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CBSE Class 11 Hindi Elective अपठित बोध अपठित काव्यांश

February 1, 2023 by Bhagya

CBSE Class 11 Hindi Elective अपठित बोध अपठित काव्यांश

ऐसे काष्यांश जो आपकी पाट्य-पुस्तक में संकलित कविताओं में से नहीं हैं उन्हें प्रश्न-पत्र में अपठित काव्यांश बोध के अंतर्गत पूछा जाएगा। इनमें प्राय: भाव-बोध से संबंधित प्रश्नों को पूछा जाता है इसलिए यह अति आवश्यक है कि दिए गए काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर उसके भावों को समझा जाए। काव्यांश के केंद्रीय भाव को समझकर समाहित उत्तरों को लिखना आसान होता है। आपके द्वारा दिए जाने वाले उत्तरों की भाषा सरल, स्पष्ट और सटीक होनी चाहिए।
अपठित काव्यांश को हल करने की विधि-

  • काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए।
  • यदि काव्यांश समझने में कठिन हो तो उसे बार-बार तब तक पढ़ना चाहिए जब तक आपको उसका मूलभाव समझ न आ जाए।
  • काव्यांश के नीचे दिए गए प्रश्नों को पढ़िए और फिर से काव्यांश पर ध्यान देकर उन पंक्तियों और स्थलों को चुनिए जिनमें प्रश्नों के उत्तर छिपे हुए हों।
  • जिस-जिस प्रश्न का उत्तर आपको मिलता जाए उसे रेखांकित करते जाइए।
  • अस्पष्ट और सांकेतिक प्रश्नों के उत्तर जानने के लिए काव्यांश के मूल-भावों को आधार बनाइए।
  • प्रत्येक उत्तर अपने शब्दों में लिखिए।
  • प्रतीकात्मक और लाक्षणिक शब्दों के उत्तर एक से अधिक शब्दों में दीजिए। ऐसा करने से आप स्पष्ट उत्तर लिख पाएँगे।

अपठित काव्यांश के महत्वपूर्ण उदाहरण –

निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए-

1. नए गगन में नया सूर्य जो चमक रहा है,
वह विशाल भूखंड आज जो दमक रहा है,
मेरी भी आभा है इसमें।
भीनी-भीनी खुशबू वाले,
रंग-बिंरेगे,
यह जो इतने फूल खिले हैं,
कल इनको मेरे प्राणों ने नहलाया था।
कल इनको मेरे सपनों ने सहलाया था।
पकी सुनहली फसलों से जो,
अबकी यह खलिहान भर गया,
मेरी रग-रग के शोणित की बूँदें इसमें मुसकाती हैं।
नए गगन में नया सूर्य जो चमक रहा है,
यह विशाल भूखंड आज जो दमक रहा हैं,
मेरी भी आभा है इसमें।

प्रश्न :
(क) इस कविता का उचित शीर्षक दीजिए।
(ख) नए आसमान का नया सूरज क्या है?
(ग) विशाल धरती की दमक का क्या अभिप्राय है?
(घ) कवि ने रंग-बिरंगे फूल कैसे खिलाए?
(ङ) फसलों से खलिहान के भर जाने का क्या रहस्य था?
उत्तर :
(क) मेरी भी आभा है इसमें।
(ख) नए युग के नए प्रकाश को नए आसमान का क्या सूरज कहा गया है।
(ग) विशाल धरती की दमक का अभिप्राय नई सभ्यता और संस्कृति के विकास के साथ जीवन के लिए आवश्यक भौतिक सुख-सुविधाओं की वृद्धि करना है।
(घ) कवि ने इन्हें अपने प्राणों से नहलाया, अपने सपनों से सहलाया तथा मन की कोमलता से सींचकर खिलाया है।
(ङ) मजदूरों और किसानों के कठोर परिश्रम से अच्छी फ़सल हुई और खलिहान भर गए हैं।

(च) अबकी बार खलिहान किससे भर गया है?
(i) वर्षा से
(ii) सुनहरी फसलों से
(iii) खर-पतवारों से
(iv) मिट्टी के ढेर से
उत्तर :
(ii) सुनहरी फसलों

(छ) कवि के रग-रग में किसकी बूँबें मुसकाती हैं?
(i) वर्षा की
(ii) ओस की
(iii) शोणित की
(iv) पसीने की
उत्तर :
(iii) शोणित की

(ज) ‘भीनी-भीनी’ में अलंकार की छटा है-
(i) अनुप्रास अलंकार
(ii) पुनरुक्त-प्रकाश अलंकार
(iii) यमक अलंकार
(iv) श्लेष अलंकार
उत्तर :
(ii) पुनरक्त-प्रकाश अलंकार

2. कुछ काम करो, कुछ काम करो, जग में रहके निज नाम करो।
यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो! समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो।
कुछ तो उपयुक्त करो तन को, नर हो, न निराश करो मंन को।।
सँभलो कि सु-योग न जाए चला, कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला?
समझो जग को न निरा सपना, पथ आप प्रशस्त करो अपना।
अखिलेश्वर है अवलंबन को, नर हो, न निराश करो मन को।।
जब प्राप्त तुम्हें सच तत्व यहाँ, फिर जा सकता वह सत्व कहाँ?
तुम स्वत्त्व-सुधा-रस पान करो, उठ के अमरत्व-विधान करो।
दव-रूप रहो भव-कानन को, नर हो, न निराश करो मन को।।
निज गौरव का नित ज्ञान रहे, हम भी कुछ हैं-यह ध्यान रहे।
सब जा, अभी, पर मान रहे, मरणोत्तर गंह्नजित गान रहे।
कुछ हो, न तजो निज साधन को, नर हो, न निराश करो मन को।।

प्रश्न :
(क) इस कविता का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) तन को उपयुक्त बनाए रखने के क्या उपाय हैं?
(ग) जग को निरा सपना क्यों नहीं समझना चाहिए?
(घ) हमें अपने गौरव का कैसे ध्यान रखना चाहिए?
(ङ) ‘पथ आप प्रशस्त करो अपना’ का क्या अभिप्राय है?
उत्तर :
(क) नर हो न निराश करो मन को।
(ख) तन को उपयुक्त बनाए रखने के लिए मनुष्य को निरंतर कर्म करते रहना चाहिए। उसे व्यर्थ समय नहीं गँवाना चाहिए।
(ग) जग को निरा सपना इसलिए नहीं समझना चाहिए क्योंकि इस संसार में जो कुछ भी है वह सत्य है तथा यहाँ किया हुआ कोई भी अच्छा कार्य व्यर्थ नहीं जाता है।
(घ) हमें अपने गौरव का ध्यान अपने आत्मसमान को बनाकर रखने से प्राप्त हो सकता है। हमारा सब कुछ नष्ट हो जाए परंतु स्वाभिमान बना रहना चाहिए।
(ङ) इस पंक्ति का आशय यह है कि मनुष्य को अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अपना मार्ग स्वयं बनाना चाहिए।

(च) क्या कभी व्यर्थ नहीं जाता?
(i) सदुपाय
(ii) जन्म
(iii) मरण
(iv) हर्ष
उत्तर :
(i) सदुपाय

(छ) हमें किसे बिलकुल सपना नहीं समझना चाहिए?
(i) मनुष्य को
(ii) लक्ष्य को
(iii) जग को
(iv) कल्पना को
उत्तर :
(iii) जग को

(ज) अखिलेश्वर किसे कहा गया है?
(i) ईश्वर को
(ii) मनुष्य को
(iii) कानन को
(iv) निराश मन को
उत्तर :
(i) ईश्वर को

3. जग जीवन में जो चिर महान, सँददर्यपूर्ण औ सत्य-प्राण,
मैं उसका प्रेमी बनूँ नाथ! जिससे मानव हित हो समान!
जिससे जीवन में मिले शक्ति, छूटें भय-संशय, अंध-भक्ति,
मैं वह प्रकाश बन सकूँ, नाथ! मिल जावें जिसमें अखिल व्यक्ति!
दिशि-दिशि में प्रेम-प्रभा-प्रसार, हर भेद-भाव का अंधकार,
मैं खोल सकूँ चिर मुँदे, नाथ! मानव के उर के स्वर्ग-द्वार!
पाकर प्रभु, तुम से अमर दान, करके मानव का परित्राण,
ला सकूँ विश्व में एक बार, फिर से नव जीवन का विहान।

प्रश्न :
(क) इस कविता का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) कवि ने प्रभु से क्या माँगा है?
(ग) कवि ‘चिर महान’ को क्यों पाना चाहता है?
(घ) कवि किस प्रकाश को पाना चाहता है?
उत्तर :
(क) नव जीवन का विहान।
(ख) कवि प्रभु से वह शक्ति प्राप्त करना चाहता है जिससे वह मानवता का कल्याण कर सके तथा सर्वत्र प्रेम-प्रभा का प्रसार करते हुए संसार में नव जीवन का विहान ला सके।
(ग) कवि ‘चिर महाना को प्राप्त कर संसार से समस्त भेदभाव, संशय, भय आदि मिटाकर प्रेमरूपी प्रभा का प्रसार करते हुए मानवता की रक्षा करना चाहता है।
(घ) कवि ऐसा प्रकाश चाहता है, जिससे उसे शक्ति प्राप्त हो और वह समस्त भय, भ्रम आदि से मुक्त होकर मानव मात्र में परस्पर प्रेम भाव उत्पन्न कर सके।

(ङ) कवि नए जीवन में नया सवेरा क्यों लाना चाहता है?
(i) रोशनी के लिए
(ii) नव जीवन के लिए
(iii) नव विहान के लिए
(iv) नव वर्ष के लिए।
उत्तर :
(ii) नव जीवन के लिए

(च) कवि मनुष्य के हृदय के स्वर्ग के चिरकाल से बंद द्वार किसके मादयम से खोलना चाहता है?
(i) शक्ति
(ii) ध्यान
(iii) प्रकाश
(iv) योग
उत्तर :
(iii) प्रकाश

