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CBSE Class 10 Hindi A Question Paper 2019 (Series: JMS/4) with Solutions
निर्धारित समय : 3 घण्टे
अधिकतम अंक : 80
सामान्य निर्देश :
- इस प्रश्न-पत्र के चार खंड हैं- क, ख, ग और घ।
- चारों खंडों के प्रश्नों के उत्तर देना अनिवार्य है।
- यथासंभव प्रत्येक खंड के उत्तर क्रमशः दीजिए।
खण्ड ‘क’
प्रश्न 1.
निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर ( प्रत्येक लगभग 20-50 शब्दों में ) लिखिए- [8]
आधुनिक तकनीक और वैज्ञानिक उपलब्धियों के शोर में प्राचीन और पारंपरिक ज्ञान-पद्धतियों को लगभग भुला दिया गया है। उनमें से कुछेक की याद तब आती है, जब कोई बड़ा वैज्ञानिक तथ्य किसी लोक परंपरा से जा जुड़ता है। हमारे देश में अब भी अनेक स्थानों पर प्राचीन ज्ञान – परंपराएँ विद्यमान हैं, जिन्हें लोगों ने सहेज रखा है। भारत में कई ऐसे गाँव हैं, जहाँ हजारों वर्षों तक ज्ञान – परंपराएँ फलती-फूलती रही हैं। आज भी उन्हें ज्ञान – परंपरा होने की मान्यता तक प्राप्त नहीं है। लेकिन अगर आप उस समाज के अवचेतन में गहरे उतरने की क्षमता रखते हैं, तो यह समझने में देर नहीं लगेगी कि ज्ञान – परंपराएँ मरती नहीं हैं। कालक्रम में उन पर धूल की परतें ज़रूर जम जाती हैं और उनका स्थानांतरण चेतन से अवचेतन में हो जाता है । वहाँ के लोग उन ज्ञान परंपराओं से जुड़े होते हैं। उनके दैनिक जीवन, पर्व-त्योहार और शादी-ब्याह के विधि-विधानों, रीति-रिवाजों में उन ज्ञान – परंपराओं की उपस्थिति मिल जाएगी। बिहार के मिथिला में ऐसे कई गाँव हैं, जहाँ न्याय और मीमांसा की परंपराएँ अब भी जीवित हैं। इनकी शास्त्रीय परंपराएँ तो फलती-फूलती रहीं, लेकिन लौकिक परंपराओं का कोई सटीक अध्ययन नहीं हुआ।
फिर भी लौकिक परंपराओं के अध्ययन से लगता है कि यह पूरी जीवन प्रणाली थी। मिथिला क्षेत्र के कई गाँवों में न्याय और मीमांसा के बड़े विद्वान हुए हैं। शायद उनका होना ही इस बात का प्रमाण है कि इन गाँवों के अवचेतन में इन परंपराओं का वास होगा। ज्ञान-परंपरा से जुड़ी एक ऐसी ही जगह है पटना के पास खगौल शहर के निकट का एक गाँव तारेगना । पाँचवीं शताब्दी में इस जगह का नाम कुसुमपुर से खगौल उस समय हो गया जब आर्यभट्ट ने इसे अपना कार्यक्षेत्र बनाया। जिस गाँव में रहकर आर्यभट्ट ने आकाश में ग्रह-नक्षत्र और तारों की स्थिति का अध्ययन किया था उसका नाम तारेगना पड़ गया । एकाएक जुलाई, 2009 में तारेगना के बारे में दुनिया को तब पता चला जब नासा ने घोषणा की कि इस जगह से उस बार के पूर्ण सूर्यग्रहण को देखना संभव हो पाएगा। खास बात है कि आज भी खगौल में आर्यभट्ट का जन्मदिन मनाने की परंपरा है और उनसे जुड़ी अनेक कहानियाँ हैं।
(क) आप कैसे कह सकते हैं कि जनमानस आज भी ज्ञान परंपराओं से जुड़ा है? [2]
(ख) ‘न्याय और मीमांसा की परंपराएँ अब भी जीवित हैं – इस तथ्य की पुष्टि के लिए लेखक ने क्या तर्क दिए हैं? [2]
(ग) पूरी दुनिया में ‘तारेगना’ की पहचान क्यों और कैसे बनीं ? [2]
(घ) लोगों द्वारा सहेज कर रखी गई पारंपरिक ज्ञान-पद्धतियों की ओर ध्यान कब आकर्षित होता है? [1]
(ङ) उपर्युक्त गद्यांश के लिए उपयुक्त शीर्षक लिखिए। [1]
उत्तर:
(क) जनमानस आज भी ज्ञान परंपराओं से जुड़ा है क्योंकि आज भी उनके दैनिक जीवन, पर्व-त्योहार और शादी-ब्याह के विधि-विधानों, रीति-रिवाजों में ज्ञान परंपराओं की उपस्थिति दिखाई पड़ती है।
(ख) ‘न्याय और मीमांसा की परंपराएँ अब भी जीवित हैं’ – इस तथ्य की पुष्टि के लिए लेखक ने यह तर्क दिए हैं कि मिथिला क्षेत्र के कई गाँवों में न्याय और मीमांसा के बड़े विद्वान हुए हैं। शायद उनका होना इस बात का प्रमाण है कि इन गाँवों के अवचेतन में इन परंपराओं का वास होगा। उनकी ज्ञान – परंपराएँ उनकी जीवन प्रणाली से पहले की भांति आज भी जुड़ी हुई हैं।
(ग) आर्यभट्ट जैसे महान वैज्ञानिक ने ‘तारेगना’ में रहकर ही आकाश में ग्रह-नक्षत्र और तारों की स्थिति का अध्ययन किया था। तारेगना के बारे में दुनिया को जुलाई, 2009 में तब पता चला, जब नासा ने घोषणा की कि इस जगह से उस बार के पूर्ण सूर्यग्रहण को देखना संभव हो पाएगा।
(घ) लोगों द्वारा सहेज कर रखी गई पारंपरिक ज्ञान-पद्धतियों की ओर तब ध्यान आकर्षित होता है जब कोई बड़ा वैज्ञानिक तथ्य किसी लोक परंपरा से जा जुड़ता है ।
(ङ) प्रस्तुत गद्यांश का शीर्षक है- ‘प्राचीन ज्ञान – परंपराएँ ।
प्रश्न 2.
