Students must start practicing the questions from CBSE Sample Papers for Class 12 Hindi with Solutions Set 6 are designed as per the revised syllabus.
CBSE Sample Papers for Class 12 Hindi Set 6 with Solutions
समय : 3 घंटे
पूर्णांक : 80
सामान्य निर्देश:
- इस प्रश्न-पत्र में खंड ‘अ’ में वस्तुपरक तथा खंड ‘ब’ में वर्णनात्मक प्रश्न पूछे गए हैं।
- खंड ‘अ’ में 40 वस्तुपरक प्रश्न पूछे गए हैं। सभी 40 प्रश्नों के उत्तर देने हैं।
- खंड ‘ब’ में वर्णनात्मक प्रश्न पूछे गए हैं। प्रश्नों के उचित आंतरिक विकल्प दिए गए हैं।
- दोनों खंडों के प्रश्नों के उत्तर देना अनिवार्य है।
- यथासभव दोनों खंडों के प्रश्नों के उत्तर क्रमशः लिखिए।
खंड ‘क’
अपठित बोध (18 अंक)
खंड ‘क’ में अपठित बोध के अंतर्गत अपठित गद्यांश व पद्यांश से संबंधित बहुविकल्पीय, अतिलघूत्तरात्मक तथा लघूत्तरात्मक प्रश्न पूछे गए हैं, जिनमें से बहुविकल्पीय तथा अतिलघूत्तरात्मक के प्रत्येक प्रश्न के लिए 1 अंक तथा लघूत्तरात्मक के लिए 2 अंक निर्धारित हैं।
प्रश्न 1.
निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर दिए गाए प्रश्नों के उत्तर निर्देशानुसार लिखिए।
पंजाब में उस वर्ष भयंकर अकाल पड़ा था। उन दिनों वहाँ महाराजा रणजीत सिंह का राज था। उन्होंने यह घोषणा करवा दी, “महाराज के आदेश से शाही भंडार-गृह हर जरूरतमंद के लिए खुला है। प्रत्येक जरूरतमंद एक बार में जितना अनाज उठा सके, ले जाए।” यह घोषणा सुनते ही गाँवों व शहरों से ज़रूरतमंदों की भीड़ राजमहल में उमड़ पड़ी। उन दिनों लाहौर में एक सद्गृहस्थ बूढ़े सज्जन रहते थे। वे कट्टर सनातनी विचारों के थे। उन्होंने जीवन में कभी भी किसी के आगे अपना हाथ नहीं फैलाया था। अँधेरा होने पर वह शाही भंडार के दरवाज़े पर पहुँचे। द्वार खुला था, किसी तरह की कोई जाँच-पड़ताल नहीं हुई। उन्होंने बड़े संकोच से अपनी चादर को फैलाया, उसके कोने में थोड़ा-सा अनाज बाँध लिया। ज्यादा अनाज उठाना उनके लिए मुश्किल था। इतने में पगड़ी बाँधे एक व्यक्ति वहाँ आया। उसने कहा, “भ्राताजी आपने तो काफ़ी कम अनाज लिया है।” बूढ़े सज्जन ने कहा, “असल में में बूढ़ा लाचार हूँ। इस अकाल में तो थोड़ा अनाज लेना ही सही है, जिससे सब जरूरतमंदों को मिल जाए।”
उस व्यक्ति ने बूढ़े की गठरी खोल दी। उसमें भरपूर अनाज भर दिया। बूढ़े सज्जन ने कहा, “मैं इतना अनाज नहीं उठा सकता और न ही इसकी मजदूरी का पैसा दे सकता हूँ,” इतने में उस अजनबी ने बूढ़े की गठरी अपने कंधों पर ले ली और बूढ़े के पीछे-पीछे चल पड़ा। जब वे बूढ़े के घर के द्वार पर पहुँचे, तो वहाँ दो बच्चे उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे। उन्हें देखते ही वे बोले- “बाबा, कहाँ चले गए थे?” बूढ़ा खामोश रहा। अजनबी ने कहा, “घर में कोई बड़ा लड़का नहीं है?” बूढ़ा बोला, “लड़का था, लेकिन काबुल की लड़ाई में शहीद हो गया। अब बहू है तथा मेंरे ये पोते हैं।” वह अजनबी बोला, “भाई जी धन्य हैं आप, जिनका बेटा देश के लिए शहीद हो गया।”
रोशनी में बूढ़े ने उस अजनबी को पहचान लिया। वे खुद महाराज रणजीत सिंह थे। बूढ़े ने पोतों से कहा, “इनके सामने दंडवत प्रणाम करो।” और स्वयं भी प्रणाम करने लगे और थोड़ी देर बाद बोले, “आज मुझसे बड़ा पाप हो गया। आपसे बोझा उठवाया।” “नहीं, यह पाप नहीं, मेरा सौभाग्य था कि मैं शहीद के परिवार की सेवा कर सका। आप सबकी सेवा करना मेरा फ़र्ज है। अब आप जीवनभर हमारे साथ रहिए और हमें कृतार्थ कीजिए।”
(क) पंजाब में उन दिनों किसका राज्य था? (1)
(i) लाला लाजपतराय का
(ii) महाराजा रणजीत सिंह का
(iii) सरदार पटेल का
(iv) महात्मा गाँधी का
उत्तर :
(ii) महाराजा रणजीत सिंह का
(ख) अँधेरा होने पर वह …… के दरवाज़े पर पहुँचे। (1)
(i) राजमहल
(ii) शाही भंडार
(iii) दरबार
(iv) मकान
उत्तर :
(ii) शाही भंडार
(ग) कथन (A) बूढ़े ने चादर के कोने में थोड़ा-सा अनाज बाँध लिया। कारण (R) ज़्यादा अनाज उठाना उनके लिए मुश्किल था, क्योंकि वह वृद्ध थे। (1)
कूट
(i) कथन (A) सही है, किंतु कारण (R) गलत है।
(ii) कथन (A) गलत है, किंतु कारण (R) सही है।
(iii) कथन (A) और कारण (R) दोनों सही हैं, लेकिन कारण (R), कथन (A) की सही व्याख्या नहीं करता है।
(iv) कथन (A) और कारण (R) दोनों सही हैं तथा कारण (R), कथन (A) की सही व्याख्या करता है।
उत्तर :
(iv) कथन (A) और कारण (R) दोनों सही हैं तथा कारण (R) कथन (A) की सही व्याख्या करता है।
(घ) राज्य को किस विपत्ति का सामना करना पड़ा? (1)
उत्तर :
राज्य को भयंकर अकाल का सामना करना पड़।
(ङ) राजा ने राज्य में क्या घोषणा करवाई और क्यों? (2)
उत्तर :
राजा ने राज्य में यह घोषणा करबाई कि “महाराज के आदेश से शाही भंडार-गृह हर ज्ञरूरतमंद के लिए खुला है। प्रत्येक जरूरतमंद एक बार में जितना अनाज उठा सके, ले जाए।” यह घोषणा इसलिए करवाई गई, क्योकि राज्य में भयंकर अकाल पड़ा था।
(च) बूढ़े आदमी ने थोड़ा-सा अनाज ही क्यों लिया था? कारण स्पष्ट करते हुए बताइए कि उस अजनबी व्यक्ति ने उस बूढ़े की सहायता कैसे की? (2)
उत्तर :
बूड़े आदमी ने थोड़ा-सा अनाज इसलिए लिया था, क्योंकि ज्यादा अनाज उठाना उनके लिए मुश्किल था। उस अजनबी व्यक्ति (महाराणा रणजीत सिंह) ने बूढ़े की गठरी में भरपूर अनाज भरकर गठरी को अपने कंधों पर रखकर उसके घर के द्वार तक पहुँचाकर सहायता की।
(छ) इस गद्यांश से क्या शिक्षा मिलती है? (2)
उत्तर :
इस गद्यांश से हमें शिक्षा मिलती है कि व्यक्ति पद में बड़ा होने से महान नहीं बनता, बल्कि अपने व्यवहार एवं कर्मों के द्वारा महान बनता है। जैसे महाराणा रणजीत सिंह ने अकाल के समय उचित निर्णय लेकर जनता को भूखे मरने से बचाया। साथ ही यह शिक्षा भी मिलती है कि व्यक्ति को किसी के आगे हाथ नहीं फैलाने चाहिए अर्थात् स्वावलंबी बनना चाहिए तथा स्वार्थपूर्ण जीवन नहीं जीना चाहिए।
प्रश्न 2.
