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CBSE Class 10 Hindi A Question Paper 2015 (Outside Delhi) with Solutions
निर्धारित समय : 3 घण्टे
अधिकतम अंक : 80
सामान्य निर्देश :
- इस प्रश्न-पत्र के चार खंड हैं- क, ख, ग और घ ।
- चारों खंडों के प्रश्नों के उत्तर देना अनिवार्य है।
- यथासंभव प्रत्येक खंड के उत्तर क्रमशः दीजिए।
खण्ड-क ( अपठित बोध )
प्रश्न 1.
निम्नलिखित अपठित गद्यांश के आधार पर दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए- [8]
प्रारम्भ में विवेकानन्द को भारत में महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त नहीं हुआ पर जब उन्होंने अमेरिका में नाम कमा लिया तो भारतवासी दौड़े मालाएँ लेकर स्वागत करने। रवीन्द्रनाथ ठाकुर को भी जब नोबल पुरस्कार मिला तो बंगाली लोग दौड़े यह राग अलापते हुए – ” अमादेर ठाकुर । अमादेर सोनार कंठोर सुपूत ” । दक्षिण भारत में कुछ समय पहले तक भरतनाट्यम् और कथकली को कोई नहीं पूछता था, पर जब उसे विदेशों में मान मिलने लगा तो आश्चर्य से भारतवासी सोचने लगे, “अरे, हमारी संस्कृति में इतनी अपूर्व चीजें भी पड़ी थीं क्या ….!” यहाँ के लोगों को अपनी खूबसूरती नहीं नज़र आती, मगर पराये के सौन्दर्य को देख कर मोहित हो जाते हैं। जिस देश में जन्म पाने के लिए मैक्समूलर ने जीवन भर प्रार्थना की, उस देश के निवासी आज जर्मनी और विलायत जाना स्वर्ग जाने जैसा अनुभव करते हैं। ऐसे लोगों को प्राचीन ” गुरु शिष्य संबंध ” की महिमा सुनाना गधे को गणित सिखाने जैसा व्यर्थ प्रयास ही हो सकता है।
एक बार सुप्रसिद्ध भारतीय पहलवान गामा बंबई आए। उन्होंने विश्व के सारे पहलवानों को कुश्ती में चैलेंज दिया। अखबारों में यह समाचार प्रकाशित होते ही एक फ़ारसी पत्रकार ने उत्सुकतावश उनके निकट पहुँच कर उनसे पूछा – ” साहब, विश्व के किसी भी पहलवान से लड़ने के लिए आप तैयार हैं तो आप अपने अमुक शिष्य से ही लड़कर विजय प्राप्त करके दिखाएँ। ” गामा आजकल के शिक्षाक्रम में रंगे नहीं थे। इसलिए उन्हें इन शब्दों ने हैरान कर दिया। वे मुँह फाड़कर उस पत्रकार का चेहरा ताकते ही रह गए। बाद में धीरे से कहा – ” भाई साहब, मैं हिन्दुस्तानी हूँ।
हमारा अपना एक निजी रहन – सहन है। शायद इससे आप परिचित नहीं हैं। जिस लड़के का आपने नाम लिया, वह मेरे पसीने की कमाई, मेरा खून है और मेरे बेटे से भी अधिक प्यारा है। इसमें और मुझमें फरक ही कुछ नहीं है। मैं लड़ा या वह लड़ा, दोनों बराबर ही होगा। हमारी अपनी इस परंपरा को आप समझने की चेष्टा कीजिए। हम लोगों को वंश-परम्परा से शिष्य – परम्परा ही अधिक प्रिय हैं। ख्याति और प्रभाव में हम सदा यही चाहते हैं कि हम अपने शिष्यों से कम प्रमुख रहें। यानी हम यही चाहेंगे कि संसार में जितना नाम मैंने कमाया उससे कहीं अधिक मेरे शिष्य कमाएँ। मुझे लगता है, आप हिन्दुस्तानी नहीं हैं । ”
(i) भारत में विवेकानन्द को सम्मान कब मिला? [2]
(ii) मैक्समूलर ने किस देश में जन्म पाने की प्रार्थना की और क्यों? [2]
(iii) गामा ने पत्रकार से क्या कहा ? [2]
(iv) उपर्युक्त गद्यांश का शीर्षक बताइए । [1]
(v) उपरोक्त गद्यांश में से कोई दो विशेषण छांटिए । [1]
उत्तर:
(i) विवेकानन्द को जब अमेरिका और इंग्लैंड में सम्मान मिला तो भारत लौटने पर उन्हें भारतीयों से भी सम्मान प्राप्त हुआ।
(ii) मैक्समूलर ने भारत में जन्म पाने के लिए जीवन भर प्रार्थना की। वे भारतीय संस्कृति और अध्यात्म से बहुत अधिक प्रभावित थे।
(iii) गामा ने पत्रकार से कहा कि भारतीय गुरु चाहते हैं कि उनके शिष्यों की ख्याति उनसे भी अधिक हो । वे उन्हें सदैव अपने से आगे बढ़ते हुए देखना चाहते हैं।
(iv) शीर्षक – भारतीय संस्कृति में गुरु-शिष्य संबंध ।
(v) (क) अपूर्व,
(ख) अधिक।
प्रश्न 2.
निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए- [7]
आग के ही बीच में अपना बना घर देखिए ।
यहीं पर रहते रहेंगे हम उमर भर देखिए ।।
एक दिन वे भी जलेंगे जो लपट से दूर हैं।
आँधियों का उठ रहा दिल में वहाँ डर देखिए ।।
पैर धरती पर हमारे मन हुआ आकाश है।
आप जब हमसे मिलेंगे, उठा यह सर देखिए ||
जी रहे हैं वे नगर में द्वारपालों की तरह ।
कमर सजदे में झुकी है, पास जाकर देखिए ।।
टूटना मंजूर पर झुकना हमें आता नहीं।
चलाकर ऊपर हमारे आप पत्थर देखिए ।।
भरोसे की बूंद को मोती बनाना है अगर ।
ज़िन्दगी की लहर को सागर बनाकर देखिए ।।
(i) आग के बीच में घर बनाने का क्या आशय है? [2]
(ii) ‘लपट से दूर’ होने का क्या तात्पर्य है? [2]
(iii) मन और पैर की कवि ने क्या स्थिति बताई है? [1]
(iv) द्वारपालों की तरह जीना किसे कहते हैं? [1]
(v) भरोसे की बूँद को मोती कैसे बनाया जा सकता है? [1]
उत्तर:
(i) आग के बीच में घर बनाने का तात्पर्य है – निरन्तर विभिन्न प्रकार के संकटों से घिरा रहना, बाधाओं से जूझते रहना ।
(ii) दूसरों को मुसीबत में फँसाकर जो दूर हट जाते हैं, उन्हें ‘लपट से दूर’ होना कहा गया है।
(iii) पैर ज़मीन पर होने का अर्थ है, अहंकार न होना तथा जीवन के यथार्थ को समझना । मन के विषय में कवि कहता है कि मन में हमेशा उच्च भावनाएँ होनी चाहिए ।
(iv) खुशामद का जीवन जीने को द्वारपालों की तरह जीना कहा गया है।
(v) जब व्यक्ति अपने हृदय की संकीर्णता से मुक्त हो जाता है तो सभी लोग उस पर विश्वास करने लगते हैं। इसे ही कवि ने भरोसे की बूँद को मोती बनाना कहा है।
खण्ड – ख ( व्यावहारिक व्याकरण )
प्रश्न 3.
निम्नलिखित वाक्यों के रचना के आधार पर भेद लिखिए- [3]
(क) जब मैं रात को देर से सोता हूँ तो सवेरे जल्दी नहीं जग पाता ।
(ख) कठिन परिश्रम के बिना कोई बड़ा आदमी नहीं बन सकता ।
(ग) किसान ने बैल खूँटे से खोल दिए और वे दूर खेतों में जा चरे।
उत्तर:
(क) मिश्र वाक्य
(ख) सरल वाक्य
(ग) संयुक्त वाक्य
प्रश्न 4.
निर्देशानुसार वाच्य परिवर्तन कीजिए। [4]
(क) आदिवासी लोग प्रकृति की पूजा करते हैं । ( कर्मवाच्य में )
(ख) मुझसे अब जबलपुर नहीं जाया जा सकेगा। ( कर्तृवाच्य में)
(ग) हम अब मैदान में खेल नहीं खेलेंगे। ( भाववाच्य में )
(घ) श्याम के द्वारा ही यह फर्नीचर खरीदा गया था। ( कर्तृवाच्य में )
उत्तर:
(क) आदिवासी लोगों द्वारा प्रकृति की पूजा की जाती है।
(ख) मैं अब जबलपुर नहीं जा सकूँगा ।
(ग) हमसे अब मैदान में खेल नहीं खेला जाएगा।
(घ) श्याम ने ही यह फर्नीचर खरीदा था।
प्रश्न 5.
निम्नलिखित वाक्यों में रेखांकित पदों का पद-परिचय लिखिए- [4]
(क) आपके घर पर कोई नहीं मिलता।
(ख) सुरेश के पास आना तो बेकार साबित हुआ ।
(ग) हम ताजमहल देखने गए थे।
(घ) क्या वह छात्र बगीचे में खेलता था ?
