Students must start practicing the questions from CBSE Sample Papers for Class 12 Hindi with Solutions Set 11 are designed as per the revised syllabus.
CBSE Sample Papers for Class 12 Hindi Set 11 with Solutions
समय : 3 घंटे
पूर्णांक : 80
सामान्य निर्देश:
- इस प्रश्न-पत्र में खंड ‘अ’ में वस्तुपरक तथा खंड ‘ब’ में वर्णनात्मक प्रश्न पूछे गए हैं।
- खंड ‘अ’ में 40 वस्तुपरक प्रश्न पूछे गए हैं। सभी 40 प्रश्नों के उत्तर देने हैं।
- खंड ‘ब’ में वर्णनात्मक प्रश्न पूछे गए हैं। प्रश्नों के उचित आंतरिक विकल्प दिए गए हैं।
- दोनों खंडों के प्रश्नों के उत्तर देना अनिवार्य है।
- यथासभव दोनों खंडों के प्रश्नों के उत्तर क्रमशः लिखिए।
खंड ‘क’
अपठित बोध (18 अंक)
खंड ‘क’ में अपठित बोध के अंतर्गत अपठित गद्यांश व पद्यांश से संबंधित बहुविकल्पीय, अतिलघूत्तरात्मक तथा लघूत्तरात्मक प्रश्न पूछे गए हैं, जिनमें से बहुविकल्पीय तथा अतिलघूत्तरात्मक के प्रत्येक प्रश्न के लिए 1 अंक तथा लघूत्तरात्मक के लिए 2 अंक निर्धारित हैं।
प्रश्न 1.
निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर निर्देशानुसार लिखिए। (10)
भारतीय संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता रही है-‘अनेकता में एकता।’ यद्यदि ऊपरी तौर पर भारत के विभिन्न प्रदेशों में पर्याप्त भिन्नता दिखाई देती है, तथापि अपने आचार-विचारों की एकता के कारण यहाँ सदा सामासिक संस्कृति का रूप देखने को मिलता है। यही कारण है कि विभिन्नताओं के होते हुए भी भारत सदियों से एक भौगोलिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक इकाई के रूप में विश्व में अपना स्थान बनाए हुए है। इसलिए भारत में अनेकता में एकता के सदैव दर्शन होते हैं। इस भारतीय संस्कृति में आध्यात्मिकता और भौतिकता दोनों का ही मिश्रण रहा है।
अत: इसकी प्राचीनता, इसकी गतिशीलता, इसका लचीलापन, इसकी ग्रहणरीलता, इसका सामाजिक स्वरूप और अनेकता के भीतर मौजूद एकता ही इसकी प्रमुख विशेषता है। इस विशेषता के कारण ही भारतीय संस्कृति विश्व में अपना एक विशिष्ट स्थान रखती है। भारतीय संस्कृति का इतिहास बहुत प्राचीन है। वास्तव में, संस्कृति का निर्माण एक लंबी परंपरा के बाद होता है। संस्कृति वस्तुत: विचार और आचरण के वे नियम और मूल्य हैं, जिन्हें कोई समाज अपने अतीत से प्राप्त करता है। इसलिए कहा जा सकता है कि इसे हम अपने अतीत से विरासत के रूप में प्राप्त करते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो संस्कृति एक विशिष्ट जीवन-शैली का नाम है। यह एक सामाजिक विरासत है, जो परंपरा से चली आ रही है।
प्राय: सभ्यता और संस्कृति को एकं ही मान लिया जाता है, परंतु इसमें भेद है। सभ्यता में मनुष्य के जीवन का भौतिक पक्ष प्रधान होता है अर्थात् सभ्यता का अनुमान सुख-सुविधाओं से लगाया जा सकता है। इसके विपरीत संस्कृति में आचार और विचार पक्ष की प्रधानता होती है। इस प्रकार सभ्यता को शरीर माना जा सकता है तथा संस्कृति को आत्मा। इसलिए इन दोनों को अलग-अलग करके नहीं देखा जा सकता। वास्तव में, दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं।
(क) भारतीय संस्कृति कहाँ अपना विशेष स्थान रखती है? (2)
(i) देश में
(ii) जनता में
(ii) विश्व में
(iv) पूर्वजों में
उत्तर :
(iii) विश्व में
(ख) निम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं? (2)
विकल्प चुनकर लिखिए।
1. भारत में अनेकता में एकता के सदैव दर्शन होते हैं।
2. यद्यपि संस्कृति सामाजिक विरासत नहीं है।
3. भारतीय संस्कृति में आध्यात्मिकता और भौतिकता का मिश्रण रहा है। कूट
(i) केवल 1 सही है।
(ii) केवल 2 सही है।
(iii) 2 और 3 सही हैं।
(iv) 1 और 3 सही हैं।
उत्तर :
(iv) 1 और 3 सही है।
(ग) कथन (A) सभ्यता शरीर है तथा संस्कृति आत्मा है। (2)
कारण (R) इन दोनों को अलग करके नहीं देखा जा सकता है।
कूट
(i) कथन (A) सही है किंतु कारण (R) गलत हैं।
(ii) कथन (A) गलत हैं, किंतु कारण (R) सही है।
(iii) कथन (A) और कारण (R) दोनों सही हैं।
(iv) कथन (A) और कारण (R) दोनों गलत हैं।
उत्तर :
(iii) कथन (A) और कारण (R) दोनों सही है।
(घ) प्रस्तुत गद्यांश के आधार पर ‘अनेकता में एकता’ के अभिप्राय को स्पष्ट करें। (1)
उत्तर :
भारत के विभिन्न प्रदेशों में ऊपरी तौर पर पर्याप्त भिन्नता होने पर भी इनके आचार-विचारों में एकता दिखाई पड़ती है। ‘अनेकता में एकता’ ही भारतीय संस्कृति की विशिष्ट पहचान है। विभिन्न वर्गों एवं धार्मिक विचारों के होने पर भी हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई आदि संस्कृति के लोग एक-दूसरे के त्योहारों में सम्मिलित होकर एकता का परिचय देते हैं।
(ङ) “भारतीय संस्कृति का इतिहास बहुत प्राचीन है।” लेखक के इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए। (2)
उत्तर :
भारतीय संस्कृति संसार की प्राचीनतम् संस्कृतियों में से एक है। इसमें वैदिक युग, बौद्ध धर्म, मुस्लिम धर्म, विलक्षण भूगोल, रीति-रिवाज़ों, परंपराओं आदि से संबंधित अनेक सांस्कृतिक तथ्यों का समावेश है। वास्तव में, भारतीय संस्कृति का निर्माण एवं विकास एक लंबे समय से चला आ रहा है। सर्वागपूर्णता, विशालता और सहिष्णुता की दृष्टि से भारतीय संस्कृति अति प्राचीन है।
(च) संस्कृति एक सामाजिक विरासत क्यों है? (2)
उत्तर :
जिस तरह हमें पूर्वंओं द्वारा अर्जित चल व अचल संपत्ति की प्राप्ति एक विरासत एवं अधिकार के रूप में होती है, उसी प्रकार प्राचीन समय से ही लोगों के व्यवहार, चरित्र, ज्ञान, रहन-सहन का ढंग आदि भी हमें सांस्कृतिक बिरासंत के रूप में प्राप्त होते हैं। हमारी वर्तमान जीवन-शैली ग्राचीन संस्कृति के मूल आधार पर ही निर्मित होती है, जिसे हम छोड नहीं सकते इसीलिए संस्कृति सामाजिक विरासत है।
(छ) सभ्यता एवं संस्कृति में क्या अंतर है? स्पष्ट कीजिए। (2)
उत्तर :
सभ्यता के अंतर्गत सुख-सुविधाएँ, जीवन स्तर, रहन-सहन, खान-पान आदि भौतिक पक्ष शामिल होते है। संस्कृति में मानव की योग्यता, तथ्यों की जानकारी, मूल्य, व्यवहार, आचार-विचार आदि गुणों का समावेश होता है। इसमें कल्याण की भावना निहित होती है। प्राय: सभ्यता व संस्कृति को एक मान लिया जाता है, परंतु सम्यता व संस्कृति में अंतर होता है।
प्रश्न 2.
