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CBSE Class 10 Hindi A Question Paper 2018 (Delhi & Outside Delhi) with Solutions
निर्धारित समय : 3 घण्टे
अधिकतम अंक : 80
सामान्य निर्देश :
- इस प्रश्न-पत्र के चार खंड हैं- क, ख, ग और घ
- चारों खंडों के प्रश्नों के उत्तर देना अनिवार्य है।
- यथासंभव प्रत्येक खंड के उत्तर क्रमश: दीजिए।
खण्ड – क ( अपठित बोध )
प्रश्न 1.
निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर प्रत्येक लगभग 20 शब्दों में लिखिए:
महात्मा गांधी ने कोई 12 साल पहले कहा था-
मैं बुराई करने वालों को सजा देने का उपाय ढूँढ़ने लगूँ तो मेरा काम होगा उनसे प्यार करना और धैर्य तथा नम्रता के साथ उन्हें समझाकर सही रास्ते पर ले आना। इसलिए असहयोग या सत्याग्रह घृणा का गीत नहीं है। असहयोग का मतलब बुराई करने वाले से नहीं, बल्कि बुराई से असहयोग करना है।
आपके असहयोग का उद्देश्य बुराई को बढ़ावा देना नहीं है। अगर दुनिया बुराई को बढ़ावा देना बंद कर दे तो बुराई अपने लिए आवश्यक पोषण के अभाव में अपने-आप मर जाए। अगर हम यह देखने की कोशिश करें कि आज समाज में जो बुराई है, उसके लिए खुद हम कितने ज़िम्मेदार हैं तो हम देखेंगे कि समाज से बुराई कितनी जल्दी दूर हो जाती है। लेकिन हम प्रेम की एक झूठी भावना में पड़कर इसे सहन करते हैं। मैं उस प्रेम की बात नहीं करता, जिसे पिता अपने गलत रास्ते पर चल रहे पुत्र पर मोहांध होकर बरसाता चला जाता है, उसकी पीठ थपथपाता है; और न मैं उस पुत्र की बात कर रहा हूँ जो झूठी पितृ-भक्ति के कारण अपने पिता के दोषों को सहन करता है। मैं उस प्रेम की चर्चा नहीं कर रहा हूँ। मैं तो उस प्रेम की बात कर रहा हूँ, जो विवेकयुक्त है और जो बुद्धियुक्त है और जो एक भी गलती की ओर से आँख बंद नहीं करता। यह सुधारने वाला प्रेम है।
(क) गांधीजी बुराई करने वालों को किस प्रकार सुधारना चाहते हैं? [2]
(ख) बुराई को कैसे समाप्त किया जा सकता है ? [2]
(ग) ‘प्रेम’ के बारे में गांधीजी के विचार स्पष्ट कीजिए। [2]
(घ) असहयोग से क्या तात्पर्य है? [1]
(ङ) उपर्युक्त गद्यांश के लिए उपयुक्त शीर्षक दीजिए। [1]
उत्तर:
(क) गांधीजी बुराई करने वालों को प्रेम, धैर्य तथा नम्रता के द्वारा समझा कर सुधारना चाहते हैं।
(ख) बुराई को असहयोग द्वारा समाप्त किया जा सकता है। बुराई को बढ़ावा देना बंद करने पर बुराई स्वयं ही समाप्त हो जाती है।
(ग) गांधीजी प्रेम को अत्यंत महत्त्व देते हैं। वह मोह को अनुचित मानते हैं परंतु विवेकयुक्त प्रेम को महत्त्वपूर्ण और समाज के लिए उपयोगी मानते हैं।
(घ) असहयोग का अर्थ बुराई से दूर रहना अर्थात् बुराई को सहयोग न देना है। असहयोग बुराई करने वाले से नहीं बल्कि बुराई से करना उचित है।
(ङ) प्रस्तुत गद्यांश का शीर्षक ‘असहयोग तथा प्रेम’ है
प्रश्न 2.