उत्तर:
(क) कोई – अनिश्चयवाचक सर्वनाम, अन्यपुरुष, पुल्लिंग, एकवचन, कर्ताकारक, ‘मिलता’ क्रिया का कर्ता ।
(ख) सुरेश – व्यक्तिवाचक संज्ञा, पुल्लिंग, एकवचन, संबंध कारक ।
(ग) हम – सर्वनाम ( पुरुषवाचक), उत्तम पुरुष, पुल्लिंग, बहुवचन, कर्ता कारक, ‘गए थे’ क्रिया का कर्ता ।
(घ) छात्र – जातिवाचक संज्ञा, पुल्लिंग एकवचन, कर्ता कारक, ‘खेलता था’ क्रिया का कर्ता ।
प्रश्न 6.
काव्यांश का अलंकार पहचानकर उसका नाम लिखिए- [4]
(क) रावण सर सरोज बनचारी, चलि रघुवीर सिलीमुख ।
(ख) लोने लोने वे घने चने क्या बने बने इठलाते हैं,
हौले-हौले होली गा-गा घुंघरू पर ताल बजाते हैं।
(ग) अतिश्योक्ति अलंकार का उदाहरण दीजिए ।
(घ) उत्प्रेक्षा अलंकार का उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
(क) श्लेष अलंकार
(ख) मानवीकरण
(ग) भूप सहस दस एकहि बारा । लंगे उठावन टरत ना टारा।।
(घ) मुख बाल रवि सम लाल होकर, ज्वाला – सा बोधित हुआ ।
खण्ड – ग ( पाठ्य-पुस्तक)
प्रश्न 7.
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए- [5]
एक संस्कृत व्यक्ति किसी नयी चीज़ की खोज करता है; किंतु उसकी संतान को वह अपने पूर्वज से अनायास ही प्राप्त हो जाती है। जिस व्यक्ति की बुद्धि ने अथवा उसके विवेक ने किसी भी नए तथ्य का दर्शन किया, वह व्यक्ति ही वास्तविक संस्कृत व्यक्ति है और उसकी संतान जिसे अपने पूर्वज से वह वस्तु अनायास ही प्राप्त हो गई है, वह अपने पूर्वज की भाँति सभ्य भले ही बन जाए, संस्कृत नहीं कहला सकता। एक आधुनिक उदाहरण लें | न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत का आविष्कार किया। वह संस्कृत मानव था। आज के युग का भौतिक विज्ञान का विद्यार्थी न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण से तो परिचित है ही; लेकिन उसके साथ उसे और भी अनेक बातों का ज्ञान प्राप्त है जिनसे शायद न्यूटन अपरिचित ही रहा। ऐसा होने पर भी हम आज के भौतिक विज्ञान के विद्यार्थी को न्यूटन की अपेक्षा अधिक सभ्य भले ही कह सकें; पर न्यूटन जितना संस्कृत नहीं कह सकते ।
(क) लेखक का नाम बताइए । [1]
(ख) उपर्युक्त गद्यांश में ‘अनायास’ शब्द का क्या तात्पर्य है? [1]
(ग) इस गद्यांश में कौन सा सिद्धान्त प्रस्तुत किया गया है? [1]
(घ) सभ्य कौन है? [1]
(ङ) ‘एक आधुनिक उदाहरण लें। – इस वाक्य में से विशेषण छाँटकर लिखिए। [1]
उतर:
(क) भदंत आनंद कौसल्यायन
(ख) बिना प्रयास के
(ग) गुरुत्वाकर्षण का
(घ) जो आविष्कारों का ज्ञाता हो
(ङ) आधुनिक
प्रश्न 8.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में दीजिए। 2 × 4 = 8
(क) कैसे कहा जा सकता है कि बालगोबिन भगत जीवन के अन्तिम क्षणों में भी अपने नियम – व्रत का निरंतर पालन करते रहे ? उदाहरण के आधार पर स्पष्ट कीजिए ।
(ख) नवाब साहब ने खीरे की एक फाँक को रेल के डिब्बे की खिड़की से बाहर फेंकने से पहले क्या – क्या क्रियाएँ संपन्न कीं और क्यों?
(ग) लेखिका की अपने पिता से वैचारिक टकराहट को अपने शब्दों में लिखिए।
(घ) बिस्मिल्ला खाँ जीवन भर ईश्वर से क्या माँगते रहे, और क्यों ? इससे उनकी किस विशेषता का पता चलता है ?