(छ) कवि ने चिर महान किसे कहा है?
(i) ईश्वर को
(ii) मानव को
(iii) शक्ति को
(iv) सौंदर्यपूर्ण सत्य-प्राण को
उत्तर :
(ii) मानव को

(ज) कवि ने ‘अखिल व्यक्ति’ का प्रयोग क्यों किया है?
(i) कवि असांसारिक बात करना चाहता है।
(ii) कवि सांसारिक जनों की बात करना चाहता है।
(iii) कवि सांसारिक अमीर लोगों की बात करना चाहता है।
(iv) कवि भारतीय लोगों की बात करना चाहता है।
उत्तर :
(ii) कवि सांसारिक जनों की बात करना चाहता है।

4. एक तनी हुई रस्सी है, जिस पर मैं नाचता हूँ।
जिस तनी हुई रस्सी पर मैं नाचता हूँ।
वह दो खंभों के बीच है।
रस्सी पर मैं जो नाचता हूं।
वह एक खंभे से दूसरे खंभे तक का नाच है।
दो खंभों के बीच जिस तनी हुई रस्सी पर में नाचता हैँ,
उस पर तीख़ी रोशनी पड़ती है
जिसमें लोग मेरा नाच देखते हैं।
न मुझे देखते हैं जो नाचता है,
न रस्सी को जिस पर मैं नाचता हूँ।
न खंभों को जिस पर रस्सी तनी है,
न रोशनी को जिसमें नाच दीखता है :
लोग सिर्फ नाच देखते हैं।
पर मैं जो नाचता हूँ
जो जिस रस्सी पर नाचता हूँ
जो जिन खंभों के बीच है
जिस पर जो रोशनी पड़ती है,
उस रोशनी में उन खंभों के बीच उस रस्सी पर,
असल में मैं नाचता नहीं हूँ।
मैं केवल उस खंभे से इस खंभे तक दौड़ता हैं,
कि इस या उस खंभे से रस्सी खोल दूं।
कि तनाव चुके और ढील में मुझे हुट्टी हो जाए-
पर तनाव ढीलता नहीं।

प्रश्न :
(क) इस कविता का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) कवि किस पर नाच रहा है?
(ग) रस्सी की स्थिति कैसी है?
(घ) लोग क्या देख रहे हैं और क्या नहीं देखते हैं?
उत्तर :
(क) नाच।
(ख) कवि एक तनी हुई रस्सी पर नाच रहा है जो दो खंभों के बीच कसकर बँधी हुई है।
(ग) रस्सी दो खंभों के बीच कसकर बाँधी गई है। उस पर तेज रोशनी पड़ती है।
(घ) लोग सिर्फ़ उसका नाच देखते हैं। वे उसे, रस्सी, खंभों तथा रोशनी को नहीं देखते हैं।

(ङ) कवि क्या चाहता है?
(i) कवि रस्सी का तनाव समाप्त कर खोलना चाहता है।
(ii) कवि रस्सी जलाना चाहता है।
(iii) कवि नई रस्सी खरीदना चाहता है।
(iv) कवि रस्सी को नया आकार देना चाहता है।
उत्तर :
(i) कवि रस्सी का तनाव समाप्त कर खोलना चाहता है।

(च) कवि जीवन यापन के लिए क्या करता है?
(i) कुछ-न-कुछ काम करता है।
(ii) कुछ अध्ययन करता है।
(iii) भगवान का नाम लेता है।
(iv) ये सभी।
उत्तर :
(i) कुछ-न-कुछ काम करता है।

(छ) तनी हुई रस्सी जिस पर कवि नर्तन करता है, वह स्थित है-
(i) दो नदियों के बीच
(ii) दो डगरों के बीच
(iii) दो स्तंभों के बीच
(iv) दो मनुष्यों के बीच
उत्तर :
(iii) दो स्वंभों के बीच

(ज) अंत में रस्सी का तनाव –
(i) कम हो जाता है।
(ii) ढीला नहीं होता।
(iii) ओझल हो जाता है।
(iv) ये सभी विकल्प।
उत्तर :
(ii) ढीला नहीं होता।

5. सुनता हैं, मैंने भी देखा,
काले बादल में रहती चाँदी की रेखा!
काले बादल जाति द्वेष के,
काले बादल विश्व क्लेश के,
काले बादल उउते पथ पर,
नव स्वतंत्रता के प्रवेश के !
सुनता आया हैं, है देखा,
काले बादल में हैंसती चाँदी की रेखा
आज दिशा है घोर अँधेरी,
नभ में गरज रही रण भेरी,
चमक रही चपला क्षण-क्षण पर,
झनक रही झिल्ली झन-झन कर;
नाच-नाच आँगन में गाते केकी-केका,
काले बादल में लहरी चाँदी की रेखा।
काले बादल, काले बादल,
मन भय से हो उठता चंचल!
कौन हुदय में कहता पल-पल,
मृत्यु आ रही साजे दलबल!
आग लग रही, घात चल रहे, विधि का लेखा !
काले बादल में छिपती चाँदी की रेखा !
मुझे मृत्यु की भीति नहीं है,
पर अनीति से प्रीति नहीं है,
यह मनुजोचित रीति नहीं है,
जन में प्रीति प्रतीति नहीं है !
देश जातियों का कब होगा,
नव मानवता में रे एका,
काले बादल में कल की,
सोने की रेखा !

प्रश्न :
(क) इस कविता का उच्चित शीर्षक लिखिए।
(ख) ‘काले बादल’ से कवि का क्या अभिप्राय है?
(ग) ‘काले बादल’ का निर्माण किसने किया है?
(घ) मानवता का भविष्य कब उज्वल होगा ?
उत्तर :
(क) काले बादल।
(ख) काले बादल से कवि का अभिप्राय संकट के क्षणों से है।
(ग) काले बादल का निर्माण मानव जाति के परस्पर द्वेष तथा संसार में व्याप्त क्लेश से हुआ है।
(घ) मानवता का भविष्य मानव मात्र में परस्पर प्रेमभाव के उत्पन्न होने पर ही उज्वल होगा हैं।

(ङ) कवि मृत्यु से भयभीत क्यों नहीं है?
(i) क्योंकि उसे इर से प्यार है।
(ii) क्योंकि उसे अन्याय से लगाव नहीं है।
(iii) क्योंकि उसे घृणा से प्यार है।
(iv) क्योंकि वह मृत्यु से आकर्षित है।
उत्तर :
(ii) क्योंकि उसे अन्याय से लगाव नहीं है।

(च) इस कविता का मूलभाव स्पष्ट कीजिए।
(i) समाज पर मैडराती विपत्तियों के बीच आशा की किरण
(ii) समाज में आमाद-प्रमोद का बोलबाला
(iii) समाज का बढ़ता प्रभाव
(iv) ये सभी विकल्प
उत्तर :
(i) समाज पर मैडराती विपत्तियों के बीच आशा की किरण

(छ) ‘चाँदी की रेखा’ से कवि का क्या तात्पर्य है?
(i) सूर्य की किरण
(ii) उम्मीद की किरण
(iii) सफलता का राज
(iv) रहस्यपूर्ण जीवन
उत्तर :
(ii) उम्मीद की किरण

(ज) कवि ने किसे मनुजोचित रीति नहीं कहा है?
(i) प्रीति प्रतीति को
(ii) अनीति से प्रीति
(iii) अस्थाई प्रीति
(iv) विधि लेख
उत्तर :
(ii) अनीति से प्रीति

6. शिशिर कणों से लदी हुई, कमली के भीगे हैं सब तार।
चलता है पश्चिम का मारूत, लेकर शीतलता का भार॥
भीग रहा है रजनी का वह, सुंदर कोमल कवरी-भार।
अरुण किरण सम, कर से छू लो, खोलो प्रियतम ! खोलो द्वार ॥
धूल लगी है पद काँटों से बिंधा हुआ है, दु:ख अपार।
किसी तरह से भूला-भटका आ पहुँचा है, तेरे द्वार॥
डरो न इतना, धूल-धूसरित होगा नहीं तुम्हारा द्वार।
धो डाले हैं इनको प्रियवर, इन आँखों से औसू ढार॥
मेरे धूल लगे पैरों से, करो न इतना घृणा प्रकाश।
मेरे ऐसे धूल कणों से, कब तेरे पद को अवकाश ॥
पैरों से ही लिपटा-लिपटा कर लूँगा निज पद निर्धार।
अब तो छोड़ नहीं सकता हैं, पाकर प्राप्य तुम्हारा द्वार।।
सुप्रभात मेरा भी होवे, इस रजनी का दुख अपार।
मिट जावे जो तुमको देखुँ, खोलो प्रियतम! खोलो द्वार॥

प्रश्न :
(क) इस कविता का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) कवि ने किस ॠतु का कैसे वर्णन किया है?
(ग) कवि की कैसी दशा है?
(घ) कवि अपने आराध्य के द्वार को कैसे स्वच्छ रखता है?
उत्तर :
(क) खोलो द्वार।
(ख) कवि ने सरदी के दिनों का वर्णन किया है। ठंडी पश्चिमी हवाएँ चल रही हैं। बर्फ़ के कण गिर रहे हैं। वातावरण बहुत ठंडा हो गया है।
(ग) कवि का सारा शरीर धूल से भरा है। उसके पैर काँटों से छलनी हो गए हैं। वह बहुत दुखी है। वह भटकता हुआ फिर रहा है।
(घ) कवि अपने आराध्य के द्वार को अपने आँसुओं से धोकर स्वच्छ रखता है।

(ङ) कवि क्या नहीं छोड़ना चाहता?
(i) बुरी लगन
(ii) आराध्य के चरणों में स्थान
(iii) प्रेम भावना
(iv) सर्व-कल्याण भावना
उत्तर :
(ii) आराण्य के चरणों में स्थान