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर प्रत्येक लगभग 20 शब्दों में लिखिए:
तुम्हारी निश्चल आँखें
तारों-सी चमकती हैं मेरे अकेलेपन की रात के आकाश में
प्रेम पिता का दिखाई नहीं देता है
ज़रूर दिखाई देती होंगी नसीहतें
नुकीले पत्थरों-सी
दुनिया भर के पिताओं की लंबी कतार में
पता नहीं कौन-सा कितना करोड़वाँ नंबर है मेरा
पर बच्चों के फूलोंवाले बगीचे की दुनिया में
तुम अव्वल हो पहली क़तार में मेरे लिए
मुझे माफ़ करना मैं अपनी मूर्खता और प्रेम में समझता था
मेरी छाया के तले ही सुरक्षित रंग-बिरंगी दुनिया होगी तुम्हारी
अब जब तुम सचमुच की दुनिया में निकल गई हो
मैं खुश हूँ सोचकर
कि मेरी भाषा के अहाते से परे है तुम्हारी परछाई ।
(क) बच्चे माता-पिता की उदासी में उजाला भर देते हैं – यह भाव किन पंक्तियों में आया है? [1]
(ख) प्रायः बच्चों को पिता की सीख कैसी लगती है? [1]
(ग) माता-पिता के लिए अपना बच्चा सर्वश्रेष्ठ क्यों होता है? [1]
(घ) कवि ने किस बात को अपनी मूर्खता माना है और क्यों? [2]
(ङ) भाव स्पष्ट कीजिए: ‘प्रेम पिता का दिखाई नहीं देता । [2]
उत्तर:
(क) तुम्हारी निश्चल आँखें
तारों-सी चमकती हैं मेरे अकेलेपन की रात के आकाश में।
(ख) बच्चों को पिता की सीख प्राय: अच्छी नहीं लगती । पिता की नसीहतें उन्हें नुकीले पत्थरों की-सी चुभन का अहसास कराती हैं।
(ग) माता – पिता के लिए अपना बच्चा निश्चय ही सर्वाधिक प्रिय और श्रेष्ठ होता है। उनके मन में बच्चे के प्रति ममत्व होता है। अतः उन्हें अपना बच्चा सबसे अच्छा लगता है।
(घ) कवि इस बात को मूर्खता मानता है कि वह प्रेम एवं ममतावश बच्चे को स्वयं की छाया में ही सुरक्षित समझता था। उसे लगता था कि बच्चे के अस्तित्व की रक्षा करना ही उसका एकमात्र दायित्व है।
(ङ) ‘प्रेम पिता का दिखाई नहीं देता’ का अर्थ है कि पिता का प्रेम प्रायः मौन होता है। पिता की डांट- फटकार में भी बच्चे के लिए उसकी चिंता झलकती है परंतु बच्चा इस तथ्य को समझ ही नहीं पाता ।
खण्ड – ख ( व्यावहारिक व्याकरण )
प्रश्न 3.
निर्देशानुसार उत्तर लिखिए: 1 × 3 = 3
(क) बालगोबिन जानते हैं कि अब बुढ़ापा आ गया। ( आश्रित उपवाक्य छाँटकर भेद भी लिखिए )
(ख) मॉरीशस की स्वच्छता देखकर मन प्रसन्न हो गया । ( मिश्र वाक्य में बदलिए )
(ग) गुरुदेव आराम कुर्सी पर लेटे हुए थे और प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद ले रहे थे। ( सरल वाक्य में बदलिए)
उत्तर:
(क) कि अब बुढ़ापा आ गया – संज्ञा उपवाक्य |
(ख) जब मॉरीशस की स्वच्छता देखी तो मन प्रसन्न हो गया – मिश्र वाक्य |
(ग) गुरुदेव आराम कुर्सी पर लेटे हुए प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लें रहे थे – मिश्र वाक्य |
प्रश्न 4.
निर्देशानुसार वाच्य बदलिए । 1 × 4 = 4
(क) मई महीने में शीला अग्रवाल को कॉलेज वालों ने नोटिस थमा दिया। ( कर्मवाच्य में )
(ख) देशभक्तों की शहादत को आज भी याद किया जाता है। (कर्तृवाच्य में )
(ग) खबर सुनकर वह चल भी नहीं पा रही थी । ( भाववाच्य में )
(घ) जिस आदमी ने पहले-पहल आग का आविष्कार किया होगा, वह कितना बड़ा आविष्कर्ता होगा । ( कर्तृवाच्य में )
उत्तर:
(क) मई महीने में शीला अग्रवाल को कॉलेज वालों द्वारा नोटिस थमा दिया गया।
(ख) देशभक्तों की शहादत आज भी याद की जाती है।
(ग) खबर सुनकर उससे चला भी नहीं जा रहा था ।
(घ) पहले-पहल आग का आविष्कार करने वाला आदमी बड़ा आविष्कर्ता होगा।
प्रश्न 5.
रेखांकित पदों का पद-परिचय लिखिए- 1 × 4 = 4
अपने गाँव की मिट्टी छूने के लिए मैं तरस गया।
उत्तर:
गाँव की – संज्ञा, एकवचन, जातिवाचक |
मिट्टी – संज्ञा, एकवचन, स्त्रीलिंग, जातिवाचक |
मैं- कर्ता, सर्वनाम, पुल्लिंग, उत्तम पुरुष, एकवचन ।
तरस गया- क्रिया, एकवचन, पुल्लिंग।
प्रश्न 6.