निम्नलिखित पद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर ( प्रत्येक लगभग 20-25 शब्दों में) लिखिए। [7]
दो घड़ी कदम अपने रोको, बढ़ चले हो तुम अँधेरों को ।
न रुके अगर तो तरसोगे, नवजीवन के पग फेरों को ।
दुख के बिन सुख कैसा सोचो बिन धूप कहाँ फिर छाँव, कहो ।
बिन मृत्यु भला कैसा जीवन कैसा बिन मिट्टी गाँव कहो ।
गंगा को तुमने विष दे देकर मार दिया, कुछ और बढ़े।
तुमने अपने बल से नदियों को बाँध दिया, कुछ और बढ़े।
तुम और बढ़े, जब तुमने हिमखंडों को तक पिघला डाला ।
तुम और बढ़े, जब तुमने खेतों की मिट्टी को दूषित कर डाला।
तुम बचा सके न नदियों को, जो कल तक कल-कल बहती थीं।
तुम बचा सके न चिड़ियों को, जो आँगन रोज चहकाती थीं ।
तुम हो विज्ञान के प्रतिनिधि, तुम अपने यश का मान करो।
तुम्हें चुनौती देता हूँ तुम यह एक काम महान करो।
रच लो अपनी ही धरा एक अपने विज्ञानी हाथों से।
प्रकृति नहीं जीती जाती, ऐसी अभिमानी बातों से ।
(क) कवि का संकेत किन अँधेरों की तरफ है और वह मनुष्य को अँधेरों की तरफ बढ़ने से क्यों रोक रहा है? [2]
(ख) प्रगति के नाम पर मानव ने प्रकृति से क्या छेड़छाड़ की है? [2]
(ग) कवि क्या चेतावनी दे रहा है? [1]
(घ) ‘विज्ञान के प्रतिनिधि’ कहकर कवि ने क्या व्यंग्य किया है? [1]
(ङ) घमंडी मानव सोचता है कि मैंने प्रकृति को मुट्ठी में कर लिया है लेकिन यह उसकी भूल है – यह भाव कविता की किन पंक्तियों में आया है?
उत्तर:
(क) कवि ने प्राकृतिक संसाधनों के नष्ट होने के बाद हुए दुष्परिणामों को अँधेरा कहकर संबोधित किया है। कवि मनुष्य को अँधेरों की तरफ बढ़ने से इसलिए रोक रहा है ताकि उसका जीवन नष्ट न हो और वह खुशहाल व स्वस्थ रह सकें।
(ख) प्रगति के नाम पर मानव ने गंगा को विषैली बना दिया, अपने बल से नदियों को बाँध दिया, हिमखंडों को पिघला डाला तथा खेतों की मिट्टी को भी दूषित कर दिया।
(ग) कवि यह चेतावनी दे रहा है कि यदि मनुष्य इसी प्रकार से प्राकृतिक संसाधनों को नष्ट करता रहेगा तो वह भविष्य में इनके लिए तरसेगा ।
(घ) ‘विज्ञान के प्रतिनिधि’ कहकर कवि ने उन ज्ञानवान और अभिमानी लोगों पर व्यंग्य किया है जो प्रगति के नाम पर प्रकृति को अंधाधुंध नष्ट कर रहे हैं।
(ङ) “रच लो अपनी ही धरा एक, अपने विज्ञानी हाथों से प्रकृति नहीं जीती जाती, ऐसी अभिमानी बातों से । ”
अथवा
लहरों में हलचल होती है……..
कहीं न ऐसी आँधी आए
जिससे दिवस रात हो जाए
यही सोचकर चकवी बैठी तट पर निज धीरज खोती है।
लहरों में हलचल होती है…….
लो, वह आई आँधी काली
तम-पथ पर भटकाने वाली
अभी गा रही थी जो कलिका पड़ी भूमि पर वो सोती है।
लहरों में हलचल होती है…….
चक्र- सदृश भीषण भँवरों में
औ’ पर्वताकार लहरों में
एकाकी नाविक की नौका अब अंतिम चक्कर लेती है।
लहरों में हलचल होती है…..
(क) चकवी तट पर बैठकर अपना धैर्य क्यों खो रही है? [2]
(ख) लहरों में हलचल होने का क्या तात्पर्य है? [2]
(ग) कोमल कली बेसुध होकर धरती पर क्यों पड़ी है? [1]
(घ) भीषण भँवरों और पर्वताकार लहरों से क्या अभिप्राय है? [1]
(ङ) ऐसा क्या हो कि एकाकी नाविक की नौका का यह अंतिम चक्कर न हो? [1]
उत्तर:
(क) चकवी सोच रही है कि कहीं कोई ऐसी आंधी ना आ जाए जिससे दिन रात में परिवर्तित हो जाए और वह सूर्योदय होने तक अपने प्रिय की प्रतीक्षा में बैठी रहे । यही सोचकर वह तट पर बैठी अपना धैर्य खो रही है।
(ख) ‘लहरों में हलचल होने’ का यह तात्पर्य है जीवन में दुःखों एवं संकटों के कारण उथल-पुथल होना ।
यहाँ जीवन के उतार-चढ़ाव को लहरों की हलचल के रूप में परिभाषित किया गया है।
(ग) आँधी आने के कारण कोमल कली बेसुध होकर धरती पर पड़ी है।
(घ) भीषण भँवरों और पर्वताकार लहरों से तात्पर्य जीवन में आई कठिनाइयों, रुकावटों तथा संकटों से है ।
(ङ) भीषण आँधी अर्थात् जीवन में आने वाले संकटों का डटकर सामना किया जाए ताकि एकाकी नाविक की नौका का यह अंतिम चक्कर न हो।
खण्ड ‘ख’
प्रश्न 3.
