सूरदास की झोंपड़ी Summary – Class 12 Hindi Antral Chapter 1 Summary
सूरदास की झोंपड़ी – प्रेमचंद – कवि परिचय
प्रश्न :
प्रेमचंद की साहित्यिक तथा भाषागत विशेषताओं का परिचय देते हुए उनकी कृतियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
जीवन परिचय : प्रसिद्ध कथाकार मुंशी प्रेमचन्द का जन्म सन् 1880 ई. में वाराणसी के समीप लमही नामक गाँव में हुआ था। उनका मूल नाम धनपतराय था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा वाराणसी में हुई। उन्होंने क्वींस कॉलेज वाराणसी से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की। सन् 1896 ई. में उनके पिता की मूत्यु हो गई, अत: उन्हें एक प्राइमरी स्कूल का अध्यापन कार्य करने के लिए विवश होना पड़ा। बाद में वे सब डिप्टी इंस्पेक्टर तक पहुँच गए। उन्होंने बी. ए, की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली थी। सन् 1920 में महात्मा गाँधी के प्रभाव में आकर उन्होंने सरकारी नौकरी त्याग दी। इसके पश्चात् वे स्वतंत्र लेखन करते रहे। ‘प्रेमचंद’ नाम उन्होंने लेखन के लिए अपनाया और वही प्रसिद्ध हो गया। प्रारंभ में वह उर्दू में लिखते थे। कुछ वर्षों के बाद उन्होंने अपनी उर्दू रचनाएँ हिन्दी में अनूदित की। आगे चलकर उन्होंने मूल रूप से हिन्दी में ही लिखना शुरू कर दिया। उन्होंने अपना एक छापाखाना खोला और एक मासिक पत्रिका ‘हंस’ का प्रकाशन किया। इस पत्रिका के माध्यम से उन्होंने भारत में प्रगतिशील-साहित्य के लेखन और प्रकाशन में महत्वपूर्ण योगदान दिया। प्रेमचंद साहित्य साधना में लगे रहे। सन् 1936 में उनका स्वर्गवास हो गया।
साहित्यिक विशेषताएँ : प्रेमचंद के साहित्य का मुख्य स्वर राष्ट्रीय जागरण और समाज-सुधार है। शहर के साथ-साथ भारतीय गाँवों और उच्च वर्ग के साथ-साथ जन साधारण को अपने साहित्य का केन्द्र बनाने वालों में प्रेमचंद बेजोड़ हैं। उन्होंने भारतीय जीवन में व्याप्त कुरीतियों, शोषण, निर्धनता, नारी-दुर्दशा, वर्ण-व्यवस्था की विसंगति आदि विषयों का प्रभावशाली एवं जीवंत चित्रण किया है। भाषागत विशेषताएँ : प्रेमचंद की भाषा बड़ी सजीव, मुहावरेदार और बोल-चाल के निकट है। उन्होंने अपने पात्रों की जाति, योग्यता और देश-काल आदि को ध्यान में रखकर उपयुक्त भाषा का प्रयोग किया है। हिंदी भाषा को लोकप्रिय बनाने में उनका बहुत योगदान है।
कृतियाँ (रचनाएँ) : प्रेमचंद द्वारा रचित निर्मला, गबन, प्रेमाश्रय, रंगभूमि, कर्मभूमि, कायाकल्प, प्रतिज्ञा, वरदान, गोदान आदि उपन्यास हिन्दी की अमूल्य निधियाँ हैं। ‘सेवा-सदन’ में वेश्यावृत्ति की समस्या का समाधान किया गया है। निर्मला में अनमेल विवाह के दुष्परिणाम का जीता-जागता चित्र है। ‘प्रतिज्ञा’ में विधवा जीवन की विषम समस्याओं का चित्रण है। ‘रंगभूमि’. प्रेमाश्रय, गोदान और कायाकल्प में समाज के दो विशाल वर्ग-शोषित और शोषण-वर्ग का ही ददययग्राही चित्र है।