निम्नलिखित पद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर निर्देशानुसार लिखिए। (8)
बंद कर दो बमबारी, मत करो घुसपैठ।
तीन बार युद्ध हार चुके,
अबकी बार कर देंगे मटियामेट।।
शांति के हम साधक, शांति हमारा नारा।
युद्ध में नहीं हम पीछे,
मिटा देंगे नामोनिशान तुम्हारा।।
तिरंगे की लाज रखना, सतत प्रयास रहेगा।
कश्मीर, कारगिल, लेह, लद्दाख में,
दुश्मनों का खून बहेगा।।
ज़मीन पर अपनी
किसी को टिकने नहीं देंगे,
भारत माँ के मस्तक पर,
दुश्मनों को आने नहीं देंगे।।
पहल हम करेंगे नहीं, युद्ध के वास्ते।
घुसपैठियों को मारकर ही
खुल सकेंगे शांति के बंद रास्ते।।
भारतीय जवान का प्रण, जाएँगे हम लड़ने,
जान हथेली पर लेकर राष्ट्र की रक्षा की खातिर,
कर देंगे प्राण न्योछावर।।
आखिरी साँस तक हम बॉर्डर पर लड़ते रहेंगे।
मारे गए सैनिकों का, हम बदला लेकर रहेंगे।।
नहीं डर तन का, नहीं चिंता मरने की
फिक्र है तो भारत माँ की, कर्त्तव्य है रक्षा करने का।।
तोड़ेंगे गढ़ दुश्मनों के चूर-चूर कर डालेंगे।।
गोलियों की बौछार से, अंग-अंग को छेद देंगे।।
आग है सीने में हमारी, तूफान मस्तिष्क में चल रहा।
दुश्मनों के खून की प्यास, हमारी हर धड़कन में बह रही।
(क) प्रस्तुत पद्यांश में कवि किसे चुनौती दे रहा है? (1)
(i) सैनिकों को
(ii) दुश्मन देश को
(iii) आतंकवादियों को
(iv) नक्सलवादियों को
उत्तर :
(ii) दुश्मन देश को
(ख) निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए (1)
1. भारत देशवासी युद्ध कला में प्रवीण होते हुए भी शांति के साधक हैं।
2. उचित समय आने पर शांति के द्वार स्वत: ही खुल जाएँगे।
3. प्रथम घुसपैठियों को मारकर ही शांति का द्वार खोला जा सकता है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(i) केवल 1
(ii) केवल 3
(iii) 1 और 2
(iv) 1 और 3
उत्तर :
(iv) 1 और 3
(ग) सुमेलित कीजिए (1)
सूची I | सूची II |
A. मटियामेट | 1. तपस्वी |
B. साधक | 2. युद्ध |
C. कारगिल | 3. अस्तित्व समाप्त करना |
कूट
A B C
(i) 2 2 3
(ii) 3 1 2
(iii) 1 1 3
(iv) 3 2 1
उत्तर :
(ii)
सूची I | सूची II |
A. मटियामेट | 3. अस्तित्व समाप्त करना |
B. साधक | 1. तपस्वी |
C. कारगिल | 2. युद्ध |
(घ) कवि किसका बदला लेने की बात कर रहा है? (1)
उत्तर :
कवि मारे गए सैनिकों का बदला लेने की बात कर रहा है।
(ङ) कविता में किसकी लाज बचाने के लिए खून बहाने की बात की गई है? (2)
उत्तर :
कविता में तिरंगें की लाज बचाने के लिए खून बहाने की बात की गई है, क्योंकि यदि कोई बाहरी देश भारतीय तिरंगे की आन, बान और शान की तरफ अँगुली उठाएगा तो उसे मुँह की खानी पडेगी। भारतीय जवान तिरंगे की आन, बान और शान के लिए अपने प्राण न्योछावर करने से भी पीछे नहीं हटेंगे अर्थात् तन-मन से तिरंगे की रक्षा करना उनका परम धर्म है।
(च) राष्ट्र की रक्षा हेतु भारतीय जवान कौन-सा प्रण करते हैं? (2)
उत्तर :
भारतीय जवान राष्ट्र की रक्षा हेतु प्राण न्योछावर करने का प्रण करते हैं। उनके लिए राष्ट्र की रक्षा करना उनका परम कर्त्तव्य है, जिसके लिए वे अपने प्राणों को न्योछावर करने से भी हिचकिचाते नहीं हैं, बल्कि देश पर प्राण न्योछावर कर गर्व महसूस करते हैं। देश की रक्षा के लिए आखिरी साँस तक दुश्मन से लोहा लेते रहते हैं और दुश्मन को परास्त करके ही दम लेते हैं।
खंड ‘ख’
अभिव्यक्ति और माध्यम पाठ्यपुस्तक (22 अंक)
खंड ‘ख’ में अभिव्यक्ति और माध्यम से संबंधित वर्णनात्मक प्रश्न पूछे गए हैं, जिनके निर्धारित अंक प्रश्न के सामने अंकित हैं।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित 3 विषयों में से किसी 1 विषय पर लगभग 120 शब्दों में रचनात्मक लेख लिखिए। (6 × 1 = 6)
(क) दुर्घटना से देर भली
उत्तर :
दुर्घटना से देर भली
‘दुर्घटना से देर भली’ उक्ति का अर्थ है कि दुर्घटना का शिकार होने की तुलना में कहीं भी देर से पहुँचना बेहतर होता है। मनुष्य आज अपने जीवन में इतना अधिक व्यस्त हो गया है कि वह शीध्र-से-शीष्र अपने कार्य पूर्ण कर लेना चाहता है। देश में वाहनों की संख्या में प्रतिदिन वृद्धि होती जा रही है। सडकों पर ट्रैफिक इतना अधिक हो गया है कि कभी-कभी 15 मिनट की दूरी के लिए 45 मिनट या उससे भी अधिक समय लग जाता है। घंटों जाम में फँसकर व्यक्ति तीव्र गति से वाहनों को चलाते हैं, जिससे दुर्घटनाओं की संभावना बढ़ जाती है, क्योंकि मनुष्य कम-से-कम समय में अधिक-से-अधिक कार्य कर लेना चाहता है।