निम्नलिखित में से किन्हीं तीन का निर्देशानुसार उत्तर लिखिए: 1 × 3 = 3
(क) एक चश्मेवाला है जिसका नाम कैप्टन है। ( सरल वाक्य में बदलिए)
(ख) कहा जा चुका है कि मूर्ति संगमरमर की थी। ( आश्रित उपवाक्य छाँटकर भेद भी लिखिए )
(ग) मूर्ति की आँखों पर सरकंडे से बना छोटा-सा चश्मा रखा हुआ था। (मिश्र वाक्य में बदलिए)
(घ) हालदार साहब का प्रश्न सुनकर वह आँखों ही आँखों में हँसा । ( संयुक्त वाक्य में बदलिए)
उत्तर:
(क) एक चश्मेवाले का नाम कैप्टन है सरल वाक्य |
(ख) मूर्ति संगमरमर की थी- आश्रित उपवाक्य । संज्ञा उपवाक्य भेद |
(ग) मूर्ति की आँखों पर जो छोटा-सा चश्मा रखा हुआ था, वह सरकंडे से बना था – मिश्र वाक्य |
(घ) हालदार साहब का प्रश्न सुना और वहे आँखों ही आँखों में हँसा – संयुक्त वाक्य |
प्रश्न 4.
निम्नलिखित में से किन्हीं चार वाक्यों का निर्देशानुसार वाच्य बदलिए : 1 × 4 = 4
(क) गाँव की स्त्रियाँ बहू को चुप कराने की कोशिश कर रही हैं। ( कर्मवाच्य में )
(ख) भगत की संगीत साधना का चरम उत्कर्ष देखा गया। ( कर्तृवाच्य में )
(ग) नवाब साहब ने खीरे को धोकर पोंछ लिया। ( कर्मवाच्य में )
(घ) हम लोग क्लास छोड़कर बाहर नहीं आ सके। ( भाववाच्य में )
(ङ) भारत रत्न हमको शहनाई पर दिया गया है, लुंगी पर नहीं। ( कर्तृवाच्य में )
उत्तर:
(क) गाँव की स्त्रियों द्वारा बहू को चुप कराने की कोशिश की जा रही है।
(ख) भगत की संगीत साधना चरम उत्कर्ष पर थी।
(ग) नवाब साहब द्वारा खीरे को धोकर पोंछ लिया गया।
(घ) हम लोगों से क्लास छोड़कर बाहर नहीं आया जा सका ।
(ङ) भारत रत्न हमको लुगीं पर नहीं, शहनाई पर मिला है।
प्रश्न 5.
रेखांकित पदों में से किन्हीं चार पदों का पद-परिचय लिखिए : 1 × 4 = 4
नेताजी की उस मूर्ति पर टूटा चश्मा लगा था।
उत्तर:
नेताजी – व्यक्तिवाचक संज्ञा, पुल्लिंग, एकवचन, कर्ता कारक ।
उस – सार्वनामिक विशेषण, पुल्लिंग, एकवचन, मूर्ति विशेष्य का विशेषण ।
मूर्ति पर – जातिवाचक संज्ञा, पुल्लिंग, एकवचन, अधिकरण कारक।
चश्मा – जातिवाचक संज्ञा, पुल्लिंग, एकवचन ।
लगा था – सकर्मक क्रिया, एकवचन, पुल्लिंग, भूतकाल ।
प्रश्न 6.
निम्नलिखित काव्य पंक्तियों में अलंकार पहचान कर लिखिए- 1 × 4 = 4
(क) उषा सुनहरे तीर बरसाती, जय लक्ष्मी-सी उदित हुई ।
(ख) भृकुटि बिलास भयंकर काला ।
नयन दिवाकर कच घन माला ||
(ग) उत्प्रेक्षा अलंकार का एक उदाहरण लिखिए।
(घ) श्लेष अलंकार का एक उदाहरण लिखिए।
उत्तर:
(क) मानवीकरण अलंकार
(ख) अतिश्योक्ति अलंकार
(ग) उस वक्त मारे क्रोध के तनु कांपने उसका लगा।
मानो हवा के ज़ोर से सोता हुआ सागर जगा ।।
(घ) रहिमन पानी राखिये, बिनु पानी सब सून ।
पानी गये न ऊबरै, मोती, मानुष, चून।।
खण्ड ‘ग’
प्रश्न 7.
निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
यह क्या है – यह कौन है ! यह पूछना न पड़ेगा । बालगोबिन भगत समूचा शरीर कीचड़ में लिथड़े, अपने खेत में रोपनी कर रहे हैं। उनकी अँगुली एक-एक धान के पौधे को पंक्तिबद्ध, खेत में बिठा रही है। उनका कंठ एक-एक शब्द को संगीत के जीने पर चढ़ाकर कुछ को ऊपर, स्वर्ग की ओर भेज रहा है और कुछ को इस पृथ्वी की मिट्टी पर खड़े लोगों के कानों की ओर ! बच्चे खेलते हुए झूम उठते हैं; मेड़ पर खड़ी औरतों के होंठ काँप उठते हैं, वे गुनगुनाने लगती हैं; हलवाहों के पैर ताल से उठने लगते हैं; रोपनी करने वालों की अँगुलियाँ एक अजीब क्रम से चलने लगती हैं! बालगोबिन भगत का यह संगीत है या जादू!