उत्तर:
(क) बालगोबिन भगत साधुओं जैसा सीधा-सादा सरल जीवन बिताते थे । वे ईश्वर और गुरु की प्रशंसा के गीत गाते रहते थे। वे हर वर्ष गंगा स्नान करने जाते थे। वहाँ तक वह पैदल ही जाते थे। इसमें संत समागम और लोक – दर्शन हो जाता था। वे घर से खाकर चलते थे और घर आकर ही खाते थे, कहीं भिक्षा नहीं माँगते थे। आने-जाने में चार-पाँच दिन लग जाते थे। वे जीवन के अंतिम क्षणों में भी अपने नियम – व्रत का निरंतर पालन करते रहे। एक बार जब लौटे तो उनकी तबियत सुस्त थी, थोड़ा बुखार था। लोगों ने नहाने से मना किया, परंतु वे कहाँ मानने वाले थे। उस दिन भी संध्या के समय गीत गाए। सुबह जब लोगों ने उनका गीत नहीं सुना, तब पता चला कि बालगोबिन नहीं रहे।
(ख) नवाब साहब ने नवाबी शान दिखाने हेतु पहले बड़ी तृष्णायुक्त दृष्टि से खीरे की फाकों को देखकर खिड़की के बाहर झाँका, साँस खींची, खीरे की एक फाँक होठों तक ले गए। उसे सूँघा, उसके स्वाद के आनंद से नवाब साहब की पलकें मुँद गईं, परंतु बाद में उन्हें खाने की बजाय केवल सूँघकर ही तृप्ति का अनुभव कर ट्रेन की खिड़की से बाहर फेंक दिया।
(ग) लेखिका के पिता शक्की स्वभाव के थे। उनमें अहंकार की भावना थी। उन्हें लेखिका का काला रंग पसंद नहीं था। वे अपनी दूसरी बेटी को अधिक महत्त्व देते थे क्योंकि वह गोरी, स्वस्थ और हँसमुख थी। वे उसकी प्रशंसा करते थे तथा लेखिका को उसकी तुलना में हीन समझते थे। लेखिका ने राजेंद्र यादव से अपनी इच्छानुसार विवाह किया था। उसके दकियानूसी पिता के लिए यह सहन करना भी दुरूह था । विचारों के इन्हीं मतभेदों को लेकर लेखिका और उसके पिता में वैचारिक टकराहट बनी रहती थी।
(घ) बिस्मिल्ला खाँ जीवन भर ईश्वर से ‘सच्चा सुर’ माँगते रहे क्योंकि उनके लिए सुर ही सबसे बड़ी निधि थी । वे सच्चे कलाकार थे और सुर की साधना में ही उनका पूरा जीवन व्यतीत हुआ था। इससे उनकी इस विशेषता का पता चलता है कि वह विनम्र, ईश्वर के भक्त तथा संगीत के सच्चे साधक थे।
प्रश्न 9.
निम्नलिखित काव्यांश के आधार पर दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए: [5]
कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा । को नहि जान बिदित संसारा ।।
माता पितहि उरिन भये नीकें। गुररिनु रहा सोचु बड़ जी कें ।।
सो जनु हमरेहि माथें काढ़ा । दिन चलि गये ब्याज बढ़ बाढ़ा ||
अब आनिअ व्यवहारिआ बोली । तुरत देउँ मैं थैली खोली ।।
(क) लक्ष्मण ने परशुराम पर क्या व्यंग्य किया? [2]
(ख) यहाँ किस गुरु-ऋण की बात हो रही है? उसे चुकाने के लिए लक्ष्मण ने परशुराम को क्या उपाय सुझाया ? [2]
(ग) माता पितहि उरिन भये नीकें’ पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए । [1]
उत्तर:
(क) लक्ष्मण परशुराम पर व्यंग्य करते हुए कहते हैं कि आपके शील स्वभाव को कौन नहीं जानता। आप माता-पिता से तो भली-भाँति ऋणमुक्त हो ही चुके हैं। अब गुरु का ऋण आप पर रह गया है, जिसका आपके मन पर बड़ा बोझ है, आपको उसकी चिंता सता रही है।
(ख) परशुराम के गुरु भगवान शिव हैं अतः यहाँ पर भगवान शिव के ऋण की बात हो रही है। ऋण को चुकाने के लिए लक्ष्मण परशुराम से कहते हैं कि वे किसी हिसाब-किताब करने वाले को बुला लें, तो मैं तुरंत अपनी थैली खोलकर उनका उधार चुका दूंगा।
(ग) ‘माता पितहि उरिन भये नीकें’ पंक्ति का आशय यह है कि परशुराम किस प्रकार अपने माता-पिता के ऋण से मुक्त हुए हैं। इस पंक्ति में लक्ष्मण ने परशुराम पर व्यंग्य किया है।
प्रश्न 10.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में दीजिए। 2 × 4 = 8
(क) सफलता के चरम शिखर पर पहुँचने के दौरान यदि व्यक्ति लड़खड़ाता है, तब उसे सहयोगी किस तरह संभालते हैं?