निम्नलिखित पद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर निर्देशानुसार लिखिए। (8)
सुजन की थकन भूल जा देवता!
अभी तो पड़ी है धरा अधबनी,
अभी तो पलक में नहीं खिल सकी
नवल कल्पना की मधुर चाँदनी
अभी अधखिली ज्योत्स्ना की कली
नई जिंद्नगी की सुरभि में सनी
अभी तो पड़ी है धरा अधबनी,
अधूरी धरा पर नहीं है कहीं
अभी स्वर्ग की नींव का भी पता!
सृजन की थकन भूल जा देवता।
रुका तू गया, रुक जगत का सृजन
तिमिरमय नयन में डगर भूलकर
कहीं खो गई रोशनी की किरन
घने बादलों में कहीं सो गया
नई सृष्टि का सप्तरंगी सपन
रुका तू गया, रुक जगत का सृजन
अधूरे सृजन से निराशा भला
किसलिए; जब अधुरी स्वयं पूर्णता
सृजन की थकन भूल जा देवता!
प्रलय से निराशा तुझे हो गई
सिसकती हुई साँस की जालियों में
सबल प्राण की अर्चना खो गई
थके बाहुओं में अधूरी प्रलय
औ अधूरी सृजन योजना खो गई
प्रलय से निराशा तुझे हो गई
इसी ध्वंस में मूर्च्छिता हो कहीं
पड़ी हो, नई जिंदगी; क्या पता?
सुजन की थकन भूल जा देवता।
(क) कवि देवता को सृजन की थकान भूलने को क्यों कहता है? (1)
(i) क्योंकि देवता कभी थकते नहीं
(ii) क्योंकि धरती का पूर्ण निर्माण होने में अभी समय है
(iii) क्योंकि अधूरा कार्य नहीं छोड़ना चाहिए
(iv) क्योंकि धरती का निर्माण सही प्रकार से नहीं हो पाया है
उत्तर :
(ii) क्योंकि धरती का पूर्ण निर्माण होने में अभी समय है।
(ख) निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए (1)
1. सुजन अधूरा होने पर हमें निराश नहीं होना चाहिए।
2. नई जिदगी के विषय में कवि को जानकारी है।
3. स्वर्ग जैसी सुखद जिंदगी की नींव पड़ चुकी है। उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(i) केवल 1
(ii) केवल 2
(iii) 1 और 2
(iv) 2 और 3
उत्तर :
(i) केवल 1
(ग) सुमेलित कीजिए (1)
सूची I | सूची II |
A. देवता के रुकने का परिणाम | 1. धरा अभी अपूर्ण है |
B. स्वर्ग की नींब का पता अभी नहीं चल सकता | 2. जीवन की झंझाओं से जूझने को तत्पर |
C. कलाकार को कृतिपूर्ण करने के लिए | 3. जगत का सृजन रुक जाएगा |
कूट
A B C
(i) 2 1 3
(ii) 3 1 2
(iii) 1 2 3
(iv) 2 3 1
उत्तर :
(ii)
सूची I | सूची II |
A. देवता के रुकने का परिणाम | 3. जगत का सृजन रुक जाएगा |
B. स्वर्ग की नींब का पता अभी नहीं चल सकता | 1. धरा अभी अपूर्ण है |
C. कलाकार को कृतिपूर्ण करने के लिए | 2. जीवन की झंझाओं से जूझने को तत्पर |
(घ) कवि अधूरे सृजन से निराश न होने की बात कहकर क्या संकेत देना चाहते हैं? (1)
उत्तर :
कवि अधूरे सुजन से निराश न होने की बात कहकर यह संकेत देना चाहते हैं कि हे मानव! तू निराश मत हो, क्या पता इस निराशा में ही तुझे आशा की कोई किरण मिल जाए।
(ङ) कवि के अनुसार प्रलय से कलाकार को निराश क्यों नही होना चाहिए? (2)
उत्तर :
कवि के अनुसार, प्रलय से कलाकार को इसलिए निराश नहीं होना चाहिए, क्योंकि निराश होने पर कलाकार अपनी रचना को पूर्ण नहीं कर सकता। कलाकार को अपनी रचना को पूर्ण करने के लिए प्रतिपल कष्टों से जूझने के लिए तैयार रहना चाहिए। प्राणों में तभी जीवन का संचार होगा जब कलाकार बिना रुके अपने सृजन में निरंतर लगा रहेगा, क्योकि गति का नाम ही अमर जीवन है।
(च) स्वर्ग की नींव का पता किस प्रकार लग सकता है? (2)
उत्तर :
स्वर्ग की नींव का पता अभी नहीं चल सकता है, क्योंकि धरा अभी अपूर्ण है। अत: सृष्टि का सृजन भी अपूर्ण है। अत: हे थके हुए कलाकार! तुम्हें प्रतिपल सजग रहकर धरती को स्वर्ग में बदलने के लिए चलते रहना चाहिए। तभी धरती पर स्वर्ग की नींव का पता चल सकता है।
खंड ‘ख’
अभिव्यक्ति और माध्यम पाठ्यपुस्तक (22 अंक)
खंड ‘ख’ में अभिव्यक्ति और माध्यम से संबंधित वर्णनात्मक प्रश्न पूखे गए हैं, जिनके निर्धारित अंक प्रश्न के सामने अंकित हैं।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित 3 विषयों में से किसी 1 विषय पर लगभग 120 शब्दों में रचनात्मक लेख लिखिए। (6 × 1 = 6)
(क) स्वप्न में की गई दूसरे ग्रह की यात्रा का वर्णन
उत्तर :
स्वण में की गई दूसरे ग्रह की यात्रा का वर्णन एक दिन कक्षा में अध्यापक दूसरे म्रह के विष्य में चर्चां कर रहे थे। उन्होंने दूसरे ग्रह के विषय में सभी छात्रों के विचार जाने और अपने विचार भी प्रस्तुत किए। यह सब मुझे बहुत ही मनोरंजक लगा। विद्यालय से लौटते समय भी यही बाते मेरे मन में चल रही यीं। विद्यालय से घर लौरने के बाद मुझे नींद आ गई और मेरा मन पंख लगाकर स्वप्न लोक में घूमने लगा। स्वप्न में मैंने देखा कि मैं और मेरा मित्र मंगल ग्रह्र की यात्रा पर गए हैं। हम विमान में बैठकर अंतरिक्ष की ओर बढ़ रहे हैं। विमान से बाहर हमें अंधकार दिखाई़ दिया। कुछ समय बाद हमें भूख लगी, तो हमने कंप्यूटर में लगा बटन दबाया, जिससे हमें कैप्सूल मिला। हमने दो कैप्सूल पानी के साथ खा लिए और हमारी भूख शांत हो गई।