अत्यधिक ट्रैफिक होने के साथ-साथ लोग लापरवाह भी होते जा रहे हैं। सड़क पर चलते समय हमे ट्रैफिक नियमों का पालन करना चाहिए। यदि हम नियमों का पालन नहीं करेंगे, तो दुर्घटना का शिकार हो जाएँगे। एक बार मैं सड़क से जा रहा था, तो मैंने देखा कि सड़क पर काफी भीड्ड-भाड़ थी। कुछ छोटे बच्चे टोली बनाकर बातें करते हुए मस्ती में जा रहे थे। उन्हें देखकर लग रहा था कि वे अत्यंत उत्साहित चे। उन्हें किसी प्रकार की कोई चिंता नहीं थी। वे न तो सड़क पर चलने वाले वाहनों की परवाह कर रहे थे और न ही ट्रिफिक नियमों का पालन कर रहे थे।
वाहन अत्यंत तीव्र गति से आ-जा रहे थे। मैंने देखा कि एक ट्रक बहुत तेजी से उनकी ओर बढु रहा था, किंतु वे अपनी ही मस्ती में चले जा रहे थे। मैं दौड़कर उनके पास पहुँचा तथा दुर्घटनाग्गस्त होने से उन्हें बचा पाने में सफल हो गया। यदि कुछ सेकंड और हो जाते, तो कोई बड़ी दुर्घटना घट सकती थी। मैंने उन बच्चों को समझाया कि सड़क पर इस तरह लापरवाह होकर नहीं चलना चाहिए तथा ट्रैफ़िक नियमों का पालन करना चाहिए। आजकल लोग सड़क पर चलते हुए कोई सावधानी नहीं बरतते हैं। इसी का परिणाम होता है कि आए दिन कोई-न-कोई दुर्घटना घटित होती रहती है, इसलिए कहते हैं कि दुर्षटना से देर भली।
(ख) विद्यालय से लौटते समय जाम में फैंस जाना
उत्तर :
विद्यालय से लौटते समय जाम में फँस जाना
सड़क पर बहुत सारे वाहनों का एक स्थान पर फँस जाना ट्रैफिक जाम का कारण बनता है। यह कई प्रकार से हानिकारक होता है। यह हमें कहीं भी आने-जाने में विलंब तो करता ही है साथ ही वायु तथा ध्वनि प्रदूषण का कारण भी बनता है। इस ट्रैफिक जाम का सामना मुझ़े भी विद्यालय से लौटते समय करना पड़ता है, जिसके कारण मुझे बहुत परेशानी होती है। मेरा विद्यालय अजमेर रोड़ पर है। मैं अपने विद्यालय साइकिल से जाता हूँ। वहाँ से लौटते समय बाईपास चौराहे पर अत्यधिक जाम होता है।
गाडियाँ रेंग-रेंग कर चलती हैं, चारों ओर अत्यधिक ट्रैफिक का शोरगुल मचा रहता है। मैं विद्यालय से 2 बजे निकलता हुँ, लेकिन मुझे घर पहुँचते-पहुँचते 4 बज जाते है, जिसके कारण मैं अपनी कोचिंग क्लास के लिए भी लेट हो जाता हूँ। घंटों जाम में फँसा होने के कारण मेरा शरीर एकदम थक जाता है तथा गर्मी के दिनों में लू के थपेड़े व कडकड्राती धूप से अत्यधिक परेशान हो जाता हैँ। जाम में फँसने के कारण मेरा अमूल्य समय भी बर्बाद हो जाता है, जिसके कारण मुझे पढ़ने का समय भी कम मिलता है। कभी-कभी यह जाम कई घंटों तक लगा रहता है, जो खतरनाक भी साबित हो सकता है। यह किसी भी तरह से फायदेमंद नहीं हो सकता है। अत: सरकार के साथ-साथ हमें भी कुछ सख़्त नियम बनाने चाहिए और इस समस्या का समाधान निकालना चाहिए।
(ग) अचानक जब मेट्रो रुक गई
उत्तर :
अचानक जब हमारी मेट्रो रुक गई
दिल्ली की मेट्रो रेल यातायात की अत्याधुनिक सुविधा है। यह देश की राजधानी के लाखों लोगों के लिए वरदान सिद्ध हुई है, क्योकि इससे समय, श्रम और धन तीनों की बचत होती है। लोग बसों की भी-भाड़, धूल और उबाऊ यात्रा से बचकर अब मेट्रो रेल से आरामदायक ढ़ंग से यात्रा करना पसंद करने लगे हैं। एक दिन मैं भी सुबह-सुबह मेट्रो रेल से यात्रा कर रहा था, मुझे जल्दी ही अपने मामा से मिलने होंस्पिटल जाना था, क्योकि उन्हे औपरेशन के लिए पैसों की आवश्यकता थी।
माँ और मैं दोनों ही उनसे मिलने तथा उनकी पैसों की आवश्यकता को पूर्ण करने जा रहे थे। जिस स्टेशन से हम मेट्रो में चढ़े, वहाँ बहुत कम भीड़ थी, इसलिए आसानी से हमें सीट मिल गई। जैसे-जैसे ट्रेन आगे बढ़ती गई, उसमें भीड़ बढ़ती गई। यात्रा अत्यंत आरामदायक थी कि अचानक बीच में ही ट्रेन रुक गई। कुछ देर तक तो सभी यात्री सहज रहे, किंतु 15 मिनट से अधिक समय होने पर सभी चिंतित हो गए और तभी ट्रेन में अनाउंसमेंट हुआ कि देरी के लिए हमें खेद है।
मेरी माँ को चिंता हुई कि इतना समय क्यों लग रहा है। मैंने उन्हें समझाया कि ज़रूर कोई तकनीकी खराबी हुई होगी, तभी समय लग रहा है। अन्य यात्री भी ट्रेन रुकने के कारण परेशान हो गए। कोई ऑफिस फोन करके बताने लगा कि मैं लेट हो जाऊगगा, तो कोई अपने घर-परिवार के सदस्यों को फोन करने लगा। कुछ लोग आपस में इस बारे में बातचीत करने लगे। माँ शीघ्र ही मामा के पास पहुँचना चाहती थी। इस कारण वे अत्यंत अधीर हो गड़ं। उन्हें देखकर मैं भी थोड़ा चिंतित हो गया। लगभग 35 मिनट के बाद पुन: हमारी मेट्रो चली, तो सब यात्रियों ने चैन की साँस ली। हुम भी अपने गंतव्य स्थल पर पहुँच गए और मामा से मिलकर उन्हें रुपये दे दिए। इस प्रकार, अचानक जब हमारी मेट्रो रुकी तो वह पल मेरी स्मृतियों में जुड़ गया।
प्रश्न 4.