निम्नलिखित काव्यांशों को पढ़कर उनमें निहित अलंकार पहचानकर लिखिए- 1 × 4 = 4
(क) वह शर इधर गांडीव गुण से भिन्न जैसे ही हुआ।
धड़ से जयद्रथ का इधर सिर छिन्न वैसे ही हुआ ।।
(ख) पद्मरागों से अधर मानो बने ।
मातियों से दाँत निर्मित हैं घने ।
(ग) श्लेष अलंकार का एक उदाहरण लिखिए ।
(घ) मानवीकरण अलंकार का एक उदाहरण लिखिए।
उत्तर:
(क) अतिश्योक्ति अलंकार
(ख) उत्प्रेक्षा अलंकार
(ग) चरन धरत चिंता करत, चितवन चारहु ओर ।
सुबरन को खोजत फिरत, कवि, व्यभिचारी, चोर ।
(घ) अनुराग भरे तारों ने आँखें खोलीं,
संध्या सुंदरी परी -सी नीचे उतरी ।
खण्ड – ग ( पाठ्य-पुस्तक)
प्रश्न 7.
निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर प्रत्येक लगभग 20 शब्दों में लिखिए :
जीप कस्बा छोड़कर आगे बढ़ गई तब भी हालदार साहब इस मूर्ति के बारे में ही सोचते रहे, और अंत में इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि कुल मिलाकर कस्बे के नागरिकों का यह प्रयास सराहनीय ही कहा जाना चाहिए । महत्त्व मूर्ति के रंग-रूप या कद का नहीं, उस भावना का है; वरना तो देशभक्ति भी आजकल मज़ाक की चीज़ होती जा रही है। दूसरी बार जब हालदार साहब उधर से गुज़रे तो उन्हें मूर्ति में कुछ अंतर दिखाई दिया। ध्यान से देखा तो पाया कि चश्मा दूसरा है।
(क) हालदार साहब को कस्बे के नागरिकों का कौन-सा प्रयास सराहनीय लगा और क्यों? [2]
(ख) ‘देशभक्ति भी आजकल मज़ाक की चीज़ होती जा रही है।’ इस पंक्ति में देश और लोगों की किन स्थितियों की ओर संकेत किया गया है? [2]
(ग) दूसरी बार मूर्ति देखने पर हालदार साहब को उसमें क्या परिवर्तन दिखाई दिया? [1]
उत्तर:
(क) हालदार साहब को कस्बे के नागरिकों का यह प्रयास अच्छा लगा कि उन्होंने कस्बे के चौक पर नेता सुभाषचंद्र बोस की प्रतिमा लगवाई थी। उनको लगा कि कस्बे के लोगों में नेताजी के प्रति सम्मान की भावना थी ।
(ख) आजकल लोगों में स्वार्थ की भावना बढ़ती जा रही है। अधिकांश लोग आत्मकेन्द्रित हैं। अधिकांश लोगों में देशभक्ति की भावना का अभाव है।
(ग) हालदार साहब ने मूर्ति को जब दूसरी बार देखा तो उन्होंने नेताजी के चश्मे को बदला हुआ पाया।
प्रश्न 8.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर प्रत्येक लगभग 20 शब्दों में लिखिए : 2 × 4 = 8
(क) ‘बालगोबिन भगत’ पाठ में किन सामाजिक रूढ़ियों पर प्रहार किया गया है?
(ख) पिताजी के लिए अपनी बेटी को बर्दाश्त करना मुश्किल क्यों हो रहा था ?
(ग) ‘काशी में बाबा विश्वनाथ और बिस्मिल्ला खाँ एक-दूसरे के पूरक हैं’ – कथन का क्या आशय है?
(घ) बिस्मिल्ला खाँ काशी छोड़कर अन्यत्र क्यों नहीं जाना चाहते थे ?