(च) इस कविता का मूलभाव स्पष्ट कीजिए-
(i) प्रभु पतित पावन है।
(ii) वह ईश्वर से स्वयं का उद्धार चाहता है।
(iii) वह ईश्वर से करुणा का द्वार खुला रखना चाहता है।
(iv) ये सभी विकल्प।
उत्तर :
(iv) ये सभी विकल्प

(छ) ‘सुप्रभात भी मेरा होवे’ के माध्यम से क्या कहना चाहता है?
(i) सुख का दिन आए।
(ii) समय कटे।
(iii) पर्व आए।
(iv) ताजगी मिले।
उत्तर :
(i) सुख का दिन आए।

(ज) कवि ने ‘प्रियतम’ का संबोधन किसके लिए किया है?
(i) पत्नी के लिए
(ii) प्रेमिका के लिए
(iii) ईंश्वर के लिए
(iv) भक्त के लिए
उत्तर :
(iii) ईश्वर के लिए

7. जिसका ज्ञान भावनामय हो,
सदुद्देश्य-साधन में तत्पर।
जिसका धर्म लोक-सेवा हो,
जिसका वचन कर्म का अनुचर।
सदा लोक-संग्रह में जिसकी,
हो प्रवृत्ति हो वृत्ति अचंचल।
सदा ध्येय के सम्मुख जिसका,
प्रगतिशील हो एक-एक पल।
सागर-सा गंभीर हृदय हो,
गिरि-सा ऊँचा हो जिसका मन।
ध्रुव-सा जिसका लक्ष्य अटल हो,
दिनकर-सा हो नियमित जीवन।
जिसकी आँखों में स्वदेश का,
अति उज्ज्वल भविष्य हो चित्रित।
इच्छा में कल्याण बसा हो,
चिंता में गौरव हो रक्षित।
तेज, हास्य, आनंद सरलता,
मैत्री, करुणा का क्रीड़ास्थल।
हो सच्चा प्रतिबिंब हुदय का,
प्रेमपूर्ण जिसका मुख-मंडल।
उच्च विचार-भार से जिसके,
चरण मंद पड़ते हों भू पर।
अंतर्द्षिंटि बहुत व्यापक हो,
भूमंडल हो जिसके भीतर।
वह समाज,वव, देश राष्ट्र वह,
जिसका हो ऐसा जन-नायक।
होगा क्यों न सकल सुख-संकुल,
विश्व-वंद्य आदर्श विधायक।

प्रश्न :
(क) इस कविता का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) जननायक का ज्ञान और धर्म कैसा होना चाहिए?
(ग) जननायक का दूदय, मन और लक्ष्य कैसा होता है?
(घ) जननायक स्वदेश के बारे में क्या सोचता है?
(ङ) जननायक का व्यक्तित्व कैसा होता है?
(च) इस कविता का मूलभाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
(क) सच्चा जननायक।
(ख) जननायक का ज्ञान भावनामय और धर्म लोकसेवा करना होना चाहिए है।
(ग) जननायक का हदय गंभीर, मन गिरि के समान ऊँचा तथा लक्ष्य ध्रुव के समान अटल होता है।
(घ) जननायक स्वदेश के उज्ज्वल भविष्य के बारे में सोचता है।
(ङ) जननायक का व्यक्तित्व तेजस्वी, हास्ययुक्त, आनंदमय, सरल, मित्रता एवं करुणा के भाव से युक्त होता है।
(च) इस कविता में कवि ने जननायक को सदा लोक कल्याण में लीन, गंभीर, उन्नत गुणों से युक्त तथा स्वदेश हित में लगा रहने वाला चित्रित किया है। ऐसा जननायक तथा उसका देश वंदनीय है।

(छ) व्यक्ति व्वारा बोले गए वघन कैसे होने चाहिए?
(i) मन के पक्षपाती
(ii) भाग्य के अनुसरणकर्ता
(iii) कर्म के अनुसार
(iv) ये सभी विकल्प
उत्तर :
(iii) कर्म के अनुसार

(ज) कवि के अनुसार द्ववय कैसा होना चाहिए?
(i) झंझावात-सा द्रुतगामी
(ii) सागर-सा गंभीर
(iii) जल-सा चंचल
(iv) नभ-सा विशाल
उत्तर :
(ii) सागर-सा गंभीर

8. देख रहा हैं,
लंबी खिड़की पर रखे पौधे,
धूप की ओर बाहर झुके जा रहे हैं।
हर साल की तरह गॉरिया,
अब की भी कार्निस पर ला-ला के धरने लगी है तिनके
हालांकि यह वह गोरैया नहीं,
यह वह मकान भी नहीं,
ये वे गमले भी नहीं, यह वह खिड़की भी नहीं,
कितनी सही है मेरी पहचान इस धूप की।
कितने सही हैं ये गुलाब,
कुछ कसे हुए और कुछ झरने-झरने को,
और हलकी-सी हवा में और भी, जोखम से,
निखर गया है उनका रूप जो झरने को है।
और वे पौधे बाहर को झुके जा रहे हैं।
जैसे उधर से धूप इन्हें खींचे लिए ले रही है।
और बरामदे में धूप होना मालूम होता है,
जैसे ये पौधे बरामदे में धूप-सा कुछ ले आए हों।
और तिनका लेने फुर्र से उड़ जाती है चिड़िया,
हवा का एक डोलना है : जिसमें अचानक ।
कसे हुए गुलाब की गमक है और गर्मियाँ आ रही हैं,
हालाँकि अभी बहुत दिन है-
कितनी सही है मेरी पहचान इस धूप की।
और इस गॉरिया के घोंसले की कई कहानियाँ हैं,
पिछले साल की अलग और उसके पिछले साल की अलग,
एक सुगंध है।
बल्कि सुगंध नहीं एक धूप है,
बल्कि धूप नहीं एक स्मृति है।
बल्कि ऊष्मा है, बल्कि ऊष्मा नहीं,
सिर्फ़ एक पहचान है।
हलकी-सी हवा है और एक बहुत बड़ा आसमान है,
और वह नीला है और उसमें धुआँ नहीं है।
न किसी तरह का बादल है।
और एक हलकी-सी हवा है और रोशनी है,
और यह धूप है, जिसे मैने पहचान लिया है।
और इस धूप से भरा हुआ बाहर एक बहुत बड़ा,
नीला आसमान है।
और इस बरामदे में धूप और हल्की-सी हवा और एक बसंत।

प्रश्न :
(क) इस कविता का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) कवि क्या देख रहा है?
(ग) गुलाब कैसे हैं?
(घ) पौधे बाहर की ओर क्यों झुके जा रहे हैं?
(ङ) चिड़िया क्या कर रही है?
(च) आकाश की दशा कैसी है?
उत्तर :
(क) धूप।
(ख) कवि देख रहा है कि लंबी खिड़की पर रखे हुए पौधे धूप की ओर बाहर झुके जा रहे हैं।
(ग) गुलाब खिले हुए हैं। कुछ बहुत कसे हुए हैं तथा कुछ की पंखुड़ियाँ झरने वाली हैं। हल्की-सी हवा के चलते ही पंखुड़ियाँ झड़ जाती हैं। वातावरण सुवासित है।
(घ) पौधे बाहर की ओर इसलिए झुक रहे हैं क्योंकि बाहर धूप है। ऐसा लगता है जैसे धूप उन्हें बाहर खींच रही है।
(ङ) चिड़िया कानिंस पर तिनके ला-लाकर धरने लगी है। वह तिनका लेकर फुर् से उड़ जाती है।
(च) आकाश नीला है। उसमें धुआँ नहीं है। आकाश में बादल भी नहीं हैं।

(छ) कवि को किस फूल की गमक प्रतीत हो रही है?
(i) बेला
(ii) गुलाब
(iii) सूरजमुखी
(iv) रातरानी
उत्तर :
(ii) गुलाब की

(ज) किस पक्षी की घोंसले की कई कहानियों का जिक्र रचनाकार द्वारा किया गया है?
(i) तोता
(ii) गौरैया
(iii) मैना
(iv) तीतर
उत्तर :
(ii) गौरैया

9. अभी न होगा मेरा अंत,
अभी-अभी ही तो आया है,
मेरे वन में मृदुल वसंत-
अभी न होगा मेरा अंत।
हरे-हरे ये पात,
डालियाँ, कलियाँ, कोमल गात।
में ही अपना स्वप्न-मृदुल-कर,
फेरूँगा निद्रित कलियों पर,
जगा एक प्रत्यूष मनोहर।
पुष्प-पुष्प से तंद्रालस लालसा खीच लूँगा मैं,
अपने नव जीवन का अमृत सहर्ष सींच दूँगा मैं,
द्वार दिखा दूँगा फिर उनको
हैं मेरे वे जहाँ अनंत-
अभी न होगा मेरा अंत।
मेरे जीवन का यह है जब प्रथम चरण,
इसमें कहाँ मृत्यु,
है जीवन ही जीवन।
अभी पड़ा है आगे सारा यौवन;
स्वर्ण-किरण-कल्लोलों पर बहता रे यह बालक-मन;
मेरे ही अविकसित राग से,
विकसित होगा बंधु दिगंत-
अभी न होगा मेरा अंत।

प्रश्न :
(क) इस कविता का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) कवि ने यह क्यों कहा है कि अभी उसका अंत नहीं होगा?
(ग) कवि अपना सर्वस्व कहाँ अर्पित करना चाहता है और क्यों?
(घ) कवि ने इसे अपने जीवन का प्रथम चरण क्यों कहा है?
(ङ) इस कविता का मूलभाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
(क) अभी न होगा मेरा अंत।
(ख) कवि का मानना है कि अभी-अभी उसके मन में नवीन उत्साह का संचार हुआ है, उसे बहुत कुछ करना है, इसलिए उसका अभी अंत नहीं हो होगा।
(ग) कवि अपना सर्वस्व लोक-कल्याण में लगा देना चाहता है, जिससे संसार के समस्त प्राणियों का भला हो सके।
(घ) कवि ने हमें अपने जीवन का प्रथम चरण इसलिए कहा है क्योंकि वह यौवन की दहलीज पर खड़ा है और उत्साह तथा शक्ति से परिपूर्ण है।
(ङ) इस कविता में कवि जीवन संघषों से जूझता हुआ भी नवीन उत्साह से परिपूर्ण है। वह उमंग से भीगा संसार में नवजीवन का संचार कर देना चाहता है। वह अपना सर्वस्व लोक कल्याण में अर्पित कर देना चाहता है। वह सबको अपने प्रेम के रंग में रंग देना चाहता है। वह आशावान है, इसलिए उसके जीवन का अंत नहीं होगा।