निम्नलिखित प्रश्नों को ध्यानपूर्वक पढिए और किन्हीं 4 प्रश्नों के उत्तर लगभग 40 शब्दों में लिखिए। (4 × 2 = 8)
(क) कहानी लेखन के आवश्यक तत्त्वों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
कहानी लेखन के आवश्यक तत्त्व निम्नलिखित हैं
- कथानक कथानक कहानी का केंद्रीय बिंदु होता है, जिसमें प्रारंभ से अंत तक कहानी की सभी घटनाओं और पात्रों का उल्लेख होता है। सरल शब्दों में, कहानी की रचना को ‘कथानक’ कहा जाता है।
- देशकाल और वातावरण प्रत्येक घटना, पात्र, समस्या का अपना देशकाल और वातावरण होता है। कहानी में वास्तविकता का पुट लाने के लिए देशकाल और वातावरण का प्रयोग किया जाता है।
- पात्र एवं चरित्र-चित्रण कहानी का संचालन उसके पात्रों के द्वारा ही होता है। पात्रों के गुण-दोष को उनका चरित्र-चित्रण कहा जाता है।
- संवाद कहानी के पात्रों के द्वारा किए गए उनके विचारों की अभिव्यक्ति को संवाद या कथोपकथन कहते हैं। कहानी में संवाद का विशेष महत्त्व होता है।
- भाषा-शैली कहानीकार के द्वारा कहानी के प्रस्तुतीकरण के ढंग (रूप) को उसकी भाषा-शैली कहा जाता है। कहानी की भाषा ऐसी होनी चाहिए, जो पाठक को अपनी ओर आकर्षित करे। अत: कहानी की भाषा सरल, सहज तथा प्रभावमयी होनी चाहिए।
(ख) रेडियो नाटक में कहानी संवादों के माध्यम से आगे बढ़ती है। इस कथन के महत्त्व के संदर्भ में रेडियो नाटकों में संवादों के महत्त्व का वर्णन कीजिए।(2)
उत्तर :
सिनेमा और रंगमंच की तरह ही रेडियो नाटक में भी चरित्र होते हैं। उनके आपसी संबाद होते हैं और इन्हीं संबादों के माध्यम से कहानी आगे बढ़ती है। रेडियो नाटक पूर्ण रूप से श्रब्य होते है, इसलिए इनका लेखन रंगमंच व सिनेमा के लेखन की अपेक्षा मुश्किल व अलग होता है। रेडियो नाटक में सब कुछ संवादों व ध्वनि प्रभावों के माध्यम से ही संग्रेषित करना होता है। इन नाटकों में मंच सज्जा, वस्त्र सज्जा, चेहरे की भाव-भंगिमाएँ आदि की आवश्यकता नहीं पड़ती, केवल संवाद से ही पात्रों के अंतद्वंद, परिचय व समाधान की जानकारी मिलती है।
अत: रेंडियो नाटक की सफलता व असफलता केवल ‘आवाज्ञ’ पर ही आश्रित होती हैं; जैसे-चोट लगने पर ‘आह’ या ‘ओह’ की आवाज़ तथा किसी को दूर से बुलाने के लिए तेज आवाज़ का प्रयोग करना होता है।
(ग) रेडियो समाचार की संरचना कैसे होती है? (2)
उत्तर :
रेंडियो समाचार की संरचना समाचार-पत्रों तथा टी.वी. की तरह उक्टा पिरामिड शैली पर आधारित होती है, जिसमें अख़बार की वरह पीछे लौटकर सुनने की सुविधा नहीं होती है।
उल्टा पिरामिड शैली में रेडियो समाचार में सबसे महत्त्वपूर्ण तथ्य को सबसे पहले लिखा जाता है। उसके बाद घटते हुए क्रम में दूसरे तथ्यों या सूचनाओं को बताया जाता है।
(घ) ‘संपादक के नाम पत्र’ कॉलम से आप क्या समझते हैं? समाचार-पत्रों में इसकी क्या उपयोगिता है? (2)
उत्तर :
‘संपादक के नाम पत्र’ कॉलम संपादक की व्यक्तिगत राय और संदेश देने के लिए होता है। इसमें संपादक समाचार-पत्र के पाठकों को विभिन्न मुद्दों पर अपने विचार बताते है। संपादकीय पृष्ठ पर समाचार-पत्रों तथा पत्रिकाओं में संपादक के नाम पाठकों के पत्र प्रकाशित किए जाते हैं। यह सभी समाचार-पत्रों में एक स्थायी स्तंभ होता है। इसे पाठकों का अपना स्तंभ कहा जाता है, क्योंकि इस स्तंभ के माध्यम से पाठक विभिन्न मुद्दों पर अपने विचार व्यक्त करते हैं, साथ ही विभिन्न जन समस्याओं को भी उठाते हैं। यह ज़रूरी नहीं है कि समाचार-पत्र पाठको के द्वारा व्यक्त किए गए सभी विचारों से अपना एकमत रखें। इस स्तंभ का प्रमुख उद्देश्य नए लेखकों को प्रोत्साहन देने तथा उन्हें उनके विचारों को लिखने का अबसर प्रदान करना है।
(ङ) जनसंचार का कौन-सा आधुनिक माध्यम सबसे पुराना है तथा इसकी शुरुआत कैसे हुई? (2)
उत्तर :
जनसंचार के आधुनुनिक माध्यमों में सबसे पुराना माध्यम प्रिंट अर्थात् मुद्रण माध्यम है। इसकी शुरुआत चीन से हुई थी, परंतु आधुनिक छापेखाने का आविक्कार जर्मनी के गुटेनबर्ग ने किया था। यूरोप में पुनर्जागरण ‘रेनेसा”‘ की शुरुआत में छापेखाने की एक महत्वपूर्ण भूमिका धी। भारत में पहला छापा खाना 1556 ई. में गोवा में खुला। इसे मिशनरियों ने धर्म प्रचार की पुस्तकें छापने के लिए खोला था।
प्रश्न 5.