उत्तर:
(क) ‘बालगोबिन भगत’ पाठ में निम्न सामाजिक रूढ़ियों पर प्रहार किया गया है :
(1) बालगोबिन भगत के पुत्र की मृत्यु हो गई तो उन्होंने सामाजिक परंपराओं के अनुरूप अपने पुत्र का स्वयं क्रियाकर्म न कर अपनी पुत्रवधु से उसकी चिता को अग्नि दिलवाई।
(ii) उन्होंने समाज की देखा-देखी पुत्र की मृत्यु पर रो-रो कर शोक नहीं मनाया। उन्होंने अपनी पुत्रवधु को भी रोने से मना किया तथा उत्सव मनाने को कहा। वह स्वयं भी तल्लीन हो कर गा रहे थे।
(iii) उस समय समाज में विधवा विवाह को मान्यता प्राप्त नहीं थी परंतु भगत जी ने पुत्रवधु के भाई को उसका पुनर्विवाह करवाने का आदेश दिया।
(ख) लेखिका उन दिनों सड़कों पर लड़कों के साथ घूमती हुई ब्रिटिश शासन के विरुद्ध नारे लगाती थी तथा हड़तालें
करवाती थी। वह यथाशक्ति ब्रिटिश शासन का विरोध कर रही थी तथा उसकी जड़ें यहाँ से उखाड़ फेंकना चाहती थी। अतः परम्परावादी पिताजी के लिए अपनी निरंकुश बेटी को बर्दाश्त करना मुश्किल होता जा रहा था ।
(ग) काशी में बाबा विश्वनाथ का अत्यधिक महत्त्व है। वे काशी की आध्यात्मिक चेतना का केन्द्र हैं। बिस्मिल्ला खाँ काशी के लोगों की कलाप्रियता के प्रतीक थे। वे काशी के कला-जगत का केन्द्र थे। दोनों को ही एक-दूसरे का पूरक कहा जा सकता है।
(घ) बिस्मिल्ला खाँ को काशी अत्यंत प्रिय थी । वह उसे धरती पर स्वर्ग मानते थे, उन्हें वहीं संगीत की शिक्षा मिली थी। उनके नाना भी वहाँ एक मन्दिर में शहनाई बजाते थे। काशी में गंगा जी हैं तथा बाला जी का मन्दिर है, जहाँ बिस्मिल्ला खाँ ने वर्षों तक शहनाई वादन किया था। अतः वह काशी छोड़कर अन्यत्र नहीं जाना चाहते थे ।
प्रश्न 9.
निम्नलिखित पद्यांश के आधार पर दिए गए प्रश्नों के उत्तर प्रत्येक लगभग 20 शब्दों में लिखिए :
हमारैं हरि हारिल की लकरी ।
मन क्रम वचन नंद नंदन उर यह दृढ़ कर पकरी ।
जागत सोवत स्वप्न दिवस निसि, कान्ह – कान्ह जक री ।
सुनत जोग लागत है ऐसौ, ज्यौं करुई ककरी।
सु तौ ब्याधि हमकौं लै आए, देखी सुनी न करी ।
यह तौ ‘सूर’ तिनहिं लै सौंपौ, जिनके मन चकरी ।
(क) ‘हारिल की लकरी’ किसे कहा गया है और क्यों? [2]
(ख) ‘तिनहिं लै सौंपौ’ में किसकी ओर क्या संकेत किया गया है? [2]
(ग) गोपियों को योग कैसा लगता है? क्यों? [1]
उत्तर:
(क) ‘ हारिल की लकरी’ गोपियों के लिए कहा गया है। जिस प्रकार हारिल पक्षी लकड़ी को नहीं छोड़ता ऐसे ही गोपियाँ भी श्रीकृष्ण के बिना नहीं रह सकतीं।
(ख) ‘तिनहिं लै सौंपौ’ में ‘तिनहिं’ शब्द अस्थिर चित्त वाले व्यक्तियों के लिए कहा गया है। गापियाँ उद्धव से कहती हैं कि योग साधना उन लोगों के लिए उचित है जिनका मन ‘ चकरी’ की तरह घूमता रहता है।
(ग) गोपियों को योग ‘कड़वी ककड़ी’ की तरह लगता है। गोपियाँ श्रीकृष्ण से प्रेम करती हैं। वे योग साधना को अपने लिए उचित नहीं समझती ।
प्रश्न 10.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर प्रत्येक लगभग 20 शब्दों में लिखिए : 2 × 4 = 8
(क) परशुराम के क्रोध करने पर श्रीराम और लक्ष्मण की जो प्रतिक्रियाएँ हुईं उनके आधार पर दोनों के स्वभाव की विशेषताएँ अपने शब्दों में लिखिए।
(ख) बादलों की गर्जना का आह्वान कवि क्यों करना चाहता है ? ‘उत्साह’ कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए ।
(ग) कवि अपनी आत्मकथा को सुनाने के लिए अनिच्छुक क्यों है ?
(घ) संगतकार की हिचकती आवाज उसकी विफलता क्यों नहीं है?
