आरोहण Summary – Class 12 Hindi Antral Chapter 2 Summary
आरोहण – संजीव – कवि परिचय
प्रश्न :
संजीव के जन्म एवं रचनाओं का परिचय दीजिए।
उत्तर :
संजीव का जन्म 1947 ई. में बांगरकलां, जिला सुल्तानपुर, उत्तर प्रदेश में हुआ। उन्होंने बी.एस.सी. और ए, आई. सी की शिक्षा प्राप्त की। समकालीन कहानी लेखन के क्षेत्र में संजीव एक प्रमुख नाम है। उनकी कहानियाँ अधिकतर ‘हंस’ में प्रकाशित हुई हैं।
उनके प्रमुख कहानी संग्रह हैं-तीस साल का सफरनामा, आप यहाँ हैं, भूमिका और अन्य कहानियाँ, दुनिया की सबसे हसीन औरत, प्रेत-मुक्ति आदि। इन्होंने एक किशोर-उपन्यास ‘रानी की सराय’ तथा कुछ अन्य उपन्यास भी लिखे, जिनमें प्रमुख हैं-किशनगढ़ की अहेरी, सर्कस, सावधान! नीचे आग है, धार आदि। संप्रति मुख्य प्रयोगशाला, सेंट्रल ग्रोथ वर्क्स (सेल); कुल्टी भारतीय इस्पात प्राधिकरण में कार्यरत हैं।
पाठ का संक्षिप्त परिचय –
पर्वतारोहण अब पाठचर्या का अंश बन गया है। यह शिक्षा के पाठ्यक्रमों में स्थान पा चुका है। इसकी पढ़ाई-लिखाई कर लोग जीविकोपार्जन से जुड़ रहे हैं। गर्मियों के दिनों में स्कूलों, कॉलेजों, विश्वविद्यालयों से लोग पर्वतारोहण के लिए पर्वतीय प्रदेशों की यात्रा करते हैं। प्रायः पर्वतीय प्रदेश के रहने वाले ही इसके लिए कोच का काम करते हैं। वे बेहतर तरीके से गाइड कर सकते हैं क्योंकि पर्वतारोहण उनकी दिनचर्या है। पर्वतारोहण के क्षेत्र में श्रीमती बछेंद्री पाल और संतोष यादव का नाम इतिहास में दर्ज हो चुका है। आरोहण कहानी में लेखक ने पर्वतारोहण की जरूरत और वर्तमान समय में उसकी उपयोगिता को रेखांकित किया है।
पर्वतीय प्रदेश के जीवन संघर्ष तथा प्राकृतिक परिवेश से उनके संबंधों को चित्रित किया है। किस तरह पर्वतीय प्रदेशों में प्राकृतिक आपदा, भूस्खलन, पत्थरों के खिसकने से पूरा जीवन तथा समाज नष्ट हो जाता है आरोहण उसका जीवंत उदाहरण प्रस्तुत करता है। लेखक का आंचलिकता, प्राकृतिक-परिवेश से आत्मीय लगाव उसे कहीं और जाने से रोकता है। आरोहण पहाड़ी लोगों की दिनचर्या का भाग है, किंतु उन्हें आश्चर्य तब होता है जब यह पता चलता है कि वही आरोहण किसी को नौकरी भी दिला सकता है। इस कहानी के माध्यम से लेखक ने पर्वतीय प्रदेश की बारीकियों, उनके जीवन के सूक्ष्म अनुभवों, परंपराओं, रीति-रिवाजों, उनके संघर्षों, यातनाओं को संजीदगी के साथ रचा है। मैदानी इलाकों की तुलना में पर्वतीय प्रदेशों की जिंदगी कितनी कठिन, जटिल, दु:खद और संघर्षमय होती है उसका विशद विवरण यह कहानी प्रस्तुत करती है। संजीव की भाषा शैली रोचक है। आंचलिक शब्दों, वाक्यों और पर्वतीय प्रदेश की बोलियों के जो शब्द एवं मुहावरे इस पाठ में आए हैं वे कथानक को बाँधने में सफल हुए हैं। पाठक का ध्यान भी उन्हीं प्रसंगों की ओर बार-बार जाता है, जिनमें लोक-भाषा प्रमुख है। कहानी में ये शब्द संरचनात्मक भूमिका में है, इनसे कहानी को पढ़ने-समझने में मदद मिलती है।
