Students must start practicing the questions from CBSE Sample Papers for Class 12 Hindi with Solutions Set 8 are designed as per the revised syllabus.
CBSE Sample Papers for Class 12 Hindi Set 8 with Solutions
समय : 3 घंटे
पूर्णांक : 80
सामान्य निर्देश:
- इस प्रश्न-पत्र में खंड ‘अ’ में वस्तुपरक तथा खंड ‘ब’ में वर्णनात्मक प्रश्न पूछे गए हैं।
- खंड ‘अ’ में 40 वस्तुपरक प्रश्न पूछे गए हैं। सभी 40 प्रश्नों के उत्तर देने हैं।
- खंड ‘ब’ में वर्णनात्मक प्रश्न पूछे गए हैं। प्रश्नों के उचित आंतरिक विकल्प दिए गए हैं।
- दोनों खंडों के प्रश्नों के उत्तर देना अनिवार्य है।
- यथासभव दोनों खंडों के प्रश्नों के उत्तर क्रमशः लिखिए।
खंड ‘क’
अपठित बोध (18 अंक)
खंड ‘क’ में अपठित बोध के अंतर्गत अपठित गद्यांश व पद्यांश से संबंधित बहुविकल्पीय, अतिलघूत्तरात्मक तथा लघूत्तरात्मक प्रश्न पूछे गए हैं, जिनमें से बहुविकल्पीय तथा अतिलघूत्तरात्मक के प्रत्येक प्रश्न के लिए 1 अंक तथा लघूत्तरात्मक के लिए 2 अंक निर्धारित हैं।
प्रश्न 1.
निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर निर्देशानुसार लिखिए। (10)
प्रकृति ईश्वर की देन है। प्रकृति और मनुष्य आदिकाल से ही एक-दूसरे पर अभ्रित रहे हैं। प्रकृति ने ही मनुष्य को संरक्षण प्रदान किया। वह प्रकृति की सुरम्य गोद में पला, बढ़ा और इसी पर आश्रित हो गया। आदिकाल से ही मनुष्य के जीवन में वन अत्यंत महत्त्वपूर्ण रहे हैं, परंतु ज्यों-ज्यों सभ्यता का विकास हुआ, त्यों-त्यों मनुष्य ने अपनी आवश्यकताओं एवं सुख-सुविधाओं को प्राप्त करने के लिए इनका दोहन करना शुरू कर दिया। इस प्रकार वनों की लगातार कटाई होती गई, जिससे आज पर्यावरण-प्रदूषण की समस्या बढ़ती जा रही है।
प्रकृति का संतुलन बिगाड़ने की दिशा में मनुष्य पिछले दो-तीन सौ वर्षों के दौरान इतना अधिक आगे बढ़ चुका है कि अब पीछे हटना असंभव-सा लगता है। जिस गति से हम विभिन्न क्षेत्रों में प्राकृतिक संतुलन बिगाड़ते जा रहे हैं, उसमें कोई बड़ी कमी करना व्यावहारिक प्रतीत नहीं होता, क्योंकि हमारी अर्थव्यवस्थाएँ और दैनिक आवश्यकताएँ उस गति के साथ जुड-सी गई हैं।
क्या हमें ज्ञात नहीं कि जिसे हम अपना आहार समझ रहे हैं, वह वस्तुत: हमारा दैनिक विष है, जो सामूहिक आत्महल्या की दिशा में हमें लिए जा रहा है। जंगलों को ही लें, यह एक प्रत्यक्ष सत्य है कि विभिन्न देशों की वन-संपत्ति अत्यंत तीव्र गति से क्षीण होती जा रही है। यह अच्छी तरह जानते हुए भी कि जंगलों को काटने का मतलब होगा-भूमि को अरक्षित करना, बाढ़ों को बढ़ावा देना और मौसम के बदलाव में सहायक होना।
आदिकाल में ही मनुष्य ने वनों की महत्ता को जान लिया था। संपूर्ण प्राचीन भारतीय कला, साहित्य, संस्कृति में पर्यावरण के प्रति विशद दृष्टि मिलती है। पंचतंत्र, जातक कथाएँ, पौराणिक साहित्य आदि पर्यावरण और मानव के संबंध के गंभीर ज्ञान का सागर हैं, परंतु आज वनों को जो क्षति पहुँचाई जा रही है, उसकी भरपाई करने के लिए सरकार और समाज में जागृति लाने की आवश्यकता है।
(क) सभ्यता के विकास व मनुष्य की आवश्यकताओं के बढ़ने का क्या परिणाम हुआ? (1)
(i) विज्ञान का विकसित होना
(ii) प्रौद्योगिकी का विकास होना
(iii) मनुष्य द्वारा प्रकृति का दोहन करना
(iv) अपनी आवश्यकताओं को पूरा करना
उत्तर :
(iii) मनुष्य द्वारा प्रकृति का दोहन करना
(ख) कथन (A) प्रकृति का संतुलन बहुत बिगइ चुका है। (1)
कारण (R) हमारी अर्थव्यवस्था और दैनिक आवश्यकताएँ पर्याप्त हैं।
कूट
(i) कथन (A) सही है, कारण (R) गलत है।
(ii) कथन (A) और कारण (R) दोनों सही हैं।
(iii) कथन (A) और कारण (R) दोनों गलत हैं।
(iv) कथन (A) गलत है, किंतु कारण (R) सही है।
उत्तर :
(i) कथन (A) सही है, किंतु कारण (R) गलत है।
(ग) मनुष्य के जीवन में वनों का महत्त्त कब से रहा है? (1)
(i) आधुनिक काल से
(ii) आदिकाल से
(iii) वर्तमान काल से
(iv) भक्तिकाल से
उत्तर :
(ii) आदिकाल से
(घ) “भ्रकृति और मनुष्य आदिकाल से ही एक-दूसरे पर आश्रित रहे हैं” प्रस्तुत पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए। (1)
उत्तर :
प्रस्तुत पंक्ति का आशय यह है कि प्रकृति ने मनुष्य को आदिकाल से ही संरक्षण प्रदान किया। मनुष्य प्रारंभ से ही प्रकृति की गोद में पला है तथा अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वह प्रारंभ से ही प्रकृति पर ही निर्भर रहा है। इस प्रकार मनुष्य और प्रकृति एक-दूसरे पर आश्रित रहे हैं।
(ङ) जंगलों की अत्यधिक कटाई का क्या परिणाम सामने आता है? (2)
उत्तर :
प्रस्तुत गद्यांश के अनुसार, जंगलों की अत्यधिक कटाई के कारण भूमि अरक्षित होती है, बाढ़ों को बढ़ावा मिलता है तथा मौसम में मूलभूत परिवर्तन होता है। वन पर्यावरण को सुरक्षित रखने में सहायक हैं। वनों की अधिक कटाई के कारण पर्यावरणीय संतुलन बिगड़ जाता है, जिससे पर्यावरण से जुड़े सभी पक्षों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
(च) आदिकाल में पर्यावरण के प्रति विशद दृष्टि कैसे मिलती है? (2)
उत्तर :
आदिकाल में मनुष्य ने बनों के अस्तित्व की महत्ता को जान लिया था। संपूर्ण प्राचीन भारतीय कला, साहित्य, संस्कृति में पर्यावरण के प्रति विशद दृष्टि मिलती है। पंचतंत्र जातक कथाएँ, पौराणिक साहित्य आदि पर्यावरण और मानव के संबंध के गंभीर ज्ञान का सागर हैं।
(छ) प्रस्तुत गद्यांश का उचित शीर्षक देते हुए गद्यांश के मूल भाव को अपने शब्दों में व्यक्त कीजिए। (2)
उत्तर :
प्रस्तुत गद्यांश में प्रकृति एवं मनुष्य के बीच के संबंधों का संदर्भ प्रस्तुत करते हुए उन्हें अधिक-से-अधिक सौहार्दपूर्ण एवं विवेकपूर्ण बनाने पर ध्यान कैंद्रित किया गया है। मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु वनों के दोहन को संरक्षित करने व पर्यावरण के संरक्षण पर बल दिया गया है। अत: गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक ‘प्रकृति और मानव का संबंध’ हो सकता है।
प्रश्न2.