अब हमारा विमान मंगल ग्रह के धरातल पर उतरा। हमने अंतरिक्ष के सूट और हेलमेट. पहने हुए थे। शीष्र ही हम मंगल ग्रह के वातावरण के अनुकूल ढल गए। हमने आस-पास के क्षेत्र का भ्रमण किया। अचानक ही हमें एक विशाल आकृति दिखाई दी। उसका चेहरा सपाट और अद्भुत था। उसका कद बहुत लंबा था। पहले तो हम भयभीत हो गए, कितु बाद में उससे प्राप्त होने वाले संकेतों से हमें वह सही प्रवृत्ति का इंसान लगा। उसने हमें अपना घर दिखाया। उसका घर बहुत छोटाऔर उजाइ था। उसके घर में अन्य सदस्य भी थे, जो उससे भी लंबे व पतले चे।
हमने मंगल पर अनेक छोटी-छोटी पहाड़ियाँ देखीं, जिन पर पहले कभी न देखी हुईं सुंदर झाड़ियाँ, लताएँ ठगी हुई थीं। अब समय हो गया था कि हम वापस अपने विमान से पृथ्वी की ओर चलें। उसी समय मेरी नींद खुल गई। मेरी यह काल्पनिक यात्रा मेरे जीवन की सभी यात्राओं में सबसे अधिक सुखद रही। मैने यह निश्चय किया कि अब मैं मंगल ग्रह की तरह ही पृथ्वी को भी साफ़-स्वच्छ बनाने का प्रयास करूँगा।
(ख) यदि मै विद्यालय का प्रथानाचार्य होता
उत्तर :
यदि मैं विद्यालय का प्रधानाचार्यं होता
विद्यालय एक महत्त्वपूर्ण सामाजिक संस्था है, जहाँ विद्यार्थीं के चरित्र के साथ-साथ भविष्य का भी निर्माण होता है। शिक्षा प्राप्त करके विद्यार्थीं अफ़सर, लिपिक, प्रशासनिक अधिकारी, नेता, मंत्री, राज्यपाल या राष्ट्रपि आदि भी बन सकता है। विद्यार्थियों के जीवन निर्माण के लिए एक अच्छे अध्यापक की आवश्यकता होती है। उन्हें व्यवस्थित तथा उत्तम वातावरण देना प्रधानाचार्य का दायित्व होता है। विद्यार्थी अपने जीवन में आकाश में उडने, जल पर चलने एवं देश की रक्षा या समाज के विकास की कल्पना करता है, परंतु मेरी कल्पना थी-विद्यालय का प्रधानाचार्य बनने की। यदि मैं विद्यालय का प्रधानाचार्य होता, तो सबसे पहले भवनों की साफ़-सफ़ाई का निरीक्षण करके दिशा-निदेंश ज़ारी करता तथा स्वयं निरीक्षण करता। पुस्तकालय को समृद्धशाली बनाता। मैं विद्यार्थियों के सर्वौगीण विकास का हर संभव प्रयास करता। अनेक विषयों में वाद-विवाद, संगीत, चित्रकला आदि की प्रतियोगिताएँ कराता। प्रत्येक कक्षा को शैक्षिक भ्रमण पर ले जाता।
मैं शारीरिक शिक्षा के अध्यापक से मिलकर एक परामर्श समिति बनाता तथा तदनुरुप खेलकुद तथा व्यायाम अदि की व्यवस्था कराता। विद्यालय में खाली पड़ी ज़मीन पर पुष्प वाटिका लगवाता। खेल के मैदान पर घास लगवाकर उसे सुंदर बनवाता। विद्यार्थियों में विनय, नियम पालन, संयम, समयनिष्ठा तथा कर्त्तव्यनिष्ठा आदि सद्गुणों के विकास के लिए सदैव प्रयत्नशील रहता। मैं स्वयं अनुकरणीय आचरण करते हुए अध्यापकों एंवं विद्यार्थियों के बीच आदर्श प्रस्तुत करता। कर्मंचारियों तथा अध्यापकों को अच्छे कार्य हेतु पारितोषिक प्रदान करते हुए विद्यार्थियों को भी पुरस्कार प्रदान करता।
इस प्रकार, यदि में विद्यालय का प्रधानाचार्य होता, तो अपने सभी कर्त्तव्यों का भली-भाँति निवाँह करता।
(ग) टेलीविज़न पर देखे गए प्रथम धारावाहिक का वर्णन
उत्तर :
टेलीविज़न पर देखे गए प्रथम धारावाहिक का वर्णन ठीक मेरे सामने एक टेबल पर टेलीविजन रखा हुआ है। टेबल पर रसे हुए टेलीवित्ञन को देखते ही मेरे बचपन की यादें ताज़ा हो गई, जब्न इसी टेलीविज्ञन पर रामायण, महाभारत, चंद्रकांता, जंगल बुक, शक्तिमान आदि धारावाहिक आते थे। इस टेलीविजन से कई स्मृतियाँ एकसाथ जुड़ी हुई हैं। मुझे याद आ रहा है -कि मैने जो सबसे पहला धारावाहिक टेलीविजन पर देखा था वह था-श्शक्तिमान।
बच्चों में लोकग्रिय इस धारावाहिक का जब प्रसारण होता था, तो बाहर सड़कों पर शायद ही कोई बच्चा खेलता हुआ नज़र आता था। सभी बच्चे अपने-अपने घरों में बैठकर ‘शक्तिमान’ धारावाहिक को देखते थे। इसकी लोकम्रियता अपने चरम पर थी। इस धारावाहिक में किरदारों द्वारा बोले गए संवाद बच्चे-बच्चे की जुबान पर चड़ गए थे; जैसे-अँधेरा कायम रहे, गंगाधर ही शक्तिमान है आदि। हालॉकि मुख्य पात्र द्वारा दिखाए गए स्टंट की कॉपी करने से उस समय में बहुत-से बच्चों की जान तक चली गई थी। धारावाहिक की शुरुआत में यह घोषणा होती धी कि ‘इस धारावाहिक के सभी पात्र एवं घटनाएँ काल्पनिक हैं, इनका वास्तविक जीवन से कोई संबंध नहीं है। सभी स्टंट प्रशिक्षक की निगरानी में होते हैं। अतः बच्चे इसे घर पर न दोहराएँ।” इस चेतावनी के पश्चात् भी बच्चे इसे दोहराते हुए काल के गाल में समा गए थे।
प्रश्न 4.