Aarohan Class 12 Hindi Summary
रूपसिंह पूरे ग्यारह साल बाद अपने गाँव माही लौटता है। वह शेखर कपूर के साथ देवकुंड के बस स्टॉप पर उतरता है। शेखर कपूर उसके गॉडफादर कपूर साहब का लड़का है और वह आई. ए, एस. (I.A.S.) का ट्रेनी है। अत: उसके साथ एक खास मेहमान है। रूपसिंह को एक अजीब किस्म का लाज, अपनत्व एवं झिझक हो रही थी। वह इतने लंबे अंतराल के बाद गाँव लौट रहा था। ग्यारह साल बाद भी गाँव के लिए कोई पक्की सड़क नहीं बन पाई थी। मेहमान को गाँव पैदल तो नहीं लेकर जा सकता। शेखर अपने बाइनोक्यूलर से पहाड़ों और घाटियों को देखने में रमा हुआ था।अभी वे छह हजार फीट की ऊँचाई पर थे और उन्हें 15 कि.मी. चलकर दस हजार फीट की ऊँचाई पर पहुँचना था।
चाय का गिलास थामते हुए उससे घोड़े के बारे में पूछा तो उसने अपनी भापा में पूछ्छा कि जाना कहाँ है। रूपसिंह ने माही गाँव का नाम लिया जो सरगी से पहले पड़ता है। चाय वाला अपना सिर खुजाने लगा। उसने 9-10 साल के एक लड़के को पुकारा-‘तू माही जाएगा।’ लड़का वहाँ से उठकर चुपचाप चला गया। मगर थोड़ी ही देर में वह दो घोड़ों के साथ चढ़ाई करता दिखाई पड़ा। चायवाले ने ही उसका मेहनताना तय कर दिया था-दो घोड़ों के सौ रुपए। एक घोड़े पर शेखर और दूसरे पर रूप सवार था। महीप शेखर वाले घोड़े के साथ आगे-आगे चल रहा था। चढ़ाइयाँ और ढलानें आती गई। घाटी से किसी अदृश्य नारी कंठ का कोई दर्दीला गीत सुनाई पड़ रहा था –
“ऊँची-नीची डांडियों मा,
हे कुहेड़ी न लगा तू sss ।”
“ऊँचे-नीचे पाँखों मा,
हे घसेरी न जाय तू sss”
ऊँची-नीची डांडियों में,
हे हिलांस न बास तूँ sss”
इस गीत का मतलब रूप ने यह बताया –
कुहरे से सवाल कर रही है कोई घास गढ़ने वाली पहाड़ी लड़की कि-ऐ कुहरे, ऊँची-नीची पहाड़ियों में तुम न लगो जाकर। इस पर कुहरा घास वाली लड़की से कहता है कि ऊँची-नीची पहाड़ियों में तू न जाया कर। इसी तरह हिलांस नदी के परिंदे को भी आगाह करता है कि ऊँची-नीची पहाड़ियों में अपना बसेरा न बनाया करे। यह बताते हुए रूप की आवाज भर्रा गई थी क्योंकि यह एक दर्द की पुकार थी। इसकी समानता वाला गीत है-‘छुप गया कोई रे दूर से पुकार के, दर्द अनूठा हाय दे गया प्यार के।
कुहासे का होना क्या मायने रखता है इसे तो कोई पहाड़ी ही समझ सकता है। एक जगह पर चलते-चलते रूप ठमक गया-” यहीं इसी जगह मैंने धकेला था भूप दादा को।” शेखर ने इसका कारण पूछा तो रूप ने बताया कि मैं देवकुंड घर से भाग आया था। भूप दादा ने यहाँ आते-आते मुझे पकड़ लिया था। उनसे छुटकारा पाने के लिए मैंने उन्हें धक्का दे दिया था। वे सँभल न सके और फिसल गए। मेरा हाथ उनके हाथ में था अत: मैं भी लुढ़कने लगा। एक पेड़ को हमने थाम लिया। एक ओर भूप तो दूसरी ओर मैं। भूप दादा बाहर से सख्त और अंदर से नरम थे। वे मुझे खींचकर ऊपर ले आए। वे मेरे बदन को परख रहे थे। उन्होंने कुछ पत्ते निचोड़कर मेरी खरोंचों पर लगाया। उस दिन उन्होंने जो हाथ छोड़ा कि फिर नहीं पकड़ा। फिर चढ़ाई का जिक्र छिड़ गया।