(क) बालगोबिन अपने खेत में किसकी रोपनी कर रहे हैं? [1]
(ख) “उनका कंठ एक-एक शब्द कानों की ओर ! ” – पूरे वाक्य का आशय स्पष्ट कीजिए । [2]
(ग) बालगोबिन भगत के संगीत को जादू क्यों कहा गया है ? [2]
उत्तर:
(क) बालगोबिन भगत अपने खेत में धान की रोपनी कर रहे थे।
(ख) बालगोबिन भगत का संगीत स्वर जादू से भरा था। उनका स्वर इतना मनमोहक, ऊँचा और आरोही था कि एक ओर तो वह सीधे स्वर्ग की ओर जाता प्रतीत होता था और वहीं दूसरी ओर मिट्टी पर खड़े लोगों के कानों में जाकर उन्हें मदहोश भी कर रहा था ।
(ग) बालगोबिन भगत के संगीत को जादू इसलिए कहा गया है क्योंकि उनके संगीत में एक जादुई प्रभाव था जो समस्त वातावरण पर छा जाता था। उसे सुनकर बच्चे मस्त हो जाते थे, स्त्रियाँ गुनगुनाने लगती थीं, किसानों के पैरों में लय आ जाती थी और धान रोपते किसानों की उँगलियाँ क्रम से चलने लगती थीं।
प्रश्न 8.
निम्नलिखित में से किन्हीं चार प्रश्नों के उत्तर सक्षेप में लिखिए : 2 × 4 = 8
(क) आप अभी फौजी नहीं, विद्यार्थी हैं। आपका देशप्रेम किन रूपों में प्रकट होता है ? ‘नेताजी का चश्मा’ पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए ।
(ख) नवाब साहब ने खीरों को सूँघा और खिड़की से बाहर फेंक दिया। नवाब साहब के इस व्यवहार को उचित या अनुचित कैसे ठहराएँगे?
(ग) “ मानव – संस्कृति एक अविभाज्य वस्तु है ।” किन्हीं दो प्रसंगों का उल्लेख कीजिए; जब-
(i) मानव संस्कृति को विभाजित करने की चेष्टाएँ की गईं।
(ii) जब मानव संस्कृति ने अपने एक होने का प्रमाण दिया ।
(घ) मन्नू भंडारी याद करती हैं कि उनके बचपन में पूरा मोहल्ला उनका घर होता था । लेखिका ने वर्तमान स्थिति के बारे में क्या कहा है?
(ङ) बिस्मिल्ला खाँ को काशी में कौन-सी कमियाँ खलती थीं?
उत्तर:
(क) एक विद्यार्थी के रूप में हमारा देशप्रेम यह है कि हम पूरी निष्ठा और ईमानदारी से अपने देश का सम्मान करें और साथ ही सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा करना, देश के संसाधनों का दुरुपयोग न करना, अपने बड़ों का आदर करते हुए उनकी दी गई सीख को मानना तथा अपने देश को सर्वोपरि रखना ही हमारा कर्त्तव्य और देशप्रेम है।
(ख) नवाब साहब केवल दिखावे का जीवन जीना पसंद करते थे। वे नवाबी रहन-सहन वाली बनावटी जीवन शैली का निर्वाह कर रहे थे। इसी बनावटी शान के चलते उन्होंने खीरे को बड़े प्यार और नफ़ासत से छीला, सूँघा और फिर खिड़की से बाहर फेंक दिया क्योंकि नवाबी अदब में खीरे जैसी मामूली वस्तु को किसी के सामने खाना उनकी शान के विरुद्ध था । परंतु उनका यह व्यवहार अनुचित था ।
(ग)
(i) जब ताजिए निकालने के लिए पीपल का तना काटने पर ‘हिंदू-संस्कृति’ के ख़तरे में पड़ने की बात कही गई तथा मस्जिद के सामने बाजा बजने पर ‘मुस्लिम – संस्कृति’ के ख़तरे में पड़ने की बात कही गई, तब मानव संस्कृति को विभाजित करने की चेष्टाएँ की गईं।
(ii) जब हिटलर के आक्रमण के कारण मानवता ख़तरे में पड़ गई तब सारे विश्व ने एक साथ मिलकर उसका मुकाबला किया। उस समय मानव संस्कृति ने अपने एक होने का प्रमाण दिया।
(घ) लेखिका बचपन में जिसे अपना ‘घर’ मानती थी, वह केवल उनका अपना घर नहीं होता था । उस समय उन्हें अपना पड़ोस और मोहल्ला अपना-सा प्रतीत होता था, इसलिए मन्नू भंडारी याद करती है कि उनके बचपन में पूरा मोहल्ला उनका घर होता था, परंतु वर्तमान में महानगरीय जीवन में ऐसा खुलापन नहीं है। यहाँ सभी लोग अपने-अपने फ्लैटों में रहते हैं। अपनी ज़िंदगी स्वयं जीने के इस आधुनिक दबाव ने उन्हें संकुचित, असहाय और असुरक्षित बना दिया है।
(ङ) काशी में पक्का महाल क्षेत्र के बर्फ बेचने वाले लोग वहाँ से पलायन कर चुके थे। अब गायकों के मन में संगीतकारों के लिए कोई आदर नहीं रहा। अब कलाकार रियाज़ नहीं करते थे। कजली, चैती और अदब का ज़माना समाप्त हो गया है। ये परिवर्तन बिस्मिल्ला खाँ को व्यथित करते थे।
प्रश्न 9.