निम्नलिखित प्रश्नों को ध्यानपूर्वक पदिए और किन्हीं 4 प्रश्नों के उत्तर लगभग 40 शब्दों में लिखिए। (2 × 4 = 8)
(क) कहानी में द्वंद्व के महत्त्व पर प्रकाश डालिए। (2)
उत्तर :
कहानी में दूंद्व के तत्त्व का होना आवश्यक है। दंद्व कथानक को आगे बढ़ाता है तथा कहानी में रोचकता बनाए रखता है। दंद्ं दो विरोधी तत्त्वों का टकराव या किसी की खोज में आने वाली बाधाओं या अंतद्वद्व के कारण पैदा होता है। कहानी की यह शर्त है कि वह नाटकीय ढंग से अपने उद्देश्य को पूर्ण करते हुए समाप्त हो जाए, यह द्वंद्व के कारण ही पूर्ण होता है। कहानीकार अपने कथानक में द्वंद्व के बिंदुओं को जितना स्पष्ट रखेगा कहानी भी उतनी ही सफलता से आगे बढ़ेगी। अत: स्पष्ट है कि कहानी में द्वंद्व का अत्यधिक महत्त्व है।
(ख) नाटक किसे कहते हैं? भारतीय परंपरा में नाटक को क्या संज्ञा दी गई है? (2)
उत्तर :
नाटक साहित्य की वह सवोंत्तम विधा है, जिसे पढ़ने, सुनने के साथ-साथ देखा भी जा सकता है। नाटक लिखित रूप में एक आयामी होता है। मंचन के पश्चात् ही उसमें संपूर्णता आती है। नाटक शब्द की उत्पत्ति ‘नट्’ धातु से मानी जाती है। ‘नट्’ शब्द का अर्थ अभिनय है, जो अभिनेता से जुडा हुआ है। इसे ‘रूपक’ भी कहा जाता है। भारतीय परंपरा में नाटक को दृश्य काव्य की संज्ञा दी गई है।
(ग) ‘नए तथा अप्रत्याशित विषयों पर लेखन का संबंध रचनात्मकता से है’ कैसे? स्पष्ट कीजिए। (2)
उत्तर :
नए तथा अप्रत्याशित विक्यों पर लेखन व्यक्ति की मौलिक अभिव्यक्ति है। वह व्यक्ति की रचनात्मकता को व्यक्त करती है। अचानक सामने आए हुए विषय के बारे में मस्तिष्क में विचार आना तथा भाषा के माध्यम से उन विचारों को अभिव्यक्त करना ही रचनात्मकता है। इसमें व्यक्ति आत्मनिर्भर होकर लिखता है।
किसी अन्य व्यक्ति के विचारों की नकल करके नए विषयों पर लेख नहीं लिखा जा सकता। परंपरागत विषयों पर लेखन करते समय यह तो संभव है कि व्यक्ति दूसरे के विचारों की नकल कर ले, परंतु नए विषयों पर लेखन करते समय यह संभव नहीं है। अत: नए विषयों पर लेखन करना व्यक्ति की स्वयं की रचनात्मकता है।
(घ) मुद्रित माध्यमों की विशेषताएँ लिखिए। (2)
उत्तर :
मुद्रित माध्यमों के अंतर्गत अखबार, पत्रिकाएँ अदि आते हैं। इनका हमारे दैनिक जीवन में काफी महत्त्व है। इनकी महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
1. मुद्रित माध्यमों में स्थायित्व होता है।
2. आप इन्हें अपनी इच्छानुसार पढ सकते हैं।
3. आप इन्हें लंबे समय तक प्रयोग में ला सकते हैं।
4. यह माध्यम लिखित भाषा का विस्तार है।
5. यह चिंतन, विचार और विश्लेषण का माध्यम है।
(ङ) इंटरनेट पत्रकारिता से आप क्या समझते हैं? समझाकर लिखिए। (2)
उत्तर :
इंटरनेट पर समाचार-पत्र का प्रकाश़न अथवा खबरों का आदान-प्रदान ही वास्तव में इंटरनेट पत्रकारिता है। इंटरनेट परहम किसी भी रूप में समाचारों, लेखों, चर्चा-परिचर्चा के साथ वाद-विवादों, फीचर आदि का कार्य कर सकते हैं, इसे ही इंटरनेट पत्रकारिता कहते है। इसी पत्रकारिता को वेब पत्रकारिता भी कहा जाता है।
प्रश्न 5.
निम्नलिखित प्रश्नों को ध्यानपूर्वक पढिए और किन्हीं 2 प्रश्नों के उत्तर लगभग 80 शब्दों में लिखिए। (4 × 2 = 8)
(क) रेडियो के संदर्भ में श्रव्य माध्यमों की दो सीमाएँ बताइए तथा किसी एक सीमा से पार पाने का उपाय भी बताइए। (4)
उत्तर :
रेडियो संचार का एक तरफा माध्यम है। इसलिए, संदेशों के संबंध में कोई प्रतिक्रिया प्राप्त नहीं की जा सकती है, क्योंकि श्रोता का ध्यान केवल ध्वनि पर होता है, इसलिए रेडियो के माध्यम से संचारित संदेश, ‘. ग्ल उन लोगों तक पहुँच सकते है जो ध्यानपूर्वक और बुद्धिमानो स सुनते हैं। रेडियो से संदेश प्राप्त करने के लिए बहुत चौकस रहना पड़ता है अन्यथा संदेश का कुछ्छ एक हिस्सा ही याद रहता है।
रेडियो में टेलीविजन द्वारा प्रदान की गई चित्रात्मक गुणवत्ता का अभाव होता है। प्रतिक्रिया तंत्र की कमी को निम्नलिखित तरीके से दूर किया जा सकता है
1. नेटवर्किंग में रेडियो के उपयोग को मजबूत करने के लिए संस्थागत और सामुदायिक स्तर पर श्रोता मंच स्थापित किए जा सकते हैं, जो लोगों की विभिन्न कार्यक्रमों पर प्रतिक्रियाएँ लेकर श्रोताओं पर अनुसंधान के लिए डाटा प्रदान कर सकते हैं और प्रोग्रामिंग को और अधिक सार्थक बना सकते हैं।
2. प्रतिक्रियाओं का विश्लेषण करने और क्षेत्र आधारित विकास कार्यक्रमों के उत्पादन में सहायता करने के लिए विशेषजों को रेडियो स्टेशनों से संलग्न किया जा सकता है।
(ख) फीचर लेखन के तत्त्व कौन-से हैं? (4)
उत्तर :
फीचर एक ऐसा सर्जनात्मक व स्वानुभूतिमूलक लेख है, जिसका गठन किसी घटना, स्थिति का जीवन के किसी पक्ष के संबंध में पाठ को मूलत: जानकारी देने एवं उसका मनोरंजन करने के उद्देश्य से किया जाता है। फीचर लेखन के निम्नलिखित तत्त्व होते हैं
(i) कल्पना-विषय का निर्धारण कर लेने के पश्चात् फीचर लेखक विषयानुरूप कल्पनाएँ करता है। कल्पना के द्वारा कुछ नया एवं मौलिक प्रस्तुत करने की कोशिश की जाती है।
(ii) तथ्य-चूँकि तथ्यों के आधार पर ही बात कही जाती है, इसलिए तथ्यों की प्रस्तुति मनोरंजक, सरस एवं रोचक होनी चाहिए। फीचर में सत्य एवं तथ्य के साथ रचनात्मकता का विशिष्ट समावेश होता है।
(iii) लेखन कला-वास्तव में फीचर चिंतन का तथ्यात्मक एवं रचनात्मक प्रस्तुतीकरण है। इसमें सरल, संक्षिप्त, सरस एवं रोचक शब्दों का प्रभावी ढंग से प्रयोग किया जाता है। अपनापन लिए हुए इसकी भाषा में मुहावरों, लोकोक्तियों एवं सूक्तियों का सही एवं सार्थक प्रयोग किया जाना चाहिए।
(ग) रेडियो समाचार की संरचना कैसी होती है? (4)