(ख) परशुराम के क्रोध करने पर लक्ष्मण ने धनुष के टूट जाने के लिए कौन-कौन से तर्क दिए?
(ग) ‘आत्मकथ्य’ कविता की काव्यभाषा की विशेषताएँ उदाहरण सहित लिखिए।
(घ) संगतकार की हिचकती आवाज़ उसकी विफलता क्यों नहीं है?
उत्तर:
(क) जब कोई व्यक्ति सफलता के चरम शिखर पर पहुँचकर अचानक लड़खड़ा जाता है, तब उसके सहयोगी ही उसे बल, उत्साह, शाबाशी और सहयोग देकर सँभालते हैं। वे उसके प्रदर्शन को सुधारने में सहायता करते हैं, साथ ही उसका मनोबल भी बढ़ाते हैं।
(ख) सीता स्वयंवर के अवसर पर राम द्वारा शिव-धनुष को तोड़ने पर मुनि परशुराम को बहुत क्रोध आया। उनका क्रोध देखकर लक्ष्मण ने धनुष टूटने के विभिन्न तर्क दिए। लक्ष्मण ने हँसी की मुद्रा में तर्क दिया कि हमारी दृष्टि में तो सभी धनुष एक समान हैं और यह तो पुराना धनुष था तब इसके तोड़ने में लाभ-हानि के विषय में क्या सोचना। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि श्रीराम ने तो इसे नया समझ लिया था और यह तो छूते ही टूट गया। अतः परशुराम का क्रोध अनुचित है।
(ग) ‘आत्मकथ्य’ कविता की काव्यभाषा की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं :
- संस्कृतनिष्ठ भाषा- इसमें संस्कृत के शब्दों का अधिक प्रयोग हुआ है।
- खड़ी बोली का परिष्कृत रूप – ‘आत्मकथ्य’ कविता में प्रसाद जी ने खड़ी बोली हिन्दी का परिष्कृत रूप प्रयुक्त किया है। इस कविता में भाषा का शुद्ध साहित्यिक रूप दृष्टिगत होता है।
- तत्सम शब्दों की प्रधानता – इस कविता में कवि ने तत्सम शब्दों का पर्याप्त प्रयोग किया है, जैसे – अनंत, नीलिमा, असंख्य, प्रवंचना, उज्ज्वल, स्वप्न, अनुरागिनी, पाथेय, मौन, व्यथा आदि ।
- लक्षणात्मकता-इस कविता में कवि ने भाषा की लक्षणा शब्द-शक्ति का प्रयोग कुशलतापूर्वक किया है। जैसे-
उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की ।
अरे खिल-खिला कर हँसते होने वाली उन बातों की ।
मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देखकर जाग गया।
आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया।
• प्रतीकात्मकता – छायावादी काव्य-प्रवृत्ति के अनुरूप ही ‘आत्मकथ्य’ कविता में प्रतीकों का सुंदर प्रयोग हुआ है । ‘उषा’ का प्रतीकात्मक रूप दर्शनीय है :
जिसके अरुण – कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में ।
अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।
• बिम्ब विधान – इस कविता में उत्कृष्ट बिम्बों का प्रयोग कवि ने अत्यंत भावपूर्ण शब्दों में किया है, जैसे-
मधुप गुन-गुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी,
मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ देखो कितनी आज घनी ।
• मानवीकरण शैली – छायावाद की प्रमुख विशेषता है – मानवीकरण । यहाँ मानवेतर पदार्थों को मानव की तरह सजीव बनाकर प्रयुक्त किया गया है, जैसे- ‘ थकी सोई है मेरी मौन व्यथा’ ।
• अलंकार योजना-‘ आत्मकथ्य’ कविता में अलंकारों का सुंदर प्रयोग हुआ है। इस कविता में अनुप्रास, रूपक, मानवीकरण, पुनरुक्ति प्रकाश आदि अलंकारों की छटा दर्शनीय है।
(घ) संगतकार मुख्य कलाकर को सहयोग देता है। उसकी हिचकती आवाज़ उसकी विफलता नहीं है बल्कि उसका उद्देश्य ही मुख्य गायक की आवाज़ को समयानुसार सहयोग देना होता है।
प्रश्न 11.