(च) कवि किससे भयभीत है?
(i) मृत्यु से
(ii) अनंत से
(iii) स्वप्न से
(iv) राग से
उत्तर :
(i) मृत्यु से

(छ) रचनाकार अपने जीवन का कौन-सा चरण स्वीकार करता है?
(i) प्रथम चरण
(ii) द्वितीय चरण
(iii) तृतीय चरण
(iv) चतुर्थ चरण
उत्तर :
(i) प्रथम चरण

(ज) कवि जीवन के अमृत से क्या काम करेगा?
(i) दुख प्रकट करेगा।
(ii) सहर्ष सिंचन करेगा।
(iii) पान करेगा।
(iv) शांत बैठा रहेगा।
उत्तर :
(ii) सहर्ष सिंचन करेगा।

10. जग में सचर-अचर जितने हैं, सारे कर्म निरत हैं।
धुन है एक-न-एक सभी को, सब के निश्चित व्रत हैं।
जीवन-भर आतप सह वसुषा पर छाया करता है।
तुच्छ पत्र की भी स्वकर्म में कैसी तत्परता है।।
रवि जग में शोभा सरसाता, सोम सुधा बरसाता।
सब हैं लगे कर्म में, कोई निष्क्रिय दृष्टि न आता।
है उद्देश्य नितांत तुच्छ तृण के भी लघु जीवन का।
उसी पूर्ति में वह करता है अंत कर्ममय तन का।
तुम मनुष्य हो, अमित बुद्धि-बल-बिलसित जन्म तुम्हारा।
क्या उद्देश्य-रहित हो जग में, तुमने कभी विचारा?
बुरा न मानो, एक बार सोचो तुम अपने मन में।
क्या कर्तव्य समाप्त कर लिया तुमने निज जीवन में?
जिस पर गिरकर उदर-दरी से तुमने जन्म लिया है।
जिसका खाकर अन्न, सुधा-सम नीर, समीर पिया है।
वह स्नेह की मूर्ति दयामयी माता तुल्य मही है।
उसके प्रति कर्तव्य तुम्हारा क्या कुछ शेष नहीं है ?
केवल अपने लिए सोचते, मौज भरे गाते हो।
पीते, खाते, सोते, जगते, हैंसते, सुख पाते हो।
जग से दूर स्वार्थ-साधन ही सतत तुम्हारा यश है।
सोचो, तुम्हीं, कौन अग-जग में तुम-सा स्वार्थ विवश है?
यह संसार मनुष्य के लिए एक परीक्षा-स्थल है।
दुख है, प्रश्न कठोर देखकर होती बुद्धि विकल है।
किंतु स्वात्म बल-विज्ञ सत्पुरुष ठीक पहुँच अटकल से।
हल करते हैं प्रश्न सहज में अविरल मेधा-बल से।।
पैदा कर जिस देशजाति ने तुमको पाला-पोसा।
किए हुए है वह निज-हित का तुमने बड़ा भरोसा।
उससे होना उत्रूण प्रथम है सत्कर्तव्य तुम्हारा।
फिर दे सकते हो वसुधा को शेष स्वजीवन सारा ॥

प्रश्न :
(क) इस कविता का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) जड़ और चेतन में क्या समानता है?
(ग) सूर्य और चंद्रमा किस प्रकार कर्मरत हैं?
(घ) मनुष्य का सबसे पहला कर्तव्य क्या और क्यों है?
उत्तर :
(क) सत्कर्तव्य।
(ख) संसार में सभी जड़ और चेतन किसी-न-किसी कर्म में सदा लीन रहते हैं। यही इन दोनों में समानता है।
(ग) सूर्य संसार को प्रकाश और ऊर्जा प्रदान करता है। चंद्रमा चाँदनी के रूप में अमृत वर्षा करता है। इस प्रकार दोनों अपने-अपने कर्म में लीन रहते हैं।
(घ) मनुष्य का सबसे पहला कर्तव्य अपनी मातृभूमि की सेवा करना है क्योंकि यही हमारा पालन-पोषण करती है।

(ङ) मनुष्य अन्य पदार्थों और जीवों से कैसे भिन्न है?
(i) स्वभाव के कारण
(ii) शक्ति के कारण
(iii) बुद्धि के कारण
(iv) ये सभी
उत्तर :
(iii) बुद्धि के कारण

(च) मनुष्य स्वार्थी कैसे है?
(i) वह अपनी सुविधा के बारे में सोचता है।
(ii) उसे देश की चिंता नहीं होती।
(iii) वह स्वयं सब कुछ प्राप्त कर लेना चाहता है।
(iv) ये सभी।
उत्तर :
(iv) ये सभी।

(छ) संसार परीक्षा-स्थल क्यों है?
(i) क्योंकि मनुष्य को अच्छाइयों से सामना करना पड़ता है।
(ii) क्योंकि मनुष्य को कठिनाइयों से सामना करना पड़ता है।
(iii) क्योंकि मनुष्य को मनोभावों के प्रतिकूल चलना पड़ता है।
(iv) क्योंकि मनुष्य को सत्यता से सामना करना पड़ता है।
उत्तर :
(ii) क्योंकि मनुष्य को कठिनाइयों से सामना करना पड़ता है।

(ज) मनुष्य संसार की परीक्षा में कैसे उत्तीर्ण हो सकता है?
(i) आत्मशक्ति पहचान कर
(ii) बुद्धि का प्रयोग कर
(iii) कठिनाइयों का सामना कर
(iv) ये सभी
उत्तर :
(iv) ये सभी

11. हर बीज प्रयासरत है, अंकुरित होने के लिए।
हर अंकुर प्रयासरत है, फलने-फूलने के लिए।
बड़े-बड़े देवदार प्रयासरत है, गगन छूने के लिए।
नदियाँ प्रयासरत हैं, सागर में जाने के लिए।
समुद्र की लहरें प्रयासरत हैं, भाप बन उड़ जाने के लिए।
बादल प्रयासरत हैं, कहीं भी बरस जाने के लिए।
हर बच्चा प्रयासरत है, शीप्र बड़ा होने के लिए।
हर जबानी प्रयासरत है, हर प्रसन्तता पाने के लिए।
हर व्यक्ति यहाँ प्रयासरत है, कुछ न कुछ होने के लिए।
दुखी प्रयासरत है, सुखी होने के लिए।
गरीब प्रयासरत है, अमीर होने के लिए।
भिखारी भी चाहता है सम्राट बन जाना।
सम्राट भी प्रयासरत है यहाँ, महा सम्राट होने के लिए।
हर राही प्रयासरत है, अपनी मंजिल पाने के लिए।
हर कर्म हर क्रिया प्रयासरत है, कुछ अन्यथा होने के लिए।
हर नेता प्रयासरत है, देश की एकता के लिए।
हर जीवन प्रयासरत है, अमरत्व को पाने के लिए।
साधु भी प्रयासरत है, अपनी साधना में।
योगी भी प्रयासरत है, अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए।
भक्त भी प्रयासरत है, भगवान पाने के लिए।
भोगी भी प्रयासरत है, हर वस्तु भोगने के लिए।
कोई भी व्यक्ति, प्रयास से छूट नहीं सकता।
प्रयास ही घुमा रहा है, हर तन को हर मन को।
प्रयास का क्या कोई अंत नहीं है, प्रयास की गागर अंतहीन है।
सभी डूब जाते हैं इसमें, कभी कोई ‘महावीर’ नाप पाता है,
इसकी गहराइयों को।
गौतम ने भी किया था प्रयास, छह साल निरंतर, अविरल।
तब पा सका था छोर, अप्रयास का
सब खो जाता है इसमें, व्यक्ति भी, सम्राट भी।
हर जन्म प्रयासरत है, मौत को पाने के लिए।
जीवन संघर्षरत है, मौत से छूट जाने के लिए।
एक मौत है, जो प्रयासरत नही है।
न कुछ पाने के लिए, न कहीं जाने के लिए।
प्रयास से छूटना ही, हर रोग से छूटना है।
प्रयास जब पूर्ण होगा, ले जाएगा अप्रयास में।
अप्रयास असीम है, अप्रयास ठहराव है।
अप्रयास अमन है, अप्रयास अव्यक्त है।
अप्रयास धर्म है, अप्रयास नियम है।
अप्रयास ताओ है, अप्रयास ही शाश्वत है।
अप्रयास ही है, एक धम्मो सनातनो।

प्रश्न :
(क) इस कविता का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) बीज क्या चाहता है और अंकुर का प्रयास क्या है?
(ग) साधु की क्या कामना है और क्यो?
(घ) गौतम ने क्या किया था और क्यों?
उत्तर :
(क) प्रयास।
(ख) बीज चाहता है कि वह अंकुरित हो जाए और अंकुर फल-फूलकर पौधा अथवा वृक्ष बनना चाहता है।
(ग) साधु साधना करना चाहता है, जिससे उसे अपने आराध्य की प्राप्ति हो जाए और वह अपना जीवन सफल कर सके।
(घ) गौतम ने प्रयास किया था। वह निरंतर छह वर्षों तक तपस्या करते रहे। अंत में उनका प्रयास सफल हुआ और उन्होंने अपना लक्ष्य प्राप्त कर लिया।

(ङ) मनुष्य का जीवन क्या है?
(i) शांत बैठकर चिंतन करना
(ii) निरंतर संघर्ष करना
(iii) प्रयास रहित रहना
(iv) कुछ न पाने का प्रयास करना
उत्तर :
(ii) निरंतर संघर्ष करना