उत्तर :
रेडियो और अखबारों के समाचार लेखन में भिन्नता होती है। इसकी प्रकृति अलग-अलग होती है। रेडियो समाचार की संरचना टी.वी. व अखबारों की तरह ही उल्टा (इंवटेंड) पिरामिड शैली में होती है। इस शैली में समाचार के महत्त्वपूर्ण तथ्य को सबसे पहले लिखते हैं तथा बाद में घटते हुए क्रम में अन्य तथ्यों या सूचनाओं को लिखा वं बताया जाता है।
इस शैली में किसी घटना, विचार या समस्या का वर्णन समयानुसार न करके सबसे महत्वपपूर्ण तथ्य/सूचना से शुरू होता है। अत: इस शैली में क्लाइमेक्स अंत में नहीं, बल्कि आरंभ में ही आ जाता है। उल्टा पिरामिड शैली में कोई निष्कर्ष नहीं होता।
खंड ‘ग’
पाठ्यपुस्तक आरोहं भाग-2 एवं वितान भाग-2 (40 अंक)
खंड ‘ग’ में पाठ्यपुस्तक आरोह भाग- 2 से गद्य व पद्य खंड से बहुविकल्पीय प्रश्न, अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न व लघूत्तरात्मक प्रश्न तथा वितान भाग-2 से लघूत्तरात्मक प्रश्न पूछ़े गए हैं, जिनके निर्धारित अंक प्रश्न के सामने अंकित हैं।
प्रश्न 6.
निम्नलिखित पद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर सर्वाधिक उपयुक्त उत्तर वाले विकल्य को चुनकर लिखिए।
बात सीधी थी पर एक बार
भाषा के चक्कर में
जरा टेढ़ी फँस गई।
उसे पाने की कोशिश में
भाषा को उलटा-पलटा तोड़ा-मरोड़ा
घुमाया-फिराया
कि बात या तो बन
या फिर भाषा से बाहर आए
लेकिन इससे भाषा के साथ-साथ
बात और भी पेचीदा होती चली गई।
(क) सीधी-सी बात किसके चक्कर में फैंस गई? (1)
(i) छंद के
(ii) मुहावरों के
(iii) भाषा के
(iv) कहानी के
उत्तर :
(iii) भाषा के
(ख) बात बाहर निकलने की अपेक्षा कैसी हो गई? (1)
(i) अनर्गल
(ii) सहज
(iii) व्यर्थ
(iv) पेचीदा
उत्तर :
(iv) पेचीदा
(ग) कथन (A) कवि ने भाषा को सुलझाने की बहुत कोशिश की। (1)
कारण (R) घुमावदार भाषा का सहारा लेने पर बात अधिक उलझ जाती है। कूट
(i) कथन (A) सही है, किंतु कारण (R) गलत है।
(ii) कथन (A) गलत है, कितु कारण (R) सही है।
(iii) कथन (A) और कारण (R) दोनों सही हैं, लेकिन कारण (R), कथन (A) की सही व्याख्या नहीं करता है।
(iv) कथन (A) और कारण (R) दोनों सही हैं तथा कारण (R), कथन (A) की सही व्याख्या करता है।
उत्तर :
(iii) कथन (A) और कारण (R) दोनों सही है, लेकिन कारण (R), कथन (A) की सही व्याख्या नहीं करता है।
(घ) भाषा के साथ तोड़-मरोड़ करने का क्या परिणाम होता है? (1)
(i) भाषा व सरलता का गुण विकसित होता है
(ii) भावों की अभिव्यक्ति ठीक से स्पष्ट नहीं हो पाती
(iii) भाषा स्पष्ट रूप से भावों को स्पष्ट कर पाती है
(iv) भावों व शब्दों में परस्पर सुगमता आती है
उत्तर :
(ii) भावों की अभिव्यक्ति ठीक से स्पष्ट नहीं हो पाती
(ङ) प्रस्तुत काव्यांश का केंद्रीय भाव क्या है? (1)
(i) भाषा के रूपों को स्पष्ट करना
(ii) भाषा व भावों में भेद प्रकट करना
(iii) भाषा की सहजता पर जोर देना
(iv) भावों की सुगमतापूर्वक व्याख्या करना
उत्तर :
(iii) भाषा की सहजता पर जोर देना
प्रश्न 7.
निम्नलिखित प्रश्नों को ध्यानपूर्वक पढ़कर दिए गए 3 प्रश्नों में से किन्हीं 2 प्रश्नों के लगभग 60 शब्दों में उत्तर लिखिए। (3 × 2 = 6)
(क) एक अपाहिज व्यक्ति का साक्षात्कार लेना किस उद्देश्य से संभव है? स्पष्ट कीजिए। (3)
उत्तर :
एक अपाहिज व्यक्ति का साक्षात्कार लेना टीवी चैनल द्वारा अपने कार्यक्रम को आकर्षक एवं बिकाऊ बनाने के उद्देश्य से संभव है। टेलीविजन के चैनल अपनी लोकप्रियता बढ़ाने के लिए तथाकथित सामाजिक सरोकार से संबंधित कार्यक्रम दिखाते हैं। कविता में ऐसे ही एक कार्यक्रम के दौरान अपाहिज व्यक्ति का साक्षात्कार लेने की प्रक्रिया को सामने रखा गया है। इस साक्षात्कार का मूल उद्देश्य सामाजिक कल्याण अथवा लोगों में करुणा की भावना जगाना कदापि नही है, बल्कि एक ऐसी प्रक्रिया तक साक्षात्कार को ले जाना है, जहाँ दर्शकों की भरपूर संवेदना प्राप्त कर चैनल की लोकत्रियता शिखर तक पहुँचाई जा सके।
(ख) सूर्योदय से पहले आकाश में क्या-क्या परिवर्तन होते हैं? उषा कविता के आधार पर बताइए। (3)
उत्तर :
सूयोंदय से पहले आकाश की छवि क्षण-क्षण बदलती रहती है। इस परिवर्तन को चित्रित करने तथा उसकी गतिशीलता को पकड़ने के लिए कवि ने विविध प्रतीकों तथा बिबों का सहारा लिया है। प्रात:काल में अंधकार के हटने तथा प्रकाश के फैलने की प्रक्रिया को ग्रामीण जन-जीवन की गतिविधियों से जोड़ा गया है। उषाकाल के दौरान आकाश में नमी मौडूदु होती है। कवि ने इसे ‘राख से लीपा हुआ चौका’ जैसे बिब के माध्यम से दर्शाया है। भोर के नभ का नीला रंग तथा राख से लीपे चौके में दृश्य-साम्य है। कवि ने सूर्योंदय से पहले आकाश को काले सिल तथा स्लेट के रूप में भी चित्रित किया है। सूर्य की छिटकती लालिमा, काले सिल को लाल केसर से धुले जाने तथा स्लेट पर लाल खड़िया, चाक मल देने का बिंब, परिवेश में हो रहे परिवर्तन को चित्रित करते हैं।
(ग) फिराक की रबाइयों में उभरे घरेलू जीवन के बिबों का सौदर्य ‘रुबाइयाँ’ कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए। (3)
उत्तर :
फिराक की रुबाइयों में घरेलू जीवन के अत्यंत सुंदर चित्र उपस्थित हैं। इनमें चाँद का टुकड़ा, गोदभरी व बच्चे को हवा में झुलाती माँ, स्नान-जल, कंघी, वस्त्र, चीनी'(शक्कर) के बने खिलौने, पुते-सजे घर, लावे, घरौंदे, दीये, दर्पण, बादल, बिजली और राखी जैसे दृश्य बिबों की अधिकता है, जबकि आवश्यकता पड़ने पर खिलखिलाते बच्चे की हँसी जैसे श्रव्य बिंच का भी प्रयोग बड़ी सहजता के साथ किया गया है। ये सारे बिब बडे सार्थक और जीवंत बनकर कविता में उभरे हैं।
प्रश्न 8.