पर्वतरोहण का प्रसंग छिड़ जाने के बाद रूप और शेखर को अन्य किसी बात की सुध नहीं रही। यह आरोहण ही दोनों को एक सूत्र में जोड़े हुए था। शेखर ने सैद्धान्तिक बातों को याद किया-‘सबसे पहले तो कोई दरार तलाशते फिर रॉक पिटन लगाते। दरार न मिलने पर ड्रिल करके लगाएँगें। रूप ने मुस्कराकर पूछ-आगे ? शेखर ने बताया- ‘रॉक पिटन, फिर ऐंकर, फिर आगे-आगे डिसेंडर नो-नो, रोप लैडर-रस्सी की सीढ़ी।’ रूप ने उसे रोक कर बताया-‘कोई भी चढ़ाई हो, फर्स्ट वाच, देन गाड्रेनिंग-चौरस या समतल बनाना, फिर से देखना कि पत्थर किस जाति का है-इग्नयस है, ग्रेनाइट है, मेटाफारफिक है, सैंड स्टोन है या सिलिका है। वरना अव्वल तो सपोर्ट नहीं बना पाओगे। बन भी गया तो फ्री रैपेलिंग नहीं होगी। शेखर ने रूप की बुद्धि की प्रशंसा की। महीप ने उन्हें टोका-“साब! जल्दी करो न।” उन्हें पर्वतारोहण का अध्याय बन्द करके फिर से घोड़ों पर सवार होना पड़ा।
शेखर ने रूप से पूछा कि क्या उसने कभी प्रेम की भी पढ़ाई की है? उसे कोई तो मिली होगी जिसे देखकर मन में कुछ-कुछ हुआ होगा? रूप ने उत्तर दिया-थी तो, मगर उम्र में मुझसे काफी बड़ी थी। भेड़ चराने के दौरान ही हमारी मुलाकातें होती थीं। वह (शैला) बहुत सुंदर थी। उसका हुक्म बजाना मुझे अच्छा लगता था। वह खुद तो स्वेटर बुनती रहती थी, मैं उसकी भेड़ें हाँका करता था और उसके लिए बुरंस के फूल तोड़ लाता था। वे उसे बेहद पसंद थे। सेब या आदूरिलने पर भी सबसे पहले उसी को देता था। बदले में वह मुझे देवता की बलि में चढ़ा माँस का प्रसाद और मक्की की रोटी देती थी। बाद में मुझे पता चला कि वह स्वेटर भूप दादा के लिए बुना जा रहा था। मैं तो सिर्फ लक्ष्मण था।
शेखर को यह इलाका स्वर्ग जैसा खूबसूरत लगा। रूप बताता है कि पांडव स्वर्ग जाने के लिए इसी रास्ते से गए थे। यहाँ का आखिरी गाँव सुरी है यानी स्वर्ग। शेखर ने महीप से कहा-तेरे पाँव में दर्द होता होगा, आ जा, कुछ देर तू भी घोड़े पर बैठ जा, हम पैदल चलते हैं। लड़के महीप ने मना कर दिया तथा बातें करने से रोक दिया क्योंकि रास्ता खराब था। रूप शेखर को बताता है कि यह एक संयोग ही था आपके पापा इधर आंकर (ट्रेनिंग में) रास्ता भटक गए और उन्हें मेरी जरूरत हुई। वे मुझे मसूरी लिवा ले गए। तब से मैं मसूरी का हो गया।
महीप ने उन्हें फिर चेताया-साब, देर करने से हम लौटेंगे कैसे? अब माही मुश्किल से डेढ़ किमी. था-उस डांडी (पहाड़) के पीछे। गाँव करीब आता जा रहा था। पुरानी यादें साकार हो रही थीं-अपना घर, अपने लोग, बाबा, माँ, भूप दादा और लोग। दो अजनबियों को देखकर गाँव के कुछ लोग अपने घरों से बाहर निकल आए थे। रूप ने सौ रुपए की जगह दस की गड्डी से बारह कड़क नोट (120 रुपए) लड़के महीप को थमाते हुए कहा-देखो, तुम भी थके हो और तुम्हारे घोड़े भी। ऐसा करो, आज रात यहीं रुक जाओ, सुबह चले जाना। लड़के ने कोई प्रतिक्रिया प्रकट न करके नोटों को गिनने लगा।