निम्नलिखित पद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर निर्देशानुसार लिखिए। (8)
रोटी उसकी, जिसका अनाज, जिसकी ज्रमीन, जिसका श्रम है;
अब कौन उलट सकता स्वतंत्रता का सुसिद्ध, सीधा क्रम है।
आजादी है अधिकार परिश्रम का पुनीत फल पाने का,
आजादी है अधिकार शोषणों की धज्जियाँ उड़ाने का।
गौरव की भाषा नई सीख, भिखमंगों की आवाज बदल,
सिमटी बाँहों को खोल गरुड़ उड़ने का अब अंदाज़ बदल।
स्वाधीन मनुज की इच्छा के आगे पहाड़ हिल सकते हैं;
रोटी क्या? ये अंबरवाले सारे सिंगार मिल सकते हैं।
(क) प्रस्तुत काव्यांश का मूल स्वर क्या है? (1)
(i) आजादी का अधिकार
(ii) जीवन की सुख व शांति
(iii) शोषण के विरुद्ध आवाज़ न उठाना
(iv) परिश्रम के दुष्परिणाम
उत्तर :
(i) आज़ादी का अधिकार
(ख) स्वाधीन व्यकित जीवन में …… कर सकता है। (1)
(i) बड़ी-से-बड़ी कठिनाई का डटकर सामना
(ii) संभव कार्य को भी असंभव बनाना
(iii) (i) और (ii) दोनों
(iv) दूसरे के सामने झुकना
उत्तर :
(i) बड़ी-से-बड़ी कठिनाई का डटकर सामना
(ग) सुमेलित कीजिए (1)
सूची I | सूची II |
A. रोटी पर अधिकार | 1. परिश्रम का फल पाने, शोषण का विरोध करने |
B. आज़ादी आवश्यक है | 2. स्वतंत्रता के साथ जीने और उसके बल पर सफलता पाने |
C. कवि का व्यक्ति को परामर्श | 3. जो अपनी जमीन पर श्रम करके अनाज पैदा करता है। |
कूट
A B C
(i) 3 1 2
(ii) 2 1 3
(iii) 1 2 3
(iv) 3 2 1
उत्तर :
(i)
सूची I | सूची II |
A. रोटी पर अधिकार | 3. जो अपनी जमीन पर श्रम करके अनाज पैदा करता है। |
B. आज़ादी आवश्यक है | 1. परिश्रम का फल पाने, शोषण का विरोध करने |
C. कवि का व्यक्ति को परामर्श | 2. स्वतंत्रता के साथ जीने और उसके बल पर सफलता पाने |
(घ) ‘गौरव की भाषा नई सीख’ पंकित का अर्थ बताइए। (1)
उत्तर :
प्रस्तुत पंक्ति का अर्थ है कि आज़ादी के महत्त्व को समझकर अभिमान अथवा गर्व की नई भाषा को सीखना।
(ङ) ‘रोटी उसकी, जिसका अनाज, जिसकी ज़मीन, जिसका श्रम है’ प्रस्तुत पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए। (2)
उत्तर :
प्रस्तुत पंक्ति का आशय है कि रोटी पर परिश्रमी व्यक्ति का अधिकार है। जो अन्न उत्पन्न करता है उसका प्रथम अधिकार रोटी पर है, जो व्यक्ति परिश्रमी नहीं है उसका रोटी पर अधिकार नहीं है। परिश्रमी व्यक्ति को ही उसके परिश्रम का फल मिलता है, जो परिश्रमी नहीं है उसे फल पाने का अधिकार नहीं है। सच्चे अर्थ में रोटी पर उसका अधिकार है, जो अपनी ज्ञमीन पर श्रम करके अनाज उत्पन्न करता है।
(च) उइने का अंदाज बदलने से क्या अभिप्राय है? (2)
उत्तर :
उडने का अंदाज बदलने से कवि का यह अभिप्राय है कि गुलामी में जीवन व्यतीत करते हुए बहुत दिन व्यतीत हो गए, अपने पंख रूपी हाथों को तुमने बंद किया हुआ है। अब अपने पंख रूपी हाथों को खोलकर अपने अधिकार प्राप्त करने के लिए संघर्ष करो, क्योंकि कर्म तुम कर रहे हो, तो फल प्राप्त करने का भी अधिकार तुम्हारा ही है अन्य का नहीं। अतः अपने अधिकारों को प्राप्त करने के लिए संघर्ष करो। संघर्ष के बिना कुछ भी प्राप्त नहीं होता है।
खंड ‘ख’
अभिव्यक्ति और माध्यम पाठ्यपुस्तक (22 अंक)
खंड ‘ख’ में अभिव्यक्ति और माध्यम से संबंधित वर्णनात्मक प्रश्न पूछे गए हैं, जिनके निर्धारित अंक प्रश्न के सामने अंकित हैं।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित 3 विषयों में से किसी 1 विषय पर लगभग 120 शब्दों में रचनात्मक लेख लिखिए। (6 × 1 = 6)
(क) साहित्य लोक जीवन का प्रहरी
उत्तर :
साहित्य लोक जीवन का प्रहरी
डॉं. राजेंद्र प्रसाद ने कहा है- “जिस देश को अपनी भाषा और साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता।” वास्तव में, किसी भी राष्ट्र की भाषा एवं साहित्य के अध्ययन के आधार पर वहाँ की सभ्यता एवं संस्कृति के विकास का सहज ही आकलन किया जा सकता है, क्योंकि साहित्य में मानवीय समाज के सुख-दु:ख, आशा-निराशा, साहस-भय और उत्थान-पतन का स्पष्ट चित्रण रहता है। साहित्य की इन्हीं विशेष्ताओं के कारण इसे ‘समाज का दर्पण’ कहा जाता है।
साहित्य में सत्य की साधना है, शिवत्व की कामना है और सौंदर्य की अभिव्यंजना है। शुद्ध, जीवंत एवं उत्कृष्ट साहित्य मानव एवं समाज की संवेदना और उसकी सहज वृत्तियों को युगों-युगों तक जनमानस में संचारित करता रहता है। तभी तो शेक्सपियर हो या कालिदास, उनकी कृतियाँ आज भी लोगों के हदय को आप्लावित कर रही हैं। राजनीतिक दृष्टि से विश्व चाहे कितने ही गुटों में क्यों न बँँट गया हो, किंतु साहित्य के प्रांगण में सब एक है, क्योकि दुनिया का मानव एक है तथा उसकी वृत्तियाँ भी सब जगह और सभी कालों में एकसमान हैं।
समाज की सुधुप्त विवेक-शक्ति को जागृत करना साहित्य का बुनियादी लक्ष्य है। साहित्य जनमानस को आलोक स्तंभ के समान दिशा और प्रकाश देता है। साहित्यिक परिस्थितियाँ जैसी होंगी, उस काल के साहित्य का स्वरूप भी वैसा ही होगा।