निम्नलिखित प्रश्नों को ध्यानपूर्वक पद़कर दिए गए 3 प्रश्नों में से किन्हीं 2 प्रश्नों के लगभग 40 शब्दों में उत्तर लिखिए। (2 × 2 = 4)
(क) लक्ष्मण के वियोग का संभावित दुःख राम किस प्रकार प्रकट करते है? (2)
उत्तर :
लक्ष्मण के वियोग का संभावित दु:ख प्रकट करते हुए राम कहते है कि हे भाई! मेरा हूदय अत्यंत कठोर एवं निष्ठुर है, जो तुम्हारी मृत्यु का शोक और अपने भाई के प्राणों की बलि लेने का अपयश, दोनों ही सहन करेगा। मैं वापस लौटकर अयोध्या जाने पर तुम्हारी माता को क्या उत्तर दूँगा, यह तुम उठकर मुझे क्यों नहीं समझाते।
(ख) आकाश में उड़ती हुई पतंग बच्चों की बालसुलभ इच्छाओं का प्रतीक है, कैसे? स्पष्ट कीजिए। (2)
उत्तर :
आकाश में उड़ती हुई पतंग बच्चों के सपनों, उनके अरमानों एवं आकांक्षाओं का प्रतीक है। जिस प्रकार पतंग उन्मुक्त आकाश में स्वच्छंद रूप से उड़ती हुईं आगे बड़ती जाती है, उसी प्रकार बच्चे भी स्वयं उड़ना चाहते हैं। उनकी आकांक्षाएँ, उनके सपने भी ऊँचाइयों को स्पर्श करते हैं। वे छतों पर उन्मुक्त रूप से दौड़े हैं, परंतु उनकी नजरें आसमान में उडती हुई पतंगों पर होती हैं। उन्हें लगता है कि वे भी पतंगों के साथ-साथ उड रहे हों। वास्तव में, आकाश में उड़ती हुई पतंगें बच्चों के कोमल मन और उनकी उमंग भरी इच्छाओं का प्रतीक हैं।
(ग) ‘कविता के बहाने’ में कवि के अनुसार कविता क्या है? (2)
उत्तर :
‘कविता के बहाने’ में कवि के अनुसार, कविता बच्चों के खंल की तरह है। जैसे बच्चा खिलौनों से खेलता है, वैसे ही कविता शब्दों से खेलती है। कविता देश-काल की सीमा में बँधकर नहीं रहती। वह तो दुनिया को एक कर देने की चेतना से परिपूर्ण होती है। बच्चों के खेल में भी इसी प्रकार का भाव पाया जाता है।
प्रश्न 9.
निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनकर लिखिए। (1 × 5 = 5)
मेरा आदर्श समाज स्वतंत्रता, समता, भ्रातृत्व पर आधारित होगा। क्या यह ठीक नहीं है, भ्रातृत्व अर्थात् भाईचारे में किसी को क्या आपत्ति हो सकती है? किसी भी आदर्श समाज में इतनी गतिशीलता होनी चाहिए, जिससे कोई भी वांछित परिवर्तन समाज के एक छोर से दूसरे तक संचारित हो सके। ऐसे समाज के बहुविध हितों में सबका भाग होना चाहिए तथा सबको उनकी रक्षा के प्रति सजग रहना चाहिए। सामाजिक जीवन में अबाध संपर्क के अनेक साधन व अवसर उपलब्ध रहने चाहिए। तात्पर्य यह है कि दूध और पानी के मिश्रण की तरह भाईचारे का यही वास्त़विक रूप है और इसी का दूसरा नाम लोकतंत्र है, क्योंकि लोकतंत्र केवल शासन की एक पद्धति ही नहीं है, लोकतंत्र मूलतः सामूहिक जीवनचर्या की एक रीति तथा समाज के सम्मिलित अनुभवों के आदान-प्रदान का नाम है। इनमें यह आवश्यक है कि अपने साथियों के प्रति श्रद्धा व सम्मान का भाव हो।
(क) लेखक के अनुसार एक आदर्श समाज के लिए क्या अपेक्षित है? (1)
(i) समानता
(ii) स्वतंत्रता
(iii) गतिशीलता
(iv) लोकतंत्र
उत्तर :
(iii) गतिशीलता
(ख) एक आदर्श समाज में सबको किनकी रक्षा के प्रति सजग रहना चाहिए? (1)
(i) दलितों की
(ii) स्वयं की
(iii) लोकतंत्र की
(iv) सरकार की
उत्तर :
(ii) स्वयं की
(ग) कथन (A) आदर्श समाज लोकतंत्र का अभिन्न अंग होता है। (1)
कारण (R) लोकतंत्र में सामाजिक व्यवस्था में आपसी मेल-जोल के अनेक अवसर उपलब्ध रहते हैं। कूट
(i) कथन (A) और कारण (R) दोनों सही हैं तथा कारण (R), कथन (A) की सही व्याख्या करता है।
(ii) कथन (A) गलत है, किंतु कारण (R) सही है।
(iii) कथन (A) तथा कारण (R) दोनों गलत हैं।
(iv) कथन (A) और कारण (R) दोनों सही हैं, लेकिन कारण (R), कथन (A) की सही व्याख्या नहीं करता है।
उत्तर :
(i) कथन (A) और कारण (R) दोनों सही हैं तथा कारण (R) कथन (A) की सही व्याख्या करता है।
(घ) सुमेलित कीजिए (1)
सूची I | सूर्ची II |
A. भाईचारे के वास्तविक रुप का दूसरा नाम | 1. हितकारी और कल्याणकारी कार्य सम्पन्न |
B. आदर्श समाज | 2. लोकतंत्र |
C. सहभागिता से समाज के | 3. स्वतंत्रता, समानता, भाईचारे पर आधारित |
कूट
A B C
(i) 2 3 1
(ii) 3 2 1
(iii) 1 2 3
(iv) 2 1 3
उत्तर :
(i)
सूची I | सूर्ची II |
A. भाईचारे के वास्तविक रुप का दूसरा नाम | 2. लोकतंत्र |
B. आदर्श समाज | 3. स्वतंत्रता, समानता, भाईचारे पर आधारित |
C. सहभागिता से समाज के | 1. हितकारी और कल्याणकारी कार्य सम्पन्न |
(ङ) निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए (1)
1. आदर्श समाज में बहुत अधिक गतिशीलता असंभव है।
2. लोकतंत्र में साथियों के प्रति श्रद्धा व सम्मान का भाव होना चाहिए।
3. लोकतंत्र में उच्च कर्ग का आरक्षण होना चाहिए। उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं?