निम्नलिखित प्रश्नों को ध्यानपूर्वक पढिए और किन्हीं 2 प्रश्नों के उत्तर लगभग 80 शब्दों में लिखिए। (4 × 2 = 8)
(क) इंटरनेट पत्रकारिता से आप क्या समझते हैं? (4)
उत्तर :
इंटरनेट पर समाचार-पत्र का प्रकाशन अथवा खबरों का आदान-प्रदान ही ‘इंटरनेट पत्रकारिता’ कहलाता है। इंटरनेट पर हम किसी भी रूप में समाचारों, लेखों, चर्चा-परिचर्चां के साथ वाद-विवादों, फीचर आदि का कार्य कर सकते हैं। इसे ही ‘इंटरनेट पत्रकारिता’ कहते हैं। भारत में इंटरनेट पत्रकारिता का अभी दूसरा दौर चल रहा है, जबकि विश्व स्तर पर इंटरनेट पत्रकारिता का तीसरा दौर चल रहा है। भारत के लिए प्रथम दौर वर्ष 1993 से प्रारंभ माना जाता है। दूसरा दौर वर्ष 2003 से प्रारंभ हुआ है। भारत में वास्तव में ‘रीडिफ डॉटकॉम, इण्डिया इंफोलाइन’ तथा ‘सिफी’ जैसी कुछ साइटें वेब पत्रकारिता का कार्य कर रही हैं। ‘रीडिए’ को भारत की पहली साइ्ट कहा जा सकता है, जो गंभीरता के साथ इंटरनेट पत्रकारिता कर रही है। वेबसाइट पर विशुद्ध पत्रकारिता करने का श्रेय ‘तहलका’ डॉटकॉम को जाता है।
(ख) विशेष लेखन की विशेषज्ञता से आप क्या समझते हैं? (4)
उत्तर :
विशेष लेखन की विशेषज्ञता का तात्पर्य यह नहीं है कि आप उसके उस अर्थ में विशेषश हैं, जिस अर्थ में एक प्रोफेशनल अर्थशस्त्री आर्थिक मामलों का विशेषज्ञ होता है या कोई वरिष्ठ सैनिक, अधिकारी या सैन्य विज्ञान में डोक्टरेट (प्रवीण) रक्षा मामलों का विशेषज्ञ होता है। पत्रकारिता में विशेषज्ञता का अर्थ थोड़ा अलग होता है। विशेषज्ञता का तात्पर्य यहाँ एक तरह की पत्रकारीय विशेषज्ञता से है। पत्रकारीय विशेषज्ञता का अर्थ है कि व्यावसायिक रूप से प्रशिक्षित न होने के बावजूद उस विषय में जानकारी तथा अनुभव के आधार पर अपनी समझ को इतना विकसित करना कि उस विषय या क्षेत्र में घटने वाली घटनाओं और मुद्दों की आप सहजता व सरलता से इस तरह व्याख्या कर सकें, जिससे वह पाठकों की समझ में आ जाए।
(ग) पत्रकारीय लेखन साहित्यिक लेखन से किस प्रकार भिन्न है ? स्पष्ट कीजिए। (4)
उत्तर :
पत्रकारीय लेखन समसामयिक और वास्तविक समस्याओं, मुद्दों, घटनाओं आदि से संबंधित होता है। इसमें कल्पनात्मकता का समावेश नहीं होता। अतः यह साहित्यिक तथा सुजनात्मक लेखन से भिन्न होता है, क्योंकि साहित्य में कल्पना का समावेश भी होता है। पत्रकारीय लेखन तात्कालिक होता है। उसमें सुजनात्मक साहित्य की तरह स्थायित्व नहीं होता।
पत्रकार अपने पाठकों की रुचि और आवश्यकता को समझकर लिखता है, जबकि स्जनात्मक साहित्य के लेखक पर ऐसा कोई बंधन नहीं होता। पत्रकारीय लेखन की भाषा सरल तथा सभी पाठकों की समझ में आने वाली होनी चाहिए, साथ ही उसके वाक्य छोटे और सहज होने चाहिए। साहित्यिक लेखन की तरह उसमें किलष्ट भाषा व जटिल वाक्य रचना आदि के लिए कोई स्थान नहीं होता है।
खंड ‘ग’
पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-2 एवं वितान भाग-2 (40 अंक)
खंड ‘ग’ में पाठ्यपुस्तक आरोह भाग- 2 से गद्य व पद्य खंड से बहुविकल्पीय प्रश्न, अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न व लघूत्तरात्मक प्रश्न तथा वितान भाग- 2 से लघूत्तरात्मक प्रश्न पूछे गए हैं, जिनके निर्धारित अंक प्रश्न के सामने अंकित हैं।
प्रश्न 6.
निम्नलिखित पद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर सर्वाधिक उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनकर लिखिए। (1 × 5 = 5)
जथा पंख बिनु खग अति दीना।
मनि बिनु फनि करिबर कर हीना।।
अस मम जिवन बंधु बिनु तोही।
जौं जड़ दैव जिआवै मोही।।
जैहडँ अवध कवन मुहुँ लाई।
नारि हेतु प्रिय भाई गँवाई।।
बरु अपजस सहतेउँ जग माही।
नारि हानि बिसेष छति नाहीं।।
(क) भाई के बिना जीवन की तुलना किससे की गई है? (1)
(i) पंखों के बिना पक्षी से
(ii) मणि के बिना साँप से
(iii) सूँड के बिना हाथी से
(iv) ये सभी
उत्तर :
(iv) ये सभी
(ख) राम किसकी तुलना में अपने भाई को अधिक महत्त्व दे रहे हैं? (1)
(i) धन की
(ii) पल्ली की
(iii) राज्य की
(iv) पुत्र की
उत्तर :
(ii) पल्नी की
(ग) ‘जैहउँ अवध कवन मुछुँ लाई, नारि हेतु प्रिय भाई गँवाई।’ में कौन-सा भाव है? (1)
(i) विषाद
(ii) ग्लानि
(iii) आमोद
(iv) कटु वचन
उत्तर :
(ii) ग्लानि
(घ) कथन (A) यह अपयश राम वीर पुरुष नहीं हैं, जो अपनी स्त्री के लिए भाई को भी गँवा बैठे। (1)
कारण (R) अपने अनुज के वियोग के आगे स्त्री की हानि कोई विशेष हानि नहीं है। कूट
(i) कथन (A) सही है, किंतु कारण (R) गलत है।
(ii) कथन ( A ) गलत है, कितु कारण (R) सही है।
(iii) कथन (A) और कारण (R) दोनों सही हैं, लेकिन कारण (R), कथन (A) की सही व्याख्या नहीं करता है।
(iv) कथन (A) और कारण (R) दोनों सही हैं तथा कारण (R), कथन (A) की सही व्याख्या करता है।
उत्तर :
(iv) कथन (A) और कारण (R) दोनों सही हैं तथा कारण (R), कथन (A) की सही व्याख्या करता है।
(ङ) ‘नारि हानि बिसेष छति नाहीं पंक्ति में किसका वर्णन है? (1)
(i) भाई के वियोग से उत्पन्न कष्ट का
(ii) पल्नी के वियोग से उत्पन्न कष्ट का
(iii) भ्रातृपेम की समाप्ति का
(iv) हर्ष का
उत्तर :
(i) भाई के वियोग से उत्पन्न कष्ट का
प्रश्न 7.
निम्नलिखित प्रश्नों को ध्यानपूर्वक पढ़र दिए गए 3 प्रश्नों में से किन्हीं 2 प्रश्नों के लगभग 60 शब्दों में उत्तर लिखिए। (3 × 2 = 6)
(क) ‘उषा’ कविता के प्रतिपाद्य को स्पष्ट कीजिए। (3)
उत्तर :
‘उषा’ कविता का प्रतिपान्य (उद्देश्य) कविता के माध्यम से जहाँ ग्रामीण परिवेश में उपस्थित ‘उषाकाल’ के प्राकृतिक सौद्यर्य से पाठकों को परिचित कराना है, वहों अपने नए शिल्पगत प्रयोगों से चमत्कृत करना भी है। कवि का यह विभिन्न बिंबों से सजा प्रकृति-चित्र हमें प्रकृति से जुइने की प्रेरणा भी देता है। ग्रामवासी तो नित्य ही प्रकृति की मन को मुग्ध करने वाली जादुई झांकियाँ देखते रहते हैं। कवि ने कविता के माध्यम से विशेष रूप से नगर और महानगरवासियों को भी प्रकृति-प्रेम की प्रेरणा दी है।
(ख) ‘बात की चूड़ी मरने’ से क्या तात्पर्य है? (3)
उत्तर :
‘बात की चूड़ी मरने’ का अर्थ है-बात को बेवजह घुमाने और आड्डबरपूर्ण शब्दों के प्रयोग से उसका प्रभाव नष्ट हो जाना। जिस प्रकार पेंच की चूड़ी मरने से, उसका यथास्थान निर्मित खाँचे के नष्ट होने से कसाव नष्ट हो जाता है, वैसे ही भाषा के अनावश्यक विस्तार से बात का प्रभाव कम हो जाता है। मूल बात शब्दजाल में उलझ कर रह जाती है। फिर बात कील की तरह ठोक भले ही दी जाए, उसका वैसा प्रभाव नहीं रह जाता। वह श्रोता या पाठक के हुदय तक नहीं पहुँच पाती। अत: बात को सरल भाषा और कम-से-कम शब्दों में सटीक ढंग से कहा जाना चाहिए, तभी वह प्रभावशाली रहती है।
(ग) ‘कैमरे में बंद अपाहिज’ कविता के अनुसार अपाहिज से पूछे गए प्रश्न किस बात के परिचायक हैं? स्पष्ट कीजिए। (3)
उत्तर :
‘कैमरे में बंद अपाहिज’ कविता के अनुसार अपाहिज से पूछे गए प्रश्न संवेदनहीनता के परिचायक हैं, क्योंकि एक अपाहिज व्यक्ति को कैमरे के सामने लाकर उससे बार-बार उसके अपाहिजपन के बारे में प्रश्न किया जाता है। इसके पीछे दूरदर्शन वालों का उद्देश्य केवल अपने कार्यक्रम का व्यवसायीकरण करना तथा सस्ती लोकप्रियता हासिल करना है, लेकिन किसी के दुःख की प्रस्तुति करके कार्यक्रम को रोचक बनाना अत्यंत निंदनीय है, जो व्यक्ति दु:खी है, उसके दु:ख का प्रदर्शन करना, उससे तरह-वरह के दु:खदायी प्रश्न पूछना, स्वयं इशारे करके दु;खी मुद्राएँ बनाना यदि मानवता के विरुद्ध कार्य है, जोकि सामाजिक संवेदनशून्यता का उदाहरण हैं।
प्रश्न 8.