वास्तव में, जीवन साहित्य का आधार है। सहित्य की समृद्धि के बिना जीवन एवं समाज का सम्यक् विकास असंभव है। साहित्य और समाज का संबंध अन्योन्याश्रित है। साहित्य अर्थांत् रचनात्मकता मानवीय प्रकृति का अभिन्न अंग है, इसलिए जिस साहित्य का अपने समाज से जितना आदान-प्रदान होगा, वहु साहित्य उतना ही जीवंत, संवेदनशील एवं प्रभावशाली होगा।
(ख) साहस का व्यक्ति के जीवन में महत्त्व एवं उपयोगिता
उत्तर :
साहस का व्यक्ति के जीवन में महत्त्व एवं उपयोगिता मानब एक सामाजिक प्राणी है। बह समाज में रहकर विभिन्न प्रकार के अच्छे-बुरे कर्म करता है तथा अपनी रुचि के अनुसार अच्छाई और बुराई को अपनाता है। उन्हीं अच्छे-बुरे गुणों में से एक गुण साहस भी है। साहसी व्यक्ति कभी भी जीवन में असफल नहीं होता है।
साहस का वास्तविक अर्थ है-किसी अज्ञात वस्तु की प्राप्ति के आनंद के कारण ही समी प्रकार के कष्टों और जोखिमों का सामना करना। नि:संदेह साहसिक कार्य करने की भावना का मनुष्य के चरित्र पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है। यह मनुष्य को वीर, दृढ़ और निर्भीक बनाता है। यह मनुष्य को सचेत और सोच-समझकर कदम उठाने वाला साहसी, परंतु दुस्साहस न करने वाला बनाता है। साहस की भावना का विकास दृद्ता से किया जाता है। इससे हमें शक्ति तथा प्रेरणा मिलती है। तेनसिंह द्वारा एवरेस्ट पर चढ़ाई और राकेश शमो की अंतरिक्ष यात्रा बहुत ही प्रेरणादायक सिद्ध हुई है। हेनसांग और फाह्यान तो पैदल ही हिमालय के कठिन रास्तों की बाधाओं को लाँघते हुए भारत पहुँचे थे।
साहस का सकारात्मकता से गहरा संबंध है। सकारात्मकता नैतिक साहस को बताती है। प्लेटो ने कहा है कि साहस हमें डर से सामना करना सिखाता है। रानी लक्ष्मीबाई ने अपने साहस के बल पर ही अंग्रेजों की विशाल सेना का डटकर सामना किया। जीत साहस नहीं है, बल्कि वह संघर्ष साहस है, जो हम सब जीतने के लिए करते हैं। सफल न होने पर अगले प्रयास के लिए ऊर्जा जुटाना भी साहस ही तो है।
साहस की भावना मनुष्य को स्वावलंबी, स्वयंसेवी, सहायक, चरित्रवान, दयावान, सहयोगी, आत्मनिर्भर और निडर बनाती है। विवेकानंद जी ने कहा है कि “विश्व में अधिकांश लोग इसलिए असफल हो जाते है कि उनमें समय पर साहस का संचार नहीं हो पाता, वे भयभीत हो उठते हैं।” साहस प्रत्येक व्यक्ति में होता है, ज्ञरूरत बस इतनी है कि वे स्वयं को पहचानें, जानें और मंजिल की ओर एक कदम बढ़ाएँ। कहा भी गया है कि Fortune Favors The Brave कहने का तात्पर्य यह है कि साहस से ही संसार का कठिन-से-कठिन कार्य संभव होता है।
(ग) सुबह की सैर का आंन
उत्तर :
सुबह की सैर का आनंद
सुबह की सैर अत्यंत आनंददायक व्यायाम है। यह प्रकृति से साक्षात्कार का एक सुंदर तरीका है। दिनभर तरोताजा रहने के लिए किया जाने वाल्षा उत्तम उपाय सुबह की सैर है। स्वास्थ्य की दृष्टि से सुबह सैर करने से शरीर चुस्त और तंदुरुस्त रहता है। सुबह की हवा में ताज़गी होती है, जिसमें प्रकृति नई अंगड़ाई लेती प्रतीत होती है। प्रात:कालीन किरणों में अद्भुत ऊर्जा होती है। बागों में कलियाँ खिलकर फूल का रूप धारण कर लेती हैं। घास पर ओस के ठंड्डे कण दिखाई देते हैं। प्रकृति के अनुपम रूप की शोभा इस समय देखते ही बनती है। इस दौरान हजारों लोग इन प्राकृतिक दृश्यों का आनंद लेने व स्वास्थ्य लाभ के लिए सुबह सैर हेतु निकल पड़ते हैं।
शहरों में अनेक पार्क हैं जहाँ बच्चे, युवा और वृद्ध एकसाथ सैर का आनंद उठाते है, परंतु कुछ व्यक्तियों को सूयोंदय के समय जगने की आदत नहीं होती। वे रात में देर से सोते हैं और सुबह आठ-नौ बजे तक ही उठ पाते हैं। उन्हें प्रात:काल की सैर के बारे में कुछ भी ज्ञात नहीं होता है। जब उन्हें तरह-तरह की बीमारियाँ घेर लेती हैं तथा मानसिक तनाव और परेशानियों का सामना करना पड़ता है, तब उनकी नींद् टूटती है, सुलह की सैर करने से शरीर ऊर्जावान महसूस करता है। जरा-सा चले नहीं कि आलस्य मिट जाता है और थोड़ी ही देर में शरीर स्फूर्तिवान हो जाता है।
सुबह जल्दी जागने से शरीर की अनेक व्याधियाँ नष्ट हो जाती हैं। पेट साफ़ रहता है, तो चित्त में भी प्रसन्नता आती है। सैर करने व व्यायाम करने से भूख भी अच्छी लगती है। फेफडों में ताज़ी हवा का प्रवेश होता है। दिनभर मन प्रसन्न रहता है, काम करने में आनंद आता है और शरीर में थकावट कम होती है व व्यक्ति की कार्यक्षमता बढ़ती है।
सुबह की सैर जनसमुदाय के लिए वरदान के समान होती है। यह सदा तंदुरुस्त रहने का रामबाण उपाय है। प्रात:काल सैर पर निकलना सभी उम्र के लोगों के लिए आवश्यक है। इसके बाद किसी अन्य प्रकार के व्यायाम की आवश्यकता शेष नहीं रह जाती है। यह मनुष्य को प्रकृति प्रेमी बनाने में भी बहुत योगदान देता है। इससे शरीर ही नही, शरीर में स्थित आत्मा भी प्रसन्न हो उठती है।
प्रश्न 4.