(i) केवल 1
(ii) केवल 2
(iii) 1 और 2
(iv) 1 और 3
उत्तर :
(ii) केवल 2
प्रश्न 10.
निम्नलिखित प्रश्नों को ध्यानपूर्वक पद़कर दिए गए 3 प्रश्नों में से किन्हीं 2 प्रश्नों के लगभग 60 शब्दों में उत्तर लिखिए। (3 × 2 = 6)
(क) लेखक ‘शिरीष के फूल’ पाठ में किस बात से विस्मय-विमूढ़ हो जाता है? (3)
उत्तर :
प्रस्तुत पाठ में लेखक ने कालिदास का स्मरण ‘शिरीष के फूल’ की महिमा के गुण गाने के लिए ही किया है। लेखक कालिदास द्वारा रंचित ‘अभिज्ञानशाकुन्तलम्’ के एक-एक श्लोक को देखकर आश्चर्यचकित मुग्ध और विस्मय-विमूढ़ हो जाता है। शिरीष के फूल प्रसंग में एक उदाहरण लेना प्रासंगिक होगा वह है-शकुंतला बहुत सुंदर थी।
शकुंतला कालिदास के सुंदर हदय से निकली थी। विधाता की ओर से भी कोई कंजूसी नहीं की गई थी और कवि की ओर से भी नहीं। राजा दुष्यंत भी अच्छे भले प्रेमी चे। उन्होंने शकुंतला का एक चित्र बनाया था, लेकिन उनका मन यह सोचकर दु;खी हो जाता था कि कुछ कमी है चित्र में। बाद में उन्हें समझ़ आया कि शकुंतला के कानों में शिरीष का फूल देना वे भूल गए हैं, जिसके केसर गंडस्थल तक लटके हुए थे और रह गया है शरच्चंद्र की किरणों के समान कोमल और शुप्र-मृणाल का हार। यही बात लेखक को विस्मय-विमूढ़ करती है।
(ख) ‘पहलवान की ढोलक’ पाठ में राजा के द्वारा ‘लुट्टन सिंह’ पुकारे जाने पर किस-किसने आपत्ति की और क्यों? तब राजा ने क्या किया? (3)
उत्तर :
श्यामनगर के दंगल में जब लुट्टन ने उस क्षेत्र के प्रसिद्ध पहलवान चाँद सिंह को परास्त कर दिया, तब राजा साहब ने उसे सम्मान देते हुए लुट्टन सिंह कहकर पुकारा। इस पर राज-पंडितों ने आपर्वि व्यक्त की, क्योंकि लुट्टन उच्च जाति या कुल का सदस्य नहीं था, जिसे क्षत्रियों की उपाधि ‘सिंह’ उपनाम से पुकारा जाए। मैनेजर साहब, जो स्वर्य क्षत्रिय थे, ने तो वहाँ तक कह दिया कि यह तो सरासर अन्याय है। ग़जा ने यह कहकर उनका प्रतिकार किया कि उसने (लुट्टन ने) क्षत्रिय का काम किया है। अत: उसे सिंह की उपाधि देना उचित है।
(ग) ‘बाज़ार दर्शन’ निबंध उपभोक्तावाद एवं बाज़ारवाद की अंतर्वस्तु को समझने में बेजोइ है। उदाहरण देकर इस कथन पर अपने विचार प्रस्तुत कीजिए। (3)
उत्तर :
‘बाजार दर्शन’ निबंध में उपभोक्तावाद और बाजारवाद की अंतर्वस्तु को बेहतर ढंग से स्पष्ट किया गया है। बाज़ार में दुकानदार किसी भी प्रकार से अपना सामान अधिक मात्रा में मनचाहे दाम पर बेचना चाहते हैं। वे ग्राहक को तरह-तरह से ललचाते हैं। ग्राहक बाजार में अनेक प्रकार की आकर्षक वस्तुएँ देखकर आकृष्ट हो जाता है और आवश्यकता न होने पर भी अनेक वस्तुएँ खरीद लेता है।
लेखक के शब्दों में, “बाज्ञार है कि शैतान का जाल है? ऐसा सजा-सजाकर माल रखते हैं कि बेहया हो, जो न फैसे।” लेखक बाज़ारवाद को स्पष्ट करते हुए कहता है- ‘ऊँचे बाज्ञार का आमंत्रण मूक होता है और उससे चाह जगती है। चाह मतलब इच्छा और यहाँ इसका अर्थ हुआ अभाव। चौक बाजार में खडे होकर आदमी को लगने लगता है कि स्वयं उसके पास चीजे पर्याप्त मात्रा में नहीं हैं, और चाहिए, और चाहिए।”
प्रश्न 11.