भोलानाथ को अपनी माता जी से अधिक जुड़ाव अपने पिता जी से था पर जब उस पर संकट आया तो वह पिता जी की पुकार की अनसुनी करके माता के अँचल में जा छिपा । ‘माता का अँचल’ पाठ के आधार पर इसका प्रमुख कारण स्पष्ट करते हुए माँ के महत्त्व पर प्रकाश डालिए । [4]
उत्तर:
पाठ के अनुसार बच्चे का अपने पिता से अत्यधिक जुड़ाव था परंतु विपदा आने पर वह पिता के पास न जाकर अपनी माँ के पास जाता है। बच्चा माँ की शरण में अपने आप को अधिक सुरक्षित पाता है तथा माँ की गोद में ही शांति का अनुभव करता है। भोलानाथ वैसे तो अपने पिता के साथ ही सोता था, खाना भी पिता के हाथ से ही खाता था परंतु जब उस पर विपदा पड़ी और उसने भय महसूस किया तो माँ की गोद से बेहतर उसे और कुछ नहीं लगा क्योंकि माँ से बच्चों का भावनात्मक लगाव ही नहीं होता बल्कि माँ से वात्सल्य एवं स्नेह की प्राप्ति भी अधिक होती है। इसीलिए बच्चा प्रायः अति भय और प्रेम की स्थिति में माँ की ही शरण लेता है।
खण्ड – घ ( लेखन)
प्रश्न 12.
दिए गए संकेत बिंदुओं के आधार पर निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर 200-250 शब्दों में निबंध लिखिए- [10]
(i) सहशिक्षा : भूमिका – समाज में नारियों का स्थान – सहशिक्षा का समाज पर प्रभाव – सहशिक्षा से लाभ – सावधानियाँ – उपसंहार ।
(ii) मेक इन इण्डिया : भूमिका – उक्ति का अर्थ – सोने की चिड़िया भारत की पृष्ठभूमि – उद्यमी देश पराधीनता काल में बदला परिदृश्य – विकास में अग्रसर होने का प्रकल्प – उपसंहार |
उत्तर:
(i) सहशिक्षा
सहशिक्षा से तात्पर्य लड़कों व लड़कियों का विद्यालय में एक साथ अध्ययन करना है। हमारे देश में अनेक रूढ़िवादी लोग लंबे समय से सहशिक्षा का विरोध करते चले आ रहे हैं परंतु समय के बदलाव के साथ अब यह धीरे-धीरे कार्यान्वित हो रही है। इसमें विज्ञान का योगदान अधिक है जिसने मनुष्यों को अपनी पुरातनपंथी सोच में बदलाव लाने का महत्त्वपूर्ण प्रयास किया है। सहशिक्षा का इतिहास हमारे देश के लिए नया नहीं है। प्राचीन काल के गुरूकुलों व आश्रमों में सहशिक्षा की प्रथा प्रचलित थी । उस समय स्त्री और पुरुष को समान दृष्टि से देखा जाता था। देश-विदेश के अनेक विद्वानों ने इसके विरोध में मत दिए हैं। इसके विरोध में किसी अंग्रेज़ शिक्षाशास्त्री ने कहा है कि ” औरत के समीप होने पर पुरुष अध्ययन नहीं कर सकता है। ” विरोध में कुछ अन्य लोगों का मत है कि सहशिक्षा वातावरण में अराजकता को जन्म देती है। लड़के-लड़कियाँ विपरीत यौनाकर्षण के चलते अध्ययन में कम अपितु प्रेम व भ्रमित वातावरण की ओर आकर्षित होते हैं। कुछ अन्य लोगों की धारणा है कि सहशिक्षा विद्यालय में अव्यवस्था का वातावरण उत्पन्न करती है। दूसरी ओर सहशिक्षा के समर्थन में भी अनेक मत प्रचलित हैं। सहशिक्षा आर्थिक दृष्टि से बहुत उपयोगी है।
लड़कों तथा लड़कियों के अलग-अलग संस्थानों की बजाय यदि एक ही संस्थान हो तो खर्च काफी कम किया जा सकता है। छात्र – छात्राओं के एक ही संस्थान में अध्ययन से उनके बीच आपसी समझ बढ़ती है जो उनके गृहस्थ जीवन के लिए अत्यंत उपयोगी होती है। सहशिक्षा का एक लाभ यह भी है कि एक ही परिवार की छात्र – छात्राएँ यदि एक ही विद्यालय में शिक्षा ग्रहण करते हैं तो अभिभावकों को कम परेशानी उठानी पड़ती है। आज के प्रगतिशील युग में जहाँ विकास के पथ पर नारी पुरुष का बराबर साथ दे रही है वहाँ पर तो यह और भी अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाता है कि हम तुच्छ मानसिकता से ऊपर उठें ताकि सहशिक्षा का लाभ उठाया जा सके। आधुनिक युग में लड़का और लड़की दोनों को बराबर समझा जाने लगा है और दोनों की शिक्षा को महत्त्वपूर्ण समझा जाता है। अतः सहशिक्षा का प्रचलन् दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है।