निम्नलिखित प्रश्नों को ध्यानपूर्वक पदिए और किन्हीं 4 प्रश्नों के उत्तर लगभग 40 शब्दों में लिखिए। (2 × 4 = 8)
(क) कहानी लेखन हेतु किन विशेषताओं का होना आवश्यक है? स्पष्ट कीजिए। (2)
उत्तर :
कहानी लेखन हेतु निम्नलिखित विशेषताओं का होना आवश्यक है
- कहानी का आरंभ आकर्षक होना चाहिए, जिससे पाठक का मन उसमें रम जाए।
- कहानी में विभिन्न घटनाओं और प्रसंगों को संतुलित विस्वार देना चाहिए। किसी प्रसंग को न अत्यंत संक्षिप्त लिखें और न ही अनावश्यक रूप से विस्तृत करें।
- कहानी की भाषा सरल, स्वाभाविक तथा प्रवाहमयी होनी चाहिए। उसमें क्लिष्ट शब्द तथा लंबे वाक्य नहीं होने चाहिए।
- कहानी का शीर्षक उपयुक्त तथा आकर्षक होना चाहिए।
- कहानी के संवाद पात्रों के स्वभाव एवं पृष्ठभूमि के अनुकूल होने चाहिए।
- कहानी का अंत सहज ढंग से होना चाहिए।
(ख) अभिनय ही संवाद को नाटक में प्रभावशाली बनाता है। नाटक की अभिनेयता में किन गुणों का होना आवश्यक है? (2)
उत्तर :
अभिनेयता किसी भी नाटक का अनिवार्य गुण है। अभिनय किसी अभिनेता या अभिनेत्री द्वारा किया जाने वाला वह कार्य है, जिसके द्वारा वे किसी कहानी को रंगमंच पर दर्शति हैं। अभिनय ही संवाद को नाटक में प्रभावशाली बनाता है। पात्र अपनी भाव-भगिमाओं व तौर-तरीकों से संवाद व नाटक दोनों को प्रभाजी बना देते हैं। नाटक की अभिनेयता में रंगमंच के संकेतों का होना आवश्यक है। कौन-सा संवाद किस प्रकार बोलना है, किस प्रकार से अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करनी है, कैसे हाव-भाव रखने हैं, यह सब रंगमंच के संकेतों के अंतर्गत आता है। रंगमंच की सज्जा, प्रकाश व्यवस्था, ध्वनि व्यवस्था आदि भी रंगमंच अभिनेयता के लिए आवश्यक गुण हैं।
(ग) विशेष विषय पर लिखा गया लेख सामान्य लेख से अलग होता है। विशेष लेखन की भाषा-शैली कैसी होती है? स्पष्ट कीजिए। (2)
उत्तर :
विशेष लेखन की कोई भी निश्चित शैली नहीं होती। सामान्य लेखन की तरह ही विशेष लेखन का भी यह सर्वमान्य नियम है कि विशेष लेखन सरल व समझ में आने वाला होना चाहिए। विशेष लेखन की भाषा-शैली विषय के अनुसार निर्धारित होती है। विशेष लेखन उल्टा पिरामिड शैली तथा फीचर शैली दोनों में ही लिखा जाता है। विशेष लेखन के प्रत्येक क्षेत्र के लिए विशेष तकनीकी शब्दावली का प्रयोग किया जाता है; जैसे-
- कारोबार और व्यापार के लिए- तेजड़िया, मंदड़िया, सोना उछला, चाँदी लुड़की, बाजार धड्राम आदि।
- पर्यावरण और मौसम के लिए- आर्द्रता, टॉक्सेस, कचरा, ग्लोबल वॉर्मिंग आदि।
- खेल के लिए- जर्मनी ने घुटने टेके, न्यूनीलैंड के पाँव उखड़े, भारतीय शेर कंगारुओं पर भारी आदि।
(घ) जनसंचार का कौन-सा आधुनिक माध्यम सबसे पुराना है? इसकी शुरुआत कैसे हुई? (2)
उत्तर :
जनसंचार के आधुनिक माध्यमों में सबसे पुराना माध्यम प्रिंट अर्थात् मुद्रण माध्यम है। इसकी शुरुआत चीन से हुई थी, परंतु आधुनिक छापेखाने का आविष्कार जर्मनी के गुटेनबर्ग ने किया था। यूरोप में पुनर्जागरण ‘रेनसाँ की शुरुआत में छापेखाने की एक महत्वपूर्ण भूमिका थी। भारत में पहला छापा खाना 1556 ई. में गोवा में खुला। इसे मिशनरियों ने धर्म प्रचार की पुस्तकें छापने के लिए खोला धा।
(छ) रेडियो नाटक की अवधि कम क्यों रखी जाती है? स्पष्ट कीजिए। (2)
उत्तर :
रेडियो नाटक की अवधि छोटी इसलिए रखी जाती है, क्योकि रेडियो पूरी तरह से श्रष्य माध्यम है। मनुष्य की एकाग्रता सीमित होती है। सामान्य रूप से रेडियो नाटक की अवधि 15-30 मिनट रखी जाती है, क्योकि मनुष्य की सुनने की एकाग्रता अवधि 15 से 30 मिनट तक की ही होती है। अत: इन सभी कारणों से रेडियो नाटक की अवधि 15-30 मिनट रखी जाती है।
प्रश्न 5.
निम्नलिखित प्रश्नों को ध्यानपूर्वक पढ़िए और किन्हीं 2 प्रश्नों के उत्तर लगभग 80 शब्दों में लिखिए। (4 × 2 = 8)
(क) रेडियो पर रेडियो नाटक की शुरुआत कैसे हुई? (4)
उत्तर :
आज से कुछ दशक पहले रेडियो ही मनोरंजन का प्रमुख साधन था। उस समय टेलीविजन, सिनेमा, कंप्यूटर आदि मनोरंजन के साधन उपलब्य नहीं थे। ऐसे समय में घर बैठे रेडियो ही मनोरंजन का सबसे सस्ता और सुलभ साधन था। रेडियो पर खबरों के साथ-साथ अनेक ज्ञानवर्षक कार्यक्रम भी प्रसारित होते थे। रेडियो पर संगीत कार्यक्रम, खेलों तथा अनेक राष्ट्रीय समारोहों का आँखों देखा हाल भी प्रसारित किया जाता था। एफ. एम. चैनलों की तरह गीत-संगीत की अधिकता होती ची। धीरे-धीरे रेडियो पर नाटक भी प्रस्तुत किए जाने लगे, रेडियो नाटक टी.वी. धारावाहिकों तथा टेली फिल्मों की कमी को पूरा करने के लिए शुरू हुए थे। ये नाटक लधु भी होते थे और धारावाहिक के रूप में भी प्रस्तुत किए जाते थे। हिंदी साहित्य के सभी बडे-बड़े लेखक साहित्य रचना के साथ-साथ रेडियो स्टेशनों के लिए नाटक भी लिखते थे। हिंदी के अनेक नाटक, जो बाद में मंच पर बहुत प्रसिद्ध रहे, मूलत: रेडियो के लिए ही लिखे गए थे। धर्मवीर भारती द्वारा रचित ‘अंधा युग’ और मोहन राकेश द्वारा रचित ‘आषाढ़ का एक दिन’ इसका एक श्रेष्ठ उदाहरण है।
(ख) समाचार-लेखन के छः ककारों का उल्लेख कीजिए। (4)
उत्तर :
समाचार लेखन में कब, कहाँ, कैसे, क्या, कौन, क्यों इन्हीं छ: प्रश्नों को छ: ककार कहा जाता है। इन्हीं ककारों के आधार पर किसी घटना, समस्या तथा विचार आदि से संबंधित खयर लिखी जाती है यह ककार ही समाचार लेखन का मूल आधार होते है। इसलिए समाचार लेखन में इसका बहुत महत्त्व है। इन छ: ककारों को इस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है
- कब यह समाचार लेखन का आधार होता है। इस ककर के माध्यम से किसी घटना तथा समस्या के समय का बोध होता है; जैसे-बस दुर्घटना कब हुई?
- कहाँ इस ककार के माध्यम से किसी घटना और समस्या के स्थान का चित्रण किया जाता है; जैसे-बस दुर्घटना कहाँ हुई?