निम्नलिखित प्रश्नों को ध्यानपूर्वक पढ़कर दिए गए 3 प्रश्नों में से किन्हीं 2 प्रश्नों के लगभग 40 शब्दों में उत्तर लिखिए। (2 × 2 = 4)
(क) ‘भक्तिन वाक्पटुता में बहुत आगे थी’ पाठ के आधार पर उदाहरण देकर पुष्टि कीजिए। (2)
उत्तर :
‘भक्तिन वाक्पटुता में बहुत आगे थी’-इसे पाठ में दिए गए इस उदाहरण के आधार पर प्रमाणित किया आ सकता है कि वह जिस बात को मानती थी, उसे पूरी शक्ति से कहती थी। जब उससे पूछ्छा गया कि वह घर में इधर-उधर रखे पैसों को मटकी में क्यों छालती है? यह तो चोरी है, तो इसका प्रत्युत्तर देते हुए भक्तिन ने कहा कि यह तो पैसा सँभालकर रखना है। इसके लिए वह तर्क करने को भी तैयार है।
इसी प्रकार, वह अपने केश सुंडाने को लेकर भी शास्त्रों का हवाला देती है। वह पढ़ाई-लिखाई से बचने के लिए भी अचूक तर्क देती है कि “हमारी मालकिन रात-दिन किताबों में गड़ी रहती हैं। अब मैं भी पढ़ने लगूँ, तो घर-गृहस्यी कौन देखेगा?” इस प्रकार कहा जा सकता है कि भक्तिन वाक्पदुता में बहुत आगे थी।
(ख) ‘कैसी निर्मम बर्बादी है पानी की’ काले मेघा पानी दे पाठ के आधार पर इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए। (2)
उत्तर :
‘कैसी निर्मम बर्बादी है पानी की’ काले मेधा पानी दे पाठ के आधार पर इस कथन का आशय यह है कि पानी की कमी होने पर भी इंदर सेना के लङकों की टोली पर बाल्टी भर-भरकर पानी फेंकना पानी की बर्बदी है। जहाँ एक ओर पानी की इतनी कमी है, वहीं लोग बड़ी कठिनाई से इकट्ठा किया हुआ पानी उन लड़कों पर फेककर बर्वाद कर देते हैं, जबकि यह पानी उन्हें अपने उपयोम के लिए रखना चहिए। यह मात्र एक अंधविश्वास है कि उन पर पानी फैंकने से इंद्र द्वेव प्रसन्न होकर वर्षा करेंगे।
(ग) जाति-प्रथा के पोषक लोग क्या स्वीकार करने को तैयार हैं, इसके कारण लोगों में काम के प्रति अरुचि क्यों उत्पन्न हो गई? (2)
उत्तर :
जाति-प्रथा के पोषक लोग यह स्वीकार करने को तैयार हैं कि व्यक्ति को जीवन, शरीर तथा संपत्ति की सुरक्षा तथा अधिकार की स्वतंत्रता मिलनी चाहिए, परंतु वे मनुष्य की क्षमता के प्रभावशाली उपयोग की स्वतंत्रता की छूट देने के लिए तैयार नहीं हैं। इसके कारण व्यक्ति विपरीत दशाओं में भी अपना व्यवसाय नहीं बदल सकता। इस कारण लोगों में काम के प्रति अरचि उत्पन्न हो गई है तथा भारत में जाति-प्रथा काम के प्रति अरुचि उत्पन्न होने का एक मुख्य कारण बन गई।
पूरक पाठ्यपुस्तक वितान भाग-2
प्रश्न 12.
निम्नलिखित प्रश्नों को ध्यानपूर्वक पढ़कर दिए गए 3 प्रश्नों में से किन्हीं 2 प्रश्नों के लगभग 100 शब्दों में उत्तर लिखिए। (5 × 2 = 10)
(क) यशोधर बाबू को ऐसा क्यों लगता है कि उनका बड़ा बेटा भूषण अपने पैसों के बारे में घर में कुछ ज़्यादा ही चर्चा करता है? (5)
उत्तर :
यशोधर बाबू के बड़े बेटे भूषण का वेतन ₹ 1500 प्रतिमाह है। वह अन्य युवकों की तरह जल्दी-से-जल्दी अमीर बनना चाहता है।
वह घर में किसी-न-किसी काम के बहाने अपने पैसों की बात बोल ही देता है; जैसे- नया गाउन मैं लाया हूँ या घर में नौकर रख लो, मैं उसका वेतन दे दूँगा इत्यादि। पंत जी चाहते हैं कि उनका बेटा अपना वेतन उन्हें लाकर दे या उनके साथ ज्वॉइंट एकाडंट खुलवा ले, परंतु बेटा ऐसा नहीं करता है। वह अपने ढंग से अपना वेतन घर में खर्च कर रहा है। वह घर में सोफा, डनलप वाला डबल बैड, सिंगार मेज, टी.वी., फ्रिज आदि ला रहा है, लेकिन समय-समय पर सभी चीजों पर अपना एकाधिकार भी जता देता है। इसीलिए यशोधर बाबू को लगता है कि उनका बड़ा बेटा भूषण अपने पैसों के बारे में कुछ ज़्यादा ही चर्चा करता है और यह उन्हें अच्छा नहीं लगता।
(ख) लेखक ने सिंधु घाटी सभ्यता को इतिहास से भी पार की सभ्यता क्यों कहा है? (5)
उत्तर :
लेखक ने सिंधु घाटी सभ्यता को इतिहास से भी पार की सभ्यता कहा है, क्योंकि सिंधु घाटी सभ्यता कई मामलों में हमारी आज की दैनिक सभ्यता से भी ज्यादा उन्नत और अनुशासित थी। इस सभ्यता को लोगों के हितों के अनुरूप विकसित किया गया था। इस सुभ्यता से हम उनके विकास को देख सकते हैं। यहाँ किले अवशेषों, खंडहरों और टूटी-फूटी सीढ़ियों से पता चलता है कि ये व्यवस्था कितनी अनुशासित और उन्नत थी। अवश्य ही ये सभ्यता उस समय सबसे उन्नत सभ्यता रही होगी। इस सभ्यता से मिले अवशेषों से हम उस समय के सामाजिक जीवन के बारे में काफी कुछ जान सकते हैं। ये ऐतिहासिक अवशेष हमारे लिए अनमोल हैं। लेखक ने इस सम्यता को दुनिया की छत कहा है। ऐसा लेखक ने इसलिए कहा क्योंकि इस सभ्यता को देखकर पता चलता है कि हजारों वर्ष पहले भी मानव समाज इतना अधिक विकसित था, जो अकल्पनीय है। इसलिए लेखक ने इस सभ्यता को इतिहास नहीं बल्कि इतिहास से पार की सभ्यता कहा है।
(ग) ‘जूझ’ कहानी में चित्रित ग्रामीण जीवन का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए। (5)
उत्तर :
‘जूझ’ कहानी एक ग्रामीण क्षेत्र की कहानी है, जिसमे लेखक ने ग्रामीण परिवेश की संपूर्ण घटनाओं, वहाँ के लोगों के आचार-विचार, रहन-सहन, भाषा, उनकी मान्यताओं, शिक्षा के प्रति उनकी विचारधारा इत्यादि को लोकभाषा के शब्दों का प्रयोग करते हुए अत्यंत रोचकता के साथ प्रस्तुत किया है।
किस प्रकार लेखक के पिता खेती को शिक्षा से अधिक महत्त्व देकर स्वर्यं तो गाँव में घूमते-फिरते हैं और लेखक से खेती-बाइ़ का सारा काम करवाते हैं। ग्रामीण संस्कृति के अनुसार, गाँव में कुछ लोग प्रभावशाली होते हैं, जिनकी बात गाँव में सभी मानते हैं, उन्हीं में से एक दत्ता जी राव देसाई हैं, जिनके कहने पर लेखक के पिता ने उसे पाठशाला जाने की अनुमति दे दी। कहानी में खेती करना, दीवाली बीत जाने पर महीनाभर ईख पेरने का कोल्टू चलाना, गुड़ की बाज़ार में बहुतायत, गुड़ की विभिन्न किस्में, पशुओं के गोबर के कंडे बनाना, पशुओं को चराना, पाठशाला में लट्ठे के बने थैले में पुरानी किताबें लेकर जाना, गमखा व धोती में पाठशाला जाना आदि का वर्णन होने से ग्रामीण जीवन का परिवेश स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ता है।