(ii) मेक इन इण्डिया
‘मेक इन इण्डिया’ भारत सरकार द्वारा प्रस्तावित एक कार्यक्रम है जिसमें भारत में अपने उत्पादों का निर्माण करने के लिए बहुराष्ट्रीय कंपनियों और घरेलू कंपनियों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने 25 सितंबर, 2014 को ‘मेक इन इण्डिया’ कार्यक्रम का शुभारंभ किया। मेक इन इण्डिया पहल का प्रमुख उद्देश्य भारत में रोज़गार सृजन और कौशल क्षमता बढ़ाने के लिए अर्थव्यवस्था के 25 क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करना है। इन क्षेत्रों में से कुछ हैं – ऑटोमोबाइल, रसायन, आई०टी०, फार्मा, वस्त्र, बंदरगाह, विमानन, चमड़ा, पर्यटन और आतिथ्य, कल्याण, रेलवे, विनिर्माण, अक्षय ऊर्जा, खनन, जैव-प्रौद्योगिकी और इलैक्ट्रॉनिक्स | इस कार्यक्रम से देश की जी०डी०पी० विकास दर और कर एवं राजस्व में वृद्धि की उम्मीद है। इस पहल का एक लक्ष्य, उच्च गुणवता मानकों को स्थापित करना और पर्यावरण पर प्रभाव को न्यूनतम करना भी है। इस कार्यक्रम से भारत में पूँजी और प्रौद्योगिकी निवेश को आकर्षित करने में मदद मिलेगी।
ब्रिटिश शासन के आगमन के उपरांत भारतीय उद्योग-धंधों का पतन होना प्रारंभ हो गया था। अंग्रेज़ों ने धीरे-धीरे भारत की जड़ों को खोखला बना दिया । पराधीन काल में हमारे उद्यमी भारत देश का परिदृश्य ही बदल गया। ब्रिटिश सरकार ने अपने देश में निर्मित वस्तुओं के आयात पर विशेष बल दिया।
‘मेक इन इण्डिया’ कार्यक्रम भारत को पुनः ‘सोने की चिड़िया’ बनाने की ओर किया गया एक प्रयास है। इस पहल की आरंभिक सफलता का अनुमान इस बात से ही लगाया जा सकता है कि लेनोवो, जियोनी, हिटाची, फॉक्सकॉन (Foxconn), विस्ट्रॉन (Wistron) जैसी कई कंपनियों भारत में उत्पाद निर्माण हेतु आगे आई हैं। जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे की भारत यात्रा के दौरान उन्होंने मेक इन इण्डिया के संदर्भ में कई महत्त्वपूर्ण करार किये। रूस के साथ भी डिफेंस और न्यूक्लियर के क्षेत्र में मेक इन इण्डिया की दिशा में सहयोग मिल रहा है। आशा है मेक इन इण्डिया जैसी रचनात्मक पहल भारत के उज्ज्वल औद्योगिक भविष्य के लिए नींव का पत्थर साबित होगी ।
(iii) नेपाल- भारत की अभिन्नता
नेपाल और भारत के संबंध अभिन्न हैं। नेपाली राजनीति में आरम्भ से लेकर आज तक भारत की भूमिका के संदर्भ में यदि कहा जाए कि ” कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी” तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। वास्तव में नेपाल-भारत संबंधों में हमेशा नेपाल जैसे आर्थिक महत्त्व की बातों को तरजीह देता है वैसे ही भारत सुरक्षात्मक बातों को यही कारण है कि सेना और सुरक्षा के मामले में भारत चुप नहीं बैठ सकता। पहले भारत और नेपाल के मध्य टकराव था। किसी भी देश की विदेश नीति राष्ट्रीय हित पर आधारित होती है लेकिन नेपाल राष्ट्रीय मुद्दे पर एकजुट होकर कभी भी भारत के समक्ष उपस्थित नहीं हुआ ।
नेपाल- भारत के बीच टकराव का एक प्रमुख कारण कोसी नदी जल विवाद भी रहा है।