- कैसे इस प्रकार के ककार द्वारा समाचार का विश्लेषण, वितरण तथा व्याख्या की जाती है।
- क्या यह ककार समाचार लेखन का आधार माना जाता है। इसके द्वारा समाचार की रूपरेखा तैयार की जाती है।
- क्यों इस ककार के द्वारा समाचार के विवरणात्मक, व्याख्यात्मक तथा विश्लेषणात्मक पहलुओं पर प्रकाश डाला जाता है।
- कौन इस ककार को आधार बनाकर समाचार लिखा जाता है।
(ग) नाटक में अभिनय और संवाद योजना के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए। (4)
उत्तर :
नाटक में अभिनय सबसे प्रभावशाली तत्त्व है। अभिनय को रंगमंच भी कहा जाता है। नाटक अभिनय के लिए ही लिखे जाते हैं। सफल नाटक वही माना जाता है जिसका अभिनय या मंचन किया जा सके। अभिनय के माध्यम से ही नाटक दर्शकों तक सरल रूप में पहुँचता है। अत: अभिनय नाटक का प्राण तत्त्व है। नाटक में इसका बहुत अधिक महत्व होता है। संवाद नाटक का सबसे महत्त्वपूर्ण एवं सबसे सशक्त माध्यम उसके संवाद हैं। संवाद ही वह तत्त्व है जो एक सशक्त नाटक को अन्य कमजोर नाटकों से अलग करता है। संवाद जितने सहज और स्वाभाविक होंगे, उतना ही दर्शक के मर्म को छुएँगे। संवादों के माध्यम से ही कथा आगे बढ़ती है। नाटक के संवाद सरल, सहज, स्वाभाविक एवं पत्रानुकूल होने चाहिए।
खंड ‘ग’ पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-2 एवं वितान भाग-2
(40 अंक)
खंड ‘ग ‘ में पाठ्यपुस्तक आरोह भाग- 2 से गद्य व पद्य खंड से बहुविकल्पीय प्रश्न, अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न व लघूत्तरात्मक प्रश्न तथा वितान भाग- 2 से लघूत्तरात्मक प्रश्न पूछे गए हैं, जिनके निर्धारित अंक प्रश्न के सामने अंकित हैं।
प्रश्न 6.
निम्नलिखित पद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर सर्वीधिक उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनकर लिखिए (5 × 1 = 5)
नभ में पाँती-बँधे बगुलों के पंख,
चुराए लिए जातीं वे मेरी आँखे।
कजरारे बादलों की छाई नभ छाया,
तैरती साँझ की सतेज श्वेत काया।
हौले-हौले जाती मुझे बाँध.निज माया से।
उसे कोई तनिक रोक रक्खो।
वह तो चुराए लिए जाती मेरी आँखें
नभ में पाँती-बँधी बगुलों की पाँखें।
(क) बगुलों के पंखों से कैसा दृश्य उपस्थित हो गया है? (1)
(i) आकर्षक
(ii) सुनहरा
(iii) सम्मोहक
(iv) अच्छा
उत्तर :
(iii) सम्मोहक
(ख) कवि की आँखें कौन चुराए लिए जाते हैं? (1)
(i) आकाश में उड़ते बगुले
(ii) आकाश में उड़ते कौए
(iii) आकाश में उड़ते बादल
(iv) ये सभी
उत्तर :
(i) आकाश में उड़ते बगुले
(ग) बादलों पर किसका प्रकाश पड़कर अद्भुत सौदर्य की सृष्टि कर रहा है? (1)
(i) प्रात:कालीन सूर्य का
(ii) रात्रि के चंद्रमा का
(iii) संध्याकालीन सूर्य का
(iv) ये सभी
उत्तर :
(iii) संध्याकालीन सूर्य का
(घ) सुमेलित कीजिए (1)
सूची I | सूची II |
A. पाँती-बँधे | 1. घीरे-धीरे |
B. कजरारे | 2. पंख |
C. हॉले-हौले | 3. श्यामल |
D. पाँखें | 4. कतारबद्ध |
कूट
A B C D
(i) 1 2 3 4
(ii) 4 3 1 2
(iii) 2 4 1 3
(iv) 3 1 4 2
उत्तर :
(ii)
सूची I | सूची II |
A. पाँती-बँधे | 4. कतारबद्ध |
B. कजरारे | 3. श्यामल |
C. हॉले-हौले | 1. घीरे-धीरे |
D. पाँखें | 2. पंख |
(ङ) कथन (A) बगुले मेरी आँखें चुराए लिए जाते हैं। (1)
कारण (R) कवि की दृष्टि जहाँ तक जाती है। वह बगुलों की उड़ान को देखता ही रह जाता है। कूट
(i) कथन (A) सही है, परंतु कारण (R) गलत है।
(ii) कथन (A) गलत है, परंतु कारण (R) सही है।
(iii) कथन (A) और कारण (R) दोनों सही हैं, लेकिन कारण (R), कथन (A) की सही व्याख्या नहीं करता है।
(iv) कथन (A) और कारण (R) दोनों सही हैं तथा कारण (R), कथन (A) की सही व्याख्या करता है।
उत्तर :
(iv) कथन (A) और कारण (R) दोनों सही हैं तथा कारण (R), कथन (A) की सही व्याख्या करता है।
प्रश्न 7.
निम्नलिखित प्रश्नों को ध्यानपूर्वक पढ़कर दिए गए 3 प्रश्नों में से किन्हीं 2 प्रश्नों के लगभग 60 शब्दों में उत्तर लिखिए। (3 × 2 = 6)
(क) ‘कैमरे में बंद अपाहिज’ कविता को आप कररणा की कविता मानते हैं या कूरता की? तर्कसम्मत उत्तर दीजिए। (3)
उत्तर :
‘कैमरे में बंद अपाहिज’ कविता में दूरदर्शन चैनल वाले कमज़ोर व लाचार व्यक्ति के दुःख की मार्केंटिंग करते हैं। उन्हें उनकी सहायता से कोई मतलब नहीं होता, वे तो केवल अपना मतलब साधते हैं। दूरदर्शन चैनल वाले अपाहिज व्यक्ति को बार-बार अपना दु: ख बताने के लिए विवश करते हैं, जिसका प्रमुख उद्देश्य मात्र अपने चैनल की लोकप्रियता बढ़ाना और पैसा कमाना है, ।जिसके लिए वे बेकार के प्रश्न पूछने से भी नहीं हिचकिचाते हैं। हि अपाहिजों की पीड़ा को बढ़ा-चढ़ाकर पूछते हैं। यह कार्य असामाजिक है। अत:हमारे मत से यह कविता क्रूरता की कविता है।
(ख) ‘पतंग’ कविता में कवि ने बच्चों को कपास की तरह कोमल बताया है तथा उनके पैरों को ‘बेचैन’ कहा है। कारण स्पष्ट कीजिए। (3)
उत्तर :
कौने बच्चों की भावनाओं की ओर संकेत करते हुए कहा है कि बच्ची की भावनाएँ कपास की तरह श्वेत,कोमल तथा पवित्र होती है। यहाँ बच्चों के लिए कपास का विशेष रूप से प्रयोग किया गया है। यहाँ बच्चों के शरीर की दुलंभ लोच,नरमाई, सहनशीलता तथा कष्ट-रोधी शक्ति की ओर भी संकेत किया गया है। कवि ने बच्चों के पैरों को ‘बेचैन’ की संज्ञा इसलिए दी है,क्योंकि उनके पैर हमेशा घूमने,चलने,दौड़ने तथा कूदने के लिए व्याकुल रहते हैं। ये कभी भी रुकने का नाम नहीं लेते। उनके पैरों में एक ऐसी व्याकुलता रहती है मानो वे संपूर्ण पृथ्धी को ही नाप लेंगे।
(ग) कविता के किन उपमानों को देखकर कहा जा सकता है कि ‘उषा’ कविता गाँव की सुबह का गतिशील शब्दचित्र है? (3)
उत्तर :
‘उषा’ कविता में कवि शमशेर बहादुर सिंह ने ग्रामीण उपमानों का प्रयोग कर गाँव की सुबह के गतिशील शब्दचित्र को सामने लाने का प्रयास किया है। कविता में नीले रंग के प्रात:कालीन आकाश को'राख से लीपा हुआ चौका'कहा गया है। ग्रामीण परिवेश में ही गृहिणी भोजन बनाने के बाद चाँके (चूल्हे) को राख से लीपती है,जो प्राय:काफ़ी समय तक गीला ही रहता है। दूसरा बिंब काले सिल का है। काला सिल अर्थात् पत्थर के काले टुकड़े पर केसर पीसने का काम भी गाँव की महिलाएँ ही करती हैं। तीसरा बिब्न काली स्लेट पर लाल खड़िया चॉक से लिखने वाली क्रिया नन्हें ग्रामीण बालकों द्वारा की जाती है। इन बिबात्मक चेतनाओं में गतिशील शब्दचित्र भी मौजूद है। इन उपमानों को देखकर निश्चय ही कहा जा सकता है कि'उषा'कविता गाँय की सुबह का गतिशील चित्र है।
प्रश्न 8.