निम्नलिखित प्रश्नों को ध्यानपूर्वक पढ़कर दिए गए 3 प्रश्नों में से किन्हीं 2 प्रश्नों के लगभग 40 शब्दों में उत्तर लिखिए। (2 × 2 = 4)
(क) ‘कविता के बहाने’ कविता में कवि ने कविता एवं बालक में समानता व्यक्त की है, कैसे? तर्क सहित उत्तर दीजिए। (2)
उत्तर :
कवि ने बचचे और कविता को समानांतर रखा है, क्योकि जिस प्रकार बच्चों के सपने असीम होते हैं, बच्चों के खेल का कोई अंत नहीं होता, बच्चे की प्रतिभा, बच्चे में छिपी संभावना का कोई अंत नहीं है, ठीक वैसे ही कविता असीम होती है। कविता के खेल अर्थात् कविता में किए जाने वाले सार्थक शब्दों का समुचित प्रयोग असीम है। जिस प्रकार बच्चे अपने-पराए का भेद नहीं करते, उन्हें सभी घर अपने ही प्रतीत होते हैं, ठीक उसी प्रकार कवि के लिए यह संपूर्ण संसार अपना है। कवि के द्वारा रचित कविता सभी को समान सीख देती है, कोई भेद्भाव नही करती है।
(ख) तुलसीदास के अनुसार, राम दु।ख में कैसा भाव प्रदर्शित कर रहे हैं? ‘लक्ष्मण-मूच्छ्ञ और राम का विलाप’ काव्यांश के आधार पर बताइए। (2)
उत्तर :
‘लक्ष्मण-मूच्छां और राम का विलाप’ कविता में लक्ष्मण के प्रति श्रीराम के प्रेम की हुदयस्पर्शी अभिव्यक्ति हुई है। यहाँ श्रीराम का मानवीय रूप दृष्टिगत होता है। वे साधारण मानव की भाँति अधीर होते हैं तथा कहते हैं कि उन्हें यदि ज्ञात होता कि वन में भाई का विछोह होगा, तो वे पिता को दिए गए वचन का भी पालन नहीं करते।
वे कहते हैं कि संसार में पुत्र, स्त्री आदि तो एकाधिक बार मिल जाते हैं, परंतु सहोदर भाई पुन: नहीं मिलता। वे कहते हैं कि लक्ष्मण के बिना वे कौन-सा मुँह लेकर अयोध्या जाएँगे? इन पंक्तियों में श्रीराम की आंतरिक व्यथा का मर्मस्पर्शा चित्रण हुआ है।
(ग) ‘कल्पना के रसायन कों पी’ से कवि का क्या आशय है? ‘छोटा मेरा खेत’ कविता के आधार पर बताइए। (2)
उत्तर :
रचनाकर्म तथा कवि-कर्म कवि के लिए समानधर्म प्रक्रिया है। जिस प्रकार खेत में खाद्यान्न उत्पादित करने के लिए किसान बीज, जल तथा रसायनों का उपयोग करता है, उसी प्रकार एक कवि रचना के सृजन के लिए शब्द रूपी बीज को पन्नों पर डालता है। शब्दों को भाव, संवेदना के जल से सिंचित कर कल्पना के रसायन से उसे उर्वर बनाता है। रचना कल्पना के रसायन को पीकर आनंद-रस से परिपूर्ण हो जाती है। यहाँ कवि रचना के लिए कल्पना को महत्त्व प्रदान करता है। उसका मानना है कि कल्पना के रसायन से रचना अधिक परिपक्व तथा अनंतता को प्राप्त होती है।
प्रश्न 9.
निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पद़कर उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनकर लिखिए। (1 × 5 = 5)
दोनों ही लड़के राजदरबार के भावी पहलवान घोषित हो चुके थे। अत: दोनों का भरण-पोषण दरबार से ही हो रहा था। प्रतिदिन प्रात:काल पहलवान स्वयं ढोलक बजा-बजाकर दोनों से कसरत करवाता। दोपहर में, लेटे-लेटे दोनों को सांसारिक ज्ञान की भी शिक्षा देता- “समझे! ढोलक की आवाज पर पूरा ध्यान देना। हाँ, मेरा गुरु कोई पहलवान नहीं, यही ढोल है, समझे! ढोल की आवाज़ के प्रताप से ही मैं पहलवान हुआ। दंगल में उतरकर सबसे पहले ढोल को प्रणाम करना, समझे!” … ऐसी ही बहुत-सी बातें वह कहा करता। फिर मालिक को कैसे खुश रखा जाता है, कब कैसा व्यवहार करना चाहिए आदि की शिक्षा वह नित्य दिया करता था।
(क) राजदरबार का भावी पहलवान किसे घोषित किया जा चुका था? (1)
(i) लुट्टन सिंह को
(ii) चाँद सिंह को
(iii) बादल सिंह को
(iv) लुद्टन पहलवान के दोनों लड़कों को
उत्तर :
(iv) लुट्टन पहलवान के दोनो लडकों को
(ख) कथन (A) लुट्टन सिंह के दोनों बेटों का भरण-पोषण राजदरबार से ही होता था। (1)
कारण (R) दोनों बेटे राजदरबार के भावी पहलवान घोषित हो चुके थे। कूट
(i) कथन (A) और कारण (R) दोनों सही हैं तथा कारण (R), कथन (A) की सही व्याख्या करता है।
(ii) कथन (A) गलत है, कितु कारण (R) सही है।
(iii) कथन (A) तथा कारण (R) दोनों गलत हैं।
(iv) कथन (A ) और कारण (R) दोनों सही हैं, लेकिन कारण (R) कथन, (A) की सही व्याख्या नहीं करता है।
उत्तर :
(i) कथन (A) और कारण (R) दोनों सही हैं तथा कारण (R), कथन (A) की सही व्याख्या करता है।
(ग) लुट्टन सिंह पहलवान कैसे हुआ? (1)
(i) राजा के आभ्रय के कारण
(ii) ढोल की आवाज़ के प्रताप से
(iii) पिता की मेहनत के कारण
(iv) मित्रों के कारण
उत्तर :
(ii) बोल की आवाज़ के प्रताप से
(घ) निम्नलिखित कथनों पर विच्चार कीजिए (1)
1. लुट्टन सिह्ह शेर के बच्चे चाँद सिह को हराने के कारण दरबारी पहलवान बन गया था।
2. राजा साहब लुट्टन सिह्ह के ढोलक बजाने के तरीके से बहुत प्रभावित थे।
3. लुट्टन सिह राजदरबार के सैनिकों का गुरु घोषित किया गया था। उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से कथन सही है/है?