रूप एक बूढ़े के पास पहुँचा। बूढ़े ने उनसे पूछा-कहाँ जाना है साब (कने जाणा छावां) ? रूप ने उन्हें बताया – बाबा, यहाँ ग्यारह साल पहले कोई रामसिंह हुआ करते थे। उनके दो बेटे थे-भूपसिंह और रूपसिंह। वोहिमांग पहाड़ के नीचे उनका घर है। बूढ़े ने याद करके कहा कि रूप तो बहुत पहले भाग गया था। अब रूप ने रहस्य पर से परदा उठाया-मैं वही रूपसिंह हूँ। वह बूढ़ा उसी का दादा तिरलोक सिंह था। रूप ने उनके पैर छुए। एक अन्य आदमी के पूछने पर रूप ने पर्वतारोहण संस्थान के बारे में बताया। सरकार उसे इसी काम के लिए चार हजार रुपये महीना वेतन देती है। रूप ने घर जाने की बात कही। बूढ़े ने बताया कि उसके माँ-बाप तो मर चुके हैं।
तब रूप ने भूप दादा के बारे में पूछा। एक औरत ने बताया-अरे वो हैं, उसकी घरवाली और एक लड़का है, लेकिन वे तो …’ यह कहकर वह चुप हो गई। असल में वह घोड़े वाला लड़का महीप भूपदादा का ही बेटा था। वह अब ढलान में तेजी से उतर रहा था। भूप तो किसी से बात ही नहीं करता। शाम होने वाली है तू इस म्याल (पहाड़) पर चढ़ जा। तभी किसी ने कहा कि लो, भूप तो इधर ही आ रहा है। धीरे-धीरे चलकर वह सामने आया तो वह कतई असाधारण नहीं लगा। गोरा-चिट्टा, चित्तीदार चेहरा, लंबोतरा चेहरा, स्थितप्रज्ञ आँखें। देखते ही रूप उनके कदमों पर झुका और बोला-” मैं रूप हूँ, तुम्हारा भगोड़ा भाई।” भाई ने भाई को देखा। भूप ने पूछा-कब आया। रूप ने शेखर का उनसे परिचय कराया। भूप उन्हें घर की ओर ले चला।
ऊँचे हिमांग की तलहटी में छोटे से भूखंड पर वहाँ गाँव बसा था। चढ़ाई शुरू हो गई थी, खड़ी चढ़ाई। फिर रूप और शेखर रुक गये। भूप ने पूछा-बस इत्ता-सा पहाड़ीपन बचा है। भूप ने कमर में मफलर बाँधकर पहले रूप को चढ़ाया, फिर शेखर को। वे जिस धैर्य, आत्मविश्वास, ताकत और कुशलता से अपने अंगों का उपयोग कर रहे थे, वह हैरत की चीज थी। अब तीनों घर पहुँच चुके थे। भूप ने अपनी पत्नी के साथ रूप का परिचय कराया-‘ रूप, तेरी भाभी।’ रूप ने उनके पैर छुए। शेखर को इस बात पर विश्वास नहीं हुआ कि वह घोड़े वाला लड़का महीप इन्हीं भाभीश्री का लड़का है।
कहीं कोई गड़बड़ी है। बाहर वर्षा कहर ढा रही थी। सुबह उठे तो आसमान साफ था। इस पहाड़ पर आने का कारण बताते हुए भूप ने कहा-तेरे जाने के बाद अगले साल यहाँ बहुत बर्फ गिरी। हिमांग पहाड़ धसक गया। माँ-बाबा भी दब गए। मैं किसी तरह बच गया। चारों ओर तबाही थी। तुझे बचपन में बाबा की सुनाई कहानी याद होगी-‘ नन्हीं चिड़िया वाली ‘। उसे गीध ने कहा था-मैं तुझे खा जाऊँगा। चिड़िया डर गई। चिड़िया ने धीरज रखकर पूछा-और, अगर मैं तुझसे ऊँचा पहाड़ उड़कर दिखा दूँ तो,” गीध उसके बचकाने पर हैसा।