निम्नलिखित प्रश्नों को ध्यानपूर्वक पढ़कर दिए गए 3 प्रश्नों में से किन्हीं 2 प्रश्नों के लगभग 40 शब्दों में उत्तर लिखिए। (2 × 2 = 4)
(क) पेट की आग की विशालता और भयावहता को कवि ने कैसे प्रस्तुत किया है? ‘कवितावली’ के आधार पर स्पष्ट कीजिए। (2)
उत्तर :
कवि ने पेट की आग की विशालता और भयावहता को स्पष्ट करने के लिए कहा है कि यह अगिन समुद्र की आग से भी बड़ी है। समुद्र में कई बार कुछ स्थलों पर भयानक अगिन की लपटें उठती हैं। इसे बड़वाग्नि कहा जाता है। पेट की आग उससे भी भयानक होती है,क्योकि लोग भूख की ज्वाला को मिटाने के लिए बेटा-बेटी तक बेच डालते हैं।
(ख) कल्पना के रसायन से रचना अधिक परिपक्व तथा अनंतता को प्राप्त होती है। यहाँ ‘कल्पना के रसायन’ का क्या अभिप्राय है? ‘छोटा मेरा खेत’ कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए। (2)
उत्तर :
‘कल्पना के रसायन’ से कवि का अभिप्राय है कि रचना कल्पना के रसायन को पीकर आनंद रस से परिपूर्ण हो जाती है। यहाँ कवि ने कविता की रचना के लिए कल्पना के महत्त्व को प्रतिपादित किया है। जिस प्रकार खेत में खाद्यान्न उत्पन्न करने के लिए किसान बीज,जल तथा रसायनों का उपयोग करता है, उसी प्रकार एक कवि रचना के सृजन के लिए शब्दरूपी बीज को पन्नों पर डालता है तथा कविता के शब्दों को भाव,संवेदना के जल से सिंचित कर कल्पनारूपी रसायन से उर्वर बनाता है,जिससे कविता परिपक्व होकर आनंदानुभूति कराने में सक्षम होती है तथा अनंतता को प्राप्त हो जाती है।
(ग) ‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है’ कविता के आधार पर उन स्थितियों को स्पष्ट कीजिए, जिनके कारण पथिक जल्दी चलता है। (2)
उत्तर :
पथिक दिनभर चलता रहता है। वह अपना लक्ष्य जानता है। लक्ष्य को पाने के लिए ही दिनभर चलता है,थक जाता है,परंतु फिर भी चलता रहता है। उसे यह भय है कि यदि वह रुक गया,तो रात जल्दी हो जाएगी। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो व्यक्ति का जीवन क्षणिक है और व्यक्ति की इच्छाएँ अनंत। वह उन्हे पूरा करने के लिए जुटा रहता है। दिन के ढल जाने या अँधेरा होने से पूर्व ही वह अपनी मंजिल पर पहुँच जाना चाहता है।
प्रश्न 9.
निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनकर लिखिए। (1 × 5 = 5)
पड़ोस में एक महानुभाव रहते हैं, जिनको लोग भगत जी कहते हैं। चूरन बेचते हैं। यह काम करते, जाने उन्हें कितने बरस हो गए हैं। लेकिन किसी एक भी दिन चूरन से उन्होने छ: आने से ज्यादा पैसे नहीं कमाए। चूरन उनका आस-पास सरनाम है और खुद खूब लोकप्रिय हैं। कहीं व्यवसाय का गुर पकड़ लेते और उस पर चलते तो आज खुशहाल क्या, मालामाल होते! क्या कुछ उनके पास न होता! इधर दस वर्षों से मैं देख रहा हूँ, उनका चूरन हाथों-हाथ बिक जाता है। पर वह न उसे थोक में देते हैं, न व्यापारियों को बेचते हैं।
पेशगी ऑर्डर कोई नहीं लेते। बँधे वक्त पर अपनी चूरन की पेटी लेकर घर से बाहर हुए नहीं कि देखते-देखते छ: आने की कमाई उनकी हो जाती है। लोग उनका चूरन लेने को उत्सुक जो रहते हैं। चूरन से भी अधिक शायद वह भगत जी के प्रति अपनी सद्भावना का देय देने को उत्सुक रहते हैं। पर छ: आने पूरे हुए नहीं कि भगत जी बाकी चूरन बालकों को मुफ़्त बाँट देते हैं। कभी ऐसा नहीं हुआ कि कोई उन्हें पच्चीसवाँ पैसा भी दे सके। कभी चूरन में लापरवाही नहीं हुई और कभी रोग होता भी मैंने उन्हें नहीं देखा है।
(क) लोग भगत जी का दूरन खरीदने को उत्सुक रहते थे। चूरन खरीदने वालों की उत्सुकता का क्या कारण् था? (1)
(i) भगत जी के प्रति उनकी सद्भावना
(ii) भगत जी की बालकों को मुफ्त में चूरन बाँटने की प्रवृत्ति
(iii) भगत जी का व्यापारी स्वभाव
(iv) भगत जी का अधिक पुराना व्यापारी होना
उत्तर :
(i) भगत जी के प्रति उनकी सद्भावना
(ख) भगत जी सदैव नियम पर डटे रहते थे। उनका कौन-सा नियम था? (1)
(i) कम चूरन बेचना
(ii) बाजार का मोल-भाव न करना
(iii) छ: आने से अधिक का चूरन न बेचना
(iv) बच्चों को कम कीमत पर चूरन बेचना
उत्तर :
(iii) छः आने से अधिक का चूरन न बेचना
(ग) कथन (A) भगत जी छः आने का चूरन बिकने के बाद बचा हुआ चूरन बालकों में मुप्त बाँट देते थे। (1)
कारण (R) भगत जी का चूरन केवल छः आने का ही विक पाता था। इससे अधिक का कोई खरीदार नहीं आता था।
कूट
(i) कथन (A) और कारण (R) दोनों सही हैं तथा कारण (R), कथन (A) की सही व्याख्या करता है।
(ii) कथन (A) गलत है, किंतु कारण (R) सही है।
(iii) कथन (A) तथा कारण (R) दोनों गलत हैं।
(iv) कथन (A) और कारण (R) दोनों सही हैं, लेकिन कारण (R), कथन (A) की सही व्याख्या नहीं करता है।
उत्तर :
(iv) कथन (A) और कारण (R) दोनों सही है, लेकिन कारण (R) कथन (A) की सही व्याख्या नहीं करता है।
(घ) सुमेलित कीजिए (1)
सूची I | सूची II |
A. दूरन शीघ बिक जाता है। | 1. आज खुशहाल व मालामाल होते |
B. भगत जी व्यवसाय का गुर पकड़ लेते तो | 2. घूरन मुफ्त बाँट देते |
C. छः आने पूरे होने पर | 3. गुणवत्ता के कारण |
कूट
A B C
(i) 3 1 2
(ii) 1 2 3
(iii) 2 3 1
(iv) 1 3 2
उत्तर :
(i)
सूची I | सूची II |
A. दूरन शीघ बिक जाता है। | 3. गुणवत्ता के कारण |
B. भगत जी व्यवसाय का गुर पकड़ लेते तो | 1. आज खुशहाल व मालामाल होते |
C. छः आने पूरे होने पर | 2. घूरन मुफ्त बाँट देते |
(ङ) निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए (1)
1. चूरन की पेटी खोलते ही भगत जी का सारा चूरून तुरंत बिक जाता था।
2. भगत जी को व्यापार करना नहीं आता था।
3. भगत जी कभी मी बीमार नहीं पड़ते थे। उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं?