निम्नलिखित पद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
कौसिक सुनहु मंद येहु बालके । कुटिल काल बस निज कुल घालकु ।
भानुबंस राकेस कलंकू । निपट निरंकुसु अबुधु असंकू ॥
कालकवलु होइहि छन माहीं । कहौं पुकारि खोरि मोहि नाहीं । ।
तुम्ह हटकहु जौ चहहु उबारा । कहि प्रतापु बलु रोषु हमारा ।।
लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा । तुम्हहि अछत को बरनै पारा ।।
अपने मुहु तुम्ह आपनि करनी। बार अनेक भाँति बहु बरनी । ।
नहिं संतोषु त पुनि कछु कहहू । जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू ||
बीरबती तुम्ह धीर अछोभा । गारी देत न पावहु सोभा ||
(क) ‘मंद येहु बालक’ किसे कहा गया है और क्यों? [2]
(ख) लक्ष्मण ने परशुराम को क्या कहकर उकसा दिया था? [2]
(ग) परशुराम ने विश्वामित्र से क्या आग्रह किया? [1]
उत्तर:
(क) ‘मंद येहु बालक’ लक्ष्मण को कहा गया है क्योंकि वह कोमल स्वर में परशुराम को व्यंग्य – वचन कहते हैं। लक्ष्मण ने परशुराम के बड़बोलेपन का मज़ाक उड़ा कर उन्हें भरी सभा में चुनौती दी। परशुराम ने इसे अपना अपमान समझा और उन्हें मूर्ख बालक कहा ।
(ख) लक्ष्मण ने परशुराम से कहा कि यदि आप वीरता का व्रत धारण करने वाले धैर्यवान और झोभरहित हैं तो आप गाली देते हुए शोभा नहीं देते। शूरवीर तो युद्ध में शूरवीरता का कार्य करते हैं, वे अपने मुँह से अपनी प्रशंसा नहीं करते। शत्रु को युद्ध में उपस्थित पाकर कायर ही व्यर्थ में अपने प्रताप की डींगें हाँका करते हैं। शूरवीर तो केवल कर्म करते हैं। इस प्रकार के कटु वचन बोलकर लक्ष्मण ने परशुराम को उकसा दिया था।
(ग) परशुराम ने विश्वामित्र से यह आग्रह किया कि यदि आप लक्ष्मण को बचाना चाहते हो तो मेरे प्रताप, बल और क्रोध के बारे में बता कर इसे रोक लो ।
प्रश्न 10.
निम्नलिखित में से किन्हीं चार प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में लिखिए : 2 × 4 = 8
(क) ‘उत्साह’ कविता में सुंदर कल्पना और क्रांति-चेतना दोनों हैं, कैसे?
(ख) कवि नागार्जुन ने छोटे बच्चे की मुसकान देखकर क्या कल्पना की है?
(ग) ‘छाया मत छूना’ कविता में कवि क्या कहना चाहता है?
(घ) ‘आत्मकथ्य’ कविता में ‘छोटे से जीवन की कैसे बड़ी कथाएँ आज कहूँ’ कहकर कवि ‘जीवन को छोटा और कथा को बड़ी’ क्यों कह रहा है? स्पष्ट कीजिए ।
(ङ) “ साहस और शक्ति के साथ विनम्रता हो तो बेहतर है।” इस कथन पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर:
(क) ‘उत्साह’ कविता में कवि ने बादल की तुलना बच्चों की कल्पना से की है। जिस प्रकार बच्चों की मधुर कल्पना क्षण-क्षण बदलती रहती है, उसी प्रकार बादल का रंग-रूप भी क्षण-क्षण में परिवर्तित होता रहता है। इसी के साथ कवि ने बादलों को क्रांति का अग्रदूत माना है। उनके अनुसार बादल अपनी गरज से समाज में क्रांति की चेतना भर देने में सक्षम हैं। क्रांति से ही परिवर्तन आएगा तथा परिवर्तन से समाज का विकास होगा। अतः इस कविता में सुंदर कल्पना और क्रांति – चेतना दोनों विद्यमान हैं।
(ख) कवि ने बच्चे की मुसकान के सौंदर्य को निम्नलिखित बिम्बों के माध्यम से व्यक्त किया है-
1. बच्चे की मुसकान से मृतक में भी जान आ जाती है।
2. यों लगता है मानो झोंपड़ी में कमल के फूल खिल उठे हों।
3. चट्टानें पिघलकर जलधारा बन गई हों।
4. बबूल से शेफालिका के फूल झड़ने लगे हों ।
(ग) ‘छाया मत छूना’ कविता में कवि ने मानव की कामनाओं – लालसाओं के पीछे भागने की प्रवृत्ति को दुखदायी माना है क्योंकि इसमें अतृप्ति के सिवाय कुछ नहीं मिलता । विगत् जीवन की स्मृतियाँ उसे और परेशान कर देती हैं क्योंकि स्मृतियों के सहारे जिया नहीं जाता। उन्हें याद करने से मन में दुख बढ़ जाता है । दुविधाग्रस्त मन:स्थिति व समयानुकूल आचरण’ न करने से भी जीवन में दुख आ सकता है।
(घ) ‘आत्मकथ्य’ कविता में ‘छोटे से जीवन को कैसे बड़ी कथाएँ आज कहूँ?’ कहकर कवि श्री जयशंकर प्रसाद जी ने ‘जीवन को छोटा और कथा को बड़ी’ कहा है क्योंकि कवि ने यहाँ स्पष्ट कर दिया है कि उसका जीवन एक सामान्य व्यक्ति का जीवन है। ऐसी दशा में वह झूठा बड़प्पन दिखाना नहीं चाहता है। जीवन की लम्बी-चौड़ी कथा कहने का अनुकूल समय भी नहीं है। अतः उसने आत्मकथा लिखने या कहने में अपनी असमर्थता दिखाई। इसके द्वारा कवि यह भी स्पष्ट करना चाहता है कि उसकी आत्मकथा में अनेक घटनाएँ ऐसी हैं जिनका वर्णन संक्षेप में नहीं किया जा सकता। जीवन में घटित होने वाली मधुर और कटु घटनाओं की संख्या भी बहुत अधिक है अतः कथा को ‘बड़ी’ कहा गया
(ङ) साहस और शक्ति ऐसे सद्गुण हैं जो मनुष्य के व्यक्तित्व को आकर्षक बनाते हैं। साहसी व्यक्ति अपनी शक्ति का सदुपयोग कर सफलता प्राप्त करने में समर्थ हो जाता है। परंतु यदि व्यक्ति में साहस और शक्ति के साथ-साथ विनम्रता का गुण भी हो तो वह मनुष्य समाज में श्रेष्ठ स्थान प्राप्त करता है और सर्वप्रिय बन जाता है। इसके विपरीत यदि साहस और शक्ति के रहते हुए भी मनुष्य उद्दण्डता का व्यवहार करता है तो कोई भी उसे सम्मान नहीं देता । अतः साहस और शक्ति के साथ विनम्रता भी आवश्यक है।
प्रश्न 11.