(च) नदियाँ किस लक्ष्य को पाने के लिए प्रयासरत हैं?
(i) बाढ़ लाने के लिए
(ii) लोगों को स्नान कराने के लिए
(iii) सागर में मिलने के लिए
(iv) किसानों को समृद्ध करने के लिए
उत्तर :
(iii) सागर में मिलने के लिए

(छ) अमरत्व पाने के लिए कौन प्रयासरत हैं?
(i) सम्राट
(ii) गौतम
(iii) जीवन
(iv) जवानी
उत्तर :
(iii) जीवन

(ज) मंजिल पाने के लिए कौन प्रयासरत हैं?
(i) नेता
(ii) भक्त
(iii) बादल
(iv) राही
उत्तर :
(iv) राही

12. प्रेम क्या है?
क्या केवल एक रीता-सा शब्द,
जिसे जब जो चाहे,
अधरों पर ओढ़ ले,
और या फिर छल-कपट,
का वह बाण,
जो ले ले अटूट विश्वास,
के प्राण,
शायद रावण है प्रेम,
भिक्षुक बन है दया जगाता।
मन की सीता हर ले जाता,
नहीं । यह नहीं प्रेम की परिभाषा,
प्रेम है जीवन, जीवन की आशा।
प्रेम वह कृष्ण है,
जो करता रक्षा मीरा की।
अन्नकण है वह,
भरे उदर भगवन का।
विश्वास है जो चीर बन,
जाए लिपट अंगों से अबला के।
शक्ति है अनूसूया की,
कर दे बालक देवों को।
रश्मि से सूर्य की,
धरा का कण-कण करे उजियारा। ओस की बूँद है,
आकाश को त्याग।
ठहर राजीव-पाखुंड़ी पर एक पल,
समा जाती वसुंधरा वक्ष में।
खग नीड़ का तिनका है,
भविष्य निर्माण का बने स्तंभ।
सागर की लहर है,
बाँट देती बालू को मोती।
धवल आँचल है विधवा का,
ओढ़ कर जिसे,
कहलाती वह समर्पिता।
सिंदूर है सुहागन का,
लक्ष्मण रेखा सा।
स्नेह चुंबन है ममता का।
तीन लोक राज्य सा,
पश्चात्ताप का अश्रुकण है प्रेम।
जो देता थो,
समस्त पापों को।
प्रेम की परिभाषा कठिन तो नहीं,
मगर कहने को चाहिए,
एक जीवन का समय।

प्रश्न :
(क) इस कविता का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) ‘क्या केवल एक रीता सा शब्द’ से क्या तात्पर्य है?
(ग) प्रेम का जीवन से क्या संबंध है?
(घ) तीन लोक का राज्य-सा किसे और क्यों कहा गया है?
(ङ) प्रेम की परिभाषा कही क्यों नहीं जा सकती?
उत्तर :
(क) प्रेम की परिभाषा।
(ख) इस पंक्ति का तात्पर्य यह है कि ‘प्रेम’ केवल एक शब्द नहीं है। इसे मन की भावनाओं से समझा जा सकता है। केवल ‘ ‘र्रेम’ शब्द का उच्चारण करने से इसका भाव स्पष्ट नहीं होता है।
(ग) प्रेम का जीवन से अभिन्न संबंध है। प्रेम से ही जीवन सुचारु रूप से चलता है। प्रेम से जीवन में आशा का संचार होता है और मनुष्य के मन में जीवन को जीने की चाह उत्पन्न होती है।
(घ) प्रेम को तीन लोक का राज्य-सा कहा गया है क्योंकि प्रेम ही किसी प्रेमिका में अपने प्रेमी के प्रति समर्पित करने का भाव उत्पन्न करता है। माता का बालक के प्रति प्रेम उसकी ममता का सर्वोत्तम उदाहरण है। इसलिए प्रेम को तीन लोक के राज्य-सा माना गया है।
(ङ) प्रेम एक अनुभव करने की भावना है। इसे शब्दों के माध्यम से व्यक्त करना बहुत कठिन होता है। इसलिए इसकी परिभाषा भी नहीं दी जा सकती। इसे केवल महसूस किया जा सकता है।

(च) भिक्षुक बनकर दया जगाने का काम किसने किया था?
(i) विभीषण
(ii) लक्ष्मण
(iii) मारीच
(iv) रावण
उत्तर :
(iv) राबण

(छ) प्रेम रूपी कृष्ण ने किसकी रक्षा की थी?
(i) राणा जी की
(ii) मीरा की
(iii) सूर की
(iv) अनसूया की
उत्तर :
(ii) मीरा की

(ज) कविता में बालक देव किन्हें कहा गया है?
(i) ब्रहम, विष्णु, महेश
(ii) राम, लक्ष्मण, भरत
(iii) कृष्ण, सुदामा, बलराम
(iv) ये सभी
उत्तर :
(i) ब्रह्म, विष्णु, महेश

13. माँ कितना प्यार करती है उसे,
अभी वह महसूस नहीं कर सकता।
क्योंकि अभी वह बहुत छोटा है।
अपने जीवन को संघर्षों के साथ,
हर खुशी व दुखों के साथ,
हैसते-हैंसते काट रही है।
हर एक होने वाली उथल-पुथल को,
स्वयं झेल रही है।
सच! कितना विशाल ह्ददय है,
जिसमें समाया रहता है उसका,
तुम्हारे प्रति प्यार।
जो दुखों में ज़रा भी विचलित नहीं होती,
लाखों कष्ट सहती है हैंसते-हैसते।
तुम्हें कुछ बनाने के लिए,
ठीक तरह से पालने-पोसने के लिए।
सब कुछ भूल जाती है वह,
क्योंकि वह तुममें (अपने बेटे में) व्यस्त है।
कहीं कोई कमी न रह जाए,
बेटे का जीवन कहीं से भी अधूरा न रह जाए।
एक पुरानी पोटली में तुम्हारे टूटे खिलौने,
और पुराने कपड़ों को बड़ा सहेजकर रखती है।
तुम्हारे बचपन को उनमें,
देखकर याद कर लेती है।
तुमसे कितना प्यार करती है।
सच! कितनी भोली है माँ,
जिसे यह मालूम नहीं कि,
कुछ ही दिन शेष हैं,
अब तुम्हारे और उसके संबंधों में,
अब पहले जैसी बात नहीं रहेगी, क्योंकि
तुम्हारे प्रति माँ का सँजोया सपना,
अब पूर्ण हो चुका है।
उसका बेटा बड़ा आदमी बन गया है।
लेकिन
तुम माँ के प्रति अपने कर्तव्य, भुला मत देना।
नहीं भूलना कि तुम्हें बनाने में,
उसके चेहरे पर झुर्रियाँ पड़ गई हैं।
पैरों में बिवाई फट गई है।
उसकी कमर झुक गई है।
उसके बुद़ापे का अब तुम ही सहारा हो।
वह तुम्हारी माँ है।
श्रद्ध्येया माँ।
आज केवल हड्डियों का ढाँचा मात्र
चारपाई पर लेटी है।
तुम्हारे इंतज्ञार में,
क्योंकि वह थक गई है।
तुम्हारे जीवन को बनाने में,
वह माँ है,
श्रद्धेया माँ,
आदरणीया माँ।

प्रश्न :
(क) कविता का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) वह क्या अनुभव नहीं करता और क्यों?
(ग) माँ क्या-क्या करती है और उसका हददय कैसा है?
(घ) माँ को भोली क्यों कहा गया है?
(ङ) बेटे को माँ के लिए क्या करना चाहिए?
उत्तर :
(क) माँ की ममता।
(ख) वह अभी बच्चा है। उसे अभी यह अनुभव नहीं होता कि उसकी माँ उससे कितना प्यार करती है। वह उसके हर दुख-सुख में उसके साथ है।
(ग) माँ अपने बच्चे के लिए सब कुछ करती है। वह उसकी प्रत्येक सुविधा का ध्यान रखती है। प्रत्येक कष्ट को स्वयं हँसते-हँसते झेल जाती है परंतु अपने बच्चे को कष्ट नहीं होने देती। उसका हृदय बहुत विशाल है। उस के हृदय में सदा अपने बच्चे के प्रति प्यार समाया रहता है।
(घ) माँ को भोली इसलिए कहा गया है क्योंकि वह बेटे के बड़ा हो जाने पर भी उसकी बचपन की वस्तुओं को सँभाल कर रखती है और उसके बचपन को याद कर उसी में खो जाती है जबकि बेटा बड़ा होकर बड़ा आदमी बन गया है और उसे अपनी माँ की आवश्यकता महसूस नहीं होती।
(ङ) बेटे को अपनी माँ के प्रति अपना कर्तव्य भूलना नहीं चाहिए। वह अपनी बूढ़ी माँ का एकमात्र सहारा है। वह अब बहुत कमज्रोर हो गई है। जीवनभर उसने बेटे का जीवन सँवारा, अब बेटे को उसकी देखभाल करनी चाहिए।

(च) माँ को कैसा बताया गया है?
(i) चंचल
(ii) गंभीर
(iii) सख्त
(iv) भोली
उत्तर :
(iv) भोली

(छ) माँ का सँजोया सपना कब साकार हुआ?
(i) जब घर में अचानक धन मिल गया।
(ii) बेटा बड़ा आदमी बन गया।
(iii) जब खेतों में अन्न हुआ।
(iv) ये सभी।
उत्तर :
(ii) बेटा बड़ा आदमी बन गया।

(ज) ‘हड्डियों का ढाँचा मात्र’ का भाव है-
(i) कंकाल तंत्र
(ii) पतला शरीर
(iii) वृद्ध निर्बल शरीर
(iv) मांसल शरीर
उत्तर :
(iii) वृद्ध निर्बल शरीर

