यक्ति बनना, जो उसने कठिन परिस्थितियों में भी कर दिखाया। अत: ‘जूझ’ शीर्षक इस कहानी का सर्वाधिक उपयुक्त शीर्षक है।