‘मैं क्यों लिखता हूँ’ पाठ के आधार पर बताइए कि भीतरी विवशता क्या होती है ? लेखक ने इसे स्पष्ट करने के लिए किसकी चर्चा की ? [4]
उत्तर:
किसी भी दृश्य या घटना को देखकर या सुनकर मन के भीतर जो अकुलाहट और छटपटाहट होती है, वही भीतरी विवशता है। जब तक कवि या लेखक उसे शब्दों के माध्यम से अभिव्यक्त नहीं कर लेता तब तक उसे शांति नहीं मिलती। लेखक ने इसे स्पष्ट करने के लिए हिरोशिमा पर लिखी कविता की चर्चा की।
अथवा
प्रकृति को संरक्षित रखने में आम नागरिक की भूमिका को ‘साना-साना हाथ जोड़ि’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर:
आज विकास का दौर इतना तीव्र हो गया है कि आज की पीढ़ी प्रकृति से दूर होती जा रही है और इसी कारण उसका प्रकृति से लगाव भी कम होता जा रहा है। लगातार कटते वन, फैक्टरियों से निकलता धुआँ आदि प्रकृति के संतुलन को बिगाड़ रहे हैं। इसे रोकने में हमारी भूमिका अति महत्त्वपूर्ण है।
(i) हमें वन संरक्षण को महत्त्व देना चाहिए।
(ii) सीमित प्राकृतिक संसाधनों का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए।
(iii) वृक्षारोपण को बढ़ावा देना चाहिए।
(iv) फैक्टरियों से निकलने वाले विषैले धुएँ के रोकथाम के उपाय करने चाहिएं।
खण्ड ‘घ’
प्रश्न 12.
निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर दिए गए संकेत- बिन्दुओं के आधार पर 200 से 250 शब्दों में निबन्ध लिखिए : [10]
(क) धरती कहे पुकार के : सहनशील धरती – सांप्रदायिकता से मुक्ति – खुशहाल वातावरण – पर्यावरण
(ख) त्योहार बनाम बाज़ारवाद : तात्पर्य – त्योहारों का वास्तविक स्वरूप – बाज़ार का प्रभाव
(ग) क्रिकेट मैच का आँखों देखा वर्णन : कहाँ, कैसे, कब – आनंददायक – परिणाम
उत्तर:
(क) धरती कहे पुकार के….
धरती हमारा ग्रह है और जीवन की निरंतरता के लिए महत्त्वपूर्ण है। यह एकमात्र ऐसा ग्रह है, जिसमें जीवन की सभी आवश्यक परिस्थितियाँ जैसे पर्यावरण, वायु, जल, हवा, सूर्य का प्रकाश, प्राकृतिक संसाधन इत्यादि विद्यमान हैं। परंतु मानव ने विकास की दौड़ में प्राकृतिक संसाधनों का दुरुपयोग किया है। जिसके परिणामस्वरूप पृथ्वी पर जीवन संकट में आ गया है। जीवन के अनुकूल वातावरण न होने के कारण बहुत-सी प्रजातियाँ पूरी तरह से विलुप्त हो गई हैं। हमारी धरती बहुत सहनशील है वह हमसे कभी भी कुछ बदले में कुछ नहीं मांगती । साम्प्रदायिकता देश की स्वतंत्रता के लिए बहुत बड़ा संकट है। यह देश की अस्मिता के लिए बड़ी चुनौती बन चुका है। हमारी पराधीनता का मुख्य कारण साम्प्रदायिकता ही था । यह राष्ट्रीय भावना के उदय होने में सबसे बड़ा अवरोध है। साम्प्रदायिकता का उन्माद देश में कहीं भी दंगे भड़का देता है।
दंगों में तोड़-फोड़, आगजनी और नरसंहार का ऐसा तांडव होता है कि मानवता शर्म से गर्दन झुका लेती है। साम्प्रदायिकता को लेकर हमारे संविधान में प्रावधान हैं, परंतु हमें इससे मुक्ति पाने के लिए कारगर कदम उठाने होंगे। हमें अपने आपसी विषाद भूल कर स्नेह और प्रेम की धारा प्रवाहित करने में सहयोग देना होगा। यह हम सबकी मातृभूमि है। हमें सभी धर्मों का समान आदर करना चाहिए।
पृथ्वी को स्वच्छ और हरा-भरा रखने की ज़िम्मेदारी हम सबकी है। हमें अपने पर्यावरण की रक्षा करनी चाहिए ताकि हमारी आने वाली पीढ़ियाँ सुरक्षित तथा खुशहाल वातावरण का भरपूर आनंद उठा सकें। हम पर्यावरण की रक्षा वृक्षारोपण तथा प्राकृतिक संसाधनों का समझदारी से उपयोग करके कर सकते हैं। हमें पर्यावरण प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिंग को नियंत्रित करने वाले कानूनों का कड़ाई से पालन करना चाहिए। हमें धरती से जो कुछ भी प्राप्त हो रहा है, उसका सम्मान करना होगा और उसे बनाए रखना होगा।
(ख) त्योहार बनाम बाज़ारवाद