(i) केवल 1
(ii) केवल 3
(iii) 1 और 2
(iv) 2 और 3
उत्तर :
(i) केवल 1
(ङ) सुमेलित कीजिए (1)
सूची I | सूची II |
A. लुट्टन पहलवान का गुरु | 1. पहलवान बना |
B. ढोल की आवाज के प्रताप | 2. मनोरंजन के अन्य साधन |
C. गाँव में अखाड़े का समाप्त होते जाना | 3. ढोल |
कूट
A B C
(i) 3 1 2
(ii) 2 1 3
(iii) 1 3 2
(iv) 1 2 3
उत्तर :
(i)
सूची I | सूची II |
A. लुट्टन पहलवान का गुरु | 3. ढोल |
B. ढोल की आवाज के प्रताप | 1. पहलवान बना |
C. गाँव में अखाड़े का समाप्त होते जाना | 2. मनोरंजन के अन्य साधन |
प्रश्न 10.
निम्नलिखित प्रश्नों को ध्यानपूर्वक पढ़कर दिए गए 3 प्रश्नों में से किन्हीं 2 प्रश्नों के लगभग 60 शब्दों में उत्तर लिखिए। (3 × 2 = 6)
(क) ‘श्रम-विभाजन और जाति-प्रथा’ पाठ में डो. आंबेडकर ने मानव समता को किन तीन बातों पर निर्भर बताया है? (3)
उत्तर :
लेखक के अनुसार, “सभी मनुष्य बराबर नहीं होते।” आलोचकों का यह तर्क एक सीमा तक उचित है, परंतु तथ्यात्मक होते हुए भी यह विशेष महत्त्व नहीं रखता। अपने शाब्दिक अर्थ में ‘समता’ काल्पनिक होते हुए भी नियामक सिद्धांत है। मनुष्यों की समता तीन बातों पर निर्भर करती है
1. शारीरिक वंश-परंपरा।
2. सामाजिक उत्तराधिकार अर्थात् सामाजिक परंपरा के रूप में माता-पिता की कल्याण कामना, शिक्षा तथा वैज्ञानिक ज्ञानार्जन आदि; जैसी सभी उपलब्धियाँ, जिनके कारण सभ्य समाज, जंगली लोगों की अपेक्षा विशिष्टता प्राप्त करता है।
3. मनुष्य के अपने प्रयास।
इन तीनों दृष्टियों से मनुष्य समान नहीं होते, तो क्या इन विशेषताओं के कारण समाज को भी व्यक्तियों के साथ असमान व्यवहार करना चाहिए। समता के विरोधी इस बात को लेकर निरुत्तर हो जाते हैं।
(ख) हजारी प्रसाद द्विवेदी ने शिरीष के संदर्भ में महात्मा गाँधी का स्मरण क्यों किया है? साम्य निरूपित कीजिए। (3)
उत्तर :
शिरीष के संदर्भ एवं गाँधीजी की कुछ विशेषताओं में समानता दिखने के कारण लेखक को गाँधीजी की याद आई। शिरीष के समान ही गाँधीजी में भी कठोरता के साथ-साथ कोमलता का गुण विद्यमान था। शिरीष की भाँति ही गाँधीजी भी वायुमंडल से, अपने परिवेश से रस खींचकर कोमल एवं कठोर बन गए। जनसामान्य के साथ कोमलता का व्यवहार करने वाले गाँधीजी कभी-कभी देश एवं समाज के हित में अत्यधिक कठोर बन जाते थे। समय के अनुरूप, परिस्थितियों के अनुसार निण्णय लेते हुए गाँधीजी को भी स्वतंत्रता आंदोलन को सही ढंग से आगे बढ़ाने के लिए अपने व्यवहार में कोमलता एवं कठोरता दोनों को अपनाना पड़ता था। गाँधीजी स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान होने वाली हिंसा, खून-खराबा, अग्निदाह आदि हिंसात्मक गतिविधियों के बीच अहिंसक होते हुए भी शिरीष के समान अटल या स्थिर बने रहते थे।
(ग) ‘काले मेघा पानी दे’ कहानी में लेखक, जीजी के तर्कों के सामने स्वयं को असहाय क्यों मानता है? (3)
उत्तर :
लेखक की एक जीजी थी, जो आयु में उनकी माँ से भी बड़ी थीं। जीजी का स्नेह लेखक पर बहुत अधिक था। जीजी सभी पूजा-पाठ ब अनुष्ठानों को मानती थीं, जिसका लेखक विरोध करता था, परंतु वह स्पष्ट रूप से विरोध की अभिव्यक्ति नहीं कर पाता था। जब दीदी इंदर सेना पर पानी फेंकने जा रही थीं, तब लेखक इस तरह से पानी की बर्वादी को देखकर उनका विरोध करने लगा, परंतु जीजी लेखक के विरोध को नहीं मानी और लेखक जीजी के स्नेह के सामने स्वयं को लाचार (बेबस) महसूस करने लगता था।
प्रश्न 11.