उत्तर:
(क) परशुराम के क्रोध करने पर श्रीराम ने विनम्रता एवं मृदु स्वर में अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की परन्तु लक्ष्मण उन पर क्रोधित हो गए। इससे पता चलता है कि श्रीराम शांत स्वभाव के संयमी व्यक्ति हैं। वह अत्यंत विनम्र, मृदुभाषी व दयालु प्रकृति के हैं जबकि लक्ष्मण क्रोधी परंतु तार्किक हैं। वह हर बात का जल्दी ही उत्तर दे देना चाहते हैं। उनमें धैर्य की कमी है पर वह अपने भाई श्रीराम से अपने से भी अधिक प्रेम करते हैं।
(ख) कवि बादलों की गर्जना का आह्वान करना चाहता है। वह चाहता है कि शोषित लोगों में नई चेतना जागृत हो जाए जिससे वे पूँजीपति लोगों का आधिपत्य समाप्त कर सकें ।
(ग) कवि कहता है कि उसकी कष्टों से भरी आत्मकथा को सुनने से किसी को क्या मिलेगा। इससे तो केवल उसके अपने सूखे घाव फिर से हरे हो जाएँगे । विगत बातों की कटु स्मृतियाँ उसे पुनः अधिक दुख देंगी। इसलिए कवि अपनी आत्मकथा सुनाने का इच्छुक नहीं है।
(घ) संगतकार मुख्य कलाकार को सहयोग देता है। उसकी हिचकती आवाज़ उसकी विफलता नहीं है बल्कि उसका उद्देश्य ही मुख्य गायक की आवाज़ को समयानुसार सहयोग देना होता है।
प्रश्न 11.
‘मैं क्यों लिखता हूँ’ पाठ के आधार पर बताइए कि हिरोशिमा की घटना विज्ञान का भयानकतम दुरुपयोग है। आपकी दृष्टि में विज्ञान का दुरुपयोग कहाँ-कहाँ और किस तरह से हो रहा है? आप इसे रोकने के लिए क्या-क्या कर सकते हैं? [4]
उत्तर:
1. ‘मैं क्यों लिखता हूँ’ पाठ में लेखक ने हिरोशिमा की घटना का उल्लेख कर विज्ञान के भयानकतम दुरुपयोग की ओर ध्यान आकृष्ट किया है। विज्ञान का दुरुपयोग जीवन के हर क्षेत्र में हो रहा है। शक्तिशाली देश बम विस्फोट कर छोटे-छोटे तथा विकासशील देशों पर कब्ज़ा कर लेते हैं। आतंकवादी संगठन वैज्ञानिक अस्त्रों-शस्त्रों का प्रयोग कर अपनी हर बात मनवा लेते हैं। खेतों में कीटनाशक और ज़हरीले रासायनिक द्रव्य छिड़के जाते हैं। फसल की मात्रा अधिक होती है लेकिन पौष्टिक तत्त्व कम हो जाते हैं। इसके परिणामस्वरूप जल, स्थल तथा वायु प्रदूषण भी बढ़ रहा है। विज्ञान के उपकरणों के अंधाधुंध प्रयोग करने से पृथ्वी का वातावरण गरम होता जा रहा है अर्थात् ग्लोबल वार्मिंग बढ़ रही है। जिसके कारण अत्यधिक बर्फ पिघलने से बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है। प्राकृतिक आपदाएँ भयंकर रूप ले रही हैं। सुरक्षित भविष्य को ध्यान में रखे बिना प्राकृतिक संसाधनों का दोहन हो रहा है।
2. मैं एक ज़िम्मेदार नागरिक होने के नाते विज्ञान के दुरुपयोग को रोकने के लिए निम्न उपाय करूंगा :
(i) वैज्ञानिक उपकरणों का प्रयोग सावधानी से करूँगा ।
(ii) प्रदूषण फैलाने वाली वस्तुओं का प्रयोग नहीं करूँगा अथवा कम से कम करूँगा ।
(iii) आस-पास के वातावरण को साफ़-सुथरा तथा प्रदूषण रहित रखने की कोशिश करूँगा।
अथवा
‘माता का अँचल’ पाठ में चित्रित ग्राम्य संस्कृति से आज की ग्रामीण संस्कृति की क्या भिन्नता है? उत्तर – वर्तमान ग्रामीण संस्कृति में पहले की अपेक्षा बहुत अधिक परिवर्तन दिखाई देते हैं। आजकल खेती का काम ट्रैक्टर तथा अन्य मशीनों की सहायता से होने लगा है। सिंचाई के लिए भी विद्युत चालित नलकूपों की सहायता ली जाती है। कृषि संबंधित विभिन्न तरह की जानकारियों के लिए कृषि विद्यालय भी खुल गए हैं। महाजनों के पास अपनी ज़मीन गिरवी रखकर ऋण लेने की अपेक्षा किसानों के लिए बैंकों से न्यूनतम ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध किया जा रहा है ताकि वह अपनी कृषि और अधिक उन्नत बना सकें। चिकित्सा सुविधा भी आसानी से उपलब्ध करवाने के लिए गाँवों में अत्याधुनिक चिकित्सालय खुल रहे हैं। मनोरंजन के लिए टेलीविज़न हर घर में आम हो गया है। संचार सुविधाओं में दूरभाष सेवा तथा इंटरनेट जैसी सुविधाएँ भी गाँवों में सुलभ हो रही हैं। इसके अतिरिक्त किसानों को अब अपने उत्पादन को बाज़ार में बेचने के लिए मध्यस्थों की आवश्यकता भी नहीं है। अब सरकार तथा बड़ी-बड़ी कंपनियाँ सीधे उनके द्वारा उत्पादित अनाज व वस्तुएँ खरीद कर उनका शोषण होने से बचाती हैं।
खण्ड – घ (लेखन)
प्रश्न 12.
निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर दिए गए संकेत- बिन्दुओं के आधार पर लगभग 200 से 250 शब्दों में निबन्ध लिखिए- [10]
(क) महानगरीय जीवन : विकास की अंधी दौड़ – संबंधों का ह्रास – दिखावा
(ख) पर्वों का बदलता स्वरूप : तात्पर्य परंपरागत तरीके – बाजार का बढ़ता प्रभाव
(ग) बीता समय फिर लौटता नहीं : समय का महत्त्व – समय नियोजन – समय गँवाने की हानियाँ
उत्तर:
(क) महानगरीय जीवन
महानगर का जीवन अत्यंत सुविधाजनक तथा आनंददायक प्रतीत होता है । महानगर में यातायात की सुविधाएँ, विशाल इमारतें, समृद्धि और ऐश्वर्य की वस्तुओं से सजे बाज़ार, पंचसितारा होटल, चमचमाती सड़कें, आधुनिक जीवनशैली वाले लोग लक्षित होते हैं। वस्तुतः विकास की अंधी दौड़ में महानगरीय जीवन मात्र एक दिखावा बन कर रह गया है। धनी लोग यहाँ विलासितापूर्ण जीवन जीते हैं। महानगरों में रहने वाले अधिकांश लोग स्वार्थी और आत्मकेन्द्रित होते हैं। धनी लोग जितने विशाल घरों में रहते हैं उनके हृदय उतने ही संकीर्ण होते हैं। महानगरों में वृद्धों की तो प्रायः दुर्दशा ही परिलक्षित होती है। अधिकांश घरों में वृद्धों को बोझ की तरह समझा जाता है। कामकाजी बेटा-बहू अपने माता-पिता को बस बच्चों की देखभाल के लिए अपने घरों में रखते हैं। जब उनका मतलब हल हो जाता है तो अपने ही माँ-बाप उनको खटकने लगते हैं।
महानगरों में लूटपाट तथा महिलाओं से सम्बन्धित अपराध भी बहुत अधिक होते हैं। दिन-दहाड़े बसों में अथवा बाज़ारों में महिलाओं के साथ बदतमीज़ी होना आम बात है। आपाधापी के इस युग में लोगों को एक-दूसरे के लिए समय ही नहीं मिलता। अधिकांश लोग इतने लोगों के बीच होते हुए भी स्वयं को एकाकी अनुभव करते हैं। जिससे वह मानसिक अवसाद के शिकार हो जाते हैं। महानगरों में अपनी आजीविका कमाने हेतु अन्य राज्यों से आए मज़दूरों का जीवन अत्यंत कठोर होता है । इनके रहने का कोई ठिकाना नहीं होता । अतः ये सर्दी-गर्मी की परवाह किए बिना लोग फुटपाथों पर रहने को बाध्य होते हैं। कई लोग तो भयावह गर्मी के दिनों में अथवा सर्द रातों में असमय ही काल का ग्रास बन जाते हैं। सरकारी अस्पतालों में रोगियों की लंबी कतारें लगी होती हैं। लोगों को समय पर उपचार नहीं मिल पाता। निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि महानगरीय जीवन वरदान के साथ-साथ अभिशाप भी है।
(ख) पर्वों का बदलता स्वरूप
मानव जीवन का पर्वों से अत्यंत गहरा संबंध है। विश्व के प्रत्येक देश में प्रत्येक धर्म के अनुयायियों द्वारा अपने-अपने पर्वों को मनाया जाता है। पर्व से तात्पर्य किसी ऐतिहासिक, धार्मिक, सांस्कृतिक अथवा राष्ट्रीय घटना के घटित हुए दिन को सबके साथ आनंदपूर्वक मनाना है। भारत को पर्वों का देश कहा जाए तो यह अतिश्योक्ति नहीं होगी। हमारे देश में वर्ष भर किसी न किसी राज्य में कोई न कोई पर्व पूरे हर्षोल्लास से मनाया जाता है। पर्व हमारे भावनात्मक विकास में सदैव सहभागी रहे हैं। पर्व मानव में एक नवीन ऊर्जा संचरित करते हैं। पर्व अनेक प्रकार के होते हैं- सामाजिक, राष्ट्रीय, सांस्कृतिक, धार्मिक, ऋतु संबंधी अथवा विशिष्ट लोगों से संबंधित। भारत के विभिन्न प्रांतों में विभिन्न पर्व मनाए जाते