14. तुम्हारे रूप और साँदर्य में कशिश है
तुम्हारी बातों में अनूठा रस है
तुम्हारी हँसी का अपना जादू है
लेकिन मैं तुम्हारे प्रति आकर्षित नहीं हूँइन सबके कारण।
मैं तुम्हारी ओर आकर्षित हूँ
और लगाव महसूस करता हैँ तुम्हारे प्रति
मात्र तुम्हारे आकर्षक व्यक्तित्व के निमित्त।
तुम्हारा व्यक्तित्व ही तुम्हें,
बनाता है साधारण के बीच,
असाधारण।
ऐसे ही व्यक्तित्व की तलाश थी मुझे,
न जाने कब से,
खोजा करता उसे,
परिचित-अपरिचित सुंदरियों में,
प्रतिभासंपन्न नारियों में,
या ममतामयी देवियों में।
पर कुछ ही दिनों में,
वे प्रतीत होने लगती थीं –
अपूर्ण और विभक्त।
और उनके प्रति आकर्षण भी
हो जाता था तिरोहित।
पर जब से मिलीं तुम, कुछ संयोग से,
कुछ सौभाग्य से
मैं महसूस करने लगा तुमसे
एक आत्मीय लगाव और जुड़ाव।
अन्य सभी तरह के आकर्षण,
वय के साथ घटते जाते हैं
पर व्यक्तित्व का आकर्षण
उम्र के साथ बढ़ता ही जाता है।
फिर क्यों न मैं कामना करूँओ काम्या।
एक ऐसे आकर्षण की
जो दिनोंदिन बढ़ता ही जाएगा।
वह मृत्यु पर्यंत ही नहीं।
मृत्यु उपरांत भी साथ निभाएगा।

प्रश्न :
(क) इस कविता का उच्चित शीर्षक लिखिए।
(ख) कवि ‘उस’ के प्रति किस कारण आकर्षित नहीं है?
(ग) कवि ‘उस’ के प्रति कैसे आकर्षित है?
(घ) कैसा आकर्षण निरंतर घटता जाता है और कैसा निरंतर बढ़ता जाता है?
(ङ) कवि को कैसी कामना है ?
उत्तर :
(क) व्यक्तित्व का आकर्षण।
(ख) कवि ‘उस’ के साँदर्य, उसकी मीठी बातों, उसकी जादूभरी हँसी आदि के कारण ‘उस ‘ के प्रति आकर्षित नहीं है।
(ग) कवि ‘उस’ के असाधारण व्यक्तित्व के कारण ‘उस’ के प्रति आकर्षित है।
(घ) आयु बढ़ने के साथ-साथ किसी के साँदर्य, हाव-भावों, हँसी, मीठी बातों आदि का आकर्षण निरंतर कम होता जाता है परंतु किसी के व्यक्तित्व का अनूठापन आयु बढ़ने के साथ ही निरंतर बढ़ता जाता है तथा और अधिक आकर्षक लगने लगता है।
(ङ) कवि की इच्छा है कि उसे ऐसा आकर्षक व्यक्तित्व अपनी ओर आकर्षित करे जिसकी शोभा दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जाए। ऐसा आकर्षण उसका उसकी मृत्यु तक ही नहीं अपितु मृत्यु के बाद भी उसका साथ निभाएगा।

(च) कवि के अनुसार अनूठा रस किसमें हैं?
(i) व्यक्तित्व में
(ii) हैसी में
(iii) बात में
(iv) कार्य में
उत्तर :
(iii) हैसी में

(छ) व्यक्ति साधारण से असाधारण कैसे बनता है?
(i) शक्ति अर्जित करके
(ii) अच्छे व्यक्तित्व से
(iii) अच्छे काम से
(iv) अच्छे वेतन से
उत्तर :
(ii) अच्छे व्यक्तित्व से

(ज) व्यक्तित्व का आकर्षण उग्र के साथ-
(i) रुक जाता है।
(ii) घटता जाता है।
(iii) बढ़ता जाता है।
(iv) ठहर जाता है।
उत्तर :
(iii) बढ़ता जाता है।

15. तुम कहीं भी रहो
तुम्हें क्यों
हिमालय अपना लगता है ?
दुश्मनों की कुदृष्टि से
धवलता जब मैली होने लगती है
तो तुम क्यों सन्नद्ध हो जाते हो,
सभी कुछ भूल?
गंगा के जल की कल-कल
क्यों तुम्हें दूर-दूर से
बुलाती लगती है?
कानों में गुनगुनाती सदैव
क्यों तुम्हें अपनी बाँहों में
खींचती लगती है?
कन्याकुमारी का जल-किलोल देखते
कश्मीर के दुख में डूब जाते हो
पंजाब के गीतों को दोहराते
क्यों उदासी में सिमट जाते हो,
सुन-सुनकर असम की मरोड़
विषमता पर क्रुद्ध हो जाते हो,
क्यों-आखिर क्यों?
इसका उत्तर
वह सूत्र है-
जिसे तुम मुश्किल में याद कर
भारत को विजयश्री दिलाते हो –
फिर क्यों इसे भूल जाते हो?
क्यों मन में भ्रम उपजाते हो
अलग-अलग से अनमने हो
कहाँ भटक जाते हो?
इस महाभाव को
भारतभाव को
सूक्ष्मभाव को
हमें वह मोड़ देना है
कि यह कभी टूटे नहीं
हम से कभी छूटे नहीं,
यही वह सूत्र है
जो हमें पिरोना है
मन की माला को
इसमें संजोना है
वैर-भाव का भूत भगाकर
मनभावन मन होना है।
टूटे नहीं कभी
मन से मन का भारत-रिश्ता
क्योंकि एकता बँधा देश
कभी नहीं पिसता।
किसी से नहीं पिसता।

प्रश्न :
(क) कविता का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) हिमालय के संबंध में हमारी भावनाएँ कैसी हैं?
(ग) गंगा की क्या विशेषता है?
(घ) हमें किस ‘ भाव’ को बनाकर रखना है?
(ङ) देश कब पराजित नहीं होता?
उत्तर :
(क) भारतभाव।
(ख) हिमालय हमें सदा अपना लगता है। इस पर जब भी कभी शत्रु आक्रमण करता है तो हम सब एक होकर इसकी रक्षा करते हैं।
(ग) गंगा भारत की सर्वोत्तम पूज्य नदी है। इसके जल की कल-कल ध्वनियाँ सदा भारतवासियों के कानों में गूँजती रहती हैं। इसका आकर्षण प्रत्येक भारतवासी को इसके पास खींच लाता है।
(घ) हमें सदा परस्पर मिल-जुलकर रहने का भाव विकसित करना है। प्रत्येक देशवासी के मन में ऐसा भारतभाव जगाना है कि वह समस्त भेदभाव भूलकर स्वयं को केवल भारतवासी ही समझे तथा भारत की रक्षा के लिए सदा तैयार रहे।
(ङ) किसी भी देश को कोई भी शत्रु तब तक पराजित नहीं कर सकता जब तक वह देश तन-मन-धन से एकता के सूत्र में बँधा रहता है। वहाँ कोई भी भेदभाव नहीं होता तथा ‘देशभाव प्रमुख’ होता है।

(च) हमें कौन दूर से बुलाती है?
(i) हिमालय की चोटी
(ii) गंगा की कलकल
(iii) विजयश्री के बोल
(iv) मन का गीत
उत्तर :
(ii) गंगा की कलकल

(छ) क्या सुन-सुनकर विषमता पर कुच्ध हो जाते हैं?
(i) पंजाब के गीत
(ii) जल किलोल
(iii) भाले की आवाज्र
(iv) ये सभी
उत्तर :
(i) पंजाब के गीत

(ज) कवि किसका भूत भगाना चाहता है?
(i) भय का भूत
(ii) वैर-भाव का भूत
(iii) ईमानदारी का भूत
(iv) सच्चाई का भूत
उत्तर :
(i) भय का भूत

16. कवि कुछ ऐसा भाव जगा दो…
काँटा मृदुल सुमन बन जाए, उज्वल मन-दर्पण बन जाए।
जीवन के उपयुक्त मनोहर, वसुधा का कण-कण बन जाए ।
वो देखो हो गई पराई, नवयुवती ले रही विदाई ॥
स्वप्न सुनहले उर में जिसके, रह-रह कर लेते अँगड़ाई ॥
उसका भी अपना घर होगा, नव पथ सुंदर सुखकर होगा॥
ममता, प्यार, नेह की वर्षा, आँगन करता जलधर होगा॥
यह कैसी आँधी चढ़ आई? जिसने चिंगारी सुलगाई।।
जली दुल्हनियाँ, जलते सपने, मुट्ठीभर बस राख बनाई ॥
क्या तन से बढ़कर कंचन है? क्या मन से बढ़कर चिंतन है?
द्रव्य नहीं आधार प्यार का, यह तो इक विनम्र अर्पण है।
कवि कुछ ऐसा भाव जगा दो…
हर मस्तक चिंतन बन जाए। पाहन भी कंचन बन जाए।
कलि से मधुकर नहीं दूर हो, मधुर-मधुर जीवन बन जाए।
हिंदु, मुस्लिम, सिख, ईसाई। भाई-भाई करें लड़ाई ।
प्रेम-एकता बंधन टूटे, कड़वाहट बढ़ रही बुराई॥
इसने जला दिया गुरुद्वारा। उसका मंदिर टूटा सारा॥
हिली चर्च, मसजिद की इटें, फिरे देवता मारा-मार॥
धर्म नहीं लड़ना सिखलाता। नहीं समझ में इनके आता।
धर्म परस्पर जुड़ें इस तरह, रवि का किरणों से ज्यूँ नाता ॥
लहू एक भगवान एक है, सबमें जीव समान एक है ॥
भाषा, धर्म, रिवाज भिन्न हों, लेकिन हिंदुस्तान एक है॥
कवि कुछ ऐसा भाव जगा दो…
जन-मन द्वेष हवन बन जाए। हर घर प्रेम-भवन बन जाए॥
उड़े चलें हिंसा के बादल, भीषण वेग पवन बन जाए।