निम्नलिखित प्रश्नों को ध्यानपूर्वक पढ़कर दिए गए 3 प्रश्नों में से किन्हीं 2 प्रश्नों के लगभग 40 शब्दों में उत्तर लिखिए। (2 × 2 = 4)
(क) ‘भव्तिन’ रेखाचित्र पितृसत्तात्मक समाज की मान्यताओं पर किस प्रकार प्रश्नचिह्ह अंकित करता है? (2)
उत्तर :
भारत एक पुरुष प्रधान देश रहा है। मध्यकालीन भारत में तो बेटियों को बोड़ समझा जाता था। समाज में आज भी होने वाली कन्या भूण हत्या की घटनाएँ इसी मनोवृत्ति का प्रमाण देती हैं, साथ ही यह माना जाता हैं कि बेटी का विवाह करने पर वह तो दूसरे घर की हो जाती है, जबकि उनमें बेटे से अपने वंश को आगे बढ़ाने की इच्छा बनी रहती है। पुत्र को बुद़ापे की लाठी माना जाता है और अंतिम समय में उनसे माँ-बाप की सेवा की उम्मीद भी की जाती है। ऐसे ही दकियानूसी विचार हमारे समाज में आज भी व्याप्त हैं। अत: भक्तिन इस पितृसत्तात्मक समाज की मान्यताओं भरे समाज से लड़ती रही।
(ख) लेखक ने कैसे बाज़ार को मानवता के लिए विडंबना माना है? (2)
उत्तर :
समाज की आवश्यकताओं की उचित ढंग से पूर्ति करने में ही बाज़ार की उपयोगिता है। ऐसा करके ही बाज़ार सार्थक होता है, जो बाज़ार अपनी सार्थकता त्यागकर ग्राहक के साथ छल-कपटपूर्ण आचरण करता है, वह बाजार होने का महत्व खो देता है। जहाँ भाईचारा भूलकर क्रेता और विक्रेता एक-दूसरे को ठगने में लगे रहते हैं एवं जहाँ उनके बीच का विश्वास नष्ट हो जाता है, वह बाज़ार, बाज़ार होने का भाव पूरा नहीं करताँ। जहाँ धनवान लोग अपनी क्रय शक्ति का प्रदर्शन कर बाज़ार को शैतानी शक्ति और व्यंग्य शक्ति प्रदान करते है, वह बाज़ार मानवता के लिए दुर्भाग्यपूर्ण बन जाता है। वह मानवता के लिए विडंबना सिद्ध होता है।
(ग) लुट्टन सिंह पहलवान की दी गई शिक्षा-दीक्षा पर पानी क्यों फिर गया? स्पष्ट कीजिए। (2)
उत्तर :
लुट्टन सिंह पहलवान के द्वारा दी गई शिका से उसके दोनों पुत्र सामाजिक व राजसी रूप से भावी पहलवान घोषित हो चुके थे, परंतु अकस्मात् राजा के स्वर्गवासी होने के पश्चात् उत्तराधिकारी बने नए विलायती राजा ने पाया कि इन पहलवानों पर होने वाला राजसी खर्च बहुत अधिक है, क्योकि नए राजा को कुश्ती का शौंक नहीं था। अत: उन तीनों को उसने बिना किसी सुनवाई के ही राज दरबार से निकाल दिया। इस कारण लुर्टन सिंह पहलवान ने अपने पुत्रों को जो शिक्षा दी उस पर पानी फिर गया।
पूरक पाठ्यपुस्तक वितान भाग-2
प्रश्न 12.
निम्नलिखित प्रश्नों को ध्यानपूर्वक पढ़कर दिए गए 3 प्रश्नों में से किन्हीं 2 प्रश्नों के लगभग 100 शब्दों में उत्तर लिखिए। (5 × 2 = 10)
(क) ‘यशोधर बाबू दो भिन्न कालखंडों में जी रहे हैं पक्ष या विपक्ष में सोदाहरण तर्क कीजिए। (5)
उत्तर :
यशोघर बाबू को ‘आदर्श व्यक्तित्व’ कहा ही इसलिए गया है, क्योंकि वे जीवनभर अपने सिद्धांतों पर चलते रहे हैं। यशोधर बाबू पुराने विचारों वाले व्यक्ति हैं और वे ये भी मानते हैं कि उनके बच्चे आधुनिक युग के साथ चलते-चलते यथार्थ दुनिया के बारे में उनसे अधिक अच्छी सोच पाते हैं। उन्हें समाज में जहाँ कहीं भी नयापन दिखाई देता है, तो वे कहते हैं ‘समहाउ इंप्रॉपर’। यशोधर बाबू अपने सामाजिक मूल्यों को बनाए रखना चाहते हैं। आज विश्व में हमें सबके साथ कंधे-से-कंधा मिलाकर चलना ही पड़ता है।
मेरी दृष्टि में नई पीढ़ी के उन्हीं विचारों को अपनाना उचित है, जिनसे अपना और समाज का विकास हो। पुरानी पीढ़ी को रहन-सहन, पहनावा, खाना-पीना और व्यवहार में थोड़ा बहुत बदलाव लाना ही चाहिए। उदाहरण के लिए यदि हम लड़कियों को न पद्एाएँ तो नुकसान अपना ही करेंगे, क्योंकि शिकित नारी पूरे परिवार को शिक्षित बनाती है। इसलिए आधुनिक युग की सोच है कि यशोधर बाबू जैसे लोगों को अपने पुराने विधारों में नए विचारों को भी शामिल कर लेना चाहिए।
(ख) ‘कला की दृष्टि से हड़प्पा सभ्यता समृद्ध थी।’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए। (5)
उत्तर :
कला की दृष्टि से हड़प्पा सभ्यता अत्यधिक समृद्ध थी। इस सभ्यता के लोगों में कला के प्रति समृद्ध दृष्टि उस समय के मनुष्यों की दैनिक प्रयोग की वस्तुओं में स्पष्ट रूप से दिखाई देती है, जैसे वहाँ की वास्तुकला तथा नियोजन, धतु एवं पत्थर की मूरिंतायाँ, मिट्टी से बने बर्तन एवं उन पर बने चित्र, वनस्पति एवं पशु-पक्षियों की छवियाँ, मुहरें और उन पर खुदी आकृतियाँ खिलौने, केश-किन्यास, आभूषण आदि उस समय में विद्यमान हड़प्पा सभ्यता के सौंदर्य-बोध को व्यक्त करते हैं। वहाँ भव्य राजमहल, मंदिरों या समाधियों के अवशेष नहीं मिलते।
भवनों में आकार की विशालता एवं थव्यता मौजूद नहीं है। कोई भी ऐसी मूति या चित्र उपलख्ख नहीं हुआ है, जिसमें प्रभुत्व या दिखावा किया गया हो। इस आधार पर कहा जा सकता है कि हड़प्पा सभ्यता कला की दृष्टि से समृद्ध तो थी, लेकिन यह कला सौदर्य राजपोषित या धर्मपोषित न होकर समाज पोषित थी। हड़प्पा सभ्यता आडेंबरहीन सभ्यता थी, उसमें दिखावे का कोई महत्त्व नहीं था।
(ग) ‘जूझ’ कहानी के आधार पर लेखक के जीवन संघर्ष को संक्षेप में वर्णित कीजिए। (5)
उत्तर :
लेखक के पिता बहुत आलसी और गैर-जिम्मेदार व्यक्ति थै। वे लेखक को पाठशाला नहीं भेजते थे, क्योंकि यदि लेखक पाठशाला चला जाएगा, तो खेत का काम कौन करेगा? वे स्वयं तो दिनभर गाँव में घूमते रहते और रखमाबाई के कोठे पर भी जाते, जबकि लेखक को खेत के काम में लगाए रखना चाहते थे। राव जी के कहने पर उन्होंने लेखक को पाठशाला तो भेजा, पर शतों के साथ। शर्त यह थी कि वह सुबह के ग्यारह बजे तक खेतों में पानी देकर फिर पाठशाला जाएगा और पाठशाला से आकर फिर एक घंटा पशुओं को चराएगा। यदि किसी दिन खंत में काम ज़्यादा होगा, तो उस दिन पाठशाला से छुट्टी ले लेगा।
पाठशाला में भी लड़कों ने उसकी खिल्ली उड़ाई, क्योंकि वह मटमैली धोती और गमछा पहनकर गया था। इस प्रकार लेखक. प्रतिकूल परिस्थितियों से संघर्ष करता हुआ पदाईई भी करता है और खेत का काम भी सँभालता है तथा अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल होता है।