उपन्यासों के अतिरिक्त लगभग तीन सौ कहानियाँ भी लिखीं। इनकी पहली कहानी संसार का सबसे अनमोल रत्न थी। प्रेमद्वादशी, सप्तसुमन, प्रेमपचीसी, प्रेमपूर्णिमा आदि कहानियों के संग्रह हैं।
ये सभी कहानियाँ मानसरोवर के आठ भागों में संकलित हैं।
पाठ का संक्षिप्त परिचय –
‘सूरदास की झोंपड़ी’ प्रेमचंद के उपन्यास ‘रंगभूमि’ का एक अंश है। एक अंधा व्यक्ति जितना बेबस और लाचार जीवन जीने को अभिशप्त होता है, सूरदास का चरित्र इसके ठीक विपरीत है। सूरदास अपनी परिस्थितियों से जितना दुःखी व आहत है उससे कहीं अधिक आहत है भैरों और जगधर द्वारा किए जा रहे अपमान से, उनकी ईर्ष्या से।
भैरों की पत्नी सुभागी भैरों की मार के डर से सूरदास की झोंपड़ी में छिप जाती है और सुभागी को मारने भैरों सूरदास की झोंपड़ी में घुस जाता है, किंतु सूरदास के हस्तक्षेप से वह उसे मार नहीं पाता। इस घटना को लेकर पूरे मुहल्ले में सूरदास की बदनामी होती है। जगधर और भैरों तथा अन्य लोग उसके चरित्र पर प्रश्न उठाते हैं। इस घटना से उसे इतनी आत्मग्लानि हुई कि वह फूट-फूटकर रोया। भैरों को उकसाने, भड़काने में जगधर की प्रमुख भूमिका रही। उसे ईप्य्या इस बात की थी कि सूरदास चैन से रहता है, खाता-पीता है, उसके चेहरे पर निराशा नहीं झलकती और जगधर को खाने-कमाने के लाले पड़े हुए हैं।
भैरों की बहुरिया सुभागी पर जगधर नजर भी रखता था। सूरदास और सुभागी के संबंधों की चर्चा पूरे मुहल्ले में इतनी हुई कि भैरों अपने अपमान और बदनामी का बदला लेने की सोच बैठा। इतनी गाँठ कर ली कि जब तक सूरे को नहीं रूलाएगा, तड़पाएगा तब तक उसे चैन नहीं मिलेगा। उसे लगा समाज में इतनी बदनामी तो हो ही गई। भोज-भात बिरादरी को कहाँ से देगा? भैरों सूरदास पर नजर रखने लगा। अंततः उसके रुपयों की थैली उठा ले गया और सूरदास की झोंपड़ी में आग लगा दी। सूरदास के चरित्र की विशेषता यह है कि झोंपड़ी के जला दिए जाने के बावजूद वह किसी से प्रतिरोध लेने में विश्वास नहीं करता बल्कि पुनर्निर्माण में विश्वास करता है और इसीलिए वह मिठुआ के सवाल कि ‘जो कोई सौ लाख बार झोंपड़ी को आग लगा दे तो ‘ जवाब में दृढ़ता के साथ उत्तर देता है-“तो हम भी सौ लाख बार बनाएँगे।”
Surdas Ki Jhopdi Class 12 Hindi Summary