प्रश्न :
(क) कविता का उच्चित शीर्षक लिखिए।
(ख) कवि कैसा भाव जगाना चाहता है?
(ग) विदाई के समय नवयुवती क्या सोचती है?
(घ) ‘तन से बढ़कर कंचन’ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर :
(क) कवि की कामना।
(ख) कवि देशवासियों में प्रेमभाव का प्रसार करना चाहता है जिससे सर्वत्र सुख, समृद्धि एवं आनंद का साम्राज्य हो। कोई परस्पर द्वेष-भाव नहीं रखे तथा सब स्वयं को हिंदुस्तानी समझ कर रहें।
(ग) विदाई के समय नवयुक्ती सोच रही थी कि उसका भी एक सुंदर-सा अपना घर होगा। उसका वैवाहिक जीवन सुखद, प्रेमपूर्ण तथा समृद्ध होगा।
(घ) इस कथन का तात्पर्य यह है कि आज के भौतिकतावादी समाज में मनुष्यता के स्थान पर व्यक्ति के आर्थिक स्तर का अधिक महत्त्व हो गया है। लोग व्यक्ति के व्यक्तित्व को नहीं उसकी दौलत को पूजते हैं।

(ङ) धर्म क्या नहीं सिखाता?
(i) परस्पर लड़ना
(ii) मिल-जुलकर रहना
(iii) द्वेष करना
(iv) विकल्प (i) तथा (ii)
उत्तर :
(iv) विकल्प (i) तथा (ii)

(च) कवि ने द्रव्य को क्या बताया?
(i) प्यार का आधार
(ii) एकता का आधार
(iii) विनम्र अर्पण
(iv) मन का आधार
उत्तर :
(iii) विनम्र अर्पण

(छ) कवि के अनुसार पाहन को क्या बनना चाहिए?
(i) मोती
(ii) कंचन
(iii) राख
(iv) चिनगारी
उत्तर :
(ii) कंचन

(ज) किसे एक समान नहीं माना गया है?
(i) लहू
(ii) जीव
(iii) भगवान
(iv) भाषा
उत्तर :
(iv) भाषा

17. उसका गुड़ियों को
समेटकर रख देने के बाद
अपना घर बसाने का सम्मोहन
अकसर ही उन्मुक्त नदी के प्रवाह की
स्मृतियाँ हरी कर देता है,
दर्शकों की अश्रु विगलित आँखों में
पर हाँ, नदी की आँखें हैं ही कहाँ
भ्रम है उसके सहख्य नेत्री होने का।
उसके पास तो रास्ता है।
जिधर भी ढलान नज़र आ जाए
उधर ही बहते रहने के लिए।
पूछा मैंने एक दिन
लक्ष्य विहीन जीवन
क्यों जीने को विवश है नदी।
मुझे पता है लक्ष्य
मैं अगर अथाह समुद्र तक
नहीं पहुँची कभी
तो सूख जाऊँगी यहाँ।
कोई शिकवा शिकायत नहीं होगी।
खारेपन में विलीन होने से
बच जाऊँगी ना, इसी तरह।
कितना मोह है नदी को।
अपने ही मार्ग से
अपनी अस्तित्व-लीला
समेट लेने का।
ठीक उसी तरह
भारतीय कन्या
अपने पिता का घर छोड़
गतिशील नदी की तरह
मंथर गति से बढ़ जाती है,
अपना जीवन मंतव्य तलाशने।
समुद्र तक नहीं पहुँची
खारेपन का अंग बनने
बस अपने घर में ही
तलाशती रहती है अपनापन
छूट गया है जो पिता के घर
मूक गुड़ियाओं के साथ ही साथ।
नदी जग भर का विषय पी
इसी तरह विष पी-पीकर
नीलकंठी बनी वह
भारतीय कन्या भी
जीवनामृत बाँटती रहती है
आस्था की नई-नई
परिभाषाएँ लिखती रहती हैं।

प्रश्न :
(क) कविता का उच्चित शीर्षक लिखिए।
(ख) कवि को क्या याद आ जाता है?
(ग) नदी के पास क्या नहीं और क्या है?
(घ) नदी अपने अस्तित्व कहाँ और क्यों समाप्त कर देना चाहती है?
(ङ) भारतीय कन्या नीलकंठी क्यों है?
उत्तर :
(क) नदी की तरह।
(ख) कवि को अपनी छोटी बच्ची का गुड़ियों को समेटकर रखना याद आ जाता है। जब उसकी बेटी का विवाह होने वाला था तो वह उस अवसर को स्मरण कर आँखें नम कर लेता है।
(ग) नदी के पास आँखें नहीं हैं कि वह देख सके जबकि उसे सहस्र नेत्रा कहा जाता है। नदी तो सदा बहती रहती है। जिधर बलान नजर आ जाए, उधर बह जाती है।
(घ) नदी अपना अस्तित्व अपने मार्ग में ही समाप्त कर देना चाहती है क्योंकि वह स्वयं को सागर के खारे पानी में विलीन नहीं करना चाहती।
(ङ) भारतीय कन्या नदी की तरह संसारभर का विष पी-पीकर नीलकंठी बनकर जीवनभर नदी की तरह सबको जीवन रूपी अमृत बाँटती रहती है। नदी समस्त विकारों को धोकर सबको निर्मल जल देती है तथा भारतीय कन्या सब कष्ट सहकर सबको सुख देती है।

(च) कवि किसके सहस्त्रनेत्री होने का भ्रम उपजाता है ?
(i) गुड़िया
(ii) नदी
(iii) स्मृति
(iv) नजर
उत्तर :
(ii) नदी

(छ) कौन गतिशील नबी की तरह मंथर गति से जीवन मंतब्य तलाशने के लिए बढ़ती जाती है?
(i) भारतीय नौका
(ii) भारतीय कन्या
(iii) मूक गुड़िया
(iv) परी
उत्तर :
(ii) भारतीय कन्या

(ज) भारतीय कन्या किस पर नई-नई परिभाषाएँ लिखती रहती है?
(i) दहेज पर
(ii) पराएपन पर
(iii) शिकवा-शिकायत पर
(iv) आस्था पर
उत्तर :
(iv) आस्था पर

18. राष्ट्र के प्रहरी सजग, धोखा न खाना।
सो रहा सारा जहाँ पर तुम अकेले जग रहे हो।
राष्ट्र के खातिर अटल रह एक पल सोए नहीं तुम।
रातभर चलते ही चलते जा रहे थकते नहीं तुम।
छोड़ घर आए प्रिया औ’ दुधमुँहे बच्चे सतौने।
क्या न भर आती तुम्हारी आँख यादों को भिगोने ?
त्याग-तब की मूर्ति तुम पर नाज्त करता है ज्ञमाना।
राष्ट्र के प्रहरी सजग, धोखा न खाना।
है भयानक शोर-गुल-सा धुआँ भी उठता कहीं है।
देखना मुरझा न जाए फूलती बगिया वतन की।
देश में होंगे कहीं गद्दार भी यह भूलना मत।
देखना कोई न राँदे फूलती बगिया वतन की।
कोटि प्राणों की धरोहर राष्ट्र की, माँ भारती की।
शान को रखना कि यह मूरत सजाना।
राष्ट्र के प्रहरी सजग, धोखा न खाना।
राष्ट्र के खातिर हुए कुर्बान कितने शूरमा वे।
हो सका आज़ाद सदियों बाद ही तो यह वतन है।
अब न गफ़लत हो, न कोई उस तरह की दासता फिर।
हम रहें आज्ञाद ही, या मर मिटें यह एक प्रण है।
एक स्वर हो राष्ट्र का, बस एक ही माँ है हमारी।
हो यशस्वी प्रात चिर, नित साँध्य को दीपक जलाना।
राष्ट्र के प्रहरी सजग, धोखा न खाना।

प्रश्न :
(क) कविता का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) कौन अकेला और क्यों जाग रहा है?
(ग) कौन, किसे, कहाँ और क्यों छोड़ आया है?
(घ) किसे, क्या और क्यों नहीं भूलना है?
(ङ) हमें अपनी आजादी की रक्षा के लिए क्या करना है?
उत्तर :
(क) राष्ट्रप्रहरी।
(ख) राष्ट्र का प्रहरी देश की रक्षा के लिए जाग रहा है, जिससे देशवासी आराम से सो सकें। वह एक क्षण भी सोता नहीं है। सदा सजग रहता है।
(ग) राष्ट्र-प्रहरी अपनी पत्ली और नन्हे बच्चे को अपने घर छोड़ आया है क्योंकि उसने सीमा पर देश की रक्षा करनी है।
(घ) राष्ट्र-प्रहरी को यह नहीं भूलना है कि देश पर किसी प्रकार का आक्रमण नहीं हो तथा देश में रहने वाला कोई व्यक्ति देश से गद्दारी नहीं करे। उसे अपने देश की रक्षा के लिए सदा सजग रहना है।
(ङ) हमें अपनी आजादी की रक्षा के लिए सदा आत्मबलिदान के लिए तैयार रहना है। सबको आपसी मतभेद भुलाकर केवल भारत माता को अपनी माँ मानकर उसकी रक्षा करनी है।

(च) काव्यांश में ‘त्याग की मूर्ति’ कहकर किसका संबोधन किया गया है?
(i) किसान
(ii) सैनिक (राष्ट्र-प्रहरी)
(iii) डॉक्टर
(iv) नेता
उत्तर :
(ii) सैनिक (राष्ट्र-प्रहरी)

(छ) ‘कोई न रैंदे फूलती बगिया वतन की’ पंक्ति का भाव है-
(i) कोई भी मानव फल-फूल तोड़कर नुकसान न पहुँचाए।
(ii) कोई माली अनावश्यक हानि 7 पहुँचाए।
(iii) कोई भी देश विरोधी देश को नुकसान न पहुँचाने पाए।
(iv) ये सभी विकल्प।
उत्तर :
(iv) ये सभी विकल्प।