(i) केवल 1
(ii) केवल 3
(iii) 1 और 3
(iv) 1 और 2
उत्तर :
(ii) केवल 3
प्रश्न 10.
निम्नलिखित प्रश्नों को ध्यानपूर्वक पद़कर दिए गए 3 प्रश्नों में से किन्हीं 2 प्रश्नों के लगभग 60 शब्दों में उत्तर लिखिए। (3 × 2 = 6)
(क) ‘शिरीष के फूल’ पाठ के आधार पर बताइए कि लेखक के मत तथा पुराने कवियों के मतों में क्या अंतर है? (3)
उत्तर :
‘शिरीष के फूल’ पाठ में पुराने कवि बकुल के पेड़ में झूला लगा देखना चाहते थे। उनका मानना था कि बकुल जैसे मज़बूत पेड़ की डालियों में झूला लगाने से स्त्रियाँ आसानी से झूला झूल सकेंगी। उन्हें चोट लगने का भय नहीं रहेगा। इसके विपरीत लेखक का मानना है कि शिरीष के वृक्ष की डाल कुछ कमजोरोर जरूर होती है, परंतु उसमें डाले गए झूले में झूलने वाली रमणियों का वजन भी तो कम होता है। अत: शिरीष के वृक्ष की डाल पर भी द्युला डालना उचित ही है।
(ख) लेखक के अनुसार, बाजार का जादू व्यक्ति के मन-मस्तिष्क पर किस प्रकार प्रभाव डालता है? बाजार के जादू के प्रभाव से बचने का क्या उपाय है? (3)
उत्तर :
बाजार में एक गहरा जादू है। यह जादू व्यक्ति के मन-मस्तिष्क पर उसी प्रकार प्रभाव डालता है, जिस प्रकार चुंबक का जादू लोहें पर चलता है। जब व्यक्ति की जेब भरी होती है और मन खाली हो, तो जादू का असर खूब चलता है। जेब खाली और मन भरा नहीं होने पर भी उसका जादू चल जाता है।
इस प्रभाव से बचने के लिए हमें बाज्ञार में तब जाना चाहिए, जब हमारा मन खाली न हो। जिस प्रकार यदि गर्मीं में पानी पीकर बाहर जाएँ, तो लू लगने की संभावना कम रहती है, उसी प्रकार यदि आपका मन लक्ष्य से भरा हो तो आप बाज्ञार से अपना सुख हूँब ही लेंगे और बाज़ार आपको तंग नहीं कर पाएगा।
(ग) लक्ष्मी के ‘भवितन’ बनने की प्रक्रिया क्यों मर्मस्पर्शी है? अपने शब्दों में उत्तर दीजिए। (3)
उत्तर :
लक्ष्मी का जीवन दुःखों से भरा है। बचपन में ही उसकी माँ की मृत्यु हो गई और अपनी जवानी में ही वह विधवा हो गई। पति की मृत्यु के बाद उसके ससुराल वाले भी उसकी संपत्ति हड़पना चाहते थे, इसलिए वे उसकी दूसरी शादी के लिए ज्ञोर देने लगे, परंतु दूसरे विवाह के लिए उसने साफ़-साफ़ मना कर दिया। उसने बड़े दामाद को घरजमाई बनाकर रखा, परंतु वह भी शीष्र ही मृत्यु को प्राप्त हो गया। अपने घर में धन का अभाव रहने के कारण बह एक बार लगान न चुका पाई, जिसके कारण उसे धूप में ख़े रहने की सजा भी मिली। इसी अपमान के कारण वह शहर चली आई और लेखिका के यहाँ सेविका बन गई। उसकी वेशभूषा देखकर लेखिका ने उसका नाम ‘भक्तिन’ रख दिया। इस प्रकार, लक्ष्मी के ‘भक्तिन’ बनने की प्रक्रिया अत्यंत मर्मस्पर्शी है।
प्रश्न 11.
निम्नलिखित प्रश्नों को ध्यानपूर्वक पढ़कर दिए गए 3 प्रश्नों में से किन्हीं 2 प्रश्नों के लगभग 40 शब्दों में उत्तर लिखिए। (2 × 2 = 4)
(क) लाशों को बिना कफ़न के ही पानी में बहा देने की सलाह क्यों दी जा रही थी? ‘पहलवान की ढोलक’ कहानी के आधार पर स्पष्ट कीजिए। (2)
उत्तर :
लाशों को बिना कफ़न के ही पानी में बहा देने की सलाह इसलिए दी जा रही थी, क्योकि गाँव वाले आर्थिक रूप से इतने समर्थ नहीं थे कि वे आपस में एक-दूसरे की आर्थिक सहायता कर सकें। वे केवल अपनी भावनाओं को प्रकट करके ही एक-दूसरे की सहायता कर सकते थे। अत: जब महामारी के कारण घरों में से लगातार एक-दो लाशें निकलने लगीं, तब उन्हें कफ़न तक के लिए भी सोचना पड़ रहा था। अत: लाशे बिना कफ़न के ही बहा देने की सलाह दी जा रही थी।
(ख) ‘श्रम विभाजन और जाति-प्रथा’ पाठ के आधार पर बताइए कि जाति-प्रथा के पोषक लोग क्या स्वीकार करने को तैयार हैं? (2)
उत्तर :
जाति-प्रथा के पोषक लोग यह स्वीकार करने को तैयार हैं कि व्यक्ति को जीवन, शरीर तथा संपत्ति की सुरक्षा एवं अधिकार की स्वतंत्रता मिलनी चाहिए, परंतु वे मनुष्य को उसकी कुशलता के अनुसार उसकी क्षमता का सक्षम तथा प्रभावशाली उपयोग करने की स्वतंत्रता देने के लिए तैयार नहीं हैं। जाति-प्रथा के कारण व्यक्ति अपना व्यवसाय अपनी इच्छा के अनुसार नहीं चुन सकता। उसे वही कार्य करना पड़ता है, जो उसे जाति के आधार पर मिला हो। चाहे वह व्यवसाय उसके लिए उपयुक्त हो या अनुपयुक्त।
(ग) हमारा एकमात्र लक्ष्य्य स्वार्थ ही क्यों रह गया है? ‘काले मेघा पानी दे’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए। (2)
उत्तर :
स्वार्थ ही हमारा एकमात्र लक्ष्य इसलिए रह गया है, क्योंकि आज देशवासी स्वहित को सवोंपरि मानते हैं। देश के बारे में कोई भी नहीं सोचता। आज प्रत्येक व्यक्ति आत्मकेंद्रित है। वह धन, वैभव तथा मूल्यवान वस्तुएँ पाना चाहता है। हम आपस में लोगों व नेताओं के भ्रष्टाचार की बातें करते हैं, किंतु हमने अपने आपको कभी नहीं परखा कि क्या हम भी तो अपने स्तर पर, अपने दायरे में इस प्रष्टाचार का अंग तो नहीं बन रहे हैं। यदि हम सोचें तो एक स्तर पर हम सभी स्वयं को उसी रष्टाचार का अंग बना हुआ पाते हैं। आखिर कब बदलेगी यह स्थिति?