‘रंगभूमि’ उपन्यास का नायक अंधा सूरदास है। वह एक झोपड़ी में रहता था। एक रात दो बजे उसकी झोंपड़ी में आग लग गई। यह आग भैरों ने लगाई थी। भैरों का अपनी पत्नी सुभागी से झगड़ा हो गया था और वह सूरदास की झोंपड़ी में रह रही थी। भैरों ने इसी का बदला लिया था। यद्यपि प्रकट रूप से उसका नाम नहीं आया था, पर भैरों ने जगधर के सामने स्वयं स्वीकार किया था -“दिल की आग तो ठंडी हो गई।”
आग लगने पर सहसा दौड़ता सूरदास आया और चुपचाप ज्वाला के प्रकाश में खड़ा हो गया। बजरंगी ने आग लगने का कारण जानना चाहा। जगधर ने पूछा-‘ अरे सूरे, क्या आज चूल्हा ठंडा नहीं किया था ?’ इसका जवाब नायकराम ने दिया-‘ चूल्हा ठंडा किया होता, तो दुश्मनों का कलेजा कैसे ठंडा होता।’ जगधर को लगता है कि आग लगाने का शक उस पर किया जा रहा है अतः वह अपनी सफाई देकर कहता है कि उसे कुछ मालूम नहीं है।
थोड़ी देर में आग बुझ गई। लोग इस दुर्घटना पर आलोचनाएँ करते हुए विदा हो गए। सन्नाटा छा गया किंतु सूरदास वहीं पर बैठा हुआ़ा था। उसे झोपड़ी के जल जाने का दु:ख न था, दुःख था तो उस पोटली का था, जिसमें उसकी उम्र भर की कमाई थी। यही उसकी योजनाओं का आधार थी। उसने सोच कि पोटली के साथ रुपए भी जल गए होंगे। पूरे पाँच सौ रुपए थे। वह इन पैसों से पितरों को पिंड देना चाहता था, मिठुआ की शादी कर घर में बहू लाना चाहता था। सूरदास अटकल से झोंपड़े में घुसा, पर अभी राख गरम थी। उसने उसी जगह की राख को टटोलना शुरू किया जहाँ पोटली रखी थी। उसे तवा मिला, लोटा मिला, पर पोटली न मिली। उसे अपनी बेबसी पर बहुत दु:ख हुआ।
जगधर भैरों के पास गया और उसे कहा कि सब लोग तुम पर शक कर रहे हैं। नायकराम ने तो धमकी तक दे डाली है। इस पर भैरों कहता है कि उसे ऐसी धमकियों की कोई परवाह नहीं है। भैरों यह मान जाता है कि आग उसी ने लगाई है। उसने जगधर को वह थैली भी दिखाई जिसे वह सूरदास की झोंपड़ी से चुरा लाया था। उसमें पाँच सौ रुपए से ज्यादा ही थे। उसने यह भी कहा कि ‘यह सुभागी को बहका ले जाने का जरीबाना (जुर्माना) है।’ जगधर ने उसे रुपए लौटा देने की सलाह दी। यद्यपि उसकी सलाह में ईर्ष्या भावना भी थी। यदि भैरों आधे रुपये उसे दे देता तो उसे तसल्ली हो जाती। जगधर की छाती पर ईष्ष्या रूपी साँप लोट रहा था। वह भैरों के घर से लौटकर सूरदास के पास जा पहुँचा।
सूरदास को राख इधर-उधर करते देख जगधर ने पूछा-अरे सूरे क्या दूँढते हो? सूरदास थैली की बात छिपा गया और बोला- ‘लोटा-परात तवा देख रहा था।’ जगधर ने पूछा- ‘और वह थैली किसकी है, जो भैरों के पास है।’ यह सुनकर सूरदास चौंक गया। वह समझ गया कि भैरों ने आग लगाने से पहले वह थैली निकाल ली होगी, पर वह जगधर के सामने अपनी जमा-पूँजी का रहस्य प्रकट नहीं करना चाहता था। अतः बोला-” मेरे पास थैली-वैली कहाँ? होगी किसी की। थैली होती, तो भीख माँगता ?”