(ज) कोटि प्राणों की घरोहर किस कहा गया है?
(i) माँ भारती को
(ii) माँ शारदा को
(iii) माँ लक्ष्मी को
(iv) माँ धरती को
उत्तर :
(i) माँ भारती को

19. दूर बहुत दूर। बहुत दूर।
जहाँ कोई पगडंडी नहीं जाती,
इस या उस ओर,
निकल गई हैं सब,
और अब –
युग की अहिल्या-सा अभिशापित,
अयोध्या से सीता-सा निर्वासित,
अपनी ही परिधि में गलता हूँ।
सदियों से मौन,
किसी योगी-सा –
अपनी ही साँसों को सुनता हूँ।
धरती के चूनर पे
मैले सितारे-सा अंकित हूँ
मैं एक गुंबद हूँ।
ऐसा हुआ है कई बार,
कि कुछ दूर ही से निकल गई हैं बहारें,
काफ़िला कोई नहीं मेरी तरफ़ आ पाया
और मैं तरसा हूँ रातभर
कि मेरे द्वार की साँकल खटके
कोई मुझ तक आए।
मुझे कोई कहानी सुनाए
मेररे तपते हुए माथे पर हाथ धरे। मेरे पास बैठे,
मुझ पर अंकित समय के,
अनगिनत हस्ताक्षरों को पढ़े,
मेरा दर्द बाँटे पलभर को ही सही,
मेरे मन की झील में झाँक
पगडंडियों को इधर मोड़े
ताकि काफ़िले मुझ तक आ सकें।
मेरा सूनापन घटा सकें।
पर ऐसा न हो सका,
और, मे –
युग की अहिल्या-सा अभिशापित,
अयोध्या से सीता-सा निर्वासित,
अपनी ही परिधि में गलता हूँ।
सदियों से मौन किसी योगी-सा –
अपनी ही साँसों को सुनता है
धरती के चूनर पे,
मैले सितारे-सा अंकित हूँ।
मैं एक गुंबद हूँ।
में एक गुंबद हूँ॥

प्रश्न :
(क) कविता का उच्चित शीर्षक लिखिए।
(ख) कवि की क्या दशा है?
(ग) कवि किसके लिए और क्यों तरसा है?
(घ) कवि का सूनापन कैसे कम हो सकता था?
(ङ) कवि ने स्वयं को किन-किन के जैसा बताया है?
उत्तर :
(क) गुंबद।
(ख) कवि को ऐसा लगता है कि वह एक गुंबद के समान नदियों से मौन एक ओर चुपचाप खड़ा है, जिसका इस संसार में कोई विशेष अस्तित्व नहीं है सिर्फ इसके कि वह एक गुंबद है।
(ग) कवि चाहता है कि कोई उसके घर पर आकर उसके द्वार की साँकल खटखटाए और उसके पास बैठकर सुख-दु:ख की बातें करे तथा उसके दर्द को बाँटे। उसके मन की सुने और अपनी सुनाए। परंतु कोई भी नहीं आता इसलिए वह इस सबके लिए तरसता रहता है ।
(घ) कवि का सूनापन तब कम हो सकता है जब उससे मिलने के लिए लोग उसके पास आएँ और उससे सुख-दु:ख की बातें करें।
(ङ) कवि ने स्वयं को अहिल्या-सा अभिशापित, सीता-सा निर्वासित, किसी योगी-सा मौन तथा एक गुंबद बताया है।

(च) कौन सदियों से मौन अपनी ही साँसों को सुनता है?
(i) राही
(ii) वृक्ष
(iii) गुंबद
(iv) पक्षी
उत्तर :
(iii) गुंबद

(छ) गुंबद क्या सुनने की अपेक्षा रखता है?
(i) कोई गीत
(ii) कोई कहानी
(iii) कोई श्लोक
(iv) कोई काल्पनिक घटना
उत्तर :
(ii) कोई कहानी

(ज) गुंबद घरती के चूनर पर कैसा विखता है?
(i) चमकीले ग्रह से
(ii) मैले सितारे-सा
(iii) चमकदार चंद्रमा-सा
(iv) तीव्र सूर्य-सा
उत्तर :
(ii) मैले सितारे-सा

20. विशाल महानगर की,
सीलनयुक्त झोंपड़पट्टी में,
जब उसने तनिक होश सँभाला,
स्वयं को नंगे पाँव, नंगे बदन,
भव्य होटल के कूड़ादान के पास,
जूठन पर श्वानों की तरह,
झपटते-उलझते बच्चों की,
टोली में पाया था।
हर साँझ माँ को बापू,
अक्सर ऐसे पीटता था,
जैसे उनका पड़ोसी दीनू
दूध न देने पर,
अपनी बिंदो गाय को पीटता है।
माँ दिन भर कागज़ बीनती,
साँय घर का सारा काम करती,
बाबू की मार खाती,
रातभर रोती सिसकती।
फिर सुबह कागज़ बीनने चली जाती,
नौकरी पाने की लालसा लिए,
सदैव निकम्मा घूमने वाला बापू,
साँझ बलते ही ताड़ी पीने हेतु
माँ से पैसे ऐंठने का कारोबार करता।
और जब माँ
बच्चों की भूख का वास्ता देकर,
बापू से उलझती,
तो बाबू मार का उपहार देकर,
सारा घर सिर पर उठा लेता।
जीत बापू की ही होती,
बापू ने कभी प्यार किया हो,
ऐसा उसे याद नहीं आता,
बड़की, मँझले व उसको
बापू कुतिया के पिल्ले कहता
बड़की की चोटी खींचता,
मझले को छड़ी से पीटता,
और कई बार,
ताड़ी के नशे में,
पीट-पीटकर अधमरा कर देता।
बापू के साथ समय दौड़ता रहा,
और फिर,
ताड़ी के लिए दीवाने बापू को,
एक दिन ताड़ी ने पी लिया।
विद्यालय जाने की इच्छा मन में दबाए,
बड़की, मझला और में,
कागज़ बीनते, दुर्गंध सूँघते
जीवन की टूटी बैलगाड़ी,
धीरे-धीरे हाँकने लगे
और हर बार झोंपड़-पट्टी में,
अक्सर वोट माँगने आए,
नेताओं के भाषण फाँकने लगे।
भाइयो और बहनो!
हम आज़ाद हैं पूरे आज़ाद,
इसी आजादी के कारण,
हम प्रगति पथ पर अग्रसर हैं,
स्वतंत्रता हमारा जन्म-सिद्ध अधिकार है,
प्रगति के अवसर सबको समान हैं,
मेरा भारत महान है।
छोटा बड़ा कोई नहीं,
खोटा खरा कोई नहीं।
हम उपाय ढूँढ़ रहे हैं
शीघ्र मिट जाएगी दूरी,
न रहेगी कोई मजबूरी,
भारत माता की जय!
तोंदीले सफ़ेद पोरों के,
वर्षों ऐसे नारे सुनने के बाद,
बचपन से बुढ़ापे तक,
कागज बीनते, दुर्गंध सूँघते,
उसके साथियों की टोली,
लंबी हुई है बहुत लंबी।
कोई बताए उसे,
सही अर्थों में,
कब होगा वह आज्ञाद?
भूख-नंग से,
आर्थिक तंगी से,
झोंपड़पट्टी से,
कोई बताए उसे,
कोई बताए उसे।

प्रश्न :
(क) इस कविता का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) होश सँभालने पर बच्चे की क्या दशा थी?
(ग) बापू का माँ से कैसा व्यवहार था और क्यों?
(घ) बापू के मरने के बाद बच्चों की क्या दशा थी?
(ङ) वह क्या जानना चाहता है?
उत्तर :
(क) कैसी आजादी।
(ख) जब से बच्चे ने होश संभाला है वह स्वयं को नंगे पाँव और नंगे बदन एक बहुत बड़े होटल के कूड़ेदान के पास जूठन पर टूटते हुए कुत्तों के समान अन्य उस जैसे बच्चों के साथ जूठन बटोरते हुए देखता है।
(ग) बापू कोई काम-धाम नहीं करता। वह ताड़ी पीने के लिए माँ से पैसे माँगता है और पैसे नहीं देने पर उसे ऐसे पीटता है जैसे दूध नहीं देने पर बिंदो अपनी गाय को पीटता है। माँ बापू की मार खाकर रातभर रोती रहती है।
(घ) बापू के मरने के बाद बच्चों की विद्यालय पढ़ने जाने की इच्छा समाप्त हो जाती है। वे दिनभर कूड़ेदानों में से कागजा आदि बटोरते रहते हैं। उन्हें बेचकर जीवन चलाते हैं।
(ङ) वह नेताओं के भाषण आदि सुनकर यह जानना चाहता है कि क्या यही आज़ादी है कि वे कूडेदान की दुर्गमय क्षिंदगी को जीते रहें? उन्हें भूख से, नंगेपन से, आर्थिक तंगी से तथा झोंपड़पट्टी में पड़े रहने से मुक्ति कब मिलेगी? उसे कोई बताए कि यह सब कब होगा?

(च) वीनू की गाय का क्या नाम था?
(i) श्यामा
(ii) कपिला
(iii) बिंदो
(iv) निर्मोही
उत्तर :
(iii) बिंदो

(छ) माँ दिनभर क्या करती थी?
(i) आराम करती थी।
(ii) पढ़ाने जाती थी।
(iii) पानी भरती थी।
(iv) कूड़ा बीनती थी।
उत्तर :
(iv) कूड़ा बीनती थी।

(ज) माँ बापू से किस बात पर उलझती थी?
(i) बच्चों की पढ़ाई का वास्ता देकर
(ii) बच्चों की भूख का वास्ता देकर
(iii) खेल-कूद का वास्ता देकर
(iv) घर की सफ़ाई का वास्ता देकर
उत्तर :
(ii) बच्चों की भूख का वास्वा देकर

11th Class Hindi Book Antra Questions and Answers 

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