मानव जीवन का पर्वों से अत्यंत गहरा संबंध है। विश्व के प्रत्येक देश में प्रत्येक धर्म के अनुयायियों द्वारा अपने – अपने पर्वों को मनाया जाता है। पर्व से तात्पर्य किसी ऐतिहासिक, धार्मिक, सांस्कृतिक अथवा राष्ट्रीय घटना के घटित हुए दिन को सबके साथ आनंदपूर्वक मनाना है। भारत को पर्वों का देश कहा जाए तो यह अतिश्योक्ति नहीं होगी। हमारे देश में वर्ष भर किसी न किसी राज्य में कोई न कोई पर्व पूरे हर्षोल्लास से मनाया जाता है। पर्व हमारे भावनात्मक विकास में सदैव सहभागी रहे हैं। पर्व मानव में एक नवीन ऊर्जा संचरित करते हैं। पर्व अनेक प्रकार के होते हैं – सामाजिक, राष्ट्रीय, सांस्कृतिक, धार्मिक, ऋतु संबंधी अथवा विशिष्ट लोगों से संबंधित। भारत के विभिन्न प्रांतों में विभिन्न पर्व मनाए जाते हैं। दीपावली, दशहरा, जन्माष्टमी, रामनवमी, शिवरात्रि, बुद्ध पूर्णिमा आदि पर्व भारत के मुख्य त्योहार हैं। दुर्गापूजा, गणेश चतुर्थी, पोंगल, बीहू, बैसाखी आदि प्रांतीय पर्व हैं। गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस, महात्मा गांधी जन्मदिवस आदि संपूर्ण भारत में मनाए जाते हैं। इन्द्र पूजा तथा गोवर्धन पूजा जैसे पर्व अत्यंत प्राचीन हैं, इनका उल्लेख श्रीमद्भागवत में भी मिलता है। वर्तमान समय में पर्वों के स्वरूप में बहुत परिवर्तन आ चुका है। उदाहरणस्वरूप दीपावली पहले अत्यंत सादगीपूर्ण एवं परंपरागत रूप से मनाई जाती थी। तेल के दीए जलाकर रोशनी के इस पर्व का स्वागत किया जाता था ।
मित्रों एवं रिश्तेदारों के साथ घर में बनी मिठाइयों का आदान-प्रदान किया जाता था। बच्चे फुलझड़ी, चखरी इत्यादि चलाकर खुश हो जाया करते थे। परंतु आज दीओं का स्थान बिजली के रंग-बिरंगे बल्बों ने ले लिया है । फुलझड़ी इत्यादि का स्थान ध्वनि तथा वायु प्रदूषण करने वाले बमों ने ले लिया है। घर की बनी मिठाइयों का स्थान महंगे-महंगे उपहारों तथा विदेशी चॉकलेटों ने ले लिया है। होली जैसे उल्लास भरे पर्व को पहले परंपरागत ढंग से नाचते-गाते हुए एक-दूसरे पर प्राकृतिक रंग रंग डाल कर मनाया जाता था। सभी धर्म के लोग आपस में मिलकर होली खेलते थे। परंतु अब तो होली केवल शरारती तत्त्वों का पर्व बनकर रह गया है। कम लागत लगाकर गंदे तथा घटिया रासायनिक रंगों को धड़ल्ले से बाज़ार में बेचा जाता है। जिनके उपयोग से त्वचा संबंधित समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं। इस पावन पर्व पर शराब पीकर घटिया आचरण करना तो आम हो गया है। इस प्रकार प्रत्येक पर्व का बाज़ारीकरण हो गया है। पर्वों का असली उद्देश्य आनंद लेना न होकर बस एक दूसरे से काम निकालना ही रह गया है। पर्वों के समय लोग महंगे-महंगे उपहार खरीद कर अपने रिश्तेदारों, मित्रों अथवा अधिकारियों को देकर उनको खुश करना चाहते हैं अथवा उन पर अपनी अमीरी का रौब जमाना चाहते हैं। सारे पर्व बाज़ार से जुड़ गए हैं। उनसे जुड़ी परंपराएँ टूटती हुई-सी प्रतीत हो रही हैं।
(ग) क्रिकेट मैच का आँखों देखा वर्णन
मुझे 20-20 विश्वकप क्रिकेट के पहले आयोजन को देखने का अवसर प्राप्त हुआ था । विश्व की कुल 12 टीमों में से चार सर्वश्रेष्ठ टीमें ऑस्ट्रेलिया, पाकिस्तान, दक्षिण अफ्रीका एवं भारत सेमीफाइनल में पहुँची थीं। आश्चर्यजनक ढंग से पाकिस्तान ने ऑस्ट्रेलिया को और भारत ने दक्षिण अफ्रीका को सेमीफाइनल में हरा दिया। विश्व कप का यह फाइनल मैच दक्षिण अफ्रीका के वांडरर्स स्टेडियम में 24 सितम्बर, 2007 की शाम को आरंभ हुआ। टीमों के साथ-साथ देशवासियों ने भी मैच देखने की तैयारी पहले से कर ली थी। स्टेडियम भी खचाखच भरा था। मैच की शुरुआत हुई। भारत ने टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी करने का फैसला किया। गौतम गंभीर और युसुफ पठान ने पारी की शुरुआत की। तय रणनीति से खेलते हुए भारत ने अपने 20 ओवर में स्कोर 157 रन तक पहुँचाया । तालियों की गूँज से पूरा स्टेडियम गूँज रहा था। दर्शक ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाकर अपनी-अपनी टीमों का हौसला बढ़ा रहे थे।
सभी दर्शक बहुत बेसब्री से मैच का अंतिम पड़ाव देखना चाहते थे । दोनों टीमों की कांटेदार टक्कर ने मैच को उत्साह की चरम सीमा पर पहुँच दिया । आखिरी गेंद तक मैच बेहद रोचक बना रहा। भारत ने पाकिस्तान को हराकर 20-20 ओवर का पहला क्रिकेट विश्व कप अपने नाम कर लिया। स्टेडियम में बैठे भारतीय दर्शक खुशी से नाचने लगे। देश-विदेश में ढेर सारे पटाखे फूटने लगे। ऐसा लग रहा था मानो दीवाली दो महीने पहले ही आ गई हो। खिलाड़ियों को पुरस्कार दिए गए। भारत ने नया इतिहास रचा । क्रिकेट का मुकुट एक बार फिर एशिया के माथे पर सज गया। इस मैच को देखकर मेरा अंग-अंग रोमांचित हो उठा।
प्रश्न 13.