इतने में सुभागी वहाँ आ पहुँची। वह रात भर मंदिर के पिछवाड़े अमरूद के बाग में छिपी बैठी थी। वह जानती थी कि यह आग उसके पति भैरों ने ही लगाई है। भैरों ने उस पर कलंक लगाया था। उसी के कारण सूरदास का सर्वनाश हो गया। उसने प्रण कर लिया कि वह भैरों के घर न जाएगी। मेहनत-मजदूरी करके जीवन का निर्वाह कर लेगी। जगधर ने उसे उसके पति की करतूत बताई। सुभागी ने पूछा कि क्या उसने भैरों के पास वह थैली देखी है? जगधर ने हाँ में उत्तर दिया तो सुभागी ने सूरदास से जानना चाहा कि क्या वे रुपए उसके ही थे। सूरदास सुभागी के सामने भी रुपए अपने होने से इंकार करता है। सुभागी सूरदास के चेहरे के भावों से समझ गई कि रुपयों वाली थैली सूरदास की है। वह बोली-‘अब मैं भैरों के घर ही रहूँगी क्योंकि वहीं रहकर वह थैली मेरे हाथ लग पाएगी। जब तक मैं सूरदास के रुपए न दिला दूँगी, तक तक मुझे चैन नहीं आएगा।”
सूरदास मन में सोच रहा था कि पिछले जन्म में मैंने भैरों के रुपये चुराए होंगे, उसी का यह दंड मिला है, ये रुपये तो मैंने ही कमाए थे, क्या फिर नहीं कमा सकता। मगर इस बेचारी सुभागी का क्या होगा? भैरों उसे घर में कभी न रखेगा। वह कहाँ मारी-मारी फिरेगी? यह सब सोचकर वह रोने लगा। सुभागी जगधर के साथ भैरों के घर की ओर चली जा रही थी। सूरदास अकेला रोता रहा। तभी उसे एक आवाज सुनाई दी-तुम खेल में रोते हो। यह बात घीसू ने मिठुआ को कही थी। इस बात को सुनकर सूरदास को कुछ ज्ञान हुआ-मैं तो खेल में रोता हूँ। कितनी बुरी बात है। सच्चे खिलाड़ी कभी नहीं रोते, धक्के खाते हैं, बाजी हारते हैं, पर मैदान में डटे रहते हैं। यह सोचकर सूरदास उठ खड़ा हुआ और विजय गर्व की तरंग में राख के ढेर को दोनों हाथों से उड़ाने लगा। मिठुआ ने आकर पूछा-अब हम कहाँ रहेंगे? सूरदास ने कहा कि हम दूसरा घर बनाएँगे। हम हर बार नया घर बनाते जाएँगे-सौ लाख बार।
शब्दार्थ एवं टिप्पणी –
अकस्मात – अचानक, प्रतिबिंब – परछाई, उपचेतना – नींद में जागते रहने का अहसास, अग्निदाह – आग की लपटें, आग का दहन, चिताग्नि – चिता में लगी अग्न, खुटाई – खोट, तस्कीन – तसल्ली, दिलासा, भूबल – ऊपर राख नीचे आग, अदावत – दुश्मनी, ज़रीबाना – ज़ुर्माना, दण्ड, नाहक – बेमतलब, अकारण, रुपयों की गर्मी – धन का घमंड, बल्लम टेरों लुटेरों, गुंडे-बदमाश, मसक्कत – मेहनत, परिश्रम, छाती पर साँप लोटना – ईष्य्या करना, टेनी मारना – तौल सही नहीं रखना, बाट खोटे रखना – कम तौलना, ईमान गवाना – बेईमानी करना,
गुनाह बेलज्जत नहीं रहना – बिना किसी लाभ के गुनाह नहीं करना, झिझकी – संकोच, झाँसा देना – भ्रमित करना, पेट की थाह लेना – अंदर की बात जानना, ईमान बेचना – विवशता के कारण झूठा या गलत आचरण करना, गोते खाना – इधर-उधर डूबना उतरना, विजय गर्व की तरंग – विजय और खुशी की उमंग में, उद्दिष्ट – निश्चित, निर्धारित, नैराश्यपूर्ण – निराशाजनक, सत्यानाश – सब कुछ बर्बाद, संचित – जमा किया हुआ, सुभा – शक, संदेह, उत्सुक – जानने को इच्छुक, खसम – पति, असफल – सफल न होना, भस्म – राख।