भारत द्वारा कोसी नदी पर बाँध बनाए जाने से नेपाल में असंतुष्टि जताई गई। कुछ दिनों बाद जब महाकाली नदी पर पंचेश्वर नामक स्थान पर एक नए बाँध निर्माण की परियोजना को मंजूरी मिली तो फिर से विवाद उत्पन्न हुआ और भारत द्वारा नेपाली भूभाग को कब्ज़े में लिए जाने का आरोप लगाया गया। बहुत से कारणों की वजह से भारत-नेपाल के संबंधों में खींचातानी रही है। परंतु अब समय परिवर्तित हो चुका है, दोनों देशों के आपसी संबंध बेहतर हो गए हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नेपाल दौरे पर गए और उन्होंने नेपाली लोगों के दिल जीतने के प्रयास किए। वे रिश्तों को काफी आगे और नई ऊँचाइयों पर ले गए। मोदी जी ने 5600 मेगावॉट की पंचेश्वर पनबिजली परियोजना के संदर्भ में कहा, ” आज हम नेपाल का अंधेरा दूर करेंगे, 10 वर्ष बाद नेपाल हमारा अंधेरा दूर करेगा।” मोदी जी चीन का प्रभाव रोकने के उद्देश्य से भूटान के बाद नेपाल यात्रा पर गए थे। भारत लौटने से पहले दोनों देशों के बीच तेल पाइपलाइन बिछाने पर भी समझौता हो गया। भारत नेपाल को 6300 करोड़ रुपये की सहायता राशि देने की भी घोषणा कर चुका है। अत: भारत ने नेपाल के साथ अच्छे संबंध स्थापित करने की पहल की और भारत उसमें सफल भी रहा । आशा है कि भविष्य में दोनों देशों के आपसी संबंधो में और अधिक आत्मीयता का संचार होगा।
प्रश्न 13.
“आदर्श महिला मोर्चा” नामक संगठन ने महिलाओं के उत्थान के लिए सराहनीय कार्य किया है। इस संगठन की संचालिका की प्रशंसा करते हुए जिलाधिकारी महोदय को पत्र लिखिए तथा उन्हें पुरस्कृत किए जाने का भी अनुरोध कीजिए । [5]
उत्तर:
सेवा में
जिलाधिकारी महोदय
लाजपत नगर, दिल्ली ।
महोदय,
मैं आपका ध्यान “ आदर्श महिला मोर्चा” नामक संगठन की ओर दिलाना चाहता हूँ। यह संगठन महिलाओं के उत्थान के लिए कार्यरत है। इस संगठन ने महिलाओं के विकास के लिए सराहनीय कार्य किया है। बेसहारा औरतों को सहारा प्रदान किया है, महिलाओं को उनकी पहचान दिलवाई है, रोज़गार प्रदान किया है। इस संगठन ने महिलाओं को एक नई दिशा की ओर अग्रसर किया है।
इस संगठन की संचालिका श्रीमती अनुशा सिंह बहुत ही ईमानदारी और दृढ़ इच्छा से महिलाओं की उन्नति के लिए प्रयास कर रही हैं। हमारे क्षेत्र में उनका कार्य बहुत ही प्रशंसनीय है।
अतः आपसे अनुरोध है कि आप श्रीमती अनुशा सिंह को महिलाओं के लिए किए गए सराहनीय कार्यों के लिए पुरस्कृत करें। आपकी अति कृपा होगी।
सधन्यवाद
प्रार्थी
क०ख०ग०
अथवा
अपने प्रिय मित्र को पत्र लिखकर धन्यवाद दीजिए कि आड़े वक्त में उसने किस तरह आपका साथ दिया था।
उत्तर:
परीक्षा भवन
दिनांक ………
प्रिय मित्र सुरेश
सप्रेम नमस्ते !
मैं ईश्वर का बहुत धन्यवाद देता हूँ कि मुझे तुम्हारे जैसा सच्चा मित्र मिला । सच्चा मित्र मुसीबत के समय अपने मित्र का साथ कदापि नहीं छोड़ता। ऐसा ही तुमने भी किया। सुख और दुख में तुम सदैव मेरे साथ रहे। आड़े वक्त में भी तुमने मेरा साथ दिया, मुझे कभी अकेला नहीं छोड़ा। तुमने विपत्ति के समय मेरी भरपूर सहायता की और मुझे संकट से उबारा। इसके लिए मैं तुम्हारा दिल से धन्यवाद करता हूँ। मैं तुम्हारा आभारी हूँ कि तुमने मेरा हर घड़ी साथ दिया और मुझे अकेला नहीं छोड़ा। मेरे मम्मी- पापा तुम्हें सस्नेह आशीर्वाद भेज रहे हैं। तुम्हारा अभिन्न मित्र
क०ख०ग०
प्रश्न 14.
‘रतन बासमती चावल’ की बिक्री बढ़ाने के लिए एक विज्ञापन 25-50 शब्दों में प्रस्तुत कीजिए। [5]
उत्तर:
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