हाल ही में आपने पढ़ाई में किसी बच्ची की मदद की थी। वह बच्ची परीक्षा में अच्छे अंकों से उत्तीर्ण हो गई। अपने इस सुखद अहसास को पत्र लिखकर अपने मित्र को बताइए । [5]
उत्तर:
923 – बी. करोल बाग
नई दिल्ली-110005
दिनांक : 12 अप्रैल, 20xx
प्रिय मित्र रवि
मधुर स्नेह !
मैंने तुम्हें यह पत्र अपने एक सुखद अहसास को बाँटने के लिए लिखा है । हमारे पड़ोस में एक गरीब परिवार रहता है। उनकी बेटी कक्षा पाँच की छात्रा है, गरीब होने के कारण वे अपनी बेटी को ट्यूशन नहीं पढ़ा पा रहे थे और उसे पढ़ाई में सहायता की आवश्यकता थी । अतः उसके पिताजी ने उसे पढ़ाने के लिए मुझसे अनुरोध किया। मैंने बिना किसी हिचकिचाहट के उस बच्ची की पढ़ाई में सहायता की। अब वह बच्ची वार्षिक परीक्षा में अच्छे अंकों से उत्तीर्ण हो गई है। उसकी सफलता को देखकर मुझे अत्यधिक प्रसन्नता तथा आत्म संतुष्टि का अनुभव हो रहा है। उसके माता – पिता ने मेरा बहुत धन्यवाद किया। बच्ची की पढ़ाई में मदद करने और मेरी मेहनत सफल होने के कारण मैं अत्यंत प्रसन्न हूँ। अतः मैंने यह निश्चय किया है कि मैं इस वर्ष भी उस बच्ची की पढ़ाई में सहायता करूँगा ।
तुम्हारा अभिन्न मित्र
क० ख०ग०
अथवा
आजकल खाद्य पदार्थों में रासायनिक रंग, दवाइयाँ, मिलावट आदि का भरपूर प्रयोग किया जा रहा है। इन हानिकारक पदार्थों से मुक्त खाद्यों की अधिक उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए खाद्य आपूर्ति मंत्री को पत्र लिखिए।
उत्तर:
453/4 राजपुर रोड़
नई दिल्ली।
दिनांक : 12 अप्रैल 20xx
सेवा में
खाद्य आपूर्ति मंत्री
खाद्य विभाग दिल्ली।
दिनांक : ………….
विषय : हानिकारक पदार्थों से मुक्त खाद्यों की उपलब्धता सुनिश्चित करने हेतु पत्र |
महोदय,
मैं
राजपुर रोड का निवासी हूँ। मैं आपका ध्यान खाद्य पदार्थों में बढ़ती मिलावट की ओर दिलाना चाहता हूँ। आजकल खाद्य पदार्थों में रासायनिक रंग, दवाइयाँ तथा मिलावटी वस्तुओं आदि का भरपूर प्रयोग किया जा रहा है जो स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक हैं। दुकानदार अधिक लाभ कमाने हेतु मिलावट करते हैं और उनका यह लालच कभी समाप्त ही नहीं होता।
अतः आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप इस अनुचित कार्य को प्रतिबंधित करने के लिए सख्त कदम उठाएँ तथा इन हानिकारक पदार्थों से मुक्त खाद्यों की अधिक उपलब्धता सुनिश्चित करें ताकि हमें शुद्ध खाद्य पदार्थ प्राप्त
हो सकें।
धन्यवाद
भवदीय
क० ख०ग०
प्रश्न 14.
डेंगू से बचने के लिए एक आकर्षक विज्ञापन लगभग 20-25 शब्दों में तैयार कीजिए । [5]
उत्तर:
डेंगू में क्या करें और क्या न करें |
अथवा
जैविक पदार्थों के कूड़े से आपने ऐसा रसायन तैयार किया है जिसका उपयोग घरेलू साफ़-सफ़ाई में काम आने वाले ज़हरीले रसायनों के स्थान पर हो सकता है। इसके प्रचार और बिक्री के लिए लगभग 20-25 शब्दों में एक विज्ञापन तैयार कीजिए ।
उत्तर:
• साफ-सफ़ाई में आए काम • खुशबूदार • जैविक रसायन • ज़हरीले रसायनों की अपेक्षा सुरक्षित • मूल्य मात्र ₹50 • कीटाणुओं का काम तमाम करे सफ़ाई चमकदार, इस्तेमाल करें बार-बार प्राप्ति के लिए सम्पर्क करें : 9900001234 |