उसने पूरी ताकत लगा दी उड़ने में; और उड़कर जा बैठी गीध की पीठ पर। अब चिड़िया को कोई डर न था। वह हर हालत में उससे ऊँचाई पर थी। इसी तरह भूप भी मौत की पीठ पर था। थोड़ी बहुत खेती शुरू की। वह शैला को नीचे ले आया। उसके आने से खेती फैल गई। वे पानी की समस्या हल करने के लिए एक झरने को मोड़कर लाने में सफल भी हो गए। रूप ने शैला भाभी के बारे में पूछा। भूप ने बताया कि काम काफी बढ़ गया था और शैला को बच्चा होने वाला था। फिर मैं एक दूसरी औरत (यह भाभी) ले आया। शैला से एक बेटा हुआ-महीप।
महीप अभी नौ साल का था कि शैला यहीं से नदी में कूद गई। बेटा जो नीचे उतरा तो लाख समझाने पर भी ऊपर नहीं आया। वह अपनी माँ की मौत के लिए मुझे ही गुनाहगार समझता है। भूप की दूसरी पत्नी काली चाय ले आई। उनकी बकरी के बच्चे को माही वालों ने देवता की बलि चढ़ा दिया था। इसकी कारण भूपदादा माही वालों से बात नहीं करते। रूप को लगा कि भूप दादा बहुत अकेले हैं। रूप ने उनसे कहा बहुत दुःख झेले आपने। दुःखों का पहाड़ लेकर चढ़ते रहे पहाड़ पर। अब बस करो। मैं, तुम्हारा छोटा भाई, तुम्हें अपने साथ लिवा ले जाना चाहता हूँ। मुझे सरकार की ओर से पक्का क्व्वाटर मिला हुआ है। जितनी तनख्वाह मिलती है, उसमें आराम से रह लेंगे हम सभी।
भूप दादा चुप होकर रह गए। उनके पास दो बैल भी थे। यद्यपि बैलों को चढ़ा लाना कठिन था, पर वे बछड़े के रूप में उन्हें यहाँ लाया था। भूप अपने आपको अकेला अनुभव नहीं करता। वह माँ-बाप, शैला की यादों के सहारे जी रहा है। वह बाकी जिंदगी अपनी खुद्दारी के साथ जीना चाहता है। जिंदा रहने तक कोई नीचे नहीं उतरेगा।
शब्दार्थ एवं टिप्पणी –
आरोहण – चढ़ाई, खतो-किताबत – पत्र-व्यवहार, खासमखास – अति विशिष्ट, अंतरंग, जर्द – पीला पड़ना, दरियाफ्त जानकारी प्राप्त करना, पता लगाना, घाटबटी – पहाड़ के पार जाने का रास्ता, दरकना – फटना, पैबंद – थेगली, कुहेड़ी – कुछरा डांडियाँ – पहाड़ियाँ, ना बांस – न बसना, अनुतप्त – पछतावे से भरी, खोदना – लैंड स्लाइड, संभ्रांत – कुलीन, खानदानी, रईस मशगूल – व्यस्त, लगा हुआ, शख्खियत – व्यक्तित्व, वजूद – अस्तित्व, सेंटर – केन्द्र, परिंदा – पक्षी, आगाह – चेताया, सावधान,
संकरा – तंग, कच्ची उम्र – कम आयु, म्याल – पर्वत, पहाड़, भुइला – अनुज, छोटा भाई, विषयांतर – विषय से परे हटकर, खुद्दारी – स्वाभिमान, संदेह – शक, मुकम्मिल – स्थायी, तौहीन – बेइज्जती, इम्पोर्टेंड – आयातित, इया – यहाँ, चंदोव – शामियाना, चादर, पगुराना – जुगाली करना, अस्फुट – अस्पष्ट, घसेरी – घास वाली, हिंलास – एक पक्षी का नाम, गफ़लत – गलतफहमी, असावधानी, रॉक पिटन – चट्टान में गड्ढा करना, ड्रील – भू-स्खलन, सूपिन – नदी का नाम, शिनाख्त – पहचान, तिलस्म जादू, हिलकोरे – स्वर लहरी, सुधि – याद, प्रशिक्षार्थी – ट्रेनी, वाकया – घटना, दुस्साहसिक – जोखिम भरा, आरोही – सवार प्रतिक्रिया – किसी क्रिया के परिणामस्वरूप होने वाली क्रिया, भौत – बहुत, लाज़िम – जरूरी, खुदकुशी – आत्महत्या।