हैं। दीपावली, दशहरा, जन्माष्टमी, रामनवमी, शिवरात्रि, बुद्ध पूर्णिमा आदि पर्व भारत के मुख्य त्योहार हैं। दुर्गापूजा, गणेश चतुर्थी, पोंगल, बीहू, बैसाखी आदि प्रांतीय पर्व हैं। गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस, महात्मा गांधी जन्मदिवस आदि संपूर्ण भारत में मनाए जाते हैं । इन्द्र पूजा तथा गोवर्धन पूजा जैसे पर्व अत्यंत प्राचीन हैं, इनका उल्लेख श्रीमद्भागवत में भी मिलता है। वर्तमान समय में पर्वों के स्वरूप में बहुत परिवर्तन आ चुका है। उदाहरणस्वरूप दीपावली पहले अत्यंत सादगीपूर्ण एवं परंपरागत रूप से मनाई जाती थी। तेल के दीए जलाकर रोशनी के इस पर्व का स्वागत किया जाता था।
मित्रों एवं रिश्तेदारों के साथ घर में बनी मिठाइयों का आदान-प्रदान किया जाता था। बच्चे फुलझड़ी, चखरी इत्यादि चलाकर खुश हो जाया करते थे । परंतु आज दीओं का स्थान बिजली के रंग-बिरंगे बल्बों ने ले लिया है । फुलझड़ी इत्यादि का स्थान ध्वनि तथा वायु प्रदूषण करने वाले बमों ने ले लिया है। घर की बनी मिठाइयों का स्थान महंगे-महंगे उपहारों तथा विदेशी चॉकलेटों ने ले लिया है। होली जैसे उल्लास भरे पर्व को पहले परंपरागत ढंग से नाचते-गाते हुए एक-दूसरे पर प्राकृतिक रंग रंग डाल कर मनाया जाता था। सभी धर्म के लोग आपस में मिलकर होली खेलते थे। परंतु अब तो होली केवल शरारती तत्त्वों का पर्व बनकर रह गया है। कम लागत लगाकर गंदे तथा घटिया रासायनिक रंगों को धड़ल्ले से बाज़ार में बेचा जाता है। इस पावन पर्व पर शराब पीकर घटिया आचरण करना तो आम हो गया है। पर्वों के समय लोग महंगे-महंगे उपहार खरीद कर अपने रिश्तेदारों, मित्रों अथवा अधिकारियों को देकर उनको खुश करना चाहते हैं अथवा उन पर अपनी अमीरी का रौब जमाना चाहते हैं। सारे पर्व बाज़ार से जुड़ गए हैं। उनसे जुड़ी परंपराएँ टूटती हुई-सी प्रतीत हो रही हैं।
(ग) बीता समय फिर लौटता नहीं
मानव जीवन में समय का सर्वाधिक महत्त्व है। जो व्यक्ति समय की कद्र नहीं करता वह जीवन में कभी भी सफलता प्राप्त नहीं कर सकता। समय का महत्त्व न समझने वाला व्यक्ति अपने जीवन का लक्ष्य प्राप्त नहीं कर सकता। प्राचीन काल से ही समय को अमूल्य धन की संज्ञा दी जाती है । तुलसीदास जी ने कहा कि समय बीत जाने पर व्यक्ति केवल पश्चाताप ही कर सकता है
का वरषा जब कृषि सुखाने ।
समय बीति पुनि क्या पछताने ।।
भाव यह है कि कृषि सूख जाने पर वर्षा होने का कोई लाभ नहीं होता। समय बीत जाने पर पछताने से क्या होगा ? प्रत्येक व्यक्ति को समय का सदुपयोग करना चाहिए। समय का समायोजन अत्यंत आवश्यक है। समय-नियोजन सफलता का मूल मंत्र है। आग लगने पर कुँआ खोदना व्यर्थ है। हमें आज का काम कल पर नहीं छोड़ना चाहिए। किसी कवि ने कहा है :
काल करे सो आज कर, आज करे सो अब ।
पल में परलय होयेगी, बहुरि करेगा कब।।
समय व्यर्थ गँवाने से जीवन नष्ट होता है। व्यक्ति किसी कार्य में सफलता प्राप्त नहीं कर सकता। समय का दुरुपयोग अथवा समय को व्यर्थ करने से व्यक्ति के जीवन का कोई अर्थ नहीं रहता । प्रत्येक कार्य का एक निश्चित समय होता है। समय के बाद किया गया कार्य अपना महत्त्व खो देता है। अतः हमें प्रत्येक कार्य उचित तथा निश्चित समय पर करना चाहिए।
प्रश्न 13.