पूरक पाठ्यपुस्तक वितान भाग-2
प्रश्न 12.
निम्नलिखित प्रश्नों को ध्यानपूर्वक पढ़कर दिए गए 3 प्रश्नों में से किन्हीं 2 प्रश्नों के लगभग 100 शब्दों में उत्तर लिखिए। (5 × 2 = 10)
(क) वाई डी पंत का आदर्श कौन था? उसके व्यक्तित्व की तीन विशेषताएँ लिखिए। (5)
उत्तर :
वाई डी पंत अर्थात् यशोधर बाबू के आदर्श किशनदा थे। किशनदा इस कहानी के प्रत्येक संदर्भ में हस्तक्षेप करते हुए भी सबसे दूर हैं। उनकी मृत्यु हो चुकी है, कितु वे अपने मानस-पुत्र यशोधर बाबू के रूप में मानो जीवित हैं। उनके व्यक्तित्व की उल्लेखनीय विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
1. किशनदा सरल हुदय वाले एवं सहयोगी व्यक्ति हैं। वे मूल रूप से पहाड़ी क्षेत्र से संबंधित हैं, जो दिल्ली में नौकरी करते हैं। पहाड़ी क्षेत्र से आने वाले अनेक युवक अपने काम से दिल्ली आने पर उन्हीं के घर में शरण लेते हैं। वे यशोधर बाबू को स्नेह से ‘भाऊ’ कहकर पुकारते हैं। वे अविवाहित हैं तथा उन्होंने अपने घर को मेस जैसा बना दिया है, जहाँ कोई भी व्यक्ति आकर आपसी सहयोग से खा-पका सकता था।
2. वे परोपकारी प्रवृत्ति के व्यक्ति हैं तथा सिद्धांतवादी भी। किशनदा ने ही मैट्रिक पास यशोधर पंत को न केवल सरकारी नौकरी दिलवाने में मदद की, बल्कि आवश्यकता पड़ने पर अपनी जेब से पैसे भी उधार दिए। उन्होने अपने जीवन में कुछ सिद्धांतों को अपनाया हुआ था, जिनका वे दृद्रता से पालन करते घे।
3. किशनदा अनुभवी व्यक्ति हैं और अपने अनुभवों का लाभ अपने प्रियजनों को भी देते हैं। यशोधर बाबू के व्यक्तित्व निर्माण में किशनदा का अपूर्व योगदान है। वे उन्हें ऑफिस के कार्यों के साथ-साथ जीवन के विभिन्न प्रसंगों पर भी दिशा-निर्देश देते हैं।
(ख) “सिंधु सभ्यता में खेती का उन्नत रूप भी देखने को मिलता है।” क्या आप इस कथन से सहमत हैं? उल्लेख कीजिए। (5)
उत्तर :
सिंधु घाटी सभ्यता की खोज के शुरू में यह समझा जाता था कि इस घाटी के लोग अन्न नहीं उगाते थे। नईं खोजों के साथ यह स्पष्ट हो गया कि यहाँ उन्नत खेती होती थी। अनाज आदि की ज्ञरूरतें वे आयात करके पूरा कर लेते थे। खेतिहर और पशु-पालक सभ्यता को कुछ विद्वानों द्वारा माना भी गया है। लोहा न होने के कारण पत्थर और ताँबे के औज़ार ही खेती के प्रयोग में लाए जाते थे। इतिहासकार इरफान हबीब का मानना है कि यहाँ के लोग रबी की फसल मी उगाते थे। गेहूँ, कपास, चने और सरसों के प्रमाण खुदाई के दौरान मिले हैं। यहाँ ज्वार, बाजरा, रागी की उपज के साथ-साथ खजूर, अंगूर और खरबूजे भी उगाए जाते थे और बेर की छाड़ियों के चिह्ह भी पाए गए हैं। वहाँ कपास की भी खेती होती थी। इन्हीं सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए हम इस बात से सहमत हैं कि सिंधु सभ्यता में खेती का उन्नत रूप देखने को मिलता है।
(ग) ‘जूझ’ कहानी के लेखक के जीवन-संघर्ष के उन बिंदुओं पर प्रकाश डालिए, जो हमारे लिए प्रेरणादायक हैं। (5)
उत्तर :
‘जूझ’ कहानी के लेखक का जीवन-संघर्ष सभी के लिए एक आदर्श प्रेरणास्रोत कहा जा सकता है, क्योंकि वहु जटिल परिस्थितियों में भी शिक्षा प्राप्त करने के लिए कठिन प्रयास करता है। वह खेती का काम करने के साथ-साथ पढ़ाई करता है। उसके जीवन में आर्थिक समस्या भी है और उसे पैसों की कमी है। उसके सहपाठी उसके पहनावे को देखकर मजज़ाक उड़ाते हैं। इन सब बाधाओं को वह अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति के दम पर पार कर लेता है। कविता लिखने का शौक अंतत: उसके लिए बहुत बड़ा लक्ष्य बन जाता है, जिसे वह सफलतापूर्वक हासिल करता है। वस्तुत: कहानी के लेखक में समस्याओं से जूझने की प्रवृत्ति है।
इसी जूझने की प्रवृत्ति के कारण वह अपने जीवन-लक्ष्यों को एक के बाद एक प्राप्त करता जाता है। वह अपने आलसी एवं गैर-ज़िम्मेदार पिता को भी संतुष्ट रखते हुए अपनी आगे की पढ़ाई करता है। विपरीत परिस्थितियों से जूझने की क्षमता के अतिरिक्त कहानी के लेखक में कठिन परिश्रम एवं दृढ़ संकल्प संबंधी चारित्रिक विशेषताएँ मौजूद हैं।
वह पढ़ने के लिए किसी भी स्तर का परिश्रम करने को सहर्ष तैयार रहता है। वह अपनी धुन में रमने की प्रवृत्ति यानी लगनशीलता के कारण ही उच्च स्तर का कवि बन सका। इस प्रकार, कहा आ सकता है कि ‘जूझ’ कहानी के लेखक का जीवन-संघर्ष हमारे लिए अत्यधिक प्रेरणादायक है।