आपके क्षेत्र के पार्क को कूड़ेदान बना दिया गया था। अब पुलिस की पहल और मदद से पुनः बच्चों के लिए खेल का मैदान बन गया है। अतः आप पुलिस आयुक्त को धन्यवाद पत्र लिखिए। [5]
उत्तर:
7 – बी, राजपुर रोड
दिनांक : 2 फरवरी, 20xx
सेवा में
पुलिस आयुक्त
सिविल लाइन्स, दिल्ली ।
विषय : क्षेत्र में बच्चों के लिए खेल का मैदान बनाने हेतु ।
सिविल लाइन्स में राजपुर रोड पर एक पार्क कूड़ेदान में परिवर्तित हो गया था। कूड़े के ढेर इतने बढ़ गए कि लोगों का पार्क में जाना भी दूभर हो गया। बच्चों को खेलने के लिए कोई स्थान नहीं बचा था। क्षेत्र के कुछ ज़िम्मेदार नागरिकों ने इस ओर पुलिस अधिकारियों का ध्यान केंद्रित किया। अधिकारियों के हस्तक्षेप से धीरे- धीरे पार्क पुनः अपने पुराने स्वरूप में आ गया है। अब बच्चे खेलने के लिए पार्क में ही जाते हैं। क्षेत्र निवासी भी पार्क में सुबह की सैर का आनंद लेते हैं। पुलिस का सहयोग निश्चित तौर पर प्रशंसनीय कहा जा सकता है। हम क्षेत्रवासी आपको तथा आपके विभाग को इस कार्य के लिए धन्यवाद ज्ञापित करते हैं।
भवदीय
अ०ब०स०
अथवा
पटाखों से होने वाले प्रदूषण के प्रति ध्यान आकर्षित करते हुए अपने मित्र को पत्र लिखिए ।
उत्तर:
प्रिय मित्र सलिल
मधुर स्नेह ।
मैं आपको बहुत दिन बाद पत्र लिख रहा हूँ। इसके लिए क्षमा चाहता हूँ। विद्यालय में मध्यावधि परिक्षाएँ चल रही थीं। आपने मुझे दीपावली पर अपने घर पर आमंत्रित किया था। परंतु किसी कारणवश मैं आ नहीं पाया। यह कहते हुए मुझे काफी हर्ष हो रहा है कि इस बार दीपावली के अवसर पर होने वाली आतिशबाजी में काफ़ी कमी दिखाई दी है। वस्तुतः पटाखों से भयानक वायु प्रदूषण होता है तथा विशेषतः वृद्धों और बच्चों के लिए अत्यंत हानिकारक होता है। अस्थमा के रोगियों के लिए तो यह प्रदूषण अत्यंत कष्टकारक होता है। पटाखों के कारण हवा इतनी दूषित हो जाती है कि सामान्य लोगों के स्वास्थ्य पर भी घातक प्रभाव पड़ता है। इस बार प्रशासनिक प्रतिबंध तथा लोगों में थोड़ी जागरूकता आने के कारण पटाखे बहुत कम जलाए गए हैं।
आशा करता अगले वर्ष की दीपावली हम साथ मनाएंगे। अपने माता-पिता को मेरी ओर से चरण स्पर्श करना ।
आपका अभिन्न संकल्प अरोड़ा
दिनांक : 25 मार्च, 20xx
प्रश्न 14.
पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए लगभग 50 शब्दों में एक विज्ञापन तैयार कीजिए । [5]
उत्तर:
प्रदूषण जानलेवा है |
अथवा
विद्यालय के वार्षिकोत्सव के अवसर पर विद्यार्थियों द्वारा निर्मित हस्तकला की वस्तुओं की प्रदर्शनी के प्रचार हेतु लगभग 50 शब्दों में एक विज्ञापन लिखिए।
उत्तर:
विद्यार्थियों द्वारा निर्मित हस्तकला की वस्तुओं की